परिसंपत्तियों का  बटवारा -उत्तराखंड की जनता का अपमान

25% + 75% = उत्तर प्रदेश के साथ परिसंपत्तियों का  बटवारा –  उत्तराखंड की जनता का अपमान

भाजपा की सरकार= केन्द्र में, उत्तर प्रदेश में और उत्तराखंड में भी + राज्य की पांचों लोकसभा सीटें भाजपा के पास # उत्तर प्रदेश के साथ परिसंपत्तियों के मामले में जिस तरह सरकार ने उत्तर प्रदेश के सामने घुटने टेके #उत्तराखंड के हिस्से में मात्र 25 प्रतिशत हिस्सेदारी आयी और 75 प्रतिशत उत्तर प्रदेश ले उड़ा  #  उत्तराखंड में आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला है कि तीन किसानों ने कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या की

‘मोदीकाज’ और ‘योगीकाज’ कर रहे हैं मुख्यमंत्रीः पुष्पेश त्रिपाठी
देहरादून। उत्तराखंड क्रांति दल के पूर्व अध्यक्ष एवं विधायक पुष्पेश त्रिपाठी ने कहा है कि राज्य सरकार जनता के हितों से न्याय नहीं कर पा रही। उत्तर प्रदेश के साथ परिसंपत्तियों के मामले में जिस तरह सरकार ने उत्तर प्रदेश के सामने घुटने टेके हैं उससे उत्तराखंड को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। यह सरकार की नासमझी और कमजोर होमवर्क को भी बताता है। जो भाजपा राज्य बनाने का दावा करती है वह जब भी मौका लगता राज्य के लोगों को छलने का काम करती है। परिसंपत्तियों के मामले में भी यही हुआ है। केन्द्र में भाजपा की सरकार है, उत्तर प्रदेश में भी और उत्तराखंड में भी तब उसे अपना पक्ष रखने में ज्यादा दिक्कत नहीं होनी चाहिये। इसी को पिछले चुनाव में भाजपा ने कहा भी था। जबकि राज्य की पांचों लोकसभा सीटें भाजपा के पास हैं। इनमें से तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी हैं जो परिसंपत्तियों के बंटवारे को अच्छी तरह समझते हैं। इससे यह साफ हो जाता है कि भाजपा के लिये उत्तराखंड सिर्फ सत्ता प्रात करने की सीढ़ी मात्र है। यह पहली बार नहीं हुआ है। जब भाजपा की अंतरिम सरकार बनी थी तो उसने 39 संशोधनों, राजधानी, परिसंपत्तियों और विकल्पधारियों के सवाल को उलझाकर इसे नासूर बनाने के लिये छोड़ दिया गया। तब भाजपा जनता की भावनाओं के अनुरूप राजधानी गैरसैंण के खिलाफ आयोग बनाती है आज वह पलायन पर आयोग बनाने की बात कर रही है।

उत्तराखंड के हिस्से में मात्र 25 प्रतिशत हिस्सेदारी आयी और 75 प्रतिशत उत्तर प्रदेश ले उड़ा

श्री त्रिपाठी ने कहा कि उत्तर प्रदेश के साथ परिसंपत्तियों का जो बटवारा हुआ है वह एक तरह से उत्तराखंड की जनता का अपमान है। परिसंपत्तियों के बंटवारे में उत्तराखंड के हिस्से में मात्र 25 प्रतिशत हिस्सेदारी आयी और 75 प्रतिशत उत्तर प्रदेश ले उड़ा। सबसे आश्र्चयजनक बात यह है कि कुंभ मेले की जमीन तक को उत्तराखंड नहीं बचा पाया। कितना हास्यास्पद है कि जमीन पर तो कब्जा रहेगा उत्तर प्रदेश का और उत्तराखंड को इस पर सिर्फ कुंभ मेला आयोजित करने का अधिकार होगा। डेम कोठी को ही सिर्फ उत्तराखंड बचा पाया, जबकि बनबसा का गेस्ट हाउस भी हमारे हाथ से निकल गया। राज्य के अधिकतर बांधों पर भी उत्तर प्रदेश का कब्जा रहेगा। धोरा, बैगुल, बनबसा और नानक सागर जैसी संपत्तियां भी उत्तर प्रदेश के हिस्से में गई हैं। यह तो एक मोटा-मोटी हिसाब है परिसंपत्तियों का। इसके अलावा हजारों करोड़ का घाटा उत्तराखंड को परिसंपत्तियों के बंटवारे में उठाना पड़ा। इसका एक ही कारण था सरकार और उसके अधिकारी परिसंपत्तियों के मामले में अपना पक्ष मजबूती से नहीं रख पाये। इसके पीछे यही वजह है कि भाजपा सरकार के लिये जनता के हित बहुत मायने नहीं रखते। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत जी ने अपने एक विज्ञापन में ठीक ही कहा है कि वे तो ‘रामकाज’ करने आये हैं। उससे पहले उन्हें विश्राम नहीं है। रामकाज तो हनुमान ने किया था। मुख्यमंत्री कहते कि वह ‘मोदीकाज’ या ‘योगीकाज’ करने आये तो ज्यादा प्रासंगिक होता क्योंकि परिसंपत्तियों पर तो उन्होंने ‘योगीकाज’ ही किया है।

