जनता के कल्याण में ही शासक की भलाई है- सियासत की मास्टरक्लास

नागपुर में अपने कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की तस्वीर के साथ छेड़छाड़ करके सोशल मीडिया पर जारी करने की निंदा करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शुक्रवार को कहा कि यह जानबूझकर संघ को बदनाम करने की विभाजनकारी राजनीतिक ताकतों की चाल है जिन्होंने डा. मुखर्जी को इस समारोह में भाग लेने से रोकने और विरोध करने का काम किया था .  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सर कार्यवाह डा. मनमोहन वैद्य ने एक बयान में कहा कि कुछ विभाजनकारी राजनीतिक तत्वों ने नागपुर में गुरुवार को आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक समारोह से जुड़ी एक झूठी तस्वीर पोस्ट की जिसमें पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को प्रार्थना की मुद्रा में दिखाया गया है .  

 कांग्रेस ने भी प्रणब मुखर्जी की फेक फोटो को लेकर निशाना साधा. कांग्रेस ने ट्वीट करके कहा था कि प्रणब मुखर्जी के भाषण के कुछ घंटों के अंदर ही संघ ब्रदरहुड की फोटोशॉप फैक्ट्रियों ने काम करने शुरू कर दिया है.

वैद्य ने कहा कि इन्हीं ताकतों ने डा. मुखर्जी को इस समारोह में भाग लेने से रोकने और विरोध करने का काम भी किया था और अब ये हताश ताकतें संघ को बदनाम करने के लिये इस प्रकार की घटिया चालें चल रही हैं .  संघ के सह सर कार्यवाह ने कहा, ‘हम जानबूझकर संघ को बदनाम करने के लिये इन विभाजनकारी राजनीतिक ताकतों द्वारा चलाई जा रही ऐसी कुत्सित चालों की निंदा और निषेध करते हैं .’  

बता दें कि प्रणब मुखर्जी की बेटी और कांग्रेस की नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी ने शुक्रवार को आरएसएस के कार्यक्रम से जुड़ी प्रणब मुखर्जी की तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ कर उन्हें सोशल मीडिया में शेयर किए जाने पर कहा था, ‘देखिए, मुझे इसी का डर था और इसके बारे में मैंने अपने पिता को आगाह किया था.’ उन्होंने कहा था कि कुछ घंटे भी नहीं बीते कि भाजपा एवं आरएसएस का डर्टी ट्रिक्स विभाग अपने काम में जुट गया.

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने प्रणब मुखर्जी के आरएसएस के कार्यक्रम में जाने का विरोध किया था और ट्विटर पर अपने पोस्ट के जरिए अपनी नाखुशी भी जाहिर की थी.  इससे पहले 6 जून को शर्मिष्ठा ने ट्वीट करके कहा था कि, ‘आशा करती हूं कि प्रणब मुखर्जी को आज की घटना से इसका अहसास हो गया होगा कि भाजपा का डर्टी ट्रिक्स विभाग किस तरह काम करता है.’ उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि आरएसएस कभी यह कल्पना भी नहीं करेगा कि आप अपने भाषण में उनके विचारों का समर्थन करेगे. लेकिन भाषण को भूला दिया जाएगा और तस्वीरें रह जाएंगी तथा इनको फर्जी बयानों के साथ फैलाया जाएगा.’ शर्मिष्ठा ने कहा, ‘आप नागपुर जाकर भाजपा/आरएसएस को फर्जी खबरें गढ़ने, अफवाहें फैलाने और इनको किसी न किसी तरह विश्वसनीय बनाने की सुविधा मुहैया करा रहे हैं. और यह तो सिर्फ शुरुआत भर है.’ 

