जयंती विशेष- राजीव गॉधी इस पत्रकार संगठन की राय को तवज्‍जो देते थे

यह कहना गलत नहीं होगा कि आज जिस भारत में हम सांस ले रहे हैं। जिस आधुनिक भारत का लोहा आज पूरी दुनिया मान रही है। जिस भारत पर आज पूरी दुनिया की नजरें इनायत हैं। जिसे कल का विश्वशक्ति माना जा रहा है और कहा जा रहा है कि एक बार फिर भारत पूरे विश्व को एक नई राह दिखाएगा, यह राजीव गांधी की ही देन है। राजीव ने ही कभी भारत को मजबूत, महफूज़ और तरक्की की राह पर रफ्तार से दौड़ता मुल्क बनाने का सपना देखा था। तरक्की पसंद राजीव ने ही कभी भारत को वक्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना सिखाया था। जिस कंप्यूटर, आईटी और टेलीफोन जैसे कई अन्य क्षेत्रों में आज हम पूरी दुनिया को टक्कर देने का दंभ भर रहे हैं वह राजीव की ही देन है। भारत के जिन नौजवानों पर आज पूरी दुनिया की नजर है उसकी ताकत को राजीव ने बहुत पहले ही भांप लिया था। 

राजीव गांधी को एक सरल स्वभाव का व्यक्ति माना जाता है। पार्टी में उनकी छवि एक उदार नेता की थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद वह कोई भी निर्णय जल्दबाजी में ना लेकर अपने कार्यकर्ताओं से विचार-विमर्श करने के बाद ही लेते थे। वह सहनशील और निर्मल स्वभाव के व्यक्ति थे। आम लोगों के बीच जाकर उनके साथ हाथ मिलाना उन्हें जैसे अपनी मां इंदिरा गांधी से आदतन विरासत के तौर पर मिला था। 
यही वजह है कि एक दूरदर्शी नेता की तरह राजीव गांधी ने देश की तरक्‍की के लिए विज्ञान और युवा को एक साथ आगे बढ़ाने की कोशिश की थी। आज राजीव गांधी के जन्मदिवस पर HIMALAYAUK NEWSPORTAL द्वारा विशेष आलेख-

राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को बंबई में हुआ था। उन्होंने कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज और लंदन के इम्पीरियल कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की थी। राजनीति राजीव को विरासत में मिली थी,बावजूद इसके वह राजनीति में नहीं आना चाहते थे। दूर-दूर तक राजीव को राजनीति से कोई वास्ता नहीं था,यही वजह है कि अपनी पढ़ाई खत्म होने बाद राजीव गांधी इंडियन एयरलाइंस में पायलट बन गए। 1968 में इटली की नागरिक एन्टोनिया मैनो से उन्होंने विवाह भी कर लिया। बाद में जिन्होंने अपना नाम बदलकर सोनिया गांधी कर लिया। सोनिया भी नहीं चाहतीं थीं कि राजीव राजनीति में आए, इसी शर्त पर सोनिया ने उनसे शादी भी की थी। लेकिन कहते हैं न कि किस्मत कब किसे ज़िंदगी के दोराहे पर खड़ा कर दे, यह कोई नहीं जानता। राजीव के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। 1980 में अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद माता इन्दिरा गांधी को सहयोग देने के लिए 1982 में राजीव गांधी को राजनीति में आना पडा। लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। 31 अक्टूबर 1984 को सिख अंगरक्षकों द्वारा इंदिरा गांधी की हत्या ने राजीव की जिंदगी और छोटे-छोटे सपनों को बदल दिया।

राजीव गांधी इन्दिरा गांधी के पुत्र और जवाहरलाल नेहरू के दौहित्र (नाती), भारत के सातवें प्रधान मंत्री थे। १९८४ में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी भारी बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने थे। उसके बाद १९८९ के आम चुनावों में कांग्रेस की हार हुई और पार्टी दो साल तक विपक्ष में रही। १९९१ के आम चुनाव में प्रचार के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक भयंकर बम विस्फोट में राजीव गांधी की मौत हो गई थी। २० अगस्त, १९४४ – २१ मई, १९९१)