शर्मनाक बात- 

श्री त्रिपाठी ने कहा कि भाजपा जो अपने को शुचिता और संस्कार की पार्टी कहती है उसने राजनीतिक अपसंस्कृति के मामले में उत्तराखंड की पूर्ववर्ती सरकार को भी पीछे छोड़ दिया है। वह सरकार डेनिस लाई तो इस सरकार ने घर-घर शराब पहुंचाने की व्यवस्था कर दी है। यह कितनी शर्मनाक बात है कि जनता अपने यहां शराब को बंद कराने के लिये आंदोलन कर रही है। महिलायें सड़कों पर हैं। सरकार कहती है कि शराब के बिना पहाड़ चल नहीं सकता। राज्य में मोबाइल गाड़ियों से शराब पहुंचाने से भाजपा के चाल और चरित्र भी साफ हो गया है। मुख्यमंत्री के पलायन आयोग बनाने को जनविरोधी बताते हुये श्री त्रिपाठी ने कहा कि लोकतंत्र में जनता की भावनाओं के अनुरूप सरकारों को काम करना चाहिये। जनता पलायन के सवालों को बार-बार रख चुकी है। उसके कारण भी बता चुकी है। जनता पिछले तीन-चार दशक से इस बात को कह रही है कि हमारे भूमि कानून को बदलों, जंगल हमारे अनुरूप बनाओ, नदियों को बचाओ, जमीन की खरीद-फरोख्त को रोको, शिक्षा, स्वास्थ्य रोजगार के लिये नीतियां बनाओ लेकिन सरकारों ने कभी उनकी नहीं सुनी। वे लगतार नदियों को पंूजीपतियों के हवाले करते गये, जमीनें तेजी से बिकने लगी, सरकारी स्कूल बंद होने लगे, अस्पतालों को प्राइवेट में ले जाने के रास्ते खुलने लगे। हल्द्वानी और श्रीनगर के मेडिकल काॅलेज को चलाने से भी सरकार ने हाथ खड़े कर दिये। एनआईजी जैसे संस्थान के सामने अस्तित्व बचाने का खतरा पैदा हो गया। इन सब को देखने के बाद भी अगर कोई जनता की अनदेखी कर आयोग बनाने जैसी बात कर करता है तो यह सरकार के दिमागी दिवालियेपन की पराकाष्ठा है। इससे भी गंभीर बात यह है कि उत्तराखंड में आजादी के बाद पहली बार देखने को मिला है कि तीन किसानों ने कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या की है। इसके बाद भी अगर सरकारों की समझ में समस्यायें नहीं आती हैं तो उन्हें सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है।
श्री त्रिपाठी ने कहा कि पहाड़ आयोग से नहीं जनता की भावनाओं के अनुरूप नीति बनाने से बदलेगा। श्री त्रिपाठी ने कहा कि इन सब मुद्दों को लेकर उत्तराखंड क्रान्ति दल बहुत मजबूती के साथ जनता के बीच जायेगा। सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ बड़े आंदोलन की रूपरेखा भी बनायेगा।

पुष्पेश त्रिपाठी
पूर्व विधायक एवं पूर्व अध्यक्ष
उत्तराखंड क्रान्ति दल

(www.himalayauk.org) HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND: Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper: publish at Dehradun & Haridwar; mail; himalayauk@gmail.com, csjoshi_editor@yahoo.in, Mob. 9412932030

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *