RSS स्वयंसेवक किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने के लिए आजाद ;संघ के सह सर कार्यवाह

संघ के सह सर कार्यवाह का बडा बयान- एक्‍सक्‍लूसिव- हिमालयायूके  www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal

संघ के सह सर कार्यवाह कृष्ण गोपाल ने कहा है कि आरएसएस स्वयंसेवक कांग्रेस सहित किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने के लिए आजाद हैं, लेकिन विपक्षी पार्टी उन्हें नहीं अपनाती. संघ ने अपने स्वयंसेवकों को कांग्रेस में शामिल होने से कभी नहीं रोका.
शुक्रवार को नई दिल्ली में पूर्वोत्तर में बीजेपी के उदय पर एक पुस्तक ‘दि लास्ट बैटल ऑफ सराईघाट’ के विमोचन समारोह के दौरान आयोजित परिचर्चा में गोपाल ने कहा कि ‘कांग्रेस ने असम में उग्रवाद के समय में हमारे कामकाज में कभी रोक टोक नहीं की. लेकिन साथ ही वो हमारे कार्यकर्ताओं की हत्या रोकने में नाकाम रही.’

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन् १९२५ में विजयादशमी के दिन डॉ॰ केशव हेडगेवार द्वारा की गयी थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, RSS के रूप में संक्षेपाक्षरित, भारत का एक दक्षिणपंथी, हिन्दू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक, स्वयंसेवक संगठन हैं, जो भारत के सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी का व्यापक रूप से पैतृक संगठन माना जाता हैं। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपेक्षा संघ या आर.एस.एस. के नाम से अधिक प्रसिद्ध है। बीबीसी के अनुसार संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है

सबसे पहले ५० वर्ष बाद १९७५ में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो तत्कालीन जनसंघ पर भी संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिया गया। आपातकाल हटने के बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ और केन्द्र में मोरारजी देसाई के प्रधानमन्त्रित्व में मिलीजुली सरकार बनी। १९७५ के बाद से धीरे-धीरे इस संगठन का राजनैतिक महत्व बढ़ता गया और इसकी परिणति भाजपा जैसे राजनैतिक दल के रूप में हुई जिसे आमतौर पर संघ की राजनैतिक शाखा के रूप में देखा जाता है। संघ की स्थापना के ७५ वर्ष बाद सन् २००० में प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एन०डी०ए० की मिलीजुली सरकार भारत की केन्द्रीय सत्ता पर आसीन हुई।

 

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स्वंयसेवकों को नहीं अपनाती है दूसरी पार्टियां
उन्होंने कहा, ‘हमारे कार्यकर्ता कांग्रेस सहित किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने के लिए आजाद हैं. अन्य पार्टियां उन्हें नहीं अपनाती. वो संघ के स्वयंसेवकों के लिए अपने दरवाजे बंद कर देती है.’
उन्होंने कहा कि विपक्षी पार्टियां न सिर्फ उन्हें खारिज करती हैं बल्कि उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता को लेकर उनका मजाक भी उड़ाती हैं. ऐसे में भला संघ का स्वयंसेवक क्या करे.
शुक्रवार को नई दिल्ली में आयोजित इस विमोचन समारोह में बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव, मणिपुर के सीएम एन. बीरेन सिंह, अरुणाचल प्रदेश के सीएम पेमा खांडू मौजूद थे. इस किताब को रजत सेठी और शुभ्रास्था शिखा ने लिखा है.

वही दूसरी ओर 

समाजवादी पार्टी के लिए यूपी के निकाय चुनाव वाकई सम्मान वापस पाने की लड़ाई ही है. यह लड़ाई अबकी इसलिए ज्यादा अहम है क्योंकि पहली बार समाजवादी पार्टी अपने सिंबल साइकिल पर चुनाव मैदान में उतरी है. यही बात मायावती की बहुजन समाज पार्टी पर भी लागू होती है क्योंकि वह भी पहली बार अपने चुनाव चिह्न हाथी के साथ मैदान में है.  

शहरों की सरकार चुनने के इस चुनाव से न तो यूपी में सरकार बदलनी है अौर न ही दिल्ली में, पर साइकिल अौर हाथी में यह होड़ है कि कौन अगले से अागे निकल जाए क्योंकि जो बाजी मारेगा लोकसभा के अगले चुनाव से पहले यूपी में अपनी सियासी प्रासंगिकता कायम रखने का संदेश भी दे सकेगा. गौरतलब है कि बीजेपी अौर कांग्रेस पहले भी सिम्बल पर निकाय चुनाव लड़ते रहे हैं.

यूपी में समाजवादी पार्टी मुख्य विपक्षी दल है. न सिर्फ अांकड़ों के अाधार पर बल्कि संगठन के बूते भी. युवाअों के बड़े तबके में अभी भी समाजवादी पार्टी को लेकर अाकर्षण है. अखिलेश यादव के हाथ में पार्टी की कमान अाने के बाद इसमें अौर इजाफा हुअा है. निकाय चुनावों में भी यह दिख रहा है. पार्टी की प्रचार सभाअों, जुलूसों में युवा चेहरे बीएसपी या कांग्रेस की तुलना में ज्यादा दिखते हैं. 

चुनाव सिंबल पर हो रहे हैं तो नतीजों से दूध का दूध अौर पानी का पानी हो जाएगा. यानी जमीन पर स्थानीय नेताअों ने कितनी मेहनत की उसका खुलासा हो जाएगा. नतीजे पक्ष में न अाने पर किसी संभावित कार्रवाई के खौफ से जिलों, शहरों के नेता-कार्यकर्ता जी-जान से जुटे हैं.

समाजवादी के पक्ष में एक बात यह भी है कि विधानसभा चुनाव में खराब नतीजों के बावजूद पार्टी के प्रति नेताअों का भरोसा टूटा नहीं है. बीएसपी अौर कांग्रेस छोड़ कई बड़े नेता बीते कुछ महीनों में एसपी में शामिल हुए हैं जिनमें बीएसपी से अाए दलितों के कद्दावर नेता इंद्रजीत सरोज भी शामिल हैं.

समाजवादी पार्टी के रणनीतिकरों का यह भी मानना है कि विधानसभा के चुनाव में गैर यादव अोबीसी जातियों का जो बड़ा तबका बीजेपी के साथ गया था उसका सत्तारूढ़ दल से मोहभंग शुरू हुअा है अौर निकाय चुनावों में वह साइकिल की सवारी करेगा. निकाय चुनावों में मुस्लिम वोटरों के रुख को लेकर बाकी गैर बीजेपी दलों की तुलना में एसपी ज्यादा अाश्वस्त दिख रही है.

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