ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां

बगलामुखी साधना करने वाला व्यक्ति प्रभावशाली बनता है | उसे डर नहीं लगता | किसी प्रकार की चिंता हो तो वह भी कुछ समय के बाद दूर हो जाती है | माँ बगलामुखी भक्त से श्रद्धा और विशवास चाहती हैं | यदि आपको पूरी श्रद्धा है तो आपकी साधना में नियमों का समावेश रहेगा | बगलामुखी कवच का पाठ करने से भयंकर से भयंकर तंत्र प्रयोगों एवं ऊपरी बाधाओं का निवारण होता है। यदि किसी व्यक्ति का रोजगार एवं व्यापार मंद पड़ गया हो तो मां बगलामुखी की यंत्र – मंत्र साधना करें। 
ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानाम वाचं मुखम पदम् स्तम्भय |
जिव्हां कीलय बुद्धिम विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा |

माता महागौरी की दस महाविद्यायों में माता बगलामुखी आठवीं महाविद्या हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति इनमें समाई हुई है। माता बगलामुखी की आराधना करने से शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश तथा जीवन में समस्त प्रकार की बाधाओं से मुक्ती मिलती है। बगलामुखी मन्त्र को नीचे लिखे अनुसार पढ़ा जाए तो तुरंत सुरक्षा मिलती है | 

बगलामुखी देवी रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजती हैं,रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी के भक्त को तीनों लोकों में कोई नहीं हरा पाता। पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होती हैं। देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढ़ाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है।   बगलामुखी पूजा अर्चना सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली होती है। पीत वस्त्र धारण कर. हल्दी की माला से प्रतिदिन   मन्त्र का जप  सिद्व साधक द्वारा किया जाता है

ॐ ह्लीं बगलामुखी अमुक (शत्रु का नाम लें ) दुष्टानाम वाचं मुखम पदम स्तम्भय स्तम्भय |
जिव्हां कीलय कीलय बुद्धिम विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा ||

हिमालयायूके न्यूज पोर्टल – 

हिंदू धार्मिक पुराणों के अनुसार माता महागौरी की दस महाविद्यायों में माता बगलामुखी आठवीं महाविद्या हैं। कहते हैं कि संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति इनमें समाई हुई है। हिंदू धर्म में माता बगलामुखी की आराधना में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना अति आवश्यक माना जाता है। इनकी अराधना से माता बगलामुखी से शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं और बुरी शक्तियों का नाश तथा जीवन में समस्त प्रकार की बाधाओं से मुक्ती मिलती है। साधना में पीत वस्त्र धारण करना चाहिए एवं पीत वस्त्र का ही आसन लेना चाहिए। अराधना में पूजा की सभी वस्तुएं पीले रंग की होनी चाहिए। अराधना खुले आकाश के नीचे नहीं करनी चाहिए।
पूजा करने के लिए पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे। थोड़ी सी पीली हल्दी का ढेर बनाएं उस पर मां के स्वरूप के समक्ष दीप जलाएं। मां के स्वरूप पर पीले वस्त्र अर्पित करने से बड़ी से बड़ी बाधा का नाश होता है। बगलामुखी देवी के मंत्रों का जाप करने से दुखों का नाश होता है। यह माता पीताम्बरा के नाम से भी जानी जाती हैं, यह पीले वस्त्र धारण करती हैं इसलिए इनकी पूजा में पीले रंग की सामग्री का प्रयोग किया जाता है। देवी बगलामुखी का वर्ण स्वर्ण के समान पीला है। अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र पहनने चाहिए क्योंकि इन्हें पीला रंग बहुत प्रिय है और 36 की संख्या। इनका मंत्र भी 36 अक्षरों का है इसलिए 3600, 36,000 के क्रमानुसार ही मंत्र जाप करना चाहिए। मां की पूजा अर्चना बृहस्पतिवार को रात्रि के समय करें। विशेष रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति के लिए मकर राशि में सूर्य के होने पर चतुर्दशी, मंगलवार के दिन करें। बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए। बगलामुखी कवच का पाठ करने से भयंकर से भयंकर तंत्र प्रयोगों एवं ऊपरी बाधाओं का निवारण होता है। यदि किसी व्यक्ति का रोजगार एवं व्यापार मंद पड़ गया हो तो मां बगलामुखी की यंत्र – मंत्र साधना करें।
मां बगलामुखी यंत्र –
मंत्र साधना श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ॐ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।
इसके बाद आवाहन करें ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ
सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
ध्यान सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुदग़र पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
विनियोग ॐ अस्य श्रीबगलामुखी ब्रह्मास्त्र-मन्त्र-कवचस्य भैरव ऋषि:
विराट् छन्द:, श्रीबगलामुखी देवता, क्लीं बीजम्, ऐं शक्ति:
श्रीं कीलकं, मम (परस्य) च मनोभिलषितेष्टकार्य सिद्धये विनियोग: ।
न्यास भैरव ऋषये नम: शिरसि, विराट् छन्दसे नम: मुखे
श्रीबगलामुखी देवतायै नम: हृदि, क्लीं बीजाय नम: गुह्ये, ऐं शक्तये नम: पादयो:
श्रीं कीलकाय नम: नाभौ मम (परस्य) च मनोभिलषितेष्टकार्य सिद्धये विनियोगाय नम: सर्वांगे ।
मन्त्रोद्धार ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय, ममैश्वर्याणि देहि देहि शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय साधय ह्रीं स्वाहा ।
मंत्र ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।
बगलामुखी कवच-
पाठ शिरो मेंपातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातुललाटकम । सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने ।। 1
श्रुतौ मम रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् । पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।। 2
देहिद्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम । कण्ठदेशं मन: पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।। 3
कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम । मायायुक्ता तथा स्वाहा, हृदयं पातु सर्वदा ।। 4
अष्टाधिक चत्वारिंशदण्डाढया बगलामुखी । रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेरण्ये सदा मम ।। 5
ब्रह्मास्त्राख्यो मनु: पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु । मन्त्रराज: सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।। 6
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलावतु । मुखिवर्णद्वयं पातु लिंग मे मुष्क-युग्मकम् ।। 7
जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम् । वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णा: परमेश्वरी ।। 8
जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपुमोहिनी । स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम ।। 9
जिह्वावर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च । पादोध्र्व सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ।। 10
विनाशयपदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे । ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।। 11
सर्वांगं प्रणव: पातु स्वाहा रोमाणि मेवतु । ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।। 12
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेवतु । कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।। 13
वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेवतु । ऊर्ध्व पातु महालक्ष्मी: पाताले शारदावतु ।। 14
इत्यष्टौ शक्तय: पान्तु सायुधाश्च सवाहना: । राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायक: ।। 15
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु । द्विभुजा रक्तवसना: सर्वाभरणभूषिता: ।। 16
योगिन्य: सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम । इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।। 17

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