देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं है?

 सर्वे के नतीजों को गुजरात में भुनाने के लिए जुट गए #वित्त मंत्री अरुण जेटली लगातार इस बात को झुठलाते आ रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था की हालत खराब है. लेकिन, बैंकिंग सेक्टर को विशाल आर्थिक पैकेज की पेशकश करके सरकार ने आखिरकार परोक्ष रूप से ये स्वीकार कर लिया है कि देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं है. www.himalayauk.org (Newsportal) 
नोटबंदी मोदी सरकार का सबसे जोखिम भरा राजनीतिक फैसला था. नोटबंदी के जरिए मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को साफ-सुधरा और पारदर्शी बनाने की मंशा रखती थी. लेकिन खराब योजना के चलते नोटबंदी बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुई, जिससे देश की अर्थव्यवस्था का और ज्यादा नुकसान हो गया. नोटबंदी से सबसे ज्यादा नुकसान कैश इंटेंसिव इनफॉर्मल सेक्टर को पहुंचा, जबकि सबसे ज्यादा इसी सेक्टर को फायदे की उम्मीद की गई थी.

 ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ का सर्वे जब ये कहता है कि ‘जनता भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था से संतुष्ट है, इसीलिए लोगों ने मोदी का सकारात्मक आकलन किया है.’ तब हम यह तर्क दे सकते हैं कि सर्वे में जो तथ्य दिए गए हैं वह देश की जमीनी हकीकत नहीं हैं, और न ही इसे आम जनता का मूड माना जा सकता है. जनता का असल मूड जानने के लिए हमें कारोबार से संबंधित कुछ अन्य इंडीकेटर्स (संकेतकों) और रिपोर्टों को देखना होगा. इसके अलावा हमें देश में बढ़ रही बेरोजगारी और छोटे व्यापारियों की समस्याओं पर भी गौर करना होगा.

 
मंद अर्थव्यवस्था से निपटने के लिए आखिरकार मोदी सरकार को बैंकिंग सेक्टर को 9 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज देने का ऐलान करना पड़ा. ये देश के इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक पैकेज में से एक है. इस राशि में से 2.11 लाख करोड़ रुपए बैंकों के रीकैपिटलाइजेशन फंड के लिए है, जबकि बाकी रकम बुनियादी सुविधाओं में निवेश के लिए दी गई है. लेकिन इसके बावजूद मोदी सरकार, खासतौर पर वित्त मंत्री अरुण जेटली लगातार इस बात को झुठलाते आ रहे हैं कि देश की अर्थव्यवस्था की हालत खराब है. लेकिन, बैंकिंग सेक्टर को विशाल आर्थिक पैकेज की पेशकश करके सरकार ने आखिरकार परोक्ष रूप से ये स्वीकार कर लिया है कि देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं है.
 

सर्वे की जमीनी सच्चाई कुछ भी हो, लेकिन गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी के हाथ में अहम चीज लग गई है. ऐसे में बीजेपी नेता सर्वे के नतीजों को गुजरात में भुनाने के लिए जुट गए हैं. बीजेपी के कैंपेन मैनेजर अब पूरे राज्य में इस बात का ढिंढोरा पीटने में लग गए हैं कि दुनियाभर में प्रतिष्ठित थिंक टैंक ने प्रधानमंत्री मोदी को देश का सबसे लोकप्रिय और भरोसेमंद नेता करार दिया है. गुजरात मोदी का गृह राज्य है, ऐसे में गुजराती समुदाय मोदी पर गर्व करते हुए बीजेपी को एक बार फिर से बड़ी तादाद में वोट कर सकता है. आज मोदी सरकार जब पार्टी के अंदर और बाहर हर तरफ से आलोचनाओं में घिरी है, ऐसे में ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ का सर्वे उसे बड़ी राहत दिला सकता है.

हालांकि, ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के सर्वे के साथ कुछ समस्याएं भी हैं. दरअसल इस सर्वे का सैंपल साइज बहुत छोटा है. यानी सर्वे में जिन लोगों को रायशुमारी में शामिल किया गया उनकी संख्या बहुत कम है. 21 फरवरी 2017 से लेकर 10 मार्च, 2017 के दौरान भारत में किए गए इस सर्वे में कुल 2,464 लोगों को शामिल किया गया, और उनकी राय ली गई. करीब 130 करोड़ की आबादी वाले देश में किसी स्टेटिस्टिकल सर्वे (सांख्यिकीय सर्वेक्षण) के लिए ये संख्या अपर्याप्त है. खासतौर पर किसी देश के सबसे लोकप्रिय नेता के चुनाव के मुद्दे पर तो ये संख्या बहुत ही तुच्छ मानी जाएगी.

