सावन समापन 7 अगस्त रक्षाबंधन को चंद्र ग्रहण से होगा

शुभ नक्षत्र और संयोग से सजा यह सावन 7 अगस्त राखी तक चलेगा. नाग पंचमी 27 जुलाई गुरुवार 2017 के दिन मनाई जाएगी। सावन में शुभ मुहूर्त गणेश चतुर्थी, मंगला गौरी व्रत, मास शिवरात्रि, हरियाली अमावस्या, हरियाली तीज, नाग पंचमी और राखी रहेगी। – www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) 

ज्योतिषियों के मुताबिक इस साल राखी पर चंद्र ग्रहण रहेगा. यह भी एक दुर्लभ संयोग है. सर्वार्थ सिद्धि योग से 10 जुलाई को सावन का शुभारंभ होगा. वहीं इसका समापन भी सोमवार को सर्वार्थ सिद्धि योग और चंद्र ग्रहण के साथ होगा. 24 जुलाई को पुष्य नक्षत्र होगा. सर्वार्थ सिद्धि योग का वक्त बेहद शुभ होता है. सर्वार्थ सिद्धि योग यानी अपने आप में सिद्ध. इस दिन की गई पूजा या हवन-यज्ञ का महत्व काफी अधिक होता है. सावन समापन 7 अगस्त रक्षाबंधन को चंद्र ग्रहण से होगा ; ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सावन का समापन 7 अगस्त को होगा. इस दिन चंद्रग्रहण का दुर्लभ योग भी बन रहा है और ये संयोग लंबे समय के बाद आ रहा है.

सावन माह वर्ष का पवित्र और महत्वपूर्ण माह माना जाता है। इसके एक-एक दिन का विशेष महत्व होता है। भगवान शंकर की आराधना इसी माह में सबसे फलदायी होती है। सावन महीने के प्रत्येक सोमवार को शिव की पूजा करनी चाहिए। इस दिन व्रत रखने और भगवान शिव के ध्यान से विशेष लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह व्रत भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किये जाते हैं। व्रत में भगवान शिव का पूजन करके एक समय ही भोजन किया जाता है। साथ ही साथ गले में गौरी-शंकर रूद्राक्ष धारण करना भी शुभ रहता है। कहा जाता है कि सावन में मांसाहार व मदिरा का पूरी तरह परित्याग कर देना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव द्वारा चंद्रमा को अपने सिर पर धारण करने के बाद उनको ठंडा रखने के लिए इंद्र ने मूसलाधार बारिश कर दी। यही वजह है कि सावन माह में काफी ज्यादा बारिश होती है और पूरा माह भगवान शंकर को समर्पित रहता है। विधि विधान से भगवान शंकर की आराधना करने से मनुष्य को अनेक शुभ फल प्राप्त होते हैं। वहीं, सावन में महिलाएं प्रत्येक सोमवार व्रत रहकर भगवान से अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। इस ²ष्टि से इस माह का महिलाओं के लिए विशेष महत्व होता है।
श्रावण माह को प्‍यार का महीना भी बोला जाता है। व्यावहारिक रूप से यह कई जानवरों के लिये प्रजनन का मौसम होता है। हिन्‍दू नियम के तहत इस दौरान मछली पकड़ने पर रोक लगाई जाती है क्‍योंकि इस समय मछलियों के पेट में अंडे़ होते हैं, जिन्‍हें मारना पाप होता है।
सावन का पूरा महीना केवल शिव जी के नाम होता है। यह दिन इसलिये खास बना क्‍योंकि इस दिन समुंद्र मंथन हुआ था, जिसमें शिव जी ने हलाहल नामक जहर पी कर सारे पृथ्‍वाी वासियों को बचाया था।
इस महीने में जितने भी सोमवार पडते हैं, उन्‍हें श्रावण सोमवार कहा जाता है। यह पावन महीना शिव जी का होता है, जिसमें शिवरात्री मनाई जाती है। सावन का पूरा महीना यूं तो भगवान शिव को अर्पित होता ही है पर सावन के पहले सोमवार को भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल मिलता है। भारत के सभी द्वादश शिवलिंगों पर इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कहा जाता है सावन के सोमवार का व्रत करने से मनचाहा जीवनसाथी मिलता है और दूध की धार के साथ भगवान शिव से जो मांगो वह वर मिल जाता है।
सावन का महीना शिवभक्तों के लिए खास होता है। शिवभक्त कांवड़ियों में जल लेकर शिवधाम की ओर निकल पड़ते हैं। शिवालयों में जल चढ़ाने के लिए लोग बोल बम के नारे लगाते घरों से निकलते हैं। भक्त भगवा वस्त्र धारण कर शिवालयों की ओर कूच करते हैं।

::
सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि- “जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि “जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया”।
वैसे सावन की महत्ता को दर्शाने के लिए और भी अन्य कई कहानी बताई गयी हैं जैसे कि मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी।
कुछ कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन महीने में समुद्र मंथन किया गया था। मंथन के बाद जो विष निकला, उसे भगवान शंकर ने पीकर सृष्टि की रक्षा की थी।
किन्तु कहानी चाहे जो भी हो, बस सावन महीना पूरी तरह से भगवान शिव जी की आराधना का महीना माना जाता है। यदि एक व्यक्ति पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करता है, तो यह सभी प्रकार के दुखों और चिंताओं से मुक्ति प्राप्त करता है।

