निराश पड़े कार्यकर्ताओं एवं नेताओं में जोश भरने सक्रिय हुए अब ये पुराने नेता

 कांग्रेस को फि‍र मजबूत करने में जुटीं सोनिया गांधी वही  उत्तर प्रदेश में महागठबंधन को मिली के हार के के बाद एक बार फिर मुलायम सिंह यादव सक्रिय हुए है. कहा जा रहा कै कि समाजवादी पार्टी को फिर से खड़ा करने और संगठन को मजबूत करने के लिए मुलायम ने अखिलेश यादव को नसीहत दी है. मुलायम सिंह यादव ने साफ कह दिया है कि समाजवादी पार्टी की इस करारी हार के लिए कमजोर संगठन और नेताओं का जनता से दूरी बड़ी वजह है.  वही लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस संसदीय दल की पहली बैठक में कहा, ‘आप स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहले ऐसे लोग हैं, जो किसी राजनीतिक दल के खिलाफ नहीं, बल्कि देश की हर संस्था के खिलाफ चुनाव लड़े. ऐसी कोई संस्था नहीं थी जो लोकसभा चुनाव में आपसे लड़ी नहीं हो और आपको रोकने की कोशिश नहीं की हो. आप ऐसी हर संस्था से लड़े और लोकसभा पहुंचे. इस पर आपको गौरवान्वित होना चाहिए.’

इसके अलावा जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने मोदी कैबिनेट में शामिल न होकर दूर का दांव खेला है. उनका यह दांव अगले साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में बहुत काम आ सकता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पष्ट कहा है कि भविष्य में भी उनकी पार्टी केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होगी. ये मान कर चलिए कि विधानसभा चुनाव तक तो इसकी कोई संभावना नही हैं.

उन्होंने हालांकि, भारतीय जनता पार्टी से किसी भी नाराजगी को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि बिहार में हम साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं. और 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर इसका कोई असर नहीं होगा. उन्होंने कहा कि बिहार में भी गठबंधन की पहले भी और आज भी सरकार चल रही है. पहले ही सभी कुछ यहां तक कि मंत्रालय भी तय हो जाते हैं.  

वही लोकसभा चुनावों में बीजेपी को मिली प्रचंड़ बहुमत मिलने के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी लगातार नरेंद्र मोदी पर हमला बोल रहे हैं. ओवैसी ने कहा, हिंदुस्तान को आबाद रखना है, हम हिंदुस्तान को आबाद रखेंगे, हम यहां पर बराबर के शेहरी है, किरायेदार नहीं है, हिस्सेदार रहेंगे. 

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की अध्यक्ष सोनिया गाँधी को फिर से कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुन लिया गया है। संसद के सेंट्रल हॉल में कांग्रेस संसदीय दल की बैठक हुई जिसमें यह फ़ैसला लिया गया। बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत पार्टी के वरिष्ठ नेता मौजूद रहे।कांग्रेस के मीडिया विभाग के प्रमुख रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट कर यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सोनिया गाँधी को कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुना गया है। सुरजेवाला के मुताबिक़, सोनिया गाँधी ने उन 12.13 करोड़ वोटरों का धन्यवाद अदा किया जिन्होंने कांग्रेस पार्टी पर विश्वास जताया। 

 लोकसभा चुनाव 2019 में करारी हार और इसके बाद राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश के बाद पैदा हुए राजनीतिक संकट की पृष्ठभूमि में पार्टी संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने शनिवार को कहा कि कांग्रेस को फिर से मजबूत करने के लिए ‘कई निर्णायक कदमों’ पर चर्चा चल रही है. सोनिया गांधी को यहां पार्टी संसदीय दल की बैठक में नेता चुना गया. इससे पहले वह भी वह संसदीय दल की नेता की भूमिका निभा रही थीं.

