यहां भगवान परशुराम से मिलने आज भी आती हैं मां रेणुका;

 भगवान परशुराम व उनकी मां रेणुका जी के दिव्य मिलन का स्‍थान- #मान्यता है यहां भगवान परशुराम से मिलने आज भी आती हैं मां रेणुका # यहां मनौती मांगते है और जिनकी कोई मनोकामना पूरी हो चुकी होती है, वो भी अपना शुकराना अदा करने आते है # हिमालयायूके द्वारा नववर्ष 2019 के प्रथम दिन इस दिव्‍य स्‍थान की यात्रा- चन्‍द्रशेखर जोशी मुख्‍य सम्‍पादक की रिपोर्ट-

परशुराम और रेणुकाजी का मन्दिर | एक ही प्रांगण में रेणुकाजी के मन्दिर के साथ ही परशुरामजी का मन्दिर; मान्यता है कि ऋषि जमदग्नि यहाँ तपस्या करते थे, वहीं एक छोटा सा मन्दिर भी है, उस ऊंचाई से देखने पर आपको इस झील की आकृति भी लेटी हुई महिला की भांति नजर आएगी ; मां-पुत्र के पावन मिलन का श्री रेणुका जी मेला हिमाचल प्रदेश के प्राचीन मेलों में से एक है। जो हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक उत्तरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री रेणुका में मनाया जाता है। जनश्रुति के अनुसार इस दिन भगवान परशुराम जामूकोटी से वर्ष में एक बार अपनी मां रेणुका से मिलने आते हैं। यह मेला श्री रेणुका मां के वात्सल्य व पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा संगम है। यह स्थान नाहन से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर है। रेणुका झील के किनारे मां श्री रेणुका जी व भगवान परशुराम जी के भव्य मंदिर स्थित हैं।  कथानक के अनुसार प्राचीन काल में आर्यवर्त में हैहय वंशी क्षत्रीय राज करते थे। भृगुवंशी ब्राह्मण उनके राज पुरोहित थे। इसी भृगुवंश के महर्षि ऋचिक के घर महर्षि जमदग्नि का जन्म हुआ। इनका विवाह इक्ष्वाकु कुल के ऋषि रेणु की कन्या रेणुका से हुआ।  महर्षि जमदग्नि सपरिवार इसी क्षेत्र में तपस्या करने लगे। जिस स्थान पर उन्होंने तपस्या की वह तपे का टीला कहलाता है। महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु गाय थी जिसे पाने के लिए सभी तत्कालीन राजा, ऋषि लालायित थे। राजा अर्जुन ने वरदान में भगवान दतात्रेय से एक हजार भुजाएं पाई थीं। जिसके कारण वह सहस्त्रार्जुन कहलाए जाने लगे। एक दिन वह महर्षि जमदग्नि के पास कामधेनु मांगने पहुंचे। महर्षि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु एवं उसके सैनिकों का खूब सत्कार किया।

उसे समझाया कि कामधेनु गाय उसके पास कुबेर जी की अमानत है। जिसे किसी को नहीं दे सकते। गुस्साए सहस्त्रबाहु ने महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी। यह सुनकर मां रेणुका शोकवश राम सरोवर मे कूद गई। राम सरोवर ने मां रेणुका की देह को ढकने का प्रयास किया। जिससे इसका आकार स्त्री देह समान हो गया। जिसे आज पवित्र रेणुका झील के नाम से जाना जाता है। परशुराम अति क्रोध में सहस्त्रबाहु को ढूंढने निकल पड़े। उसे युद्ध के लिए ललकारा। भगवान परशुराम ने सेना सहित सहस्त्रबाहु का वध कर दिया। भगवान परशुराम ने अपनी योगशक्ति से पिता जमदग्नि तथा मां रेणुका को जीवित कर दिया। माता रेणुका ने वचन दिया कि वह प्रति वर्ष इस दिन कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी को अपने पुत्र भगवान परशुराम से मिलने आया करेंगी।

मेला श्री रेणुका मां के वात्सल्य एवं पुत्र की श्रद्धा का एक अनूठा आयोजन है। पांच दिन तक चलने वाले इस मेले में आसपास के सभी ग्राम देवता अपनी-अपनी पालकी में सुसज्जित होकर मां-पुत्र के इस दिव्य मिलन में शामिल होते हैं। राज्य सरकार द्वारा इस मेले को अंतरराष्ट्रीय मेला घोषित किया गया है।