प्रणब मुखर्जी का संबोधन सियासत की मास्टरक्लास

प्रणब मुखर्जी  ने अपने भाषण की शुरुआत में संघ के पदाधिकारियों का नाम लेने के सिवा पूर्व राष्ट्रपति ने आरएसएस शब्द का इस्तेमाल पूरे भाषण में एक बार भी नहीं किया. दूसरी अहम बात ये कि प्रणब ने अपने भाषण में जहां कई बार जवाहरलाल नेहरू समेत कई नेताओं का विस्तार से जिक्र किया, वहीं उन्होंने संघ के नेताओं या उनके विचारकों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा. न सावरकर, न मूंजे, न हेडगेवार न ही अपने बंगाली भद्रलोक से ताल्लुक रखने वाले दूसरे मुखर्जी यानी श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जिक्र प्रणब मुखर्जी ने किया. संघ के उन भावी प्रचारकों को संबोधित करते हुए प्रणब मुखर्जी ने नेहरू की बातों का जिक्र किया. जबकि संघ के लोगों के लिए भारत के पहले प्रधानमंत्री और उनके विचाार उनकी अपनी विचारधारा के खिलाफ हैं. उनका नाम लेना भी अभिशाप है. उनके सामने प्रणब मुखर्जी ने नेहरू के विचार रखे.  पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भाषण की खूबसूरती ही यही थी कि उन्होंने अपनी बात इस खूबसूरती से संघ के मुख्यालय में रखी – संघ मुख्यालय में प्रणब मुखर्जी का संबोधन सियासत की मास्टरक्लास था. इसमें सम्मान था, अनुशासन था और बेहद सभ्य तरीके से, बिना कोई समझौता किए हुए सहिष्णुता, बहुलता और भारतीय संविधान के प्रति आस्था की अपनी विचारधारा को प्रणब मुखर्जी ने सामने रखा. और उन्होंने ऐसा करने से पहले संघ के संस्थापक हेडगेवार को भारत मां का महान सपूत बताकर अपने होने वाले भाषण की धार को पहले ही नरम कर दिया था. लेकिन जब उन्होंने भाषण दिया तो संघ का एक बार भी जिक्र नहीं किया. 

संघ के कट्टर हिंदू राष्ट्रवाद की भट्टी में तपकर निकले स्वयंसेवकों के लिए अपने संगठन के मुख्यालय में उस भारत के निर्माण की प्रक्रिया को सुनना जो तमाम सभ्यताओं और संस्कृतियों के मेल से बना है, बिल्कुल ही नया तजुर्बा रहा होगा. प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में बहुलता और सहिष्णुता को भारत की आत्मा बताया. उन्होंने धर्म के नाम पर भारतीयता को परिभाषित करने की कोशिश को सिरे से खारिज कर दिया. पूर्व राष्ट्रपति ने बताया कि जनता के कल्याण में ही शासक की भलाई है. यकीनन, पूर्व राष्ट्रपति ने ये विचार संघ और उसके सहयोगी संगठनों को ध्यान में रखकर ही व्यक्त किए होंगे.

इस कार्यक्रम की शुरुआत में ही एक अहम संकेत था. जिस वक्त कार्यक्रम शुरू हुआ और भगवा झंडा फहराया गया, तो, संघ के हजारों स्वयंसेवक और पदाधिकारी सफेद कमीज, खाकी पैंट और चौड़े बेल्ट लगाए हुए बेहद सम्मान के साथ खड़े हुए और ध्वज प्रणाम किया. गणवेश धारी स्वयंसेवकों की भीड़ में धोती और अचकन पहने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भीड़ में अल्पसंख्यक मगर एकदम अलग लग रहे थे. उन्होंने न ध्वज प्रणाम किया और न ही वो भीड़ से प्रभावित हुए. अपनी विचारधारा से बिल्कुल अलग एक संगठन के कार्यक्रम में वो संवेदनहीन रूप से खड़े हुए ध्वजारोहण के मूक दर्शक मात्र थे. प्रणब मुखर्जी ने साफ संकेत दिया कि वो इस आयोजन के प्रतिभागी नहीं, सिर्फ मेहमान हैं, जिसकी अपनी विचारधारा है. प्रणब मुखर्जी ने जता दिया था कि वो विनम्र और सलीकेदार होंगे, मगर उस आयोजन के प्रति कोई सम्मान नहीं दिखाएंगे.

पूर्व राष्ट्रपति ने  याद दिलाया कि भारत तमाम सभ्यताओं और संस्कृतियों के मेल से बना है. मुखर्जी ने कहा, ‘भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों के मेल-जोल और साथ रहने से बनी है. आधुनिक भारत को कई भारतीय नेताओं ने परिभाषित किया है और ये भारतीयता किसी नस्ल या धर्म से नहीं जुड़ी है’.

आखिर में प्रणब मुखर्जी ने खुद को धर्मनिरपेक्षता, बहुलता और सहिष्णुता के उन्हीं आदर्शों के दूत के तौर पर पेश किया ये एक नेहरूवादी नेता का साहस ही है कि वो प्रतिद्वंदी के गढ़ में जाकर अपने दिल की बात बेखौफ होकर कर सका. जैसा कि रणदीप सुरजेवाला ने कहा भी कि कांग्रेस को संघ को सीख देनी चाहिए कि वो पूर्व राष्ट्रपति की सीख को माने और उनके बताए रास्ते पर चले. 

खाकी पतलून पहने हजारों लोगों की भीड़ में सफेद धोती पहने हुए खड़ा एक शख्स, जो संघ के भगवा मुख्यालय में बिल्कुल अलग था. फिजां में सिर्फ प्रणब मुखर्जी के शब्द गूंजेंगे, जिसमें उन्होंने उस भारतीयता की बात की, जिसकी प्रेरणा उन्हें नेहरु से मिली थी.

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