संसदीय दल की बैठक में उन्होंने कहा, ‘‘हमारे कार्यकर्ता हमारे अग्रिम मोर्चे के सैनिक हैं. उन्होंने पिछले पांच वर्षों में नि:स्वार्थ भाव से काम किया. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जिस भारत के लिए हम लड़ रहे हैं, उससे जुड़ी भावना का विस्तार देश के कोने-कोने में हो.’’ 

क्या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग होंगे, यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि पहले तो उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया, दूसरा नीतीश का ताज़ा बयान दिखाता है कि वह और उनकी पार्टी बीजेपी से ख़ुश नहीं हैं। नीतीश पहले भी बीजेपी के साथ बिहार में सरकार चला चुके हैं और अलग भी हो चुके हैं। आइए, आपको बताते हैं कि मामला क्या है। नई मोदी सरकार के शपथ लेते ही एनडीए की अंदरूनी खींचतान खुल कर सामने आ गई है। जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा है कि बिहार में एनडीए की जीत किसी व्यक्ति विशेष की वजह से नहीं हुई है।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं अपने कार्यकर्ताओं का धन्यवाद करना चाहती हूं जिन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी की शत्रुता का सामना किया. यह उनकी मेहनत और धैर्य का परिणाम है कि देश के 12.3 करोड़ लोगों ने कांग्रेस में अपना विश्वास प्रकट किया.’’ 

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की प्रमुख सोनिया ने कहा, ‘‘मैं इस मौके पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का धन्यवाद करना चाहती हूं जिन्होंने पूरी मेहनत से प्रचार अभियान चलाया. कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने पार्टी के लिए दिन-रात एक कर दिया.’’ चुनावी हार और राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश के बाद पैदा हुए हालात का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘संकट के इस समय में हमें यह स्वीकारना होगा कि कांग्रेस पार्टी के सामने कई चुनौतियां हैं. कांग्रेस कार्यसमिति की कुछ दिनों पहले बैठक हुई थी जिसमें आगे के कदमों और आगे बढ़ने के संदर्भ में चर्चा की गई. पार्टी को मजबूत करने के लिए कई निर्णायक कदमों पर चर्चा हो रही है. ’’ 

गौरतलब है कि 25 मई को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की थी, हालांकि सीडब्ल्यूसी ने उनकी पेशकश को खारिज किया और उन्हें संगठन में सभी स्तर पर आमूलचूल बदलाव के लिए अधिकृत किया.

संसद के दोनों सदनों में संख्याबल का हवाला देते हुए सोनिया ने कहा, ‘‘हमें याद रखना चाहिए कि राज्यसभा में हमारी संख्या को चुनौती दी जाएगी और ऐसे में यह ज्यादा महत्वपूर्ण है कि समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ समन्वय सुनिश्चित किया जाए. संसद में जो भी मुद्दे उठें, वे हमारे कार्यकर्ताओं और आम जनता के दिमाग में घर कर जाएं.’ उन्होंने कहा, ‘‘प्रभावी विपक्ष के लिए संसद के सभी सदस्यों की अंगुली जनता की नब्ज पर होनी चाहिए, संसद में एजेंडा तय करना वाहिए और मुद्दों को आगे बढ़ाने के लिए निरंतरता सुनिश्चित होनी चाहिए.’’ सोनिया ने कहा, ‘‘हम सजग रहेंगे. हमें सरकार को उसके वादों को लेकर जवाबदेह ठहराना होगा. मनगढ़ंत डाटा के जरिए प्रगति को आंका जा रहा है. प्रगति का आकलन सच्चाई के साथ होना चाहिए. हम सच्चाई और पारदर्शिता के लिए लड़ाई जारी रखेंगे.’’ 

सूत्रों की मानें तो मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव से दो टूक कह दिया है कि अगर पार्टी को मजबूत करना है तो फिर पार्टी में पुराने नाताओं की वापसी होनी चाहिए. संगठन को मजबूत करने के लिए जरुरी है कि संगठन में पकड़ रखने वाले पुराने नेताओं को दोबारा पार्टी में वापस लाया जाय.

