”नीतीश कुमार का इस्तीफा सेट था.”

हिमालयायूके ने कुछ माह पूर्व नीतिश कुमार की मोदी से मुलाकात के बाद लिखा था – खिचडी पक चुकी है, बस अब समय का इंतजार है- उस समय कुछ लोगों ने इसको हल्‍की स्‍टोरी माना था- आज 26 जुलाई 17 को आये नीतिश कुमारके इस्‍तीफे से उनके कान खुल गये होगे-  

जेडीयू विधायक दल की बैठक के बाद नीतीश कुमार ने बिहार के सीएम पद से इस्तीफा दे दिया. बिहार के राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने नीतीश कुमार का इस्तीफा मंजूर कर लिया. इस्तीफा देने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि हमने गठबंधन धर्म का पालन किया. इस माहौल में मेरे लिए काम करना मुश्किल हो गया था. मैंने कभी किसी का इस्तीफा नहीं मांगा. अंतरात्मा की आवाज के बाद इस्तीफा दिया. मैं अपना रुख नहीं बदल सकता.

दिल्ली में बीजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक शुरू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह बैठक में मौजूद. बीजेपी ने नीतीश कुमार को समर्थन देने का एलान किया. इसकी जानकारी राज्यपाल को दे दी गई है.  

नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार को बधाई दी है. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, ”भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई में जुड़ने के लिए नीतीश कुमार जी को बहुत-बहुत बधाई. सवा सौ करोड़ नागरिक ईमानदारी का स्वागत और समर्थन कर रहे हैं. देश के, विशेष रूप से बिहार के उज्जवल भविष्य के लिए राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ एक होकर लड़ना,आज देश और समय की मांग है.”

बिहार में इस पूरी हलचल के सूत्रधार रहे बिहार बीजेपी के नेता सुशील मोदी – बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा, “हमने नीतीश कुमार को फोन कर बधाई दी है. हमने तय किया है कि नीतीश कुमार का समर्थन करेंगे. हमने अपने फैसले की जानकारी नीतीश कुमार को दे दी है. हम नीतीश कुमार को अपना नेता मानते हैं.” बीजेपी ने राज्यपाल को इस फैसले की जानकारी दे दी है. नीतीश कुमार के घर पर बीजेपी के विधायक पहुंचने शुरू हो गए.

एएनआई के मुताबिक नीतीश कुमार ने राहुल गांधी को अपने इस्तीफे देने की मंशा के बारे में पहले नहीं बताया था.

लालू यादव ने कहा, ”नीतीश कुमार को पता था कि इस मामले में फंसने वाले हैं. बीजेपी के साथ नीतीश कुमार की सेटिंग थी. इस्तीफे के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी. राजभवन के बाहर उन्होंने बीजेपी से समर्थन लेने की बात से इनकार नहीं किया. नीतीश कुमार के इस्तीफे से हमें दुख हुआ.” लालू यादव ने कहा, ”नीतीश कुमार को मालूम है कि उनके ऊपर मर्डर का केस है. देश के एक सीएम पर इतना गंभीर आरोप है जिसका संज्ञान लिया जा चुका है. नीतीश कुमार पर 302 और 307 का मुकदमा है. यह मामला 1991 का है. 31 अगस्त 2009 को लोअर कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया है. नीतीश कुमार ने अपने एमएलसी के शपथपत्र में भी इस मामले का जिक्र किया. भ्रष्टाचार से भी बड़ा मामला अत्याचार का होता है.”  लालू यादव ने कहा, ”जेडीयू के प्रवक्ता लगातार सफाई मांग रहे थे लेकिन जेडीयू के प्रवक्ता पुलिस और सीबीआी नहीं हैं. इसलिए उनरे कहने पर सफाई नहीं देंगे. नीतीश कुमार का इस्तीफा सेट था.”

बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं. जबकि सरकार बनाने के लिए 122 सीटें चाहिए. बिहार में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस का महागठबंधन है. महागठबंधन के पास राज्य में जेडीयू की 71, आरजेडी की 80 और कांग्रेस की 27 विधायकों को मिलाकर 178 सीटें हैं. अगर नीतीश महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए में शामिल होते हैं तो जेडीयू की 71, बीजेपी की 53, आरएलएसपी और एलजेपी की 2-2 और हम की एक सीट को मिलाकर आंकड़ा 129 हो जाएगा जो बहुमत से सात ज्यादा है.

