आध्यात्मिक बाबा ;ऐसी शोहरत शायद किसी को मिली हो; मोदी भी जाते थे दरबार में

HIGH LIGHT; सत्य साईं बाबा (तेलुगु: సత్య సాయిబాబా) (जन्म: 23 नवम्बर 1926 ; मृत्यु: 24 अप्रैल 2011), कथन = सबसे प्यार करो, सबकी सेवा करो हमेशा मदद करो, कभी दुःख न दो # 

भगवान न तो मरते हैं. न ही वे अपने भक्तों को रोता बिलखता छोड़कर लुप्त हो जाते हैं. श्री सत्य साईं बाबा स्वघोषित तौर पर भगवान थे, बिल्कुल उन लोगों की तरह जो उनके दर्शन के लिए उनके ‘प्रशांति निलयम्‌’ के बाहर पंक्तिबद्ध होकर खड़े रहते थे.-  भारत के बेहद प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरुओं में से एक सत्य साईं बाबा की आज जयंती हैं। 60 सालों तक देश-दुनिया में अपना प्रभाव छोड़ चुके सत्य साईं बाबा भले ही पंचतत्व में विलीन हो गए, लेकिन उनके द्वारा शुरू किए गए कार्यों को सत्य साईं ट्रस्ट आगे बढ़ा रहा है। सत्य साईं ट्रस्ट ही भारत में इकलौता प्राइवेट अस्पताल चलाता है, जहां दिल के मरीजों का फ्री में इलाज किया जाता है।

पिछले लगभग 60 वर्षों से भारत के कुछ अत्याधिक प्रभावशाली अध्यात्मिक गुरुओं में से एक थे। सत्य साईं बाबा का बचपन का नाम सत्यनारायण राजू था। सत्य साईं का जन्म आन्ध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी गांव में 23 नवम्बर 1926 को हुआ था। सिर्फ भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में उनके असंख्य अनुयायी हैं। 24 अप्रैल 2011 को एक लंबी बीमारी के बाद बाबा ने चिरसमाधि ले ली। बाबा को प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु शिरडी के साईं बाबा का अवतार माना जाता है।

भारत में आध्यात्मिक बाबा बहुत हुए लेकिन ऐसी शोहरत शायद किसी को मिली हो. ये थे सत्य साईं बाबा, जिनका आज जन्मदिन है. सत्य साईं बाबा का असर पूरी दुनिया में फैला है. भारत के अलावा विदेश में उनके करोड़ों भक्त हैं. ये सब रातों-रात नहीं हो गया था. आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में पुट्टपर्थी गांव में एक सामान्य परिवार में 23 नवंबर 1926 को एक बच्चे का जन्म हुआ था. उसका नाम रखा गया सत्यनारायण राजू. राजू ने बड़े होते होते शिरडी के साईं बाबा के पुनर्जन्म की धारणा के साथ ही सत्य साईं बाबा के रूप में ख्याति अर्जित की. राजू की वजह से आंध्र प्रदेश का छोटा-सा गांव पुट्टपर्थी अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर छा गया. प्रसिद्धी का आलम ये कि कस्बे में एक विशेष हवाई अड्डा है, जहां दुनियाभर के अनेक हिस्सों से बाबा के भक्त चार्टर्ड विमानों से आते रहे हैं. साईं ने समय के साथ-साथ चमत्कार और नि:स्वार्थ सेवा के चलते पूरी दुनिया में पहचान बना ली. वक्त बीतता गया.सत्य साईं पूजे जाने लगे. सत्य साईं बाबा को चमत्कारों का बाबा भी कहा जाता है. सत्य साईं का सबसे प्रचलित चमत्कार था भक्तों के ऊपर भभूत गिराना. बाबा का दावा था कि उनके खाली हाथ में भभूत चमत्कार से आती थी. भक्तों से भरे हॉल में बाबा सिर्फ अपना हाथ उठाते थे औऱ उनके हाथ से भभूत निकलने लगती थी.

सचिन की माताजी भी बाबा की भक्त हैं. इसी कारण साईं के लिए उनके दिल में गहरा लगाव है. सचिन को जब भी कोई परेशानी होती थी तो वो बाबा से मिलने पुट्टापर्थी पहुंच जाते थे. क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने सचिन की मुलाकात सत्य साईं बाबा से कराई थी.

 

सत्य साईं बाबा एक और चमत्कार किया करते थे. ये था भक्तों के गले में चेन डालने का कारनामा. अचानक हाथ में चेन में आ जाने का कारनामा. ये कारनामा वो अक्सर तब जब शिरडी के साईं बाबा की मूर्ति की सफाई करते थे. अचानक मूर्ति पर सोने की चेन दिखने लगती थी. साईं का ये चमत्कार उनके भक्तों की श्रद्धा को और बढ़ाता चला गया.
क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर से लेकर राष्ट्रपति और भारतीय राजनीति के बड़े-बड़े नेता इस बाबा के भक्त थे. कभी वो हवा में चीजें प्रकट कर देते थे. कभी अपनी मृत्यु का दिन तय कर देते थे. राजू ने 20 अक्टूबर 1940 को 14 साल की उम्र में खुद को शिरडी वाले साईं बाबा का अवतार कहा. जब भी वो शिरडी साईं बाबा की बात करते थे तो उन्हें ‘अपना पूर्व शरीर’ कहते थे. वह अपने चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध रहे. वह हवा में हाथ घुमाते थे और कई चीजें प्रकट कर देते थे. इसके चलते आलोचक उनके खिलाफ प्रचार करते रहे. लेकिन ज्यादातर भक्तों को उन पर अगाध विश्वास था.

आंध्र प्रदेश में 20 वी सदी के वक्त बहोत बुरा अकाल पड़ा था तब भगवान श्री सत्यसाई बाबाजी ने लगभग 750 गांवो के लिए पानी की व्यवस्था की थी।

आम आदमी से लेकर राष्ट्रपति तक उनके भक्तों में शामिल रहे हैं, लेकिन पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के आध्यात्मिक प्रभाव के साथ ही उनसे विवाद भी जुड़े रहे हैं। भारत में अनेक आध्यात्मिक संत हुए और हैं, लेकिन माना जाता है कि सत्य साईं बाबा के नाम और प्रसिद्धि की बराबरी शायद ही कोई कर सके। सत्य साईं बाबा का असर पूरी दुनिया में फैला हुआ है और भारत के अलावा विदेशों में भी उनके लाखों भक्त हैं। बाबा के नामचीन भक्तों में प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री समेत आला दर्जे के नेता, फिल्मी सितारे, उद्योगपति और खिलाड़ी शामिल रहे हैं। आंध्र प्रदेश का छोटा-सा गाँव पुट्टपर्थी अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर छा गया और इसकी वजह है कि बाबा के आध्यात्मिक स्थल प्रशांति निलयम में दिन-रात विदेशी भक्त आते जाते रहे हैं। इस कस्बे में एक विशेष हवाई अड्डे पर दुनिया के अनेक हिस्सों से बाबा के भक्तों के चार्टर्ड विमान उतरते रहे हैं।

 

जब वो साईं बाबा नहीं बने और राजू ही थे, तब लोगों को उनके कारनामे देखकर आंखों पर यकीन नहीं होता था. जब राजू साईं बाबा बन गया तो हजारों लोगों की मौजूदगी में एक से बढ़कर एक चमत्कार दिखाए. उन्होंने मद्रास और दक्षिण भारत के अन्य हिस्सों की यात्रा की. उनके भक्तों की तादाद बढ़ गई. हर गुरुवार को उनके घर पर भजन होने लगा, जो बाद में रोजाना हो गया. साल 1944 में सत्य साईं के एक भक्त ने उनके गांव के नजदीक उनके लिए एक मंदिर बनाया जो आज पुराने मंदिर के नाम से जाना जाता है. उनके मौजूदा आश्रम प्रशांति निलयम का निर्माण कार्य 1948 में शुरू हुआ था. 1950 में ये बनकर तैयार हुआ था. 1957 में साईं बाबा उत्तर भारत के दौरे पर गए.

बात साईं की बचपन से जुड़ी है. जब वह स्कूल में पढ़ते थे. एक दिन उनके टीचर ने उन्हें बिना किसी वजह बेंच पर खड़ा करा दिया. सत्य साईं चुपचाप घंटों बेंच पर खड़े रहे. जब क्लास खत्म होने के बाद टीचर कुर्सी से उठने लगे तो वो उठ नहीं पाए. वो कुर्सी से चिपक गए थे. साईं के चमत्कार से टीचर को गलती का एहसास हुआ. लोग सत्य साईं की कुटिया में पहुंचे और कहा कि साबित करके दिखाओ कि तुम साईं के सबसे बड़े भक्त हो. तब सत्य साईं ने सिर्फ फूल मंगाए और यूं ही जमीन पर बिखेर दिए, जब लोगों ने जमीन पर बिखरे फूलों को देखा तो वहीं तेलुगु में लिखा था ‘साईं’.

प्रशांतग्राम के श्री सत्य साई सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल 24 अप्रैल, 2011 को 84 वर्ष की आयु में सत्य साईं बाबा का निधन हो गया
21 अप्रैल 2011 को सचिन पुट्टापर्थी के कुलवंत हॉल बाबा के अंतिम दर्शनों के लिए पहुंचे थे. सचिन की पत्नी अंजलि भी उनके साथ थीं. अंतिम दर्शन के दौरान सचिन की आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे. हैदराबाद में सचिन ने बाबा के निधन की खबर के बाद खुद को होटल के कमरे में बंद कर लिया था. सचिन की माताजी भी बाबा की भक्त हैं. इसी कारण साईं के लिए उनके दिल में गहरा लगाव है. सचिन को जब भी कोई परेशानी होती थी तो वो बाबा से मिलने पुट्टापर्थी पहुंच जाते थे. क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने सचिन की मुलाकात सत्य साईं बाबा से कराई थी.

बाबा ने आध्यात्मिक उपदेशों के साथ ही सामाजिक क्षेत्र में भी अनेक सेवा कार्य किये। जिनकी शुरुआत पुट्टपर्थी में एक छोटे से अस्पताल के निर्माण के साथ हुई, जो अब 220 बिस्तर वाले सुपर स्पेशलिटी सत्य साई इंस्टीट्यूट ऑफ हायर मेडिकल साइंसेस का रूप ले चुका है।

इसके अलावा बंगलूरु के बाहरी इलाके में 333 बिस्तर वाला एक और सुपर स्पेशलिटी अस्पताल एस.एस.आई.एच.एम.एस. खोला गया। यहाँ बाबा का ग्रीष्मकालीन केंद्र वृंदावन है। सत्य साई सेंट्रल ट्रस्ट इन सभी सामाजिक सेवा गतिविधियों को देखता है और पुट्टपर्थी में सत्य साई विश्वविद्यालय भी संचालित करता है। इसके अलावा यह ट्रस्ट अलग अलग प्रदेशों में अनेक स्कूलों और डिस्पेंसरियों का भी संचालन करता है। सत्य साई सेंट्रल ट्रस्ट ने आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में बड़ी जल आपूर्ति परियोजनाओं पर भी काम किया है। सत्य साईं सेवा संगठन के स्वयंसेवक आंध्र प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के अन्य हिस्सों में प्राकृतिक आपदाओं के वक्त राहत व पुनर्वास कार्यों में भी आगे से आगे सेवाकार्य करते देखे जा सकते हैं।

सत्य साईं बाबा ने भारत में तीन मंदिर भी स्थापित किये, जिनमें मुंबई में धर्मक्षेत्र, हैदराबाद में शिवम और चेन्नई में सुंदरम है। इनके अलावा दुनियाभर के 114 देशों में सत्य साई केंद्र स्थित हैं।

सत्य साईं बाबा ने 1957 में उत्तर भारत के मंदिरों का भ्रमण किया और अपनी एक मात्र विदेश यात्रा पर 1968 में युगांडा गये। सत्य साईं बाबा ने 1963 में चार बार गंभीर हृदयाघात का सामना किया था। वर्ष 2005 से ही बाबा व्हीलचेयर पर थे और खराब स्वास्थ्य के कारण बहुत कम ही सार्वजनिक कार्यक्रमों में आते थे। वर्ष 2006 में बाबा को कूल्हे में फ्रेक्चर हो गया जब लोहे के स्टूल पर खड़े एक विद्यार्थी के फिसलने से वह और स्टूल दोनों ही बाबा पर गिर गये। वह अपने भक्तों को कार से या पोर्ट चेयर से दर्शन देते थे।

वे अपनी दुर्लभ चुंबकीय शक्ति से गरीबों, अमीरों, राजनीतिकों, अरबपतियों और फिल्मी सितारों को अपने चरणों में झुकाते आ रहे थे. शांति और प्रेम बांटने वाले सर्वोच्च गुरु व भगवान, और लाखों भक्तों के लिए उनके सबसे अच्छे मित्र अब नहीं रहे. लेकिन उनका आभामंडल बरकरार है. और उनके करिश्मे के बल पर बना उनका विशाल साम्राज्‍य भी.