हालांकि मुलायम की इस नसीहत को अखिलेश कितना मानते है ये तो वक्त बतायेगा, लेकिन इस अप्रत्याशित हार से अखिलेश यादव बेहद परेशान है. महागठबंधन यूपी में 55 से 60 सीटों की उम्मीद कर रही थी, लेकिन नतीजे बेहद खराब रहें. महागठबंधन महज 15 सीटों पर सीमट गई और इसमें भी समाजवादी पार्टी को सिर्फ 5 सीटों ही मिली. 

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद समाजवादी पार्टी 5 सीटें जीती थी लेकिन इस बार बसपा से गठबंधन के बाद ही सिर्फ 5 सीटें ही मिली है. इतना ही नही कन्नौज से डिंपल यादव, बदांयू से धर्मेंद्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव भी चुनाव हार गये है. परिवार के सदस्यों की इस हार को लेकर भी सवाल उठ रहे है.  फिलहाल समाजवादी पार्टी में हार की वजहों को तलाशने के लिए मंथन का दौर चल रहा है,लेकिन इस बीच मुलायम की सक्रियता और नसीहतें चर्चा का विषय बना हुआ है.

चर्चा यह भी है कि मुलायम सिंह चाहते है कि पार्टी में शिवपाल सिंह यादव की वापसी होलेकिन अखिलेश फिलहाल इसके लिए बिल्कुल भी तैयार नही है. उधर मुयाम और शिवपाल में लगातार मुलाकातें हो रही है. दोनों के बीच हार को लेकर चर्चा भी हुई है, लेकिन शिवपाल की वापसी फिलहाल मुमकीन नही दिखती. हार के बाद अखिलेश यादव ने पार्टी के सभी प्रवक्ताओं को टीवी डिवेट में जाने पर रोक लगा दिया है. 

खुद अखिलेश यादव 3 जून को आजमगढ़ जा रहे है. अखिलेश यादव अपनी जीत के लिए आजमगढ़ की जनता का अभार व्यक्त करेगे. सोमवार को जमगढ़ में एक जनसभा को संबोधित करेंगे, जनता का अभार प्रकट करेंगे और आजमगढ़ में ही रात्री विश्राम करेंगे. अगली सुबह यानी 4 जून को गाजीपुर के दौरे पर रहेंगे. अखिलेश यादव की इस कवायद को एक बार फिर अपने दम पर पार्टी को खड़ा करने की कोशिश के रुप में देखा जा रहा है.


राहुल गांधी ने 
कहा, ‘‘मुझे जरा भी संदेह नहीं है कि कांग्रेस फिर से मजबूत होगी. आगे ऐसी कोई संस्था नहीं है जो आपको सहयोग करेगी, कोई नहीं करेगी. यह ब्रिटिश काल जैसा है जब किसी एक संस्था ने भी कांग्रेस का सहयोग नहीं किया था, इसके बावजूद हम लड़े और जीते. हम फिर जीतेंगे.’ बाद में उन्होंने ट्वीट कर कहा कि हम अपने संविधान और संस्थाओं की रक्षा के लिए बब्बर शेर की तरह काम करेंगे और संसद में भाजपा को वाकओवर का कोई मौका नहीं देंगे.

सदस्‍यों में जोश भरने की कोश‍िश
लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद निराश पड़े कांग्रेस कार्यकर्ताओं एवं नेताओं में जोश भरते हुए पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को कहा कि लोकसभा में 52 सांसद होने के बावजूद उनकी पार्टी अगले पांच वर्षों तक भाजपा के खिलाफ इंच-इंच लड़ेगी और जीतेगी. गांधी ने कहा कि संविधान और देश की संस्थाओं को बचाने के लिए कांग्रेस के कार्यकर्ता ‘बब्बर शेर’ की तरह काम करेंगे.