सोनिया ने कहा कि राजीव गांधी आज होते तो 74 साल के होते. उनका राजनीतिक जीवन बहुत छोटा था, लेकिन इसमें भी उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को नयी दिशा दी. सोनिया ने कहा, ‘‘ राजीव गांधी यह मानते थे कि भारत की एकता उसकी विविधिता से आती है और इससे ही मजबूत होती है. यही सद्भावना का मतलब है. उनके नजरिए की आज के समय में भी बहुत प्रासंगिकता है.’’ सोनिया ने कहा, ‘‘ वह तेज आर्थिक विकास और आर्थिक आधुनिकीकरण व भारत को प्रौद्योगिकी की शक्ति बनने के पैरोकार थे. इसके साथ ही वह समृद्धि बढ़ाने और सामाजिक उदावाद को एक ही सिक्के का दो पहलू मानते थे.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने देखा है कि अर्थव्यवस्था को उदार बनाना और मानसिकता को संकीर्ण करना खतरनाक एवं विध्वंसक मिश्रण है.’’

राजीव का विवाह एन्टोनिया माईनो से हुआ जो उस समय इटली की नागरिक थी। विवाहोपरान्त उनकी पत्नी ने नाम बदलकर सोनिया गांधी कर लिया। कहा जाता है कि राजीव गांधी से उनकी मुलाकात तब हुई जब राजीव कैम्ब्रिज में पढने गये थे। उनकी शादी 1968 में हुई जिसके बाद वे भारत में रहने लगी। राजीव व सोनिया की दो बच्चे हैं, पुत्र राहुल का जन्म 1970 और पुत्री प्रियंका का जन्म 1971 में हुआ। राजीव गांधी की राजनीति में कोई रूचि नहीं थी और वो एक एयरलाइन पाइलट की नौकरी करते थे। आपातकाल के उपरान्त जब इन्दिरा गांधी को सत्ता छोड़नी पड़ी थी, तब कुछ समय के लिए राजीव परिवार के साथ विदेश में रहने चले गए थे। परंतु १९८० में अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद माता इन्दिरा को सहयोग देने के लिए सन् १९८२ में राजीव गांधी ने राजनीति में प्रवेश लिया। वो अमेठी से लोकसभा का चुनाव जीत कर सांसद बने और ३१ अक्टूबर १९8४ को सिख आतंकवादियों द्वारा प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या किए जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री बने और अगले आम चुनावों में सबसे अधिक बहुमत पाकर प्रधानमंत्री बने रहे। उनके प्रधानमंत्रित्व काल में भारतीय सेना द्वारा बोफ़ोर्स तोप की खरीदारी में लिए गये किकबैक (कमीशन – घूस) का मुद्दा उछला। अगले चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और राजीव को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा।

फोटो कैप्‍शन- फाइल फोटो- तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गॉधी जी भारत के लघु एवं मध्‍यम समाचार पत्रो के महासंघ- आई0एफ0एस0एम0एन0 के पदाधिकारियो के साथ- अविस्‍मरणीय पल