 श्री रेणुका जी मेला श्री रेणुका जी झील हिमाचल में, अपने दिव्य मां श्री रेणुका जी के घर पर पुत्र भगवान परशुराम के आगमन के साथ शुरू होता है।  हिमाचल के इसी पर्वतीय क्षेत्र के जंगलो की कंदराओं में ऋषि जमदग्नि अपनी पत्नी रेणुका के साथ एक आश्रम में रहते थे | असुर सहसत्रजुन की नीयत डोली और ऋषि पत्नी रेणुका को पाने की अभिलाषा में उसने ऋषि जमदग्नि का वध कर दिया | रेणुका ने अपने सत की रक्षा और दुष्ट असुर से बचने हेतु स्वयम् को जल में समाधिष्ठ कर लिया, बाद में परशुराम और देवतायों ने असुर का वध किया, और ऋषि व रेणुका को नव जीवन दिया और फिर ठीक उस जगह से एक जल धारा फूटी जिससे इस झील का निर्माण हुआ | मिथक कुछ भी हो, परन्तु आस पास के क्षेत्र के निवासियों में इस जगह का धार्मिक महत्व है और वह इस दंत कथा को मानते भी हैं इसका सबसे बढ़ा ज्वलंत प्रमाण तो यह ही है कि स्थानीय निवासी जब इस झील में नौका विहार के लिये जाते हैं तो अपने जूते-चप्पल किनारे पर ही उतार देते हैं | इस मन्दिर के सामने जो विशाल ताल है, इसे परशुराम ताल कहते है | इसमे प्रचुर मात्रा में जलीय प्राणी मौजूद हैं, 

रेणुकाजी मन्दिर के भीतर वरहा भगवान् की मूर्ति

यहां देश भर से कई लाख भक्त भगवान परशुराम व उनकी मां रेणुका जी के दिव्य मिलन के पवित्र अवसर को देखने के लिए यहाँ आते हैं। रेणुका झीलहिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में, नाहन से 40 किमी की दूरी पर स्थित है।

रेणुका झील हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित है और यह समुद्र तल से 672 मीटर ऊपर है। रेणुका झील नाहन से 37 किमी दूर और पौंटसा साहिब से 60 किलोमीटर दूर स्थित है, जो 2.5 किमी दूर है।भारतीय हिमालय के हरे भरे वनों के बीच स्थित, झील के परिवेश ट्रेकिंग और पर्वतारोहण जैसे साहसिक खेलों के लिए पर्यटकों के लिए एक उत्कृष्ट स्थान प्रदान करता है।रेणुका झील के मैदान पर मछली पकड़ने और हिमाचल प्रदेश के पर्यटन और पर्यटन विभाग द्वारा भी अनुमति है।रेणुका झीलों के आसपास के पहाड़ पौधों और पशु जीवन के विभिन्न प्रकारों का समर्थन करते हैं। इस क्षेत्र में जंगली जीवन की बहुतायत की उपलब्धता को देखते हुए, हिमाचल प्रदेश की राज्य सरकार ने एक मिनी चिड़ियाघर का निर्माण किया है।सार्वजनिक दृश्य के लिए चिड़ियाघर में विभिन्न प्रकार की प्रजातियां हैं, उनमें से कुछ हिमालयी काली बियर, स्पॉटर हिरण, बीयरिंग करने वाली बीयर और कई अन्य विशिष्ट प्रजातियां हैं। प्रकृति की महिमा के अलावा, इसमें समग्र मूल्य भी हैंहिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय मंदिर में से एक, रेणुकाजी इस झील के तट पर स्थित है।साहसिक दुनिया भर के स्थलों के लिए साहसिक खेल और पर्यटन स्थलों का भ्रमण करने के लिए झुंड।