उन्होंने कहा, ‘हम उस वक्त भी कांग्रेस पार्टी के लिए लड़े जब इसके 44 सांसद थे. पिछली बार मुझे लगा था कि बहुत कठिन रहने वाला है. मुझे लगा था कि भाजपा के पास 282 सांसद हैं और हमारे पास 44, ऐसे में हम क्या करेंगे. लेकिन कुछ सप्ताह के भीतर मुझे अहसास हो गया कि हमारे 44 सांसद भाजपा के 282 सदस्यों का मुकाबला करने के लिए काफी हैं.’ कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि इस बार तो हमारे पास 52 सांसद हैं और ऐसे में हम 52 सांसद और मैं यह आपको गारंटी देते हैं कि इसका कोई मतलब नहीं रहेगा कि कौन सी संस्थाएं इन 52 सदस्यों के खिलाफ खड़ी रहेंगी. ये 52 सांसद इंच-इंच भाजपा से लड़ेंगे और यह बात राज्यसभा के सदस्यों पर भी लागू होती है.’

राहुल गांधी ने कहा, ‘‘आपको पहले समझना होगा कि आप क्या हैं. अगर आप लड़ने जा रहें तो यह पता होना चाहिए कि किसके लिए लड़ने जा रहे हैं? आप इस देश के संविधान के लिए लड़ रहे हैं. आप इस देश के हर नागरिक के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं चाहे उसका रंग, धर्म, लिंग और राज्य कुछ भी हो.’ गांधी ने कहा, ‘‘यह भी समझिए कि आपके खिलाफ कौन लड़ रहे हैं? घृणा, कायरता और गुस्सा आपके खिलाफ लड़ रही है. विश्वास का अभाव, आत्मविश्वास का अभाव आपके खिलाफ लड़ रहे हैं. जो लोग इस संसद में हमारा विरोध कर रहे हैं वो नफरत और गुस्से का इस्तेमाल करते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘‘पिछली बार अगर स्पीकर हमें पांच मिनट का समय देती थीं तो इस बार यह दो मिनट भी हो सकता है, लेकिन इन दो मिनटों में भी हम उस बात को रखेंगे जिसमें कांग्रेस पार्टी विश्वास करती है. हम संविधान की रक्षा को सबसे आगे रखेंगे.’

कांग्रेस अध्यक्ष ने कुछ वरिष्ठ नेताओं के चुनाव हारने का हवाला देते हुए कहा, ‘‘अगर कुछ पुराने चेहरे चुनाव जीते होते तो मुझे खुशी होती क्योंकि पिछली बार 5-10 ऐसे लोग थे जिन्होंने हमारा शानदार ढंग से सहयोग किया. अगर आज वो हमारे साथ नहीं हैं तो मुझे बहुत दुख है। पंरतु वे वैचारिक रूप से हमारे साथ खड़े हैं.’

ओवैसी ने कहा, अगर कोई ये समझ रहा है कि हिंदुस्तान के वजीर-ए-आजम 300 सीट जीतकर हिंदुस्तान पर मनमानी करेंगे तो यह नहीं हो सकेगा. उन्होंने कहा, वजीर-ए-आजम से हम कहना चाहते हैं, संविधान का हवाला देकर ओवैसी ने कहा कि मैं आपसे लडूंगा, मजलूमों के इंसाफ के लिए. 

 इससे पहले ओवैसी ने अपने ट्विटर जीडीपी को लेकर तंज कसा था. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि मोदी अपने स्वयं के औसत रिकॉर्ड को भी बेहतर नहीं कर सकते. जहां बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई हो और जीडीपी सबसे कम स्तर पर हो. ट्विटर पर आगे लिखते हुए उन्होंने कहा, मोदी है तो मुमकिन है. उन्होंने आगे कहा कि मोदी के मतदाताओं ने इसके लिए कभी शिकायत नहीं की. वह केवल तभी जागता है जब गौ हत्या में 5 फीसदी से कमी आ जाती है या जब युवा दलित अपनी शादी पर घोड़े की सवारी करता है.

