राजनीति के पितामह को उत्तराखंड के चुनाव का इंतजार

पं0 नारायण दत्‍त तिवारी जन्‍म दिवस पर विशेष- 18 अक्‍टूबर- हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल की विशेष प्रस्‍तुति- प्रस्‍तुति- चन्‍द्रशेखर जोशी- सम्‍पादक

91 वर्ष पूर्ण कर रहे ये राजनीति के पितामह बडी बेताबी से उत्तराखंड के चुनाव का इंतजार कर रहे हैं. अभी भी कईयों को निपटाने तो कईयों को उठाने की विलक्षण रणनीति हैं राजनीति के इस चाणक्य की, 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के दावेदार यशपाल आर्य को राजनीति के इस चाणक्य का आर्शीवाद मिल सकता है- उनकी हड्डी-पसली और पाचन तंत्र भले ही कमजोर पड़ गए हों पर उनकी रग-रग में राजनीति है और उनका दिमाग अब भी दिग्गज नेताओं की तरह काम करता है.
18 अक्तूबर, 1925 को नैनीताल के बलूती गांव में पैदा हुए तिवारी आजादी के समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्र संघ के अध्यक्ष थे. तिवारी संभवतः देश के इकलौते बड़े नेता हैं जो भारत के गणराज्‍य बनने के समय से राजनीति में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सक्रिय हैं. उत्तर प्रदेश में चार बार और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तथा केंद्र में लगभग हर महत्वपूर्ण विभाग के मंत्री रहे तिवारी अतीत के पिंजरे में कैद होने वालों में नहीं हैं.ndtiwari
विवादों और उम्र के आखिरी पड़ाव पर होने के बावजूद आखिर वह क्या खास बात है जो कांग्रेस की राजनीति में तिवारी को अतीत नहीं बनने देती? ऐसे एक विवाद के बाद कई नेताओं का राजनैतिक जीवन खत्म होता देखा गया है.
तिवारी के कैनवस पर उत्तराखंड नहीं, देश है. कभी योजना आयोग में मनमोहन सिंह के बॉस रह चुके तिवारी को जिस जिस ने भी निपटाना चाहा, वो खुद निपट गया, उत्तराखंड में कहते हैं कि जिस पर गीत बन गया वह निबट गया. परन्तुर भयंकर राजनीतिक झंझावत भी वह झेलते गये,
उत्तरराखण्ड् में इस समय गीतों के रचनाकारों को राजगायक बनाकर भले ही मौन धारण करा दिया गया हो परन्तुज मुख्यामंत्री के रूप में श्री तिवारी जी ने अभिव्यंक्तिं की आजादी को रोकने की कभी पहल नही की-
नब्बे के पड़ाव पर पहुंच आधिकारिक रूप से पारविारिक व्यक्ति घोषित हुए दिग्गज कांग्रेस नेता एनडी तिवारी की विरासत को लेकर अब बातें होने लगी हैं। खुद की निजी संपत्ति शून्य बताने वाले तिवारी इस समय तीन जगह से पेंशनर हैं, इसलिए रोहित की मां उज्ज्वला तिवारी की फेमिली पेंशन की हकदार हैं।
एनडी तिवारी की राजनीतिक ऊंचाई का पता उनकी पेंशन से भी चलता है। तिवारी इस समय पूर्व विधायक, पूर्व सांसद और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के नाते पेंशनर हैं। पूर्व विधायक के नाते उनकी प्रतिमाह कुल पेंशन 39, 000 बैठती है, जिसे वो देहरादून कोषागार के मार्फत प्राप्त करते हैं। चूंकि वो स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में 15 माह से अधिक जेल में रहे हैं इस नाते तिवारी केंद्र से 17 हजार रुपये प्रतिमाह और राज्य सरकार से 11 हजार रुपये प्रतिमाह अलग-अलग राजनीतिक पेंशन के हकदार हैं । इसके अलावा तिवारी पूर्व लोकसभा सांसद होने के नाते भी पेंशन के पात्र हैं। चूंकि वो एक से अधिक बार सांसद रहे हैं इसलिए बतौर पूर्व सांसद उनकी पेंशन भी करीब 40 हजार बैठती है। जानकारों का मानना है कि चूंकि रोहित को तिवारी वारिस घोषित कर चुके हैं, इसलिए रोहित की मां तिवारी की फेमिली पेंशन पर अधिकार हैं। हालांकि इसके लिए तिवारी को खुद सभी विभागों के दस्तावेज में उज्ज्वला को बतौर पत्नी शामिल हो चुकी है।
