तमिलनाडु की राजनीति- में नया उदय- रजनीकांत और कमल हासन

HIGH LIGHT;  सरकारी बैंक एसबीआई को हुआ भारी घाटा # #देश में समय से पहले आम चुनाव नहीं होंगे. #राहुल पीएम की दौड से पीछे हटेेे,मोदी का रास्‍ता रोकेगे  # तमिलनाडु की राजनीति- में नया उदय- रजनीकांत और कमल हासन# #रक्षा उपकरणों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े ## राहुल गांधी -एसपीजी ऑफिसर्स पीछे ही रह गये। #सरकार तीन तलाक पर अध्यादेश लाएगी# उपसभापति के एक फैसले से उच्च सदन में सरकार फंसती दिखी

सरकारी बैंक एसबीआई को हुआ भारी घाटा

देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई के लिए बुरी खबर आई है और जून तिमाही में एसबीआई को भारी घाटे का सामना करना पड़ा है. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में 4876 करोड़ रुपये का भारी-भरकम घाटा हुआ है. हालांकि इस दौरान बैंक की ऐसेट क्वालिटी में सुधार हुआ है. इससे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में एसबीआई ने 2006 करोड़ रुपये का नेट प्रॉफिट कमाया था.
बैंके ने अपने कर्मचारियो के वेतन के लिए हाई प्रोविजनिंग की और इसके ट्रेजरी को हुए नुकसान के कारण एसबीआई के पहली तिमाही नतीजों में इतना भारी घाटा देखा गया है. बैंक ने भारी-भरकम नुकसान के लिए कारोबार की कम आय, बांड पर रिसीविंग बढ़ने आदि को जिम्मेदार ठहराया है. उसने कहा कि पहली तिमाही के दौरान कर्मचारियों पर होने वाला खर्च 25.68 फीसदी बढ़ गया है.
शेयर बाजारों को भेजी सूचना में बैंक ने कहा कि अप्रैल-जून तिमाही के दौरान उसकी कुल आय 62,911.08 करोड़ रुपये से बढ़कर 65,492.67 करोड़ रुपये पर पहुंच गयी. हालांकि बैंक की आय में हुआ ये इजाफा उसके पिछली तिमाहियों में हुई बढ़त के मुकाबले कम ही है.
इस दौरान बैंक के ग्रॉस नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट्स (एनपीए) 9.97 फीसदी से बढ़कर 10.69 फीसदी और नेट एनपीए मामूली कम होकर 5.97 फीसदी की तुलना में 5.29 फीसदी पर आ गया. बैंक ने कहा कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में लोन के लिए कुल प्रोविजनिंग 8,929.48 करोड़ रुपये से दोगुनी होकर 19,228 करोड़ रुपये पर पहुंच गई.

####देश में समय से पहले आम चुनाव नहीं होंगे- अमित शाह 

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकजुटता पर चुटकी है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकजुटता की बात की जा रही है, लेकिन मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव और राज्यसभा उपसभापति चुनाव में जो हुआ, उसको सबने देखा है. इंडिया टुडे से खास बातचीत के दौरान शाह ने अटकलों को खारिज करते हुए साफ किया कि देश में समय से पहले आम चुनाव नहीं होंगे.

बीजेपी अध्यक्ष शाह ने छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीतने का दावा भी किया. उन्होंने कहा, ‘हम इन तीनों राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने जा रहे हैं.’ इस दौरान उन्होंने मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए सत्ता विरोधी लहर की बात को भी सिरे से खारिज कर दिया.

उन्होंने कहा कि 22 करोड़ लोगों के जनधन खाते खोले गए. 2019 के लोकसभा चुनाव से जुड़े सवाल पर शाह ने कहा कि हम अपने कामकाज को लेकर जनता के बीच जाएंगे और देश की जनता चाहती है कि मोदी साल 2019 में फिर से प्रधानमंत्री बनें. राफेल डील से जुड़े सवाल पर अमित शाह ने कहा कि इस मामले में रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने सब कुछ स्पष्ट कर दिया है. विपक्ष पर हमला बोलते हुए बीजेपी अध्यक्ष ने कहा, ‘हम उन लोगों की बयानबाजी की चिंता नहीं करते हैं, जिनके पास आज जॉब नहीं हैं.’ संसद के इसी मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में विपक्षी पार्टी टीडीपी ने मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था, जिसका कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने समर्थन किया था. हालांकि मोदी सरकार के खिलाफ यह प्रस्ताव गिर गया था. अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग में विपक्ष के 126 के मुकाबले मोदी सरकार को 325 वोट मिले थे. इसके अलावा राज्यसभा उपसभापति चुनाव में कई विपक्षी दलों ने एनडीए के उम्मीदवार हरिवंश नारायण सिंह के पक्ष में वोट किया था, जिसके चलते कांग्रेस के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा था. जहां एक ओर एआईएडीएमके, टीआरएस और बीजेडी ने हरिवंश का समर्थन किया, तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, पीडीपी ने वोटिंग से खुद को अलग रखा.

