अब कांग्रेस की जनता के गुस्‍से को अपने पक्ष में भुनाने की रणनीति,१३ में बीजेपी ने भूनाया था

कांग्रेस आने वाले चुनाव में आंतरिक सुरक्षा को एक बड़ा मुद्दा बनाने की फिराक़ में है। कांग्रेस ठीक उसी तरह से मुद्दा बना सकती है जैसे 2014 में बीजेपी नेताओं ने एक के बदले 10 सर लाने की बात करके पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जनता के ग़ुस्से को अपने पक्ष में भुनाया था।   आतंकी हमले के बाद देशभर में केंद्र सरकार ख़ासकर पीएम मोदी के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त ग़ुस्सा है। यह ठीक उसी तरह है जैसे 2013 में हेमराज के सर काटे जाने की घटना के बाद यूपीए सरकार और तब के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के ख़िलाफ़ था। कांग्रेस अब ग़ुस्से को अपने पक्ष में भुनाने की रणनीति बनाने में जुट गई है। मोदी सरकार को कैसे मज़बूत सरकार का कहा जा सकता है जिसके राज में 5000 बार पाकिस्तानी सेना ने सीजफ़ायर का उल्लंघन किया है और देश में 18 बड़ी आतंकवादी घटनाएँ हुई हैं।

पुलवामा में आतंकी हमले के बाद देश भर में मातम है। हर तरफ़ शोक का माहौल है। दुख की इस घड़ी में कांग्रेस ने सुरक्षाबलों और सरकार के साथ खड़े रहने की प्रतिबद्धता दोहराई है। साथ ही कांग्रेस यह भी मानती है कि हाल के वर्षों में यह अपनी तरह का अनोखा और सबसे बड़ा आतंकी हमला है, जिसमें इतने बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों के जवान शहीद हुए हैं। इसके लिए कांग्रेस सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ केंद्र सरकार को पूरी तरह ज़िम्मेदार मानती है।

कांग्रेस में रणनीति बनी है कि इस मुद्दे पर सुरक्षा बलों और सरकार के साथ मज़बूती से खड़ा हुआ जाए और साथ ही सवाल पूछा जाए कि सरकार आख़िर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोई कड़ी कार्रवाई करने से क्यों बच रही है इस मुद्दे पर यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गाँधी ने कांग्रेस कोर ग्रुप की एक अहम बैठक बुलाई। इस बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, आनंद शर्मा, पूर्व रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी और संगठन महासचिव के.सी. वेणुगोपाल समेत कई बड़े नेताओं ने शिरकत की। बैठक में इस मुद्दे पर विचार किया गया कि देश की आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर कांग्रेस को अपनी राय कैसे जनता के सामने रखनी चाहिए। संकेत मिले हैं कि बैठक में इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई है कि अगर इस घटना के बाद बीजेपी पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोई कड़ा कदम उठाती है तो उसे चुनावी फ़ायदा होगा तो उसकी काट कांग्रेस कैसे करे। 

26 फ़रवरी को गुजरात में अहमदाबाद या सौराष्ट्र के किसी हिस्से में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक होना प्रस्तावित है। कांग्रेसी सूत्रों के मुताबिक़ इस बैठक में कांग्रेस आंतरिक सुरक्षा पर एक विशेष प्रस्ताव ला सकती है। इसमें कहा देश की आंतरिक सुरक्षा के मामले में मोदी सरकार पूरी तरह नाकाम क़रार देकर उस पर ज़ोरदार हमला बोला जा सकता है। कार्य समिति में प्रस्ताव आने का यही मतलब है कि कांग्रेस आगे चल कर चुनाव प्रचार मेंं ज़ोर-शोर से उठाएगी। इसके संकेत हाल ही में कांग्रेस की कई प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी मिले हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने पूछा था कि मोदी सरकार को कैसे मज़बूत सरकार का कहा जा सकता है जिसके राज में 5000 बार पाकिस्तानी सेना ने सीजफ़ायर का उल्लंघन किया है और देश में 18 बड़ी आतंकवादी घटनाएँ हुई हैं।

राहुल गाँधी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने  बेहद संतुलित बयान दिया। राहुल ने कहा कि आतंकवाद देश को बाँटने, तोड़ने की कोशिश करता है। इस देश को कोई भी शक्ति तोड़ नहीं सकती है, बाँट नहीं सकती है। पूरा विपक्ष एक साथ हमारी सुरक्षा बलों के साथ और सरकार के साथ खड़ा है। यह जो हमला हुआ है, यह हिंदुस्तान की आत्मा पर हमला हुआ है, हमारे जो सबसे ज़रूरी लोग हैं, सुरक्षा बल के, उनके ख़िलाफ़ हुआ है और हम उनके साथ खड़े हैं।

ग़ुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि यह हमला किसी एक व्यक्ति पर नहीं या सुरक्षा बलों पर नहीं, यह पूरे देश पर है। यह बहुत दुखद घटना है। 
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाब नबी आजाद ने पंजाब के मंत्री और अपने पार्टी के नेता नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान के साथ बातचीत करने के सुझाव को खारिज कर दिया है. आजाद ने कहा कि यह वक्त बातचीत का नहीं है. बातचीत की बात करना तो बेवकूफी होगी. हमारे जवानों की शहादत जाया ना जाए इसके लिए हमें कड़ा जवाब देना चाहिए.
गुलाम नबी आजाद ने कहा कि यह वक्त आरोप-प्रत्यारोप का नहीं है. यह वक्त सरकार के साथ खड़े रहने का है. सरकार ने विभिन्न नेताओं की बैठक बुलाई है. मैं अपील करूंगा कि देश भर के सियासी दलों के नेताओं की बैठक बुलाए. नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान के साथ बातचीत से मामले को सुलझाने के सुझाव को गुलाब नहीं ने सिरे से खारिज दिया. उन्होंने कहा कि यह वक्त बातचीत का नहीं है. बातचीत की बात करना तो बेवकूफी होगी. हमारे जवानों की शहादत जाया ना जाए इसके लिए हमें कड़ा जवाब देना चाहिए.

हालाँकि आतंकी हमले की शुरुआती ख़बरों के बाद कांग्रेस प्रवक्ताओं ने बीजेपी को घेरा था। ख़ुद सुरजेवाला ने भी कहा था कि इतना बड़ा हमला हुआ तो 56 इंच की छाती क्या करती रही। हालाँकि बाद में सभी प्रवक्ताओं ने संयम बरता।

वाजपेयी सरकार से बच निकला, मोदी सरकार में हमले

आतंकवादी गुट जैश-ए-मुहम्मद एक बार फिर सुर्खियों में है। इसने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में फ़िदायीन हमले की ज़िम्मेदारी ली है। इसका संस्थापक और प्रमुख मसूद अज़हर है। वही मसूद अज़हर जिसे अटल बिहारी वाजयेपी की सरकार ने इंडियन एयरलाइन्स के अपहृत विमान के मुसाफ़िरों के बदले छोड़ दिया था और जिसे लेकर ख़ुद तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह कंधार गए थे।

अब इस आतंकी संगठन की करतूत के बाद फिर पूरे देश में दुःख है, गुस्सा है, क्षोभ है, प्रतिशोध की माँग है। प्रतिशोध की माँग यह भी है कि इस हमले को अंजाम देने वाले जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को वापस देश में लाकर सजा दी जाए। तो क्या मसूद अजहर को सजा देना इतना आसान है?  मसूद अज़हर बच निकला। बाद में उसने जैश-ए-मुहम्मद जैसा खूँखार आतंकवादी संगठन बनाया। अब वह भारत पर हमले पर हमले करवाता जा रहा है-  संसद हमला, मुंबई हमला, पठानकोट हमला और अब पुलवामा हमला। चारों का मास्टरमाइंड वही है। और प्रधानमंत्री मोदी की तमाम कोशिशों के बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ से उसे वैश्विक आतंकी घोषित करवाने में भारत सफल नहीं हो पाया है।  

बाक़ी देशभक्ति के दावे भी वही हैं, सिपाहियों की जान सस्ती होने का सच भी। आख़िर स्वघोषित देशभक्त और सेना प्रेमी बीजेपी की सरकारों ने भी पाकिस्तान से राजनयिक संबंध छोड़िये, आर्थिक संबंध तोड़ने तक की हिम्मत न दिखाई। न वाजपेयी ने कारगिल और संसद हमले के बाद, न पठानकोट, गुरदासपुर, कुलगाम, पुलवामा हमले आदि के बाद मोदी ने। दावे और जुमले जो भी हों, सच इतना है !

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