प्रियंका रामलला के दर्शन करने विवादित रामजन्मभूमि क्यों नहीं गईं?


2019 का लोकसभा का चुनाव राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा, देशप्रेम, देशभक्ति और पाकिस्तान विरोध तथा आतंकवाद के मुद्दों पर लड़ा जाएगा। यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण से पूरी तरह साफ़ हो गई है। यह भी साफ़ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी अपने 5 साल के कार्यकाल में उठे बेरोज़गारी, किसानों की ख़राब हालत, अर्थव्यवस्था की दुखद स्थिति जैसे अहम मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने की कोशिश करेगी। 
लोकसभा चुनाव का एलान होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरठ में पहली रैली को संबोधित कर बीजेपी के चुनाव प्रचार का औपचारिक आगाज किया। इस मौक़े पर प्रधानमंत्री मोदी ने यह कहने में जरा भी हिचक नहीं दिखाई कि मेरठ से उन्होंने बीजेपी के चुनाव प्रचार की शुरुआत क्यों की। मोदी ने लोगों को याद दिलाया कि 1857 में अंग्रेजों के ख़िलाफ़ विद्रोह का बिगुल मेरठ से ही फूंका गया था और फिर यहीं से बग़ावत की हवा पूरे देश में फैली थी।
रैली में मोदी ने साफ़ कहा, ‘1857 में वही सपना, वही आंकाक्षा दिल में लिए इसी मेरठ से स्वतंत्रता के आंदोलन का बिगुल फूंका गया था।’ यानी मोदी ने मेरठ से अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत कर यह स्पष्ट कर दिया कि वह पूरे चुनाव को देशप्रेम बनाम देशद्रोह बनाने की पूरी कोशिश करेंगे। यह सच है कि मेरठ में ही 1857 के विद्रोह की पहली चिंगारी भड़की थी। इसी मेरठ में शहीद मंगल पांडे ने अंग्रेजों को गोली से उड़ाकर विद्रोह की शुरुआत की थी। यह चिंगारी देखते ही देखते एक ज्वाला में बदल गई और उस वक़्त के मुगलिया सल्तनत के आख़िरी चिराग बहादुर शाह जफ़र के नेतृत्व में एक नया इतिहास लिख दिया गया। 

उड़ी हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक के समय विपक्ष पर सरकार की तरफ़ से आरोप लगाया गया था कि वह सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत माँग रहा है। पुलवामा की घटना के बाद बालाकोट में आतंकवादियों के अड्डों पर सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी। तब यह ख़बर आई थी कि वहाँ स्ट्राइक तो हुई लेकिन कितने लोग मारे गए, यह कभी पता नहीं चला। इस मसले पर विपक्ष ने सरकार की काफ़ी खिंचाई की थी। ज़ाहिर है मोदी ने अपने भाषण के ज़रिये विपक्ष को राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर सवाल खड़े करने के लिए निशाने पर लिया है। 
मोदी के भाषण से स्पष्ट है कि वह विपक्ष को पाकिस्तान परस्त और देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को कमजोर करने वाला साबित करना चाहते हैं। रैली में मोदी ने ‘मिशन शक्ति’ का भी जिक़्र किया और यह बात रेखांकित करने की कोशिश की कि आख़िर पहले की सरकारें अंतरिक्ष में सैटेलाइट को मार गिराने के परीक्षण से क्यों पीछे हट गईं।

मोदी ने यह जताने की कोशिश की कि वह अकेले ऐसे शख़्स हैं जिसके हाथों में देश सुरक्षित है। उन्होंने कहा, ‘मैं देश के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगाने के लिए तैयार रहने वाला व्यक्ति हूँ। कोई भी राजनीतिक दबाव, कोई भी अंतरराष्ट्रीय दबाव आपके इस चौकीदार को डिगा नहीं पाएगा और न डरा पाएगा।’

