म0प्र0 के लाखों लोग उजड जायेगे- शिवराज सिंह की चुप्पी

 बडा सवाल  #2.5 लाख लोग बांध की ऊंचाई बढ़ाने से पूरी तरह जलमग्न हो जाएंगे #गुजरात में अगले साल चुनाव होना है और वे किसी भी तरह भुज को पानी देना चाहते हैं और इसके लिए मध्यप्रदेश के विस्थापितों की पुर्नवास की चिंता किए बगैर बांध के फाटकों को बंद कर रहे हैं.  Top News; www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportl

नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) द्वारा बांध की ऊंचाई 16 मीटर बढ़ाने की अनुमति देना आश्चर्यजनक है। यह निर्णय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अनुमति अथवा उनकी सहमति से हुआ है क्‍योकि उस इलाके में रह रहे 2.5 लाख लोग बांध की ऊंचाई बढ़ाने से पूरी तरह जलमग्न हो जाएंगे, पूर्व निर्धारित डूब प्रभावितों को अब तक पूरी तरह बसाया नहीं गया है, ऐसे में जलाशय को पूरा भरना पुनर्वास व पर्यावरणीय शर्तों का उल्लंघन है। पिछले 8 साल से पर्यावरणीय क्षति, पुनर्वास के अभाव व भ्रष्टाचार की जांच के कारण बांध को पूर्ण रूप से भरे जाने का कार्य रुका हुआ है। इस निर्णय से डूब क्षेत्र के और लाखों लोग प्रभावित होंगे जबकि वर्तमान ऊंचाई पर ही 2.5 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। हजारों आदिवासी, किसानों मजदूरों, मछुआरों को वैकल्पिक जमीन, आजीविका, पुनर्वास, बसाहटों में भूखंड नहीं मिले हैं,

मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह ने आरोप लगाया है कि सरदार सरोवर बांध के फाटकों के बंद होने से 192 गांवों में 40,000 लोग प्रभावित होंगे. इनके पुर्नवास की कोई योजना नहीं है. गुजरात के फायदे के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मामले पर चुप्पी साध रखी है.
उन्होंने आगे कहा कि गुजरात में अगले साल चुनाव होना है और वे किसी भी तरह भुज को पानी देना चाहते हैं और इसके लिए मध्यप्रदेश के विस्थापितों की पुर्नवास की चिंता किए बगैर बांध के फाटकों को बंद कर रहे हैं. नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध की नींव रखे जाने के 56 साल बाद विवादित बांध के फाटकों को केंद्र सरकार की अनुमति मिलने के बाद 17 जून को गुजरात सरकार ने बंद कर दिया.

नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने गृह राज्य गुजरात को एक बड़ा तोहफा देते हुए नर्मदा बांध (सरदार सरोवर) की ऊंचाई 138.72 मीटर (455 फीट) तक किए जाने की अनुमति दे दी। माना जा रहा है कि इसके जरिए मोदी ने गुजरातवासियों से किया अपना एक वादा निभा दिया। सरदार सरोवर बांध के सभी दरवाजे बंद हो चुके हैं. पूरे गुजरात में इसे लेकर खासा उत्साह है. बांध का जो पानी अब तक समुद्र में व्यर्थ बह जाता था, वह अब सूखा प्रदेश गुजरात में पीने एवं सिंचाई के लिए पर्याप्त मुहैया होगा.

प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1959 में इस बांध का शिलान्यास किया था। पर्यावरणविदों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध करना शुरू किया। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने इसके खिलाफ लंबे समय तक आंदोलन चलाया। नर्मदा बांध के मुद्दे पर ही वर्ष 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी 51 घंटे के उपवास पर बैठ गए थे।

समुद्र तट से 1057 मीटर की ऊँचाई से मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के अमरकंटक से निकली नर्मदा नदी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात को पार करते हुए 1312 किलोमीटर का अपना सफर पूरा कर गुजरात में भड़ौच के पास अरब सागर में जा मिलती है। गौरतलब है कि इन राज्यों के 16 जिलों से गुजरने के बाद जब यह समुद्र में जहाँ मिलती है, वहाँ पर डेल्टा (नदी मुख भूमि त्रिकोण) नहीं बनाती।

  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपनी गुजरात यात्रा के दौरान सरदार सरोवर बांध का जिक्र भी किया था. प्रधानमंत्री ने कहा कि नर्मदा नदी के सरदार सरोवर बांध के गेट बंद होने के साथ ही गुजरात की समृद्धि का नया दौर शुरू हो गया है.
मोदी ने कहा कि पानी की उपलब्धता गुजरात के लिए एक बड़ी बात रही है. पहले पानी पर ही इतना पैसा खर्च होता था कि अन्य योजनाओं पर असर होता था. उन्होंने कहा कि नर्मदा परियोजना के लिए सभी सरकारों ने काम किया है, इसमें कोई राजनीति जैसी बात नहीं है. इसके दरवाजे लगने के मामले कुछ बाधाएं थीं पर अब वह सब कुछ दूर हो चुका है.
गुजरात के लोग पानी का महत्व समझते हैं. उन्होंने कहा कि नर्मदा के दरवाजे बंद होने के साथ ही गुजरात के समृद्धि के दरवाजे खुलने के अवसर के लिए वह शीघ्र ही गुजरात का एक और दौरा करेंगे. बांध पर बने 30 दरवाजे हाल में बंद करने के बाद से इसमें जल का संग्रहण स्तर करीब पौने चार गुना बढ़ गया है, जिससे गुजरात में जल की उपलब्धता की समस्या के काफी हद तक हल होने की उम्मीद है.
सरदार सरोवर परियोजना सिंचाई, विद्युत और पेयजल के लाभों हेतु एक बहुउद्देशीय परियोजना है, जो चार राज्यों क्रमश: गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान द्वारा संयुक्त उपक्रम के रूप में क्रियान्वित की जा रही है. इस परियोजना के अन्तर्गत गुजरात में नर्मदा नदी पर 1,210 मीटर लंबा और 163 मीटर ऊंचाई पर कॉन्क्रीट गुरूत्व बांध का निर्माण किया जा रहा है.
इस परियोजना की सक्रिय भंडारन क्षमता 5,800 मिलियन घन मीटर (4.73 मिलियन एकड़ फीट) और इसकी 458 किमी लंबी पक्की नर्मदा मुख्य नहर द्वारा (शीर्ष प्रवाह 1.133 घन मीटर प्रति सेकेन्ड) गुजरात में 17.92 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर वार्षिक सिंचाई करने का प्रावधान है.

नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी की ओर से बांध के दरवाजे बंद करने की अनुमति मिलने के कुछ घण्टों बाद ही मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने सरोवर नर्मदा बांध के दरवाजे बंद करने का शुभांरभ किया और शाम तक नर्मदा बांध के सभी 30 दरवाजे बंद कर दिए. इससे अब मानसून में बांध की पूरी क्षमता के साथ नर्मदा का पानी संग्रहित हो सकेगा.
दरवाजों के चलते सरदार सरोवर नर्मदा बांध की पूरी क्षमता की ऊंचाई 138.68 मीटर पहुंच गई है, जो पहले दरवाजों के बिना 121.92 मीटर थी. अब दरवाजे बंद करने से जहां बांध में 4.73 मिलियन एकड़ फीट (पौने चार गुना) पानी बढ़ जाएगा. इससे प्रदेश के सुदूर स्थित सर्वाधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र सौराष्ट्र, कच्छ एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्र साबरकांठा, बनासकांठा आदि इलाकों तक पर्याप्त रूप से नर्मदा का पानी पहुंचेगा.
नर्मदा नहर, सौनी योजना, सुजलाम सुफलाम आदि के जरिए गुजरात में करीब 18 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई की सुविधा मिलेगी. जहां अब तक 6.8 लाख हेक्टेयर में ही सिंचाई की सुविधा मिल पाती है. अर्थात लगभग बारह लाख हेक्टेयर क्षेत्र अतिरिक्त सिंचित होगा.
प्रदेश के शहर-नगरों में लोगों के पीने के लिए भी नर्मदा का पानी उपयोगी है. बांध के दरवाजे बंद करने से राजस्थान को भी और ज्यादा पानी मिलना संभव होगा. सरदार सरोवर में पानी का जलस्तर बढ़ेगा, इससे वहां स्थित पन बिजली संयत्रों में पन बिजली का उत्पादन लगभग 40 फीसदी बढ़ जाएगा.
सरदार सरोवर के बिजली संयत्रों में पूरी क्षमता के साथ रोजाना लगभग 1450 मेगावॉट पन बिजली का उत्पादन होगा. इसका अधिकतम लाभ राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र को होगा.
ग्रामीणों का आरोप है कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा ग्रामीणों का पुनर्वास किए बगैर ही घरों पर लाल निशान लगा उन्हें पुनर्वासित दिखा रहा है. उल्लेखनीय है कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण सरदार सरोवर प्रभावित परिवारों के घरों पर लाल क्रॉस के निशान लगा रहा है.
इस निशान का अर्थ संपूर्ण पुनर्वास से है और ऐसे परिवारों को कोई अन्य लाभ दिया जाना शेष नहीं है. इस पर नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाया कि जिन प्रभावितों के घरों पर ये निशान अंकित किए हैं उनका पुनर्वास अभी पूर्ण नहीं हुआ है. ऐसे में मकानों पर निशान लगाना गलत है. गांव खाली करने के अल्टीमेटम के बाद भी प्रभावित संपूर्ण पुनर्वास होने तक मूल गांव छोड़ने को तैयार नहीं हैं,

यह फैसला अलोकतांत्रिक है- मेधा पाटकर

इस फैसले का विरोध भी शुरू हो गया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन की अध्यक्ष मेधा पाटकर का कहना है कि यह फैसला अलोकतांत्रिक है, क्योंकि सरकार ने इस तथ्य पर गौर नहीं किया कि उस इलाके में रह रहे 2.5 लाख लोग बांध की ऊंचाई बढ़ाने से पूरी तरह जलमग्न हो जाएंगे,
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर पुनर्वास स्थल विकसित न होने का आरोप लगा रही हैं. नर्मदा बचाओ आंदोलन के नेताओं के सक्रिय होने के कारण प्रभावित क्षेत्र पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है. मेधा पाटकर कहती हैं कि सरदार सरोवर परियोजना में एमपी सरकार द्वारा गत 25 मई के दिन गजट पारित किया गया है. इसमें अपात्र विस्थापितों का नाम भी है, अन्यत्र निवास कर रहे लोगों का नाम भी है. जो विस्थापित पुनर्वास स्थल पर निवासरत हैं, उनका भी नाम है. जिन विस्थापितों को बैक वाटर लेवल से बाहर किया गया है, उसका भी नाम दर्ज किया गया है. एमपी सरकार के गजट में 18 हजार 386 परिवारों को 31 जुलाई 2017 तक हटाने की बात की गई है.
गुजरात का सरदार सरोवर बांध सुरक्षित नहीं है. बांध के पास मछुआरे डेटोनेटर लेकर पहुंचते हैं. इस डेटोनेटर को बांध में फेंककर मछलियों को मारते हैं. अब सवाल यह उठता है कि जब मछुआरे यहां तक बम बनाने वाले सामान ले जाते हैं तो आतंकवादी क्यों नहीं ले जा सकते.

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