:::
सावन के महीने में भक्त, गंगा नदी से पवित्र जल या अन्य नदियों के जल को मीलों की दूरी तय करके लाते हैं और भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। कलयुग में यह भी एक प्रकार की तपस्या और बलिदान ही है, जिसके द्वारा देवो के देव महादेव को प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है।
सावन में शुभ मुहूर्त से मानसून अच्छा रहेगा। अब लगन नवम्बर माह से प्रारंभ होगा, जो दिसम्बर तक चलेगा इसके बाद फिर 14 जनवरी के खरवास खत्म होने के बाद शुरू होगा। सावन में गणेश चतुर्थी, मंगला गौरी व्रत, मास शिवरात्रि, हरियाली अमावस्या, हरियाली तीज, नाग पंचमी और राखी रहेगी।
सुबह 11.7 बजे तक भद्रा रहेगी | सावन के आखिरी सोमवार 7 अगस्त को राखी रहेगी। इसमें सुबह 11.7 बजे तक भद्रा रहेगी। वहीं रात्रि 10.52 से चंद्र ग्रहण दिखना शुरू होगा। जो कि रात्रि 12.22 बजे तक रहेगा। इसका सूतक दोपहर 1.52 से शुरू होकर रात के 12.22 बजे तक रहेगा। इस तरह रक्षाबंधन के दिन राखी बांधने का शुभ मुहूर्त सुबह 11.7 के बाद से दोपहर 1.50 बजे तक रहेगा।

नाग पंचमी 27 जुलाई गुरुवार 2017 के दिन मनाई जाएगी।
नाग पंचमी एक हिन्दू पर्व है जिसमें नागों और सर्पों की पूजा की जाती है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि में यह पर्व पूरे देश में पूर्ण श्रद्धा से मनाया जाता है। इस वर्ष 2017 में नाग पंचमी 27 जुलाई गुरुवार के दिन मनाई जाएगी।
इस पर्व को मनाने के पीछे एक रोचक तथ्य है। श्रावण के महीने में बरसात होने के कारण अक्सर सर्प अपने बिलों से बाहर निकल आते हैं और दूसरा अस्थायी बसेरा ढूंढते हैं। ये कहीं मनुष्यों को हानि ना पहुंचाए, इसलिए नागपंचमी पर इनकी पूजा की जाती है और इन्हें दूध भी पिलाया जाता है।
क्या है नाग पंचमी की कहानी
यह मान्यता है कि भगवान कृष्णा ने इसी दिन गोकुलवासियों को कालिया नामक नाग के आतंक से बचाया था। कथा के अनुसार, एक दिन बालकृष्ण अपने मित्रों के साथ यमुना तट पर खेल रहे थे। तभी उनकी गेंद नदी में जा गिरी। गेंद बाहरनिकालने के प्रयास में कृष्ण नदी में जा गिरे। उसी समय कालिया ने उनपर आक्रमण कर दिया। किन्तु इस बात से अंजान कि श्री कृष्ण साधारण बालक नहीं है, कालिया ने उनसे क्षमा याचना मांगी। कृष्ण ने कालिया से पहले यह प्रतिज्ञा ली कि वह कभी भी गाँव वालों को परेशान नहीं करेगा, तत्पश्चात उन्होंने कालिया को छोड़दिया। प्रचंड नाग कालिया पर कृष्णा की विजय के बाद इस दिन को नाग पंचमी के रूप में श्रद्धा भक्ति से मनाया जाता है।
नाग पंचमी के अवसर पर श्रद्धालु भूमि की खुदाई नहीं करते और इस दिन नागदेवता की तस्वीर या मिट्टी से बनी उनकी प्रतिमा के सामने दूध, धान, खील और दूब घास का चढ़ावा करते है और नागदेवता की पूजा करते हैं। यह भी मान्यता है कि प्रभु शिव नागों और सर्पों को स्नेह करते है और सर्पोंऔर नागों की पूजा-अर्चना करने से शिवजी प्रसन्न होते हैं। शिवजी के रुद्ररूप से ना केवल मनुष्य बल्कि देवी-देवता भी घबराते हैं। इसलिएकुछ श्रद्धालु भगवान शिव के आशीर्वाद हेतु जीवित कोबरा नाग की पूजा करते हैं और उन्हें दूध और अन्य पदार्थों का सेवन करते हैं।
यह पर्व पूरे भारतवर्ष में धूमधाम से और विभिन्न रीतियों के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट्र में कुछ भक्त एकथाल में जीवित किन्तु शांतचित नाग को लेकर घर-घर जाकर भिक्षा मांगते हैं। केरल में भक्त नागदेवता के मंदिर जाकर उनकी पत्थर और धातु की प्रतिमाओं की पूजा करते हैं ताकि वे और उनके परिजन सालभर सर्पों के प्रकोप और सर्पदंशों से बच सकें। रीती-रिवाज चाहे कितने ही भिन्न क्यों ना हो, नाग पंचमी सब एक ही उद्देश्य के साथ श्रद्धा भक्ति के साथ मनाते हैं।

www.himalayauk.org (Himalaya Gaurav Uttrakhand) Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper; publish at Dehradun & Haridwar; mail; himalayauk@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *