जन्मदिन तथा नवरात्रि नवमी के दिन महामानव का महाप्रयाग

नैनीताल जिले के बलूनी  गांव केे इस युवक ने देश दुनिया को अपनी ओजस्‍वी छवि से प्रभावित किया # एन.डी तिवारी का दिल्ली के मैक्स अस्पताल में आज 92 साल की उम्र में निधन# #

पूर्व मुख्यमंत्री और एनडी तिवारी का निधन हो गया है. पिछले कुछ समय से उनकी तबीयत खराब थी. पिछले दिनों उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती भी किया गया था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नारायण दत्त तिवारी के निधन पर शोक जताया.

नारायण दत्त तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर 1925 में नैनीताल जिले के बलूनी  गांव में हुआ था। तब न उत्तर प्रदेश का गठन भी नहीं हुआ था। भारत का ये हिस्सा 1937 के बाद से यूनाइटेड प्रोविंस के तौर पर जाना गया और आजादी के बाद संविधान लागू होने पर इसे उत्तर प्रदेश का नाम मिला। तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। जाहिर है तब उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी रही होगी। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के आह्वान पर पूर्णानंद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। नारायण दत्त तिवारी शुरुआती शिक्षा हल्द्वानी, बरेली और नैनीताल में हुई। यकीनन अपने पिता के तबादले की वजह से उन्हें एक से दूसरे शहर में रहते हुए अपनी पढ़ाई पूरी की।

अपने पिता की तरह ही वे भी आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। 1942 में वह ब्रिटिश सरकार की साम्राज्यवादी नीतियों के खिलाफ नारे वाले पोस्टर और पंपलेट छापने और उसमें सहयोग के आरोप में पकड़े गए। उन्हें गिरफ्तार कर नैनीताल जेल में डाल दिया गया। इस जेल में उनके पिता पूर्णानंद तिवारी पहले से ही बंद थे। 15 महीने की जेल काटने के बाद वह 1944 में आजाद हुआ।

तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उन्होंने राजनीतिशास्त्र में एमए किया। उन्होंने एमए की परीक्षा में विश्वविद्याल में टाप किया था। बाद में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री भी हासिल की। 1947 में आजादी के साल ही वह इस विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। यह उनके सियासी जीवन की पहली सीढ़ी थी।

आजादी के बाद 1950 में उत्तर प्रदेश के गठन और 1951-52 में प्रदेश के पहले विधानसभा चुनाव में तिवारी ने नैनीताल (उत्तर) सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर हिस्सा लिया। कांग्रेस की हवा के बावजूद वे चुनाव जीत गए और पहली विधानसभा के सदस्य के तौर पर सदन में पहुंच गए। यह बेहद दिलचस्प है कि बाद के दिनों में कांग्रेस की सियासत करने वाले तिवारी की शुरुआत सोशलिस्ट पार्टी से हुई।

431 सदस्यीय विधानसभा में तब सोशलिस्ट पार्टी के 20 लोग चुनकर आए थे। कांग्रेस के साथ तिवारी का रिश्ता 1963 से शुरू हुआ। 1965 में वह कांग्रेस के टिकट पर काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और पहली बार मंत्रिपरिषद में उन्हें जगह मिली। कांग्रेस के साथ उनकी पारी कई साल चली। 1968 में जवाहरलाल नेहरू युवा केंद्र की स्थापना के पीछे उनका बड़ा योगदान था।

1969 से 1971 तक वे कांग्रेस की युवा संगठन के अध्यक्ष रहे। एक जनवरी 1976 को वह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। यह कार्यकाल बेहद संक्षिप्त था। 1977 के जयप्रकाश आंदोलन की वजह से 30 अप्रैल को उनकी सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वह अकेले राजनेता हैं जो दो राज्यों के मुख्यमंत्री रह चुके हैं।

एनडी तिवारी पहली बार 1952 में विधायक बने. एनडी तिवारी पहली बार 1976 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 5 बार विधायक रहे तो तीन बार यूपी के सीएम की कुर्सी पर कब्जा किया. 1980 में तिवारी पहली बार लोकसभा पहुंचे और इंदिरा गांधी ने उन्हें योजना मंत्री बनाया बाद में एनडी तिवारी ने वित्त, विदेश जैसे कई बड़े मंत्रालय संभाले.

खांटी कांग्रेसी एनडी तिवारी, राजीव गांधी की मौत के बाद प्रधानमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे थे लेकिन वो चुनाव हार गए और सत्ता की सबसे बड़ी कुर्सी के इतने करीब होने के बावजूद उसे पा ना सके. और यही वजह थी कि एनडी कांग्रेस से अलग हो गए थे लेकिन बाद में सोनिया गांधी के आने के बाद फिर से कांग्रेस में वापस आ गए.