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तंज कसा है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि कांग्रेस ने ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द का इस्तेमाल कर हिंदुओं को बदनाम किया था। मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने शांतिप्रिय हिंदुओं को आतंकवादी बताने की कोशिश की और अब वे जानते हैं कि जनता उन्हें इसकी सजा देगी, इसलिए वे डरे हुए हैं और सीट छोड़कर भाग रहे हैं। मोदी ने कहा कि कांग्रेस के नेता कान खोलकर सुन लें हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता।
प्रधानमंत्री मोदी लोकसभा चुनाव प्रचार के तहत महाराष्ट्र के वर्धा में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के लिए रैली को संबोधित कर रहे थे। 
पिछले दिनों समझौता ब्लास्ट केस में असीमानंद को सुप्रीम कोर्ट से बरी किए जाने के फ़ैसले के बाद मोदी ने कांग्रेस पर यह हमला बोला है। मोदी ने कहा कि महाराष्ट्र के कांग्रेस नेता सुशील कुमार शिंदे ने ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को कुंभकर्ण की तरह बताया। 
मोदी ने बालाकोट हमले के सबूत माँगने को लेकर विपक्षी दलों पर जमकर हमला बोला। मोदी ने कहा, ‘हमारे वीर जवानों ने एयर स्ट्राइक की तो ये लोग सबूत माँगने लगे। ये ऐसी बात कर रहे हैं, जो पाकिस्तान में अच्छी लगती हैं।’ प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं विदर्भ की धरती से पूछना चाहता हूँ कि आपको भारत के हीरो चाहिए या फिर पाकिस्तान के हीरो।’ 
कुछ साल पहले आज़ाद मैदान में हुई तोड़फोड़ की घटना का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि कांग्रेस-एनसीपी की सरकार ने शहीद स्मारक को जूतों से रौंदने की अनुमति दी थी। मोदी ने कहा कि इन दलों की सरकार ने यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश की कि ऐसे लोगों पर कार्रवाई न हो।  बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी कांग्रेस को आड़े हाथ लेते हुए आरोप लगाया था कि वह हिंदुओं पर आतंकवादी बताकर उन्हें बदनाम करने की कोशिश कर रही है। 

गंगा के रास्ते प्रयाग से काशी तक पहुँचने और रायबरेली, अमेठी से चलकर फ़ैज़ाबाद में जनता से संवाद स्थापित करने के बाद अब प्रियंका गाँधी बुंदेलखंड की डगर नापेंगी। प्रियंका 3 अप्रैल से बुंदेलखंड का अपना दौरा शुरू करेंगी। कांग्रेस महासचिव 3 अप्रैल को जालौन, 4 को महोबा, हमीरपुर और 5 अप्रैल को बांदा-चित्रकूट में रहेंगी।  टीम प्रियंका ने बुंदेलखंड के दौरे का रोडमैप तैयार कर लिया है। बुंदेलखंड की ज़्यादातर लोकसभा सीटों पर कांग्रेस ने पिछड़ी व दलित जातियों से प्रत्याशी उतारे हैं, लिहाज़ा प्रियंका का दौरा भी उन्हीं इलाक़ों में होगा, जहाँ इन जातियों की बहुतायत है। कांग्रेस ने बुंदेलखंड में 2009 में अपनी जीती हुई सीट बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी जन अधिकार पार्टी को समझौते में दे दी है और यहाँ से कुशवाहा के भाई चुनाव लड़ रहे हैं। टीम प्रियंका के सदस्यों ने हाल ही में पूरे इलाके़ का दौरा कर ज़मीनी हक़ीक़त जानी है और दौरे के पड़ाव तय किए हैं।

गाँवों में जाएँगी प्रियंका 

कांग्रेस की रणनीति बनाने वाली टीम के एक सदस्य के मुताबिक़, प्रियंका अपने दौरे में कोई बड़ी सभा या रैली न करते हुए गाँवों में लोगों से बातचीत करेंगी। उनका जोर गाँवों में महिलाओं, दलितों और पिछड़ी जाति के लोगों से बातचीत कर उनकी समस्या जानने और कांग्रेस की योजनाएँ बताने पर रहेगा। 

प्रियंका महोबा, चरखारी, मौदहा, उरई, जालौन सहित ललितपुर में जाएँगी। प्रियंका बुंदेलखंड में जल संरक्षण के लिए काम कर रही महिलाओं से मिलेंगी तो भूख के मुद्दे पर काम कर रही स्वंयसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों से भी बातचीत करेंगी।

हाल ही में फ़ैज़ाबाद दौरे में जिस तरह से प्रियंका गाँधी ने यादव बहुल गाँवों में जाकर वहाँ के लोगों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ी है और जिस तरह उनके दौरे में लोगों की भीड़ उमड़ी है, उससे कांग्रेस के कार्यकर्ता बेहद उत्साहित हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रियंका के दौरे से जातियों के खाँचे में बंधे बुंदेलखंड के मतदाताओं का कांग्रेस की ओर झुकाव होगा।  कांग्रेस ने बुंदेलखंड में स्थानीय व जातीय समीकरणों में फ़िट बैटने वाले प्रत्याशी उतारे हैं। फ़तेहपुर में कांग्रेस ने सपा से आए व पिछले लोकसभा चुनावों में दूसरे स्थान पर रहने वाले राकेश सचान को उतारा है तो अकबरपुर में अपने पूर्व सांसद राजाराम पाल को प्रत्याशी बनाया है। बांदा में पूर्व सांसद व ददुआ के भाई बालकुमार पटेल को उतारा है तो जालौन में बसपा के पूर्व सासंद ब्रजलाल खाबड़ी को प्रत्याशी बनाया है। 

हमीरपुर में फिलहाल कांग्रेस ने प्रीतम सिंह लोधी को टिकट दिया है लेकिन अब तक कोई भी चुनाव न जीत पाने वाले व पिछले लोकसभा चुनावों में बुरी तरह जमानत गँवा देने वाले इस प्रत्याशी को बदलने पर विचार चल रहा है।

 बुंदेलखंड में कांग्रेस ने किसी अगड़ी जाति और ख़ासकर ठाकुर को टिकट नहीं दिया है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि हमीरपुर में लोधी प्रत्याशी के स्थान पर ठाकुर बिरादरी के किसी नेता को टिकट दिया जा सकता है। लोधी परंपरागत रूप से बीजेपी के मतदाता हैं। कांग्रेस इस सीट से अपने पुराने कार्यकर्ता व दो बार विधान परिषद के सदस्य रहे जयवंत सिंह के नाम पर गंभीरता से विचार कर रही है।

वही दूसरी ओर कृष्ण प्रताप सिंह अपने आलेख में लिखते हैं कि

बीते 29 मार्च को अयोध्या में रोड शो के क्रम में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के वहां की हनुमानगढ़ी जाने को लेकर भारतीय जनता पार्टी और उसकी जमातों का बिफरना व बौखलाना समझ में नहीं आता.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद द्वारा हुड़दंग मचाकर उनकी पूजा-अर्चना में विघ्न डालना और वित्तमंत्री अरुण जेटली का यह पूछे बिना न रह पाना तो और भी नहीं कि हनुमानगढ़ी जाने के पीछे उनकी आस्था व विश्वास थे या राजनीति? अच्छी बात यह है कि जेटली का यह सवाल किसी जवाब की मांग नहीं करता.

उल्टे भाजपाई जमातों को इस प्रतिप्रश्न के सामने ला खड़ा करता है कि वे हिंदुत्व की कैसी पैरोकार हैं कि अपनी जमात के बाहर के किसी नेता का हिंदू होना बर्दाश्त या स्वीकार नहीं कर पातीं? जैसे ही वह कहीं अपनी आस्था प्रदर्शित करता है, क्यों उसे अनेक तरह के शक और शुबहों से घेरने लग जाती हैं?

क्या यह वैसे ही नहीं है जैसे वे अनेक देशवासियों की देशभक्ति पर अकारण भी शक किया करती हैं? क्या ऐसा इसलिए है कि आस्थाओं और विश्वासों की राजनीति के कीचड़ में खुद के आपादमस्तक लिप्त होने का अपराध उन्हें किसी की भी आस्था को राजनीति से इतर मानने ही नहीं देता?

क्यों ये जमातें यह पूछते हुए कि प्रियंका रामलला के दर्शन करने विवादित रामजन्मभूमि क्यों नहीं गईं, छिपा नहीं पातीं कि उनके इस सवाल के पीछे भी उनकी स्वार्थी राजनीति ही है?

तभी तो उनके इस सवाल के बाद आम लोग भी पूछने लगते हैं कि उनकी यह कैसी राजनीति है कि विपक्ष में रहते हुए भाजपा रामजन्मभूमि पर भव्य राममंदिर निर्माण की रट लगाती नहीं थकती और सत्ता में आते ही सुर बदल लेती है?

जैसा कि भाजपा दावा करती है, अगर हिंदुत्व की स्वयंभू अलमबरदार के तौर पर उसका अपने घोषणा पत्र में राममंदिर निर्माण का वादा करना, फिर भूल जाना और सत्ता पा जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रामजन्मभूमि की ओर मुंह तक न करना राजनीति नहीं है तो प्रियंका का अयोध्या की हनुमानगढ़ी में मत्था टेककर आशीर्वाद लेना क्यों कर राजनीति हो सकता है?

खासकर जब यह किसी कांग्रेस नेता की पहली हनुमानगढ़ी यात्रा तक नहीं है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इससे पहले भी उक्त गढ़ी में अपनी हाजिरी दर्ज करा चुके हैं. हां, अगर ये दोनों की राजनीति की दो अलग-अलग शैलियां हैं तो क्या भाजपाई जमातें चाहती हैं कि इस मसले पर सिर्फ वही राजनीति करें और इसी कारण कोई और ऐसा करने लगता है तो उन्हें असुविधा होने लगती है?

जब तक देश में लोकतंत्र है, इसे क्यों कर स्वीकार किया जा सकता है? बहरहाल, हमें नहीं मालूम कि कांग्रेस की ओर से इन जमातों को कैसे जवाब दिया जायेगा? दिया भी जायेगा या नहीं.