मनुष्य को आध्यात्मिक शांति उपलब्ध कराने  के बाजार में हर दूसरे गुरु की तरह सत्य साईं बाबा की किंवदंती का पहला वाक्य स्वयं बाबा ने ही लिखा था. इसकी शुरुआत 85 साल पहले नवंबर के महीने में पुट्टपर्थी गांव से हुई, जहां सत्यनारायण राजू का जन्म कुछ विशिष्ट आध्यात्मिक शक्तियों के साथ हुआ था. वे वयस्क होने से पहले ही गुरु बन गए थे और 14 साल की उम्र में उन्हें एहसास हुआ कि वे कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि शिरडी के साईं बाबा (1835-1918) के अवतार हैं. यह उस व्यक्तिके जीवन की शुरुआत थी, जिसकी कीर्ति पुट्टपर्थी से आगे बहुत दूर दूर तक फैलने वाली थी.

उनके घने घुंघराले बाल वैसे ही सबसे अलग दिखते थे जैसे कि नारंगी रंग के उनके वस्त्र. बाबा ने अपनी आध्यात्मिक शक्तियों को सामाजिक कार्यों से जोड़ा. दुखहर्ता, उपदेशक और चमत्कारों से परोपकार करने वाले बाबा ने किसी धर्म विशेष का अनुसरण नहीं किया बल्कि अपने उपदेशों में मानवता के पांच स्तंभों पर जोर दिया-सत्य, नैतिक आचरण, शांति, प्रेम और अहिंसा.

ये चमत्कार ही हैं जो भगवानों और साधुसंतों के प्रति लोगों की आस्था को बनाए रखते हैं. साईं बाबा ने हवा से राख और स्विस घड़ियां पैदा करने के चमत्कार दिखाने से कहीं ज्‍यादा सामाजिक काम किए. स्वास्थ्य, शिक्षा और पेयजल के क्षेत्र में उनका योगदान हमेशा बना रहने वाला चमत्कार है, जो हजारों लोगों के जीवन को सुखमय बना रहा है.

1963: 6 जुलाई को साईं बाबा ने घोषणा की कि उनके अगले अवतार प्रेम साईं का जन्म कर्नाटक के मांड्‌या जिले में होगा.

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आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी गांव में 23 नवंबर 1926 को जन्म तेजस्वी बालक का नाम माता-पिता ने सत्यनारायण राजू रखा। सत्यनारायण बचपन से ही होनहार और दयालु थे। उन्हें संगीत के साथ गायन, नृत्य और लिखने का शौक था। कहा जाता है कि बचपन से सत्यनारायण चमत्कारी थे और हवा से मिठाई व खाने-पीने की चीजें पैदा कर लेते थे।

अपने गांव के स्कूल में तीसरी तक पढ़ाई करने के बाद सत्यनारायण बुक्कापटनम आ गए और यहां के एक स्कूल में पढ़ने लगे। कहा जाता है कि 8 मार्च 1940 के दिन सत्यनारायण को एक बिच्छू ने डंक मार दिया। बिच्छू के डंक से वह कई घंटे बेहोश रहे, लेकिन जब उन्हें होश आया तो उनका व्यक्तित्व काफी बदल गया था। सत्यनारायण ने अचानक संस्कृत बोलना शुरू कर दी, जिसकी उन्होंने शिक्षा कभी हासिल नहीं की थी। बिच्छू का डंक लगने के बाद वो कभी भी हंसने लगते, कभी रोते और कभी गुमसुम भी हो जाते थे।

चमत्कार देख डरा परिवार

शुरुआत में घरवालों ने उन्होंने कई डॉक्टरों, नीम-हकीमों और संतों के पास दिखाया। डॉक्टरों को लगा कि उन्हें हिस्टीरिया हो गया है। लेकिन 23 मई 1940 को पहली बार लोगों ने सत्यनारायण को सत्य साईं की दिव्यता का एहसास हुआ। कहा जाता है कि सत्य साईं ने सभी लोगों को अपने घर बुलाया और एक के बाद एक कई चमत्कार दिखाने लगे। सत्य साईं के पिता चमत्कार देख डर गए और उन्हें लगा कि भूत-प्रेत का साया है।

त्यनारायण पर छड़ी तानते हुए पिता ने पूछा – कौन हो तुम? सत्यनारायण ने जवाब दिया – मैं साई हूं, सांई बाबा हूं। इस घटना के बाद सत्यनारायण ने खुद को शिरडी साईं बाबा का अवतार घोषत कर दिया। सत्य साईं बाबा का जब जन्म हुआ था, उससे 8 बरस पूर्व ही शिरडी साईं बाबा गुजर चुके थे। शिरडी साईं बाबा का अवतार घोषित करने के कुछ ही दिनों बाद वहां श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी।

सत्य साईं बनकर जनमानस को दिया धर्म का ज्ञान

सत्यनारायण से सत्य साईं बाबा बनने के बाद उन्होंने मद्रास और दक्षिण भारत के कई हिस्सों में यात्रा कर धर्म का प्रचार किया। सत्य साईं का कहना था कि आपको अपना धर्म छोड़ने की जरूरत नहीं। 1944 में सत्य साईं के एक भक्त ने उनके गांव के नजदीक उनके लिए एक मंदिर बनाया जो आज पुराने मंदिर के नाम से जाना जाता है। सत्य साईं के मौजूदा आश्रम प्रशाति निलयम का निर्माण 1948 में शुरू हुआ था और 1950 में बनकर तैयार हुआ था।

दोबारा जन्म लेने की भविष्यवाणी

1963 में सत्य साईं बाबा को कई बार दिल का दौरा पड़ा। उनके भक्त जल्द स्वस्थ्य होने की कामना करते रहे। साईं ठीक हुए और उन्होंने ऐलान किया कि वह कर्नाटक में दोबारा प्रेम साईं बाबा के रूप में दोबारा जन्म लेंगे। देश-विदेश में सत्य साईं बाबा के अनुयायी मौजूद हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि साईं बाबा सिर्फ एक बार ही विदेश गए हैं। 29 जून 1968 को साईं बाबा अपनी एकमात्र विदेश यात्रा पर युगांडा गए थे।

28 मार्च 2011 को सत्य साईं बाबा की तबीयत बिगड़ी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। उन्हें दिल की बीमारी के साथ सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। हालत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। इसी दौरान उनका लिवर खराब हो गया और ब्लड प्रेशर भी लगातार गिरता गया। कोई भी दवा उनपर असर नहीं कर रही थी और 24 अप्रैल की सुबह 7.40 मिनट पर 86 साल की उम्र में सत्य साईं बाबा ने अपनी अंतिम सांस ली।

सत्य साईं बाबा अपने चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध रहे और वे हवा में से अनेक चीजें प्रकट कर देते थे और इसके चलते उनके आलोचक उनके खिलाफ प्रचार करते रहे। सत्य साईं बाबा के निधन के बाद सचिन तेंडुलकर जब पत्नी अंजली के साथ पुट्टपर्थी पहुंचे थे तो उनके शव के पास बैठकर देर तक रोते रहे थे। उनके भक्तों वीआईपी भक्तों की फेहरिस्त बहुत लंबी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, बीएचपी के अशोक सिंधल और आरएसएस के सभी बड़े नेता उनके दरबार में जाते थे।

सत्य साईं को शिरडी के साईं बाबा का अवतार माना जाता है। उनका जन्म आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी गांव में 23 नवंबर 1926 को हुआ था। पूरे विश्व में उनके अनुयायी हैं। 24 अप्रैल 2011 को उनका निधन हो गया था। उनका बचपन का नाम सत्यनारायण राजू था। उन्होंने 20 अक्टूबर 1940 को 14 साल की उम्र में खुद को शिर्डी वाले साईं बाबा का अवतार कहा। जब भी वह शिर्डी साईं बाबा की बात करते थे तो उन्हें ‘अपना पूर्व शरीर’ कहते थे। सत्य साईं द्वारा देशभर में जरूरतमंदों के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसमें सबसे ज्यादा प्रमुख सुपर स्पेशलिटी अस्पताल हैं, जहां सभी तरह की सर्जरी नि:शुल्क की जाती हैं।