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कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी को पराजित करने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी।
भाजपा को अगर 200 से कम सीटे हासिल हुई तो मोदी को उनके सहयोगी दल ही प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नही करेंगे
रायपुर : कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से पीछे हटने का लगभग साफ संकेत देते हुए कहा कि उनका मुख्य लक्ष्य मोदी एवं भाजपा को सत्ता में आने से रोकने का है। राहुल गांधी ने शुक्रवार को वरिष्ठ पत्रकारों से बातचीत में कहा कि इस बारे में नंबर आने पर चुनाव के बाद बात हो जाएगी। इसका खास मायने नही है और न ही इसको लेकर कोई समस्या है। उन्होने यह भी विश्वास जताया कि भाजपा को अगर 200 से कम सीटे हासिल हुई तो मोदी को उनके सहयोगी दल ही प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नही करेंगे। उन्होने कहा कि भाजपा के विजय रथ को वह गठबन्धनों के बूते पर रोकने में सफल रहेंगे। उन्होने कहा कि उत्तरप्रदेश एवं बिहार में बनने वाले गठबंधनों से मोदी को करारा झटका मिलने वाला है। उन्होने कहा कि उत्तरप्रदेश में बसपा सपा के गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल होगी,इसके लिए बातचीत चल रही है।अगर तीनो दल मिलकर चुनाव लड़े तो मोदी को पांच सीटे भी उत्तरप्रदेश में नही मिल पाएंगी। पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य की 80 सीटों में से भाजपा एवं उसके सहयोगी दल ने 73 सीटे जीती थी। कांग्रेस को केवल दो सीटे रायबरेली एवं अमेठी मिली थी। रायबरेली से सोनिया गांधी तो काफी अच्छे अन्तर से विजयी हुई थी लेकिन राहुल को काफी जबर्दस्त चुनौती का अमेठी में सामना करना पड़ा था। उत्तरप्रदेश में गठबंधन में कांग्रेस को कितनी सीटे मिलेगी इस बारे में उन्होने कुछ नही कहा। गांधी ने बिहार का जिक्र किया और कहा कि वहां भी राजद,कांग्रेस एवं अन्य दलों के गठबंधन द्वारा मोदी को करारी चुनौती मिलने वाली है। उन्होने कहा कि इन्ही दो राज्यों में मिलने वाली शिकस्त से मोदी का रास्ता रुक जाएगा।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु जैसे 4 राज्यों तक गठबंधन के पक्ष में हैं इन 4 राज्यों में लोकसभा की 543 निर्वाचन क्षेत्र में से 208 सीटें हैं। इन 4 राज्यों में कांग्रेस के चुनाव लड़ने की आशा है, अगर यहां गठबंधन हुआ तो वह 50 से 54 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस नए समझौते के तहत महाराष्ट्र में 22 सीटों पर, उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर, बिहार में 12 और तमिलनाडु में 10 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। राहुल ने कहा कि इन 4 राज्यों में पार्टी गठबंधन करेगी और अन्य राज्यों में सीटों का तालमेल हो सकता है। उन्होंने इस संबंध में किसी अन्य राज्य का नाम नहीं लिया। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस ममता बनर्जी के साथ सीटों का तालमेल कर सकती है और गठबंधन नहीं करेगी। वह राज्य की 42 सीटों में से केवल 8 पर चुनाव लड़ेगी। इसका अर्थ यह है कि 4 राज्यों की 250 सीटों में से कांग्रेस 60 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। अगर स्थिति योजनाबद्ध रही तो कांग्रेस अब 265 से 280 लोकसभा सीटों पर चुनाव लडऩे की तैयारी में है।

2019 के मद्देनजर भारतीय जनता पार्टी को इस समय सचमुच तलाश है तो पार्टनर की। तेलगू देशम पार्टी ऐसे पुराने साथी और बड़े दल के एनडीए छोडऩे के बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर यह सवाल उठाया जाने लगा था कि वे साथियों को साथ नहीं रख पा रहे हैं। शिवसेना के ठंडे-गरम रवैये ने इस मामले को और तूल दिया। अकाली दल की भी कुछ मामलों को लेकर राय अलग-अलग नजर आई। और तो और नए नवेले साथी बने नीतीश कुमार के जनता दल (यू) से भी ध्वनि ऐसी आती रही कि रिश्तों की गरम हंडिया ठंढी हो रही है। लेकिन, जिस तरह लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान उड़ीसा में बीजू जनता दल का जो रवैया रहा और फिर राज्यसभा उपसभापति चुनाव में खुलेआम हरिवंश का समर्थन किया गया, उससे साफ लगने लगा है कि बीजू जनता दल और भाजपा के बीच कुछ दाल पक रही है। वैसे यह आसान नहीं है।
बीजू जनता दल की सरकार उड़ीसा में पिछले 18 साल से सत्ता में लगातार है और अगले चुनावों के लिए उसे भी कुछ अपने साथियों से और कुछ सत्ता विरोधी भावना के कारण डर सता रहा है। बीजू जनता दल ने उड़ीसा में कांग्रेस का शासन 2000 में उखाड़ फेंका था और उस समय भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर यह काम किया था। सत्ता का यह प्रेम पूरे एक टर्म तक शबाब पर रहा पर दूसरे दौर में आपस में मतभेद टकराते रहे। नतीजा 2009 के चुनाव में दोनों ही दलों के रास्ते अलग हो गए और उसने थर्ड फ्रंट नाम का एक अलग गुट बना लिया था। देश के स्तर पर जिस तरह के राजनैतिक समीकरणों में बदलाव हुए, उससे यह लगने लगा है कि उड़ीसा में भारतीय जनता पार्टी को एक ऐसा ही साझेदार मिल गया है जैसे बिहार में। ऐसा बताया जा रहा है कि इस मामले में मोटा-मोटी सहमति भी हो गई है। बीजू जनता दल अपने कुछ सांसदों से मुक्ति पाएगा और भारतीय जनता पार्टी अपने उम्मीदवारों को उतारेगा। इस समय बीजू जनता दल की लोकसभा में 19 और राज्यसभा की 9 सीटें हैं। ऐसी ही कुछ स्थिति आंध्र और तेलंगाना में भी बनती दिख रही है। आंध्र में चंद्रबाबू नायडू से नाता टूटने के बाद भारतीय जनता पार्टी के साथ जगन रेड्डी की पार्टी के भाजपा के साथ आने के आसार दिख रहे हैं। हो सकता है कि अधिकृत समझौता न हो लेकिन नूरा-कुश्ती की संभावना जरूर होती दिख रही है। अधिकृत समझौता होने में सबसे बड़ी बाधा आंध्र में की जा रही विशेष राज्य के दर्जे की है। इसे जगन मोहन रेड्डी की पार्टी भी मांग रही है और तेलगू देशम भी। भाजपा संविधान और कानून का हवाला देते हुए इससे बच रही है। तेलंगाना में चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली टीआरएस भी धीरे-धीरे एनडीए के करीब होती दिख रही है। उनका हरिवंश के समर्थन में आना भारतीय जनता पार्टी के लिए और रास्ते खोल रहा है।
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तमिलनाडु की राजनीति- में नया उदय- रजनीकांत और कमल हासन
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी डीएमके, वही पार्टी जिसकी कमान सन 1969 में एम करुणानिधि ने संभाली थी। डीएमके के संस्थापक थे सीएन अन्नादुरई, जिन्‍होंने कांग्रेस राज खत्‍म कर तमिलनाडु में नए विचार के साथ सत्‍ता स्‍थापित की। अन्‍नादुरई सिर्फ एक साल सीएम रह सके। फरवरी 1969 में उनका निधन हो गया। कुछ महीने बाद करुणानिधि ने पार्टी की कमान संभाली। उस वक्‍त तमिलनाडु के दो सितारे एक ही मंच पर विराजमान थे। पहले खुद करुणानिधि और दूसरे थे मरुदुर गोपालन रामचंद्रन यानी एमजीआर। उस वक्‍त दोनों दोस्‍त थे, लेकिन आगे चलकर एमजीआर करुणानिधि के दुश्‍मन बने और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) की स्‍थापना की। वही एआईएडीएमके जिसकी कमान एमजीआर के बाद जयललिता ने संभाली। एमजीआर जयललिता के राजनीतिक गुरु थे।