यह हिमाचल प्रदेश के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। समुन्द्र तल से 672 मीटर की ऊँचाई पर स्थित 3214 मीटर की परिधि के साथ रेणुका झील हिमाचल प्रदेश की सबसे बड़ी झील के रूप में जानी जाती है।  झील का नाम देवी रेणुका के नाम पर रखा गया था। यह अच्छी तरह से सड़क मार्ग से जुडी हूई है। झील पर नौका विहार उपलब्ध है। एक शेर सफारी और एक चिड़ियाघर रेणुका के पास हैं। परवाणू से दूरी: 123 किमी। पांवटा साहिब से दूरी: 51 किमी सतौन के रास्ते से   नाहन से दूरी: 38 किमी। रेणुकाजी झील की दूरी कैम्प रोक्स से 43 किमी के लगभग है | नाहन की तरफ वापसी के रास्ते पर, कोई 10 किमी पहले ही, बायीं और एक सढ़क निकलती है जो कि आपको रेणुकाजी झील की तरफ ले जाती है | धूप, बादल और बरसात इन तीनो की लुका-छिपी आज भी यूँ ही जारी है, मगर रास्ता साफ़ है, और सढ़क ठीक-ठाक | पूरा क्षेत्र कुदरती खूबसूरती से सरोबार है, हालांकि सैलानी हिमाचल के इस पूर्वी भाग में अपेक्षाकृत कम ही नजर आते है | कम ऊंचाई और सम्पर्क के सीमित साधन सम्भवतः इसका कारण हो सकते है, अन्यथा नाहन और उसके आस-पास का भू भाग किसी भी तरह से हिमाचल के दूसरे हिस्सों से खूबसूरती में कम नही !    रेणुकाजी पहुँचने से कुछ पहले, बडोलिया में, सहसा ही आप का सामना लगभग 100 फीट ऊंचे एक विशालकाय झरने से होता है | दूर पहाढ़ की ऊंचाई से पूरे वेग के साथ गिरती अथाह जल धारा, जब वायु के आवरण को चीर कर सैंकड़ों फीट नीचे धरती की सतह से टकराती है तो अपने आस-पास के वातावरण में एक अद्भुत् कम्पन और गर्जना का निर्माण करती है, असंख्य जल कण विखंडित हो कर अपने चारो तरफ कुहासे का एक ऐसा प्रभा मंडल बना देते है जो दूर से देखने भर से भी दर्शनीय और अनुपम हो जाता है, और आप कुदरत के इस बेहतरीन नजारे को देखकर निश्चित ही सम्मोहित हो जाते हैं | इस झरने के उद्गम का तो पता नही, मगर जिस जगह से इसका जल नीचे गिरता है तथा फिर धरती की वह सतह जिसे यह छूता है, दोनों जगहों पर आपको एक एक मन्दिर दिख जायेगा | भले ही आप की मंजिल यह झरना नही बल्कि रेणुकाजी झील है,  जिस जगह पर विशाल जलराशी गिरती है, वहाँ ये पानी एक छोटी नदी का रूप ले लेता है, इसी के मुहाने पर एक छोटा सा मन्दिर है, जो सम्भवतः आस-पास के क्षेत्र में रहने वालों के लिये धार्मिक आस्था का केंद्र है | इस नदी के ऊपर से बने एक पुल को पार करके आपको आगे रेणुकाजी झील के लिये प्रस्थान करना है |

झील शब्द तो स्वयम में ही स्त्री लिंग है, इसलियें रेणुका नाम तो अपेक्षित है, समुद्र तल से 660 मीटर की ऊंचाई पर, और दिल्ली से कुल मिलाकर लगभग साढ़े तीन सौ किमी की दूरी पर स्थित यह झील अपनी परिक्रमा में ढाई किमी लम्बी है, जो शायद पूरे हिमाचल में सबसे बढ़ी है | इसकी सतह कई जगहों पर कमल के फूलों के दल से आच्छादित है, जो इसे आपल्वित्ल कर एक अद्भुत द्रश्य संयोजन कर रहे हैं, निश्चित ही एक नयनाभिराम चित्र आपकी आँखों के सामने हैं | अभी तक आपने जो सोचा, वैसा ही पाया, मगर इस झील की महिला जैसी आकृति कैसे दिखे, इसके लिये आपको यहाँ से लगभग 8 किमी और ऊपर की तरफ जामु चोटी पर जाना पढ़ेगा, 

 रेणुका जी से पाँवटा साहिब जाने के लिये दो रास्ते हैं, आप वाया नाहन जा सकते हैं, जिसकी दूरी लगभग 80 किमी से ऊपर है  ददाहू से और नाहन से जो रास्ता पाँवटा साहिब की तरफ आता है, धौला कुआँ के समीप आपस में मिल जाता है | इसके एक तरफ यदि कालासर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी है तो दूसरी तरफ सिम्बल्वाडा वाइल्ड लाइफ, और यहाँ से माजरा होते हुए आपको उस राजमार्ग पर ले आता है, जिस पर पाँवटा साहिब स्थित है, 20 किमी के लगभग का यह रास्ता खतरनाक तो है, मगर रोमाँच में भी कम नही, गिरी नदी से घिरी इस घाटी में, कई जगहों पर चट्टानों में किसी विशेष खनिज(मिनरल) की उपस्थिति के कारण बहते हुए पानी का रंग यदि कहीं दूध की तरह धवल है, तो थोढ़ा और आगे जाने पर एकदम से श्याम वर्ण का कहीं, हल्का हरा रंग लिये हुए है तो कहीं किसी और रंग में… कहीं शुष्क और कठोर चट्टानों के मध्य किसी दरार में अद्भुत् फूल खिले हैं | शिवालिक की यह पहाड़ियाँ वाकई में इस मायने में अद्भुत् हैं कि एक ही तरफ यहाँ आपको चट्टान का रंग स्लेटी मिलेगा तो किसी का सुरमई तो कहीं पीलापन लिये लाल | कच्चे रास्ते के बाद एक बार फिर से अपने आप को तारकोल में लिपटी सढ़क पर पाते हैं तो चालक सहित सभी के चेहरे पर एक राहत की साँस आती है | लेकिन क्या यह हमारी परीक्षा का अंत है ? अभी तो हम बीच राह में ही हैं | 

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