लेकिन सच्चा जवाब तो सच पूछिए तो इस प्रति प्रश्न से ही जुड़ा हुआ है कि अपनी राजनीतिक सुविधा के अनुसार रामजन्मभूमि और राम मंदिर की रट लगाने वाली भाजपाई जमातें अयोध्या की इस हनुमानगढ़ी तक जाने को कौन कहे, उसका नाम तक क्यों नहीं लेतीं?

उन्हें इस मामले में भी कांग्रेस या प्रियंका गांधी से आगे दो कदम आगे बढ़ जाने से किसने रोक रखा है? किसी ने नहीं तो क्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना समेत पांच राज्यों की विधानसभाओं के गत चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हनुमान को वनवासी, गिरिवासी, वंचित और दलित वगैरह करार दिया तो भी उनकी इस गढ़ी की कतई कोई चर्चा नहीं की?

कहीं इसलिए तो नहीं कि उसने देश के आजाद होने के पहले ही अपनी व्यवस्था में लोकतंत्र और चुनाव का अपनी तरह का अनूठा और देश का संभवतः पहला प्रयोग कर रखा है, अभी भी उसे सफलतापूर्वक संचालित करती आ रही है और लोकतंत्र से पुराने बैर के कारण इन जमातों को यह बात अच्छी नहीं लगती?

इसी बैर के कारण तो कहा जाता है कि चुनाव लड़ते वक्त दिए जाने वाले उनके प्रत्याशियों द्वारा दिए जाने वाले शपथपत्रों में प्रदर्शित हो जाता हो तो हो जाता हो, वे अन्यत्र कहीं लोकतांत्रिक आचरण करती नहीं नजर आतीं. देश के लोकतंत्र के तहत खुद को मिली सुविधाओं को भी, कहते हैं कि वे लोकतंत्र के खात्मे के लिए ही इस्तेमाल करने का इरादा रखती हैं.

इसीलिए वे अपने पितृपुरुषों में से एक नानाजी देशमुख के इस कथन को भी याद रखने की जरूरत नहीं समझतीं कि इस देश की लोकतांत्रिक यात्रा अब इतनी लंबी हो चुकी है कि वह राजतंत्र के युग में पीछे लौटकर किसी राजा का राज्य स्वीकार नहीं करने वाला, भले ही वह अयोध्या के राजाराम का राज्य हो, सम्राट अशोक का या फिर अकबर का.

नानाजी देशमुख कहते थे कि चूंकि देशवासियों के लिए अब रानियों के पेट से जन्म लेने वाले सारे राजाओं के राज बेस्वाद हो चुके हैं, वे एक दिन उन्हें भी सबक सिखाकर ही मानेंगे जो देश के लोकतंत्र को भी राजतंत्र का लबादा ओढ़ाने के फेर में हैं.

दूसरे पहलू पर जाएं तो अमेठी से अयोध्या के बीच के अपने रोड शो में प्रियंका ने बार-बार कहा कि यह लोकसभा चुनाव देश के संविधान और लोकतंत्र बचाने का अवसर है और भाजपा व नरेंद्र मोदी के राज में इन दोनों के ही खतरे में होने के कारण इसका सदुपयोग किया जाना बहुत जरूरी है.

ऐसे में उनका अयोध्या की हनुमानगढ़ी जाना बहुत स्वाभाविक था, क्योंकि उसके द्वारा देश में संविधान लागू होने के बहुत पहले ही अपनी व्यवस्था में अंगीकार किया गया लोकतंत्र हमारे महान लोकतंत्र की बड़ी प्रेरणा है.

यूं यह भी एक तरह से स्वाभाविक ही है कि प्रियंका द्वारा इस अलक्षित प्रेरणा को आगे किया जाना लोकतंत्र को लजाने वाली घृणा की राजनीति के अलमबरदारों को रास नहीं आ रहा. आए भी कैसे, अवध की गंगा-जमुनी संस्कृति के अनुरूप इस गढ़ी के निर्माण में अवध के नवाबों का उल्लेखनीय योगदान रहा है और इन अलमबरदारों का इस संस्कृति के संरक्षण का कोई इतिहास नहीं है.

इसलिए इतना भर जान लेना पर्याप्त होगा कि अयोध्या की हनुमानगढ़ी ने 18वीं शताब्दी की समाप्ति से बीस पच्चीस साल पहले ही वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतंत्र का जीवनदर्शन के तौर पर इस्तेमाल शुरू कर दिया था. वह भी अलिखित या अनौपचारिक रूप से नहीं, बाकायदा संविधान बना और लागू करके.

 मोदी के तेवरों से साफ़ है कि वह इस चुनाव में राष्ट्रवाद को एक बड़े मुद्दे के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं। जहाँ वह यह साबित करना चाहते हैं कि वह राष्ट्र के साथ खड़े हैं और विपक्षी नेताओं का जमावड़ा देशहित के ख़िलाफ़ काम कर रहा है।

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