करुणानिधि को एमजीआर से खतरा होने लगा था और पार्टी की कमान संभालने के 3 साल बाद ही उन्‍होंने एमजीआर को बाहर का रास्‍ता दिखा दिया। अपमान का घूंट पीने के बाद एमजीआर ने नई पार्टी बनाई- एआईएडीएमके। तमिलनाडु से कांग्रेस का सफाया तो 1967 के चुनाव में अन्‍नादुरई ने ही कर दिया था। अब राज्‍य में सिर्फ दो पार्टी थीं डीएमके और एआईएडीएमके। दो ही नेता थे करुणानिधि और एमजीआर, एकदम आमने-सामने। यहां से इन दोनों पार्टियों का राजनीतिक खेल ऐसा शुरू हुआ कि तमिलनाडु की सत्‍ता ने कोई और चेहरा देखा ही नहीं। कभी करुणानिधि तो कभी एमजीआर, कभी जयललिता तो कभी करुणानिधि। इन्‍हीं तीन बड़े चेहरों का स्‍टारडम तमिलनाडु की जनता को लुभाता रहा है।

करुणानिधि, एमजीआर और जयललिता में से सबसे पहले दुनिया को एमजीआर ने अलविदा कहा। दिसंबर 1987 में किडनी फेल होने के कारण एमजीआर का निधन हो गया। उनके बाद 2016 में एमजीआर की विरासत संभालने वाली जयललिता भी चल बसीं। करुणानिधि अकेले बचे थे, 7 अगस्‍त 2018 को वह भी चल बसे। इस समय तमिलनाडु की सत्‍ता पर एआईडीएमके काबिज है, लेकिन पार्टी के अंदरूनी हालात ठीक नहीं हैं। दूसरी ओर डीएमके की कमान करुणानिधि के बेटे स्‍टालिन के हाथों में हैं। करुणानिधि और जयललिता के जाने के बाद डीएमके और एआईएडीएमके दोनों की कमजोर पड़ती दिख रही हैं। तमिलनाडु की राजनीति एक बार फिर पुराने मोड़ पर आकर खड़ हो गई है। राजनीति के उस मोड़ पर कांग्रेस का सफाया हुआ था और पहले करुणानिधि, उनके बाद एमजीआर का उदय हुआ। ठीक उसी प्रकार से आज तमिलनाडु में दो और सितारे आमने-सामने हैं। एक नाम है रजनीकांत और दूसरे हैं कमल हासन। तब कांग्रेस ने तमिलनाडु में राजनीतिक वजूद खोया था और आज बीजेपी के पास तमिलनाडु की सियासत में जगह बनाने का एक मौका है।

तमिलनाडु की राजनीति में फिल्‍मी हस्तियां दशकों से जादू बिखेरती आ रही हैं। करुणानिधि स्क्रिप्‍टराइटर थे, एमजीआर सुपरस्‍टार, जयललिता भी फिल्‍मों से आईं और अब कमल हासन और रजनीकांत। स्‍टारडम और फैन फॉलोइंग के मामले में रजनीकांत निश्चित तौर पर से कमल हासन से आगे हैं। दूसरी ओर कमल हासन बेहद संजीदा हैं, वह सोच-विचाकर कार्य करते हैं। उनकी समझ काफी बेहतर है। अब बची कांग्रेस, जो कि दशकों से तमिलनाडु की राजनीति में बेअसर हो चुकी है, लेकिन बीजेपी के पास एक मौका है। चुनौती बीजेपी के लिए भी कम नहीं है, क्‍योंकि तमिलनाडु में इस समय ऐसा कोई नेता नहीं है जो रजनीकांत के सामने खड़ा होकर ताल ठोक सके। तमिलनाडु में स्‍टारडम ही राजनीतिक सफलता की पहली शर्त है, जो कि रजनीकांत के पास है। कांग्रेस की तरह बीजेपी के पास भी ज्‍यादा विकल्‍प नहीं हैं। हां, इतना जरूर है कि बीजेपी करुणानिधि, जयललिता के जाने के बाद पैदा हुए खालीपन के इस दौर में तमिलनाडु में थोड़ा-बहुत आधार जरूर बना सकती है। साथ ही 2019 के लिए एनडीए के लिए एक बेहतर साथी भी तलाश सकती है।