उसके बाद साल 2000 में उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ, साल 2002 में ही उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बन एनडी तिवारी ने इतिहास रच दिया और दो राज्यों के मुख्यमंत्री बनने वाले इकलौते राजनेता बन गए. इतना ही नहीं साल 2007 में एनडी तिवारी आंध्र प्रदेश के राज्यपाल भी बने. इतना बड़ा सियासी करियर होने के साथ ही एनडी तिवारी का विवादों से चोली दामन का साथ रहा . साल 2009 में एनडी तिवारी सेक्स स्कैंडल में फंस गए, एक तेलगू चैनल ने तीन लड़कियों के साथ उनकी तस्वीर दिखाई, जिसके बाद उन्हें राज्यपाल पद से इस्तीफा देना पड़ा. तब बीजेपी ने एनडी तिवारी पर जमकर हमला बोला था लेकिन अमित शाह के साथ आई एक तस्वीर ने चाल, चरित्र और चेहरा सब बदल दिया.

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने एनडी तिवारी के निधन पर शोक जताया है. उन्होंने ट्वीट किया, ‘उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित नारायण दत्त तिवारी के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त करता हूं. ईश्वर से उनकी दिवंगत आत्मा की शांति व परिजनों को दुःख सहने की प्रार्थना करता हूं.’  रावत ने कहा, ‘एनडी तिवारी का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है. विरोधी दल में होने के बावजूद उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर रहकर सदैव अपना स्नेह बनाए रखा. तिवारी के जाने से भारत की राजनीति में जो शून्य उभरा है, उसकी भरपाई कर पाना मुश्किल है. तिवारी देश के वित्तमंत्री, उद्योग मंत्री और विदेश मंत्री जैसी अहम जिम्मेदारियां निभा चुके हैं.’ सीएम रावत ने कहा, ‘उत्तराखंड तिवारी के योगदान को कभी नहीं भुला पाएगा. नवोदित राज्य उत्तराखंड को आर्थिक और औद्योगिक विकास की रफ़्तार से अपने पैरों पर खड़ा करने में तिवारी ने अहम भूमिका निभाई.’

एनडी तिवारी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे हैं. बतौर यूपी सीएम उन्होंने साल 1976-77, 1984-85 और 1988-89 तक तीन बार गद्दी संभाली. इसके बाद 2002 से 2007 तक उन्होंने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. एनडी तिवारी केंद्र सरकार में भी मंत्री रहे हैं. साल 1986-87 तक वो राजीव गांधी कैबिनेट में विदेश मंत्री रहे. साथ ही साल 2007 से 2009 तक वो आंध्र प्रदेश के राज्यपाल भी रहे.

उत्तर प्रदेश के विभाजन के बाद वे उत्तरांचल के भी मुख्यमंत्री बने। केंद्रीय मंत्री के रूप में भी उन्हें याद किया जाता है। 1990 में एक वक्त ऐसा भी था जब राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी दावेदारी की चर्चा भी हुई। पर आखिरकार कांग्रेस के भीतर पीवी नरसिंह राव के नाम पर मुहर लग गई। बाद में तिवारी आंध्रप्रदेश के राज्यपाल बनाए गए लेकिन यहां उनका कार्यकाल बेहद विवादास्पद रहा।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नारायण दत्त तिवारी को आज उस समय बड़ा झटका लगा, जब दिल्ली हाईकोर्ट में उनके रक्त के नमूने संबंधी डीएनए रिपोर्ट सार्वजनिक किया गया और उस रिपोर्ट के अनुसार पितृत्च वाद दायर करने वाले रोहित शेखर तिवारी ही एनडी तिवारी के बेटे हैं।
दिल्ली में रहने वाले 32 साल के रोहित शेखर तिवारी का दावा है कि एनडी तिवारी ही उसके जैविक पिता हैं और इसी दावे को सच साबित करने के लिए रोहित और उसकी मां उज्ज्वला तिवारी ने 4 साल पहले यानी 2008 में अदालत में एन डी तिवारी के खिलाफ पितृत्व का केस दाखिल किया था। अदालत ने मामले की सुनवाई की और अदालत के ही आदेश पर पिछले 29 मई को डीएनए जांच के लिए एनडी तिवारी को अपना खून देना पड़ा था।
देहरादून स्थित आवास में अदालत की निगरानी में एनडी तिवारी का ब्लड सैंपल लिया गया था। कुछ दिनों पहले हैदराबाद के सेंटर फोर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायएग्नोस्टिक्स यानी सीडीएफडी ने ब्ल़ड सैंपल की जांच रिपोर्ट अदालत को सौंप दी। सीडीएफडी की इस सील्ड रिपोर्ट में एनडी तिवारी के साथ रोहित शेखर तिवारी और रोहित शेखर तिवारी की मां उज्ज्वला तिवारी की भी डीएनए टेस्ट रिपोर्ट शामिल हैं। हालांकि एनडी तिवारी नहीं चाहते कि उनकी डीएनए टेस्ट रिपोर्ट सार्वजनिक हो इसलिए उन्होंने अदालत में इसे गोपनीय रखने के लिए याचिका भी दी थी लेकिन अदालत इसे खारिज कर दिया और इसे खोलने का आदेश जारी कर दिया।
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