प्यू रिसर्च सेंटर’ का सर्वे भले ही बीजेपी और मोदी के लिए अहमियत रखता हो, लेकिन कोई भी राजनीतिक विश्लेषक ऐसे सर्वे को बहुत महत्व नहीं देगा. ऐसा माना जाता है कि जब लोग अपना वोट डालने मतदान केंद्र जाते हैं, तब उनके जेहन में किसी सर्वे के नतीजे नहीं होते बीजेपी अब भी अपनी लहर के लिए पूरी तरह से मोदी पर निर्भर है. ऐसे में ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के सर्वे की सच्चाई अब तब सामने आएगी, जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में वोटों की गिनती होगी
देश में चल रहीं समानांतर अर्थव्यवस्थाओं के सफाए के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी, जीएसटी और मेक इन इंडिया जैसे कई अहम और बड़े कदम उठाए, लेकिन इसके बावजूद उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. इसकी वजह ये है कि आर्थिक सुधारों के लिए मोदी सरकार ने जो भी कदन उठाए उनके लिए न तो ठोस और कारगर योजनाएं बनाई गईं और न ही उन योजनाओं को ढंग से लागू किया गया. नतीजे में अपने इन कदमों के चलते मोदी को विपक्ष की नजर में खलनायक बनना पड़ा और कड़ी आलोचना का शिकार बनना पड़ा.
मोदी ने देश के इतिहास का सबसे बड़ा अप्रत्यक्ष कर सुधार करने के मकसद से जीएसटी को लागू किया. लेकिन जीएसटी की ऊंची दरों का खासा विरोध हुआ, वहीं छोटे व्यापारियों को जीएसटी की प्रक्रिया समझने में भी खासी दिक्कतें आईं. ऐसे में जीएसटी को लेकर भी मोदी सरकार बैकफुट पर आ गई. वहीं मोदी सरकार ने बैंकिंग सेक्टर के सुधार में भी देरी की. जिसकी वजह से देश में आर्थिक मंदी जैसे हालात बन गए हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अब भी बरकरार है. ये बात अमेरिकी थिंक टैंक ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के एक सर्वे में सामने आई है. मोदी को देश की सत्ता संभाले तीन साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, इस दौरान उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी जैसे कुछ विवादित आर्थिक प्रयोग भी किए. इन आर्थिक प्रयोगों के चलते मोदी को खासी आलोचना का शिकार होना पड़ा. ऐसे में लग रहा था कि मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ गिर रहा है. लेकिन ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के सर्वे ने सभी कयासों पर विराम लगा दिया है.
जाहिर है सर्वे के इस नतीजे से बीजेपी के कैंपेन मैनेजर (प्रचार अभियान प्रबंधक) खुशी से फूले नहीं समा रहे होंगे. ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के सर्वे के मुताबिक, देश के दस में से नौ नागरिक अब भी प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा करते हैं. जबकि ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ ने साल 2015 में जब ऐसा सर्वे किया था, तब देश के दस में से सात लोगों ने मोदी को अपनी पसंद बताते हुए उनपर अपना भरोसा जताया था.
प्यू रिसर्च का सर्वे भरोसेमंद नहीं
हालांकि, ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के सर्वे के साथ कुछ समस्याएं भी हैं. दरअसल इस सर्वे का सैंपल साइज बहुत छोटा है. यानी सर्वे में जिन लोगों को रायशुमारी में शामिल किया गया उनकी संख्या बहुत कम है. 21 फरवरी 2017 से लेकर 10 मार्च, 2017 के दौरान भारत में किए गए इस सर्वे में कुल 2,464 लोगों को शामिल किया गया, और उनकी राय ली गई. करीब 130 करोड़ की आबादी वाले देश में किसी स्टेटिस्टिकल सर्वे (सांख्यिकीय सर्वेक्षण) के लिए ये संख्या अपर्याप्त है. खासतौर पर किसी देश के सबसे लोकप्रिय नेता के चुनाव के मुद्दे पर तो ये संख्या बहुत ही तुच्छ मानी जाएगी.
दूसरी समस्या ये है कि ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ ने अपना ये सर्वे उस दौरान किया जब देश में नोटबंदी अपने चरम पर थी. यानी उस वक्त तक लोगों के लिए नोटबंदी से होने वाले फायदे या नुकसान का सही-सही अनुमान लगा पाना मुश्किल था. उस वक्त तो ज्यादातर लोग नोटबंदी को मोदी सरकार का क्रांतिकारी कदम मानकर उनका समर्थन कर रहे थे. लेकिन बाद में लोगों को नोटबंदी से काफी दिक्कतें भी उठाना पड़ी थीं. इसके अलावा इस सर्वे में 1 जुलाई 2017 को देश में लागू हुए गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानी जीएसटी पर छोटे कारोबारियों की राय को भी शामिल नहीं किया गया है.
इसलिए, ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ का सर्वे जब ये कहता है कि ‘जनता भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था से संतुष्ट है, इसीलिए लोगों ने मोदी का सकारात्मक आकलन किया है.’ तब हम यह तर्क दे सकते हैं कि सर्वे में जो तथ्य दिए गए हैं वह देश की जमीनी हकीकत नहीं हैं, और न ही इसे आम जनता का मूड माना जा सकता है. जनता का असल मूड जानने के लिए हमें कारोबार से संबंधित कुछ अन्य इंडीकेटर्स (संकेतकों) और रिपोर्टों को देखना होगा. इसके अलावा हमें देश में बढ़ रही बेरोजगारी और छोटे व्यापारियों की समस्याओं पर भी गौर करना होगा.

 

सरकार नोटबंदी के एक साल पूरा होने के बाद बैंकिंग व्यवस्था में बदलाव के लिए एक और बड़ा कदम उठा सकती है। आने वाले साल में हो सकता है कि चेकबुक के माध्यम से होने वाले सभी तरह के लेन देन बंद हो जाए। चेक के बजाए बैंक केवल डिजिटल ट्रांजेक्शन करने के लिए कह सकते हैं। इससे आगे चलकर इकोनॉमी को कैशलेस बनाने का केंद्र सरकार का सपना पूरा हो सकता है। उद्योग संगठन कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार बैंक चेकबुक सुविधा को निकट भविष्य में बंद कर सकती है। कैट के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल ने कहा कि सरकार को डेबिट तथा क्रेडिट कार्डों के इस्तेमाल को उत्साहित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि संभावना है कि डिजिटल लेनदेन को उत्साहित करने के लिए सरकार निकट भविष्य में एेसा कदम उठा सकती है।

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