सचिन की मां भी है साईं भक्त

21 अप्रैल 2011 को सचिन पुट्टापर्थी के कुलवंत हॉल बाबा के अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे थे। सचिन की पत्नी अंजलि सचिन के साथ थीं। अंतिम दर्शन के दौरान सचिन की आंखों से आंसू रोके नहीं रुक रहे थे। हैदराबाद में सचिन ने बाबा के निधन की खबर के बाद खुद को होटल के कमरे में बंद कर लिया था। सचिन की माताजी भी बाबा की भक्त हैं और इसी कारण साईं के लिए उनके दिल में गहरा लगाव है। सचिन को जब भी कोई परेशानी होती थी तो वो बाबा से मिलने पुट्टापर्थी पहुंच जाते थे। क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने सचिन की मुलाकात सत्य साईं बाबा से कराई थी।

दिखाते थे चमत्कार

उन्होंने अपने चमत्कार से करोड़ों भक्तों को नया जीवन दिया। बाबा के कारनामे देखकर लोगों को अपनी आंखों पर यकीन नहीं होता था। हजारों लोगों की मौजूदगी में सत्य साईं ने एक से बढ़कर एक चमत्कार दिखाए। बात साईं की बच्चपन से जुड़ी है। जब वह स्कूल में पढ़ते थे। एक दिन उनके टीचर ने उन्हें बिना किसी वजह के बेंच पर खड़ा करा दिया। सत्य साईं चुपचाप घंटों बेंच पर खड़े रहे और जब क्लास खत्म होने के बाद टीचर अपनी कुर्सी से उठने लगे तो वो उठ ही नहीं पाए। वो कुर्सी से चिपक गए थे। साईं के चमत्कार से टीचर को अपनी गलती का एहसास हुआ।

लोगों ने दी थी चुनौती

जब सत्य साईं, घरबार छोड़ साईं भक्ति में लीन हो गए, तो कई लोगों ने उनपर सवाल उठाए। एक बार तो गांव के बड़े बुजुर्ग उन्हें चुनौती देने लगे। दिन गुरुवार का था, जब लोग सत्य साईं की कुटिया में पहुंचे और कहा कि साबित करके दिखाओ कि तुम साईं के सबसे बड़े भक्त हो और तब सत्य साईं ने सिर्फ फूल मंगाए और यूं ही जमीन पर बिखेर दिए, जब लोगों ने जमीन पर बिखरे फूलों को देखा तो वहीं तेलुगु में लिखा था ‘साईं’।

कहलाने लगे चमत्कारों वाले बाबा

साईं समय के साथ-साथ चमत्कार और नि:स्वार्थ सेवा के चलते पूरी दुनिया में पहचान बना ली। वक्त बीतता गया और सत्य साईंं पूजे जाने लगे। सत्य साईंं बाबा को चमत्कारों का बाबा भी कहा जाता है। सत्य साईं का सबसे प्रचलित चमत्कार था भक्तों के ऊपर भभूत गिराना। बाबा का दावा था कि उनके खाली हाथ में भभूत चमत्कार से आती थी। भक्तों से भरे हॉल में बाबा सिर्फ अपना हाथ उठाते थे औऱ उनके हाथ से निकलने लगती थी भभूत।

भक्तों को देते थे सोने की चेन

सत्य साईं बाबा एक और चमत्कार अक्सर किया करते थे। ये था शिर्डी के सांईबाबा की मूर्ति पर चेन पैदा करने का कारनामा। भक्तों के गले में चेन डालने का कारनामा। अचानक हाथ में चेन में आ जाने का कारनामा। ये कारनामा वो अक्सर उस वक्त करते थे जब वो शिर्डी के साईं बाबा की मूर्ति की सफाई करते थे। अचानक मूर्ति पर सोने की चेन दिखने लगती थी। साईं का ये चमत्कार उमके भक्तों की श्रद्धा को और बढ़ाता चला गया। सामने खड़े भक्तों की आंखें फटी की फटी रह जाती थीं। ये चमत्कार नहीं तो क्या है।

निवेदन- सत्य साईं बाबा  के इस आलेेेख के लिंक को सबको भेजे-

CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR- Mob. 9412932030- Dehradun

 

 

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