हिमालयायूके ने 25 जुलाई को ही इस बारे में संभावना व्‍यक्‍त कर दी थी – भारतीय जनता पार्टी भविष्य की बड़ी चुनौती नीतीश कुमार को मान रही हैं। प्रस्ताव सामने आया कि नीतीश कुमार को तैयार किया जाए कि वे देश की राजनीति में आएं और उपप्रधानमंत्री पद का जिम्मा संभालें। संघ का मानना है कि अगर नीतीश कुमार देश के उपप्रधानमंत्री बनते हैं, तब नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के सारे कांटे स्वयं साफ हो जाएंगे। संघ चाहता है कि नीतीश कुमार को ये आश्वासन दिया जाए कि बिहार में उनके सारे समर्थकों को लोकसभा के लिए टिकट दिए जाएंगे। नीतीश कुमार अगर अपनी पार्टी को बनाए रखने का निर्णय लेते हैं तब भी और नीतीश कुमार अगर भारतीय जनता पार्टी में जाते हैं तब भी। अगर नीतीश कुमार चाहें, तो उत्तर भारत में जहां-जहां उनके प्रमुख समर्थक हैं, वो जगह उन्हें देने में भी संघ को कोई परेशानी नजर नहीं आती। स्वयं संघ प्रमुख मोहन भागवत के मन में नीतीश कुमार को लेकर एक सॉफ्ट कॉर्नर है। एक कोना ऐसा है, जिसमें वो नीतीश कुमार को देश के लिए अच्छा व्यक्ति मानते हैं। नीतीश कुमार के पास पूंजीपतियों का कोई पैसा नहीं जाता और न कोई पूंजीपति उनके इतने नजदीक है।

1999 में वो एनडीए सरकार में रेलमंत्री थे. गैसल ट्रेन दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. लेकिन उनका राजनीतिक रसूख कम नहीं हुआ. उन्होंने दिल्ली से लेकर पटना तक अपनी राजनीतिक स्वीकार्यता बरकरार रखी. सरकार से कुछ दिनों के लिए वनवास के बाद वो सत्ता में वापसी करते रहे. कभी बिहार सरकार में तो कभी केंद्र सरकार में. नीतीश कुमार 2000 में सिर्फ 7 दिन के लिए बिहार के सीएम बने. बहुमत साबित नहीं करने की स्थिति में उन्हें सरकार से हाथ धोना पड़ा. बिहार में सरकार से वंचित होने के बाद उन्होंने केंद्र का रुख किया. उन्होंने एनडीए सरकार में कृषिमंत्री का पद संभाला. बाद में वो 2001 से लेकर 2004 तक फिर से रेलमंत्री बने.

2005 में लालू-राबड़ी के जंगलराज से मुक्ति का नारा देकर उन्होंने बिहार में बहुमत की सरकार बनाई. इसके बाद वो लगातार मई 2014 तक बिहार के सीएम रहे. 2013 में जब प्रधानमंत्री मोदी को एनडीए के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया तो विरोधस्वरूप वो एनडीए से अलग हो गए. उस वक्त गुजरात दंगों का नाम लेकर एनडीए में सांप्रदायिक ताकतों के हावी होने का हवाला देकर एनडीए से अलग राह अपना ली.

लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में जेडीयू की करारी हार ने उन्हें एक बार फिर से नैतिकता के मानदंड अपनाकर इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया. नीतीश कुमार 2014 की हार की जिम्मेदारी लेते हुए सीएम के पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी कुर्सी अपने विश्वासपात्र जीतनराम मांझी को सौंप दी.

नीतीश कुमार की इस नैतिकता वाले फैसले ने उस वक्त मुश्किलें खड़ी करनी शुरू कर दी जब जीतनराम मांझी ने बगावती तेवर अपना लिए. अपनी राजनीतिक ताकत को बचाए रखने के लिए उन्हें कुर्सी की सख्त जरूरत महसूस हुई. लेकिन जीतनराम मांझी के सीएम के पद से हटने से इनकार करने पर दिल्ली में राष्ट्रपति के सामने अपने विधायकों की परेड तक करवानी पड़ी तब जाकर उन्हें बिहार के सीएम की कुर्सी हासिल हुई.

बदली हुई राजनीति परिस्थिति में उन्होंने 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में उन्होंने लालू यादव से हाथ मिला लिया. आरजेडी जेडीयू और कांग्रेस के महागठबंधन ने मोदी के लहर की हवा निकाल दी. नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक ताकत एक बार फिर से हासिल कर ली. उन्होंने साबित कर दिया कि मोदी लहर से पार पाने की कूवत सिर्फ वही रखते हैं.

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