आज़ादी के बाद से चिर प्रतिद्वंद्वी द्रमुक (डीएमके) और अन्नाद्रमुक (एआईडीएमके) के करिश्माई नेताओं का वर्चस्व रहा है। पिछले तीस साल से करूणानिधि और जयललिता ही तमिल राजनीति का चेहरा बने हुए थे। 2016 में एआईडीएमके अध्यक्ष जयललिता का निधन हो गया और अब डीएमके प्रमुख करुणानिधि हमारे बीच नहीं रहे। एआईडीएमके इस समय कई गुटों में बंट गया है। जयललिता की मौत के तुरंत बाद एआईडीएमके दो ग्रुप में बंट गया – शशिकला ग्रुप और पनीरसेल्वम ग्रुप। दोनों गुटों के बीच सत्ता को लेकर खींचतान हुई। समझौते के बाद दोनों ग्रुप ने मिलकर सरकार का गठन किया। जिसमें के पलानीस्वामी सीएम और ओ पनीरसेल्वम उप मुख्यमंत्री बने थे। वीके शशिकला को जेल जाना पड़ा। शशिकला इस समय जेल में है। वी के शशिकला के भाई वी दिवाकरण ने नई पार्टी ‘अन्ना द्रविदाड़ कषगम’ का गठन किया है। इससे पहले शशिकला के भतीजे टीटीवी दिनाकरण ने’ अम्मा मक्कल मुनेत्र कषगम’ (एएमएमके) का गठन किया था। वैसे तो करूणानिधि ने अपना वारिस एम् के स्टालिन को घोषित कर दिया था लेकिन आने वाले दिनों में उन्हें अपने भाई अलागिरी से चुनौती मिल सकती है। स्टालिन के नेतृत्व में ही डीएमके ने 2016 का विधानसभा चुनाव लड़ा और पार्टी को लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा। अलागिरी यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे थे और उन्हें 2014 में पार्टी से निकाल दिया गया था। राज्य सभा सांसद कनिमोझी, ए राजा और दयानिधि मारन से फिलहाल स्टालिन को कोई खतरा नहीं है क्योनी वे राज्य से ज़्यादा केंद्र की राजनीति में सहज दिखते हैं। एआईडीएमके और डीएमके की अंदर हो रही टूट से तमिलनाडु की राजनीती में शून्यता आना स्वाभाविक है। इस जगह को वही लोग भर सकते है जो इनकी तरह करिश्माई नेता हो और जिनकी जनता में पकड़ मजबूत हो। दो नाम जो उभर कर आते हैं वो है रजनीकांत और कमल हासन। तमिल राजनीति में हमेशा तमिल सिनेमा ने प्रभावशाली भूमिका निभाई है। करूणानिधि, एमजी रामचंद्रन और जयललिता फ़िल्मी बैकग्राउंड से थे। दक्षिण भारतीय की राजनीति की खासयित यह है कि वहां की जनता फ़िल्मी कलाकारों को भगवान का दर्जा देती है। उनसे अपने आप को जुड़ा महसूस करती है। रजनीकांत और कमल हासन का प्रभाव तमिल की जनता में कितना है यह किसी से छुपा नहीं है। रजनीकांत ने राजनीति में आने की घोषणा तो कर दी है पर अभी पार्टी का गठन नहीं किया है। अभी हाल ही में इंडिया टुडे के सर्वे में सामने आया था कि 17% अन्नाद्रमुक के वोटर रजनीकांत को वोट करना चाहते हैं । वही कमल हासन ने अपनी पार्टी ‘मक्कल नीधि मय्यम’ रखा, जिसका अर्थ होता है लोक न्याय केंद्र पार्टी । सिनेमा के बाद अब सियासत में इन दो महारथियों का जो मुक़ाबला होगा

##########रक्षा उपकरणों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग ने देश में बनने वाले रक्षा उपकरणों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए हैं। कैग के निशाने पर कानपुर की आयुध पैराशूट फैक्ट्री (ओपीएफ) है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पैराशूट फैक्ट्री ने बेहद घटिया गुणवत्ता वाले पैराशूट का उत्पादन किया है। इसकी वजह से सेना की तैयारियां भी प्रभावित हुई हैं। सिर्फ यही नहीं बार—बार शिकायत के बाद भी फैक्ट्री पैराशूट की कमियों को दूर नहीं कर सकी।

कैग ने इस संबंध में मंगलवार (7 अगस्त) को अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की थी। रिपोर्ट में कैग ने बताया, भारतीय सेना कुल 11 किस्म के पैराशूट का इस्तेमाल करती है। लेकिन आयुध पैराशूट फैक्ट्री सिर्फ 5 किस्म के पैराशूट बनाती है। शेष सभी पैराशूट विदेशों से खरीदे जा रहे हैं।देश में पैराशूट बनाने का जिम्मा कानपुर स्थित ओपीएफ के पास है। लेकिन फैक्ट्री द्वारा बनाए गए पैराशूटों की गुणवत्ता में कई खामियां पाई गईं हैं। सेना की चिंता है कि इन पैराशूटों से मानवों को उतारना खतरनाक है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2014 से 2017 के बीच ओपीएफ ने कुल 730 पैराशूट का उत्पादन किया है। इनकी कीमत 10.80 करोड़ रुपये के आसपास थी। लेकिन इन्हें सेना ने रिजेक्ट कर दिया। इसके पीछे सेना ने कई कारण बताए। जैसे बीपीएसयू-30 पैराशूट में दोनों कैनोपी पर व्हिपिंग ढीली हो गई और पुली के सिरे पर चढ़ गई। जबकि पीपी चेस्ट टाइप पैराशूट के सहायक पैराशूट में छेद पाया गया। पीपी मिराज 2000 पैराशूट में हारनेस असेंबली का लैप स्ट्रैप समायोजन के लिए बहुत कड़ा था। छोटे कद, छोटी लंबाई इत्यादि से यह असुविधा हो रही थी। कैग ने कहा कि पैराशूट फैक्ट्री साल 2012-17 के दौरान सिर्फ पांच बार ही पैराशूट के उत्पादन लक्ष्य को हासिल कर पाई जबकि 19 मौकों पर देरी की गई। दूसरे, पैराशूटों में गुणवत्ता की खामियों की वजह से तीनों सेनाओं की संचालन तैयारियों तथा उड़ान प्रतिबद्धताओं को प्रभावित किया। निरीक्षण के दौरान पैराशूट में इस्तेमाल किए गए कपड़ों में भी दोष पाए गए। कई जगह कपड़ों में छेद पाए गए जो पैराशूट की उड़ान के लिए घातक होता है। कैग ने यह भी कहा कि नए विकसित सीएफएफ एवं एचडी पैराशूटों का थोक उत्पादन गुणवत्ता मानकों का समाधान नहीं हो पाने के कारण शुरू नहीं हो सका। नतीजा यह हुआ कि 9 से 11 साल के इंतजार के बाद भी सेनाओं को ये पैराशूट नहीं मिल पाए। कैग ने इस बात पर भी नाराजगी प्रकट की है कि ओएफबी ने इस मुद्दे पर मंत्रालय के प्रश्नों का जवाब नहीं दिया।

########## राहुल गांधी -एसपीजी ऑफिसर्स पीछे ही रह गये
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 8 अगस्त को जब डीएमके चीफ करुणानिधि को श्रद्धांजलि देने चेन्नई के राजाजी हॉल पहुंचे थे उस दौरान एक बड़ी सुरक्षा चूक हुई थी। राहुल गांधी जब पिछले दरवाजे से राजाजी हॉल में प्रवेश कर रहे थे, उस वक्त भारी भीड़ और अफरातफरी की वजह से वे एसपीजी गार्ड्स के अलग हो गये। एसपीजी ने इस घटनाक्रम पर गंभीर चिंता जताई है। राहुल गांधी को लगभग भीड़ को चिरते हुए आगे बढ़ना पड़ा इस दौरान एसपीजी ऑफिसर्स पीछे ही रह गये। बता दें कि इस दौरान वहां पहुंचने वाले किसी भी शख्स की चेकिंग नहीं हुई थी। इस लिहाज से एसपीजी अधिकारी और भी चिंतित थे। द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने कहा, “एसपीजी अधिकारियों ने हमें राजाजी हॉल में सुरक्षा खामियों के बारे में नहीं बताया था, हमलोगों ने उन्हें उन हालात के बारे में बताया जिससे ये गड़बड़ी पैदा हुई और लोग वीआईपी के नजदीक पुहंच गये, जैसे ही इस मुद्दे को उठाया गया हमने उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया कराई।”

दरअसल राजाजी हॉल के पिछले दरवाजे में एक सीढ़ियों से आने की व्यवस्था की गई थी, ये सिर्फ वीआईपी, सेलिब्रेटीज और बड़े नेताओं के लिए था। जबकि पब्लिक को सरकारी मल्टी स्पेशियालिटी अस्पताल के मेन गेट से अंदर आना था। पीएम नरेंद्र मोदी के यहां से गुजरने के बाद भारी संख्या में उमडी भीड़ बैरिकेड को हटाकर पिछले दरवाजे के पास पहुंच गई। जब राहुल गांधी पिछले दरवाजे के पास पहुंचे तो सीढ़ियों पर पहले से ही लोग जमा थे। भीड़ को देखते ही एसपीजी अधिकारियों के होश उड़ गये। लेकिन भीड़ और वीआईपी को देखते हुए वे कुछ भी करने में असमर्थ थे।

जैसे ही राहुल गांधी आगे बढ़ने लगे, सुरक्षाकर्मियों के पसीने छूटने लगे। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि राहुल को कदम कदम बढ़ाकर आगे बढ़ना पड़ा। आखिरकार एडीजीपी सुनील कुमार भीड़ को धक्का देकर उनके पास पहुंचे और उन्हें कवर दिया। बता दें कि इस पूरे इलाके में ना तो मेटल डिटेक्टर था और ना ही निगरानी हो रही थी। एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि एसपीजी ने उन्हें वीवीआईपी की सही स्थिति के बारे में नहीं बताया, और न ही राजाजी हॉल के पास राहुल के पहुंचने से पहले तमिलनाडु पुलिस की क्लियरेंस ली गई थी। जब हालात बेकाबू हो गये तो, पुलिस कमिश्नर ए के विश्वनाथन, एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस एमसी सारंगन और कुछ दूसरे पुलिस अधिकारियों ने कुछ कॉन्स्टेबल के साथ मोर्चा संभाला। बता दें कि आठ अगस्त को चेन्नई के राजाजी हॉल में करुणानिधि को श्रद्धांजलि देने पीएम समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्री और कई दूसरे वीवीआईपी नेता पहुंचे थे।

##########सरकार तीन तलाक पर अध्यादेश लाएगी. –  उपसभापति के एक फैसले से उच्च सदन में सरकार फंसती दिखी
मोदी कैबिनेट की मंज़ूरी के बाद तीन तलाक बिल को तीन संशोधनों के साथ आज राज्यसभा में पेश किया जाना था. मगर अब सूत्रों के हवाले से खबर है कि तीन तलाक बिल अब टल गया है. यानी अब शीतकालीन सत्र में ही ट्रिपल तलाक बिल लाया जाएगा. बताया जा रहा है कि सरकार तीन तलाक पर अध्यादेश लाएगी. दरअसल, मोदी कैबिनेट ने जो तीन तलाक संशोधन बिल को मंजूरी दी है, उसके मुताबिक ये तय किया गया है कि संशोधित बिल में दोषी को ज़मानत देने का अधिकार मेजिस्ट्रेट के पास होगा और कोर्ट की इजाज़त से समझौते का प्रावधान भी होगा. बता दें कि संसद का मॉनसून सत्र आज यानी शुक्रवार को ख़त्म हो रहा है.

मॉनसून सत्र का आज आखिरी दिन था. लेकिन शुक्रवार को राज्यसभा में एक ऐसा मौका आया जो सरकार को असहज कर गया और इसकी वजह विपक्ष नहीं बल्कि नवनिर्वाचित उपसभापति हरिवंश बने. उपसभापति के एक फैसले से उच्च सदन में सरकार फंसती दिखी और विपक्ष को उस पर निशाना साधने का मौका मिल गया. दरअसल राज्यसभा में आज प्राइवेट मेंबर कामकाज का दिन था और इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी के सांसद विशम्भर प्रसाद ने देशभर में समान आरक्षण व्यवस्था लागू करने से जुड़ा एक प्रस्ताव पेश कर दिया. इस प्रस्ताव पर चर्चा हुई और तमाम दलों के सांसदों ने प्रस्ताव का समर्थन भी किया. लेकिन आखिर में जब आसन की ओर से सदस्य से प्रस्ताव वापस लेने के लिए कहा गया तो उन्होंने उपसभापति से इस पर वोटिंग कराने की मांग कर दी. पीठासीन हरिवंश ने इसे तुरंत ही मंजूर भी कर दिया.  उपसभापति के फैसले पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आपत्ति जताते हुए कहा कि सामान्य रूप से प्राइवेट मेंबर प्रस्ताव पर डिवीजन नहीं होता है, इसका मकसद सिर्फ सरकार को मुद्दे से अवगत कराना होता है. प्रस्ताव को पेश करने के बाद वापस ले लिया जाता है. उन्होंने कहा कि वोटिंग कराकर एक नई परंपरा डाली जा रही है. इसका समर्थन करते हुए सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने कहा कि प्राइवेट बिल पर वोटिंग हो सकती है लेकिन प्रस्ताव पर कभी वोटिंग नहीं हुई. उपसभापति हरिवंश ने कहा कि नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि एक बार कहने के बाद वोटिंग रोकी जा सके. इस पर केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने कहा कि यह आदेश तो हम मानेंगे लेकिन आगे इस नियम में आपको कुछ सुधार करना होगा. इस बीच बीजेपी सांसद अमित शाह अपने सांसदों से नो का बटन दबाने के लिए कहते भी सुने गए. 

आरक्षण से जुड़ा यह प्रस्ताव सदन में गिर गया और सत्ताधारी दलों के सांसदों ने इस बिल का विरोध किया. प्रस्ताव के पक्ष में 32 और विरोध में 66 वोट पड़े. सदन में कुल 98 सदस्य मौजूद थे. प्रस्ताव के गिरते ही विपक्षी दल सदन में सरकार के खिलाफ दलित विरोधी होने के नारे लगाने लगे. इस पर उपसभापति की ओर से उन्हें शांत कराया गया. रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अच्छा होता कि यह लोग तीन तलाक पीड़ित बेटियों के पक्ष में खड़े होते. इनको बेटियों के पक्ष में खड़ा होता चाहिए, जिसका यह लोग विरोध कर रहे हैं. यह लोग उस विषय पर राजनीति कर रहे हैं और यह बात मैं सदन में कह रहा हूं. दरअसल आमतौर पर प्राइवेट मेंबर प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं कराई जाती है. लेकिन उपसभापति ने इसे स्वीकार कर लिया तो वह जरूरी हो जाती है. अब आरक्षण से जुड़ा यह प्रस्ताव गिराने पर सरकार की किरकिरी होना तय थी. यही वजह थी कि सरकार के तमाम बड़े मंत्री प्रस्ताव पर वोटिंग के पक्ष में नहीं थे.

 

ऐसी खबरें थीं कि केंद्र सरकार ट्रिपल तलाक बिल को संसद के राज्यसभा में पारित करवाने के लिए मॉनसून सत्र एक दिन के लिए बढ़ा भी सकती है. मगर फिलहाल खबर है कि तीन तलाक बिल अगले सत्र के लिए टाल दिया गया है. मोदी सरकार तीन तलाक बिल को इसी सत्र में पारित कराना चाहती थी. जिसे लेकर आज सुबह संसद परिसर में बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक भी हुई. शुरू में सूत्रों ने खबर दी थी कि केंद्र सरकार के पास प्लान बी भी है. इसके मुताबिक, केंद्र सरकार ट्रिपल तलाक पर अध्यादेश ला सकती है या फिर आपातकालीन कार्यकारी आदेश लाएगी. राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने कहा कि तीन तलाक बिल को आज नहीं लाया जाएगा, क्योंकि इसे लेकर आम सहमति नहीं बन पाई तीन तलाक बिल अभी के लिए टल गया है. अगले सत्र यानी शीतकालीन सत्र में ही तीन तलाक बिल लाया जाएगा. सूत्रों की मानें तो सरकार ट्रिपल तलाक बिल पर अध्यादेश लाएगी. गुरुवार को कैबिनेट ने तीन तलाक बिल पर राजनीतिक गतिरोध खत्म करने को लेकर बिल में अहम संशोधनों को मंज़ूरी दे दी. अब संशोधित बिल में पीड़िता या उसके खून के रिश्ते का कोई शख्स को एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार होगा. साथ ही मजिस्ट्रेट को ज़मानत देने का अधिकार होगा. और कोर्ट की इजाज़त से समझौते का प्रावधान होगा.
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