नारायण दत्त तिवारी का जन्म 1925 में नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ था। तब न उत्तर प्रदेश का गठन भी नहीं हुआ था। भारत का ये हिस्सा 1937 के बाद से यूनाइटेड प्रोविंस के तौर पर जाना गया और आजादी के बाद संविधान लागू होने पर इसे उत्तर प्रदेश का नाम मिला। तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। जाहिर है तब उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी रही होगी। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर पूर्णानंद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। नारायण दत्त तिवारी शुरुआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल में हुई। यकीनन अपने पिता के तबादले की वजह से उन्हें एक से दूसरे शहर में रहते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की। अपने पिता की तरह ही वे भी आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। 1942 में वह ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पंपलेट छापने और उसमें सहयोग के आरोप में पकड़े गए। उन्हें गिरफ्तार कर नैनीताल जेल में डाल दिया गया। इस जेल में उनके पिता पूर्णानंद तिवारी पहले से ही बंद थे। 15 महीने की जेल काटने के बाद वह 1944 में आजाद हुआ। बाद में तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने राजनीतिशास्त्र में एमए किया। उन्होंने एमए की परीक्षा में विश्वविद्याल में टाप किया था। बाद में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की। 1947 में आजादी के साल ही वह इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी। आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया। कांग्रेस की हवा के बावजूद वे चुनाव जीत गए और पहली विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंच गए। यह बेहद दिलचस्प है कि बाद के दिनों में कांग्रेस की सियासत करने वाले तिवारी की शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई। 431 सदस्यीय विधानसभा में तब सोशलिस्ट पार्टी के 20 लोग चुनकर आए थे। कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ। 1965 में वह कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली। कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली। 1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था। 1969 से 1971 तक वे कांग्रेस की युवा संगठन के अध्यक्ष रहे। एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। यह कार्यकाल बेहद संक्षिप्त था। 1977 के जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांचल के भी मुख्यमंत्री बने। केंद्रीय मंत्री के रूप में भी उन्हें याद किया जाता है। 1990 में एक वक्त ऐसा भी था जब राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी की चर्चा भी हुई। पर आखिरकार कांग्रेस के भीतर पीवी नरसिंह राव के नाम पर मुहर लग गई। बाद में तिवारी आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनाए गए लेकिन यहां उनका कार्यकाल बेहद विवादास्पद रहा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी को आज उस समय बड़ा झटका लगा, जब दिल्ली हाईकोर्ट में उनके रक्त के नमूने संबंधी डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक किया गया और उस रिपोर्ट के अनुसार पितृत्च वाद दायर करने वाले रोहित शेखर ही एनडी तिवारी के बेटे हैं।
दिल्ली में रहने वाले 32 साल के रोहित शेखर का दावा है कि एनडी तिवारी ही उसके जैविक पिता हैं और इसी दावे को सच साबित करने के लिए रोहित और उसकी मां उज्ज्वला शर्मा ने 4 साल पहले यानी 2008 में अदालत में एन डी तिवारी के खिलाफ पितृत्व का केस दाखिल किया था।
अदालत ने मामले की सुनवाई की और अदालत के ही आदेश पर पिछले 29 मई को डीएनए जांच के लिए एनडी तिवारी को अपना खून देना पड़ा था।
देहरादून स्थित आवास में अदालत की निगरानी में एनडी तिवारी का ब्लड सैंपल लिया गया था। कुछ दिनों पहले हैदराबाद के सेंटर फोर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायएग्नोस्टिक्स यानी सीडीएफडी ने ब्ल़ड सैंपल की जांच रिपोर्ट अदालत को सौंप दी।
सीडीएफडी की इस सील्ड रिपोर्ट में एनडी तिवारी के साथ रोहित शेखर और रोहित की मां उज्ज्वला शर्मा की भी डीएनए टेस्ट रिपोर्ट शामिल हैं। हालांकि एनडी तिवारी नहीं चाहते कि उनकी डीएनए टेस्ट रिपोर्ट सार्वजनिक हो इसलिए उन्होंने अदालत में इसे गोपनीय रखने के लिए याचिका भी दी थी लेकिन अदालत इसे खारिज कर दिया और इसे खोलने का आदेश जारी कर दिया।

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