जिन्‍हे सक्रिय राजनीति से जबरदस्ती बाहर कर दिया गया

उत्‍तराखण्‍ड में राजनीति के 3 महारथियो पूर्व मुख्‍यमंत्री बीसी खण्‍डूडी तथा भगत सिंह कोश्‍यारी, मुरली मनोहर जोशी को जबरन राजनीति से बाहर कर दिया गया, उसी तरह हिमाचल में भी हुआ लोकसभा चुनाव 2019 में हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक अखाड़े में इस बार बिना दिग्गजों के ही मुकाबला हो रहा है. लगभग दो दशकों से, चुनावी लड़ाई कांग्रेस नेता और छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह और भाजपा से दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे प्रेम कुमार धूमल के बीच वर्चस्व को लेकर थी. लेकिन इस संसदीय चुनाव में, ऐसा पहली बार है जब दोनों ही धुरंधर चुनावी मैदान से बाहर हैं. इसे पीढ़ीगत बदलाव कहें या कहें कि उन्हें सक्रिय राजनीति से जबरदस्ती बाहर कर दिया गया है, वीरभद्र सिंह (83) और धूमल (73) वैकल्पिक रूप से 20 वर्षो तक राज्य के खेवनहार रहे हैं.

राज्य के दो बड़े नाम हाशिए पर पहुंचे
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस दौरान राज्य की राजनीति दोनों नेताओं के निजी मुद्दों के आस-पास घूमती रही. इन चुनावों में, दोनों की न ही टिकट बंटवारे में कोई भूमिका है और न ही चुनाव अभियान उनके नेतृत्व में चलाए जा रहे हैं. वीरभद्र सिंह मौजूदा समय में विधायक हैं, जबकि उनके प्रतिद्वंदी धूमल कभी उनके राजनीतिक प्रबंधक रहे राजेंद्र राणा से 2017 विधानसभा चुनाव में हार झेलने के बाद राज्य की राजनीति में महत्वहीन बने हुए हैं.

सामूहिक रणनीति से जीतेंगे चुनाव- सीएम जयराम ठाकुर
भाजपा नेता और पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने जयराम ठाकुर के लिए धूमल अब भी एक व्यापक राजनीतिक अनुभव लिए एक वरिष्ठ नेता है और उनके अनुसार चुनाव एकजुट प्रयास से ही लड़े जाते हैं. ठाकुर ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि किसी राजनीतिक मुद्दे पर धूमल से सलाह लेने में कुछ भी गलत है.” आम चुनाव में पार्टी की अगुवाई करने के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से खुली छूट मिलने के बाद ठाकुर ने कहा, “चुनाव सामूहिक प्रयास और सामूहिक रणनीति से लड़े जाते हैं. राज्य का मुखिया होने के नाते, मेरे पास सभी चारों सीटों पर जीत सुनिश्चित करने की बड़ी जिम्मेदारी है.”

हाईप्रोफाइल सीट हमीरपुर पर टिकी हैं नजरें
इस चुनाव में सबका ध्यान यहां की शिमला(आरक्षित), कांगड़ा और मंडी सीट को छोड़ हमीरपुर सीट पर है, जहां से धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पूर्व अध्यक्ष ठाकुर लगातार चौथी बार इस सीट से जीत दर्ज करना चाहते हैं. बीते 30 वर्षो में इस सीट से केवल एक बार सीट जीतने वाली कांग्रेस ने इस बार पूर्व रेसलर और पांच बार के विधायक राम लाल ठाकुर को चुनाव मैदान में उतारा है.

कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह ने भी बना ली राजनीति से दूरी 
एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने स्वीकार किया कि मई 2008 में हुए संसदीय उपचुनाव में जीत के बाद अनुराग ठाकुर (44) की छवि एक ऐसे व्यक्ति की बनी है, जो हमेशा पार्टी के बड़े व शक्तिशाली नेताओं के साथ समय बिताता है. इसी वजह से धूमल इस संसदीय क्षेत्र में अपने बेटे की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपना अधिकतम समय और ऊर्जा लगा रहे हैं. वहीं वीरभद्र सिंह, अनुराग ठाकुर के विरुद्ध कांग्रेस विधायक राजेंद्र राणा के बेटे अभिषेक राणा को इस सीट से चुनाव मैदान में उतारना चाहते थे, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने राणा को टिकट देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद से सिंह ने ‘राज्य की राजनीति से दूरी’ बना ली है.

दलबदलू नेता को उम्मीदवार बनाने से भी नाराज हैं वीरभद्र
राजेंद्र राणा ने कांग्रेस में शामिल होने के लिए सुरजपुर सीट से निर्दलीय विधायक के रूप में इस्तीफा दे दिया था. एक समय धूमल के चुनाव प्रबंधक रहे राणा ने 2017 के चुनावों में उन्हें हरा दिया था. धूमल को भाजपा ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया था. एक वरिष्ठ नेता ने नाम न उजागर करने की शर्त पर कहा कि इसके अलावा, सिंह मंडी सीट से एक दलबदलू उम्मीदवार को खड़ा करने पर नाखुश हैं. सिंह ने इस सीट से तीन बार प्रतिनिधित्व किया है. सभी कयासों को एक तरफ रखते हुए, कांग्रेस प्रदेश इकाई के अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर ने कहा कि वीरभद्र सिंह अन्य चुनावों की तरह ही पार्टी के स्टार प्रचारक होंगे.

चारों सीटों पर 19 मई को होगा मतदान
राठौर ने कहा, “पहले वह अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह की शादी और लोकपाल के सदस्य के रूप में अपनी बेटी अभिलाषा कुमारी की नियुक्ति को लेकर व्यस्त थे. अब वह इन व्यस्तताओं से मुक्त हैं और जल्द ही राज्यव्यापी अभियान शुरू करेंगे.” यहां की चारों लोकसभा सीट पर मतदान 19 मई को होने वाले हैं.

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