चन्‍द्रशेखर जोशी प्रदेश अध्‍यक्ष उत्‍तराखण्‍ड ‘ भारतीय लघु और मध्यम समाचार पत्रों का महासंघ- इंडियन फेडरेशन ऑफ स्माल एण्ड मीडियम न्यूज पेपर्स, नई दिल्ली, ने बताया महासंघ को तत्‍कालीन प्रधानमंत्री बहुत महत्‍व देते थे, महासंघ के द्वारा दी गयी राय को तो महत्‍व दिया ही जाता था, महासंघ के कार्यक्रमो को भी तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गॉधी जी तवज्‍जो देते थे, इससे पता चलता है कि वह आम जन को कितना महत्‍व देते थे- चन्‍द्रशेखर जोशी ने बताया कि भारतीय लघु और मध्यम समाचार पत्रों का महासंघ- इंडियन फेडरेशन ऑफ स्माल एण्ड मीडियम न्यूज पेपर्स, नई दिल्ली राष्ट्रीय स्तर पर गठित है जो १९८५ से अस्तित्व में हैं जिसके कार्यक्रमों में समय-समय पर तत्कालीन प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों, पी०सी०आई० चैयरमैनों, लोकसभा अध्यक्षों ने हिस्सा लिया है। फैडरेशन ने पीआईबी व डीएवीपी में भी भागीदारी की है। यह बडे गर्व का विषय है कि इंडियन फेडरेशन ऑफ स्माल एण्ड मीडियम न्यूज पेपर्स को तत्कालीन प्रधानमंत्री बहुत महत्व देते थे। संगठन के केन्द्रीय पदाधिकारी अक्सर प्रधानमंत्री से मिलकर उनको सलाह मशविरा देते थे।
विगत 4 साल में छोटे व मझौले अखबारों का गला घोंट रख दिया गया है ।

लघु एव मध्यम समाचार पत्रो के साथ दमनकारी नीति अपनायी गयी, यह भूल गये कि देश की आजादी के बाद पहली दफा मीडिया के बलबूते पर ही प्रचण्ड बहुमत से सत्ता में आये है I छोटे अख़बारों के हितों की अनदेखी से विगत 4 साल से यही गुहार लगाता रहा कि यही हाल रहा तो आगामी २०१९ के सामान्य लोक सभा निर्वाचन में जनता ऐसे लोगों को सबक अवश्य सिखाएगी जो नोट बन्दी और जी एस टी को सामान्य छोटे अख़बारों के गले की हड्डी बना कर रख दिया और सब से आश्चर्यजनक यह है कि बार बार उत्पन्न जटिलताओं के ध्यानाकर्षण के बाद भी छोटे अख़बारों को दमनकारी नीति से मुक्त नहीं कर रहे हैं I अच्छे दिन केवल कुछ लोगों के ही आए हैं तभी तो पिछले एक वर्ष में दलीय समर्थित अखबार जिनमें पांचजन्य भी शामिल है,को साप्ताहिक होने के बावजूद भी लाखों रुपए के विज्ञापन डीएवीपी द्वारा दिए गए हैं जबकि इसके विपरीत देश के बहुत सारे साप्ताहिक,पाक्षिक और मासिक पत्र पत्रिकाओं को विगत 4 साल में विज्ञापन बंद कर दिये गये, पहली बार 15 अगस्ता 2017 में साप्तािहिको को विज्ञापन दिया गया, जबकि विगत 4 सालो में राष्ट्रीय अवसरों पर भी विज्ञापन जारी नहीं किया गया जो आजादी के बाद पहला अवसर है। ऐसा प्रतीत होने लगा है कि 4 साल की नाराजगी का असर सामने दिखने लगा है I

फोटो कैप्‍शन- तत्‍कालीन प्रधानमंत्री एव लघु एवं मध्‍यम समाचार पत्रों के महासंघ की तत्‍कालीन अध्‍यक्षा –
लघु एवं मध्‍यम समाचार पत्रों की देशव्‍यापी नाराजगी का असर चुनावी सर्वे में दिखने लगा है- मूड ऑफ द नेशन जुलाई 2018 पोल (MOTN, जुलाई 2018) की सबसे खास बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) लोकसभा में अपनी मजबूत स्थिति खोती नजर आ रही है. सर्वेक्षण के अनुसार, बीजेपी 2014 की तरह अगले लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करती नहीं दिख रही है. 2014 में 282 सीटों की तुलना में बीजेपी के खाते में महज 245 सीटें आने की संभावना है. ऐसी सूरत में बीजेपी को अपने सहयोगी दलों पर निर्भर रहना पड़ेगा. दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए यह चुनाव शानदार साबित हो सकता है क्योंकि 2014 की तुलना में उसकी सीट लगभग दोगुनी होने वाली है. इस बार उसके खाते में 83 सीट आ सकती है. बीजेपी (245) और कांग्रेस (83) के अलावा अन्य के खाते में 215 सीटें आ सकती हैं.