सच में डर के माहौल में जी रहे हैं तो उन्‍हें यह भी जानना चाहिए कि जिन लोगों ने अखलाख की हत्‍या की थी वे उनकी जनसभाओं में आगे की सीट में बैठते हैं. उन्‍होंने आरोप लगाया कि पीएम मोदी बोलते कुछ हैं और करते कुछ हैं.

नीतीश के मोदी कैबिनेट में सांकेतिक भागीदारी के प्रस्ताव को नामंजूर करने के पीछे की वजहें बहुत वाजिब हैं. पहली तो ये कि एक मंत्री के सांकेतिक रूप से मंत्रिमंडल में शामिल होने का मतलब है. पार्टी के अंदर मनमुटाव का होना. दूसरी सबसे बड़ी वजह ये है कि बीजेपी चुनाव में इस बार जो मुद्दे लेकर चली हैं, उनका विरोध मंत्रिमंडल में शामिल होकर नहीं किया जा सकता है. बीजेपी और जेडीयू के बीच कई मुद्दों पर मतभेद है. लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने जो वायदे किए हैं चाहे वो धारा 370 हो या 35 ए हो या फिर समान आचार संहित को लागू कराना. अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद ये तो साफ हैं कि मोदी सरकार इन मुद्दों के लेकर कितनी गंभीर है. जबकि जेडीयू और नीतीश कुमार को इन मुद्दों से परहेज है. पार्टी ने चुनाव के आखिरी चरण के मतदान के दौरान तो स्पष्ट कह दिया था कि इन मुद्दों पर वो बीजेपी के साथ नहीं है.

बीजेपी के पास अब साल 2014 से भी ज्यादा प्रचंड बहुमत है. इसलिए पार्टी के सामने इन मुद्दों को पूरा करने के लिए कोई खासी चुनौती भी नहीं होगी. ऐसे में नीतीश कुमार की स्थिति काफी असहज हो सकती थी. वो जानते हैं कि अगर इन सब मुद्दों का विरोध करना मंत्रिमंडल में रह कर संभव नहीं है और अगर मंत्रिमंडल से बाहर आना पड़े तो स्थिति और बिगड़ सकती है. इसलिए वो लगातार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जेडीयू केंद्रीय मंत्रिमंडल में चाहे बाहर है, लेकिन वो एनडीए के साथ हैं. सरकार से बाहर रह कर ही इन मुद्दों का विरोध तो किया जा सकता है.

 बिहार में जेडीयू ने लोकसभा चुनाव-2019 में जो सीटें जीती हैं, उनमें से 9 सीटें ऐसी हैं जिन पर 2014 के आम चुनावों में बीजेपी को हार मिली थी. उन 9 सीटों में से 8 सीटें जेडीयू ने इस बार अपना परचम लहराया सिर्फ एक सीट किशनगंज कांग्रेस के खाते में गई. इनमें से ज्यादातर सीटें वो हैं जिन पर अल्पसंख्यकों की संख्या अच्छी खासी है. इसलिए जेडीयू नहीं चाहती है कि उसकी सेक्युलर छवि को नुकसान पहुंचे. अगर विधानसभा चुनाव के समय मुद्दों के आधार पर अगर गठबंधन का बदलाव होता है तो उसमें भी कोई दिक्कत न हो.

गुरुवार को जेडीयू के केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने की चर्चा चल रही थी. हालांकि, शपथ ग्रहण समारोह के पहले नीतीश कुमार ने पार्टी के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने की घोषणा करते हुए कहा था कि मोदी नीत मंत्रालय में शामिल होने के लिए बीजेपी की पेशकश ‘प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व’ है, जो जेडीयू को स्वीकार नहीं है. उन्होंने कहा था कि पार्टी में सबकी राय है कि केंद्र सरकार में सांकेतिक भागीदारी नहीं चाहिए.

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