अगले चुनावों में कांग्रेस के जीतने और राजीव गांधी के पुन: प्रधानमंत्री बनने की संभावना बहुत कम थी। इसी बीच २१ मई, १९९१ को तमिल आतंकवादियों ने राजीव की एक बम विस्फ़ोट में हत्या कर दी।
राजीव गांधी ने अर्थव्यवस्था के सेक्टर्स को खोला. 1988 में की गई उनकी चीन यात्रा ऐतिहासिक थी.
राजीव ने पंचायती राज के लिए विशेष प्रयास किए. अगले दशक में होने वाली आईटी क्रांति की नीव राजीव गांधी ने ही रखी.
मतदान उम्र सीमा 18 साल की और ईवीएम मशीनों की शुरुआत की.

1984 में इंदिरा की हत्या के बाद देश में निराशा का माहौल था. लोग चाहते थे कि कोई उन्हें उस माहौल से निजात दिलाए. लोकसभा चुनाव के नतीजे ऐतिहासिक तौर पर कांग्रेस के पक्ष में आए. देश के लोगों ने नौजवान राजीव गांधी को इंदिरा का वारिस और अपना प्रधानमंत्री चुना और अगले पांच सालों में राजीव गांधी ने देश के लिए बहुत सारे फैसले लिए. मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में राजीव के हवाले से लिखा है, भारत लगातार नियंत्रण लागू करने के एक कुचक्र में फंस चुका है. नियंत्रण से भ्रष्टाचार और चीजों में देरी बढ़ती है. हमें इसको खत्म करना होगा. राजीव ने कुछ सेक्टर्स में सरकारी नियंत्रण को खत्म करने की कोशिश भी की. यह सब 1991 में बड़े पैमाने पर नियंत्रण और लाइसेंस राज के खात्मे की शुरुआत थी. राजीव ने इनकम और कॉर्पोरेट टैक्स घटाया, लाइसेंस सिस्टम सरल किया और कंप्यूटर, ड्रग और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों से सरकारी नियंत्रण खत्म किया. साथ ही कस्टम ड्यूटी भी घटाई और निवेशकों को बढ़ावा दिया. बंद अर्थव्यवस्था को बाहरी दुनिया की खुली हवा महसूस करवाने का यह पहला मौका था. क्या उनको आर्थिक उदारवाद के शुरुआत का थोड़ा बहुत श्रेय नहीं मिलना चाहिए?

इम्तिहान की इस घड़ी में राजीव के सामने दो बड़ी जिम्मेदारियां थीं। एक तरफ था मां की राजनीतिक विरासत संभालने का दबाव तो दूसरी तरफ था परिवार को संभालने की जिम्मेदारी। राजीव अब भी राजनीति के दाव पेंच से अंजान थे। बावजूद इसके 1981 में वे उत्तर प्रदेश के अमेठी से लोकसभा के लिए चुन लिए गए। बाद में 31 अक्टूबर 1984 को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ भी ले ली,तब तक वह भारतीय राजनीति में कोरे कागज की तरह थे,जिस पर सियासी दांवपेंच की आड़ी-तिरछी लकीरें नहीं थीं। उन्होंने भारतीय राजनीति के पन्नों पर अपनी सोच,अपने सपनों को उकेरना शुरू किया, लेकिन उन्होंने जो सोचा वो पुराने ढर्रे की राजनीति से बिल्कुल अलग था।
भारत का दिल कहलाने वाले गांवों की याद आज जब राजनीतिक पार्टियों को आने लगी है, अपने राजनीतिक साख को बचाने के लिए जिस तरह नेता शहर से निकलकर गांवों के चक्कर लगाने लगे हैं, उसकी शुरूआत भी राजीव ने बहुत पहले ही कर दी थी। 31 अक्टूबर 1984 से 2 दिसम्बर 1989 तक भारत के प्रधानमंत्री की गद्दी संभालने वाले राजीव ने 1989 में अपनी हार के बाद दिल्ली दरबार से बाहर निकलने का फैसला किया।
वह उस हिंदुस्तान को समझने के सफर पर निकल पड़े,जिसे संवारने के लिए उन्होंने तमाम सपने देखे थे। एक बार विदेशी राजनेताओं के साथ बातचीत में राजीव ने कहा था,मेरा सपना है एक मजबूत,आज़ाद,आत्मनिर्भर और दुनिया के अगुवा देशों की कतार में खड़े भारत का।

राजीव गांधी ने दिसंबर 1988 में चीन की यात्रा की. यह एक ऐतिहासिक कदम था. इससे भारत के सबसे पेचीदा पड़ोसी माने जाने वाले चीन के साथ संबंध सामान्य होने में काफी मदद मिली. 1954 के बाद इस तरह की यह पहली यात्रा थी. सीमा विवादों के लिए चीन के साथ मिलकर बनाई गई ज्वाइंट वर्किंग कमेटी शांति की दिशा में एक ठोस कदम थी. राजीव के चीनी प्रीमियर डेंग शियोपिंग के साथ खूब पटरी बैठती थी. कहा जाता है राजीव से 90 मिनट चली मुलाकात में डेंग ने उनसे कहा, तुम युवा हो, तुम्हीं भविष्य हो. अहम बात यह है कि डेंग कभी किसी विदेशी राजनेता से इतनी लंबी मुलाकात नहीं करते थे. राजीव गांधी के ‘पावर टू द पीपल’ आइडिया को उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था को लागू करवाने की दिशा में कदम बढ़ाकर लागू किया. कांग्रेस ने 1989 में एक प्रस्ताव पास कराकर पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिलाने की दिशा में कोशिश की थी. 1990 के दशक में पंचायती राज वास्तविकता में सबके सामने आया. सत्ता के विकेंद्रीकरण के अलावा राजीव ने सरकारी कर्मचारियों के लिए 1989 में 5 दिन काम का प्रावधान भी लागू किया. ग्रामीण बच्चों के लिए प्रसिद्ध नवोदय विद्यालयों के शुभारंभ का श्रेय भी राजीव गांधी को जाता है.
राजीव गांधी के भाषणों में हमेशा 21वीं सदी में प्रगति का जिक्र हुआ करता था. उन्हें विश्वास था कि इन बदलावों के लिए अकेले तकनीक ही सक्षम है. उन्होंने टेलीकॉम और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर्स में विशेष काम करवाया.

राजीव को अगले दशक में होने वाली तकनीक क्रांति के बीज बोने का श्रेय भी जाता है. उनकी सरकार ने पूरी तरह असेंबल किए हुए मदरबोर्ड और प्रोसेसर लाने की अनुमति दी. इसकी वजह से कंप्यूटर सस्ते हुए. ऐसे ही सुधारों से नारायण मूर्ति और अजीम प्रेमजी जैसे लोगों को विश्वस्तरीय आईटी कंपनियां खोलने की प्रेरणा मिली. मतदान उम्र सीमा 21 से घटाकर 18 साल करने के राजीव के फैसले से 5 करोड़ युवा मतदाता और बढ़ गए. इस फैसले का कुछ विरोध भी हुआ. लेकिन राजीव को यकीन था कि राष्ट्र निर्माण के लिए युवाशक्ति का दोहन जरूरी है. ईवीएम मशीनों को चुनावों में शामिल करने समेत कई बड़े चुनाव सुधार किए गए.  

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