शिवलिंग और न्यूक्लियर रिएक्टर में काफी समानताएं

शिवलिंग के पीछे छुपा है विज्ञान #शक्‍ति के स्रोत है शिवलिंग और न्यूक्लियर रिएक्टर # जानकर हैरान रह जायेगे इस बारे में # CS JOSHI- editor Exelusive Report for www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal) 

 शिवलिंग,जिसकी पूजा लगभग सारे हिन्दू करते हैं,के बारे में एक वैज्ञानिक तथ्य भी है। अगर आप गौर से भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर(मुंबई)के न्यूक्लियर रिएक्टर की संरचना को देखें तो आप पाएंगे की शिवलिंग और न्यूक्लियर रिएक्टर में काफी समानताएं हैं। दोनों की संरचनाएं भी एक सी हैं। अगर,दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों ही कहीं न कहीं उर्जा से संबंधित हैं। शिवलिंग पर लगातार जल प्रवाहित करने का नियम है। देश में,ज्यादातर शिवलिंग वहीं पाए जाते हैं जहां जल का भंडार हो,जैसे नदी,तालाब,झील इत्यादि। विश्व के सारे न्यूक्लियर प्लांट भी पानी(समुद्र)के पास ही हैं।
शिवलिंग की संरचना बेलनाकार होती है और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर(मुंबई)की रिएक्टर की संरचना भी बेलनाकार ही है। न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिये जो जल का इस्तेमाल किया जाता है उस जल को किसी और प्रयोग में नहीं लाया जाता। उसी तरह शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है उसको भी प्रसाद के रूप में ग्रहण नहीं किया जाता है। शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है। जहां से जल निष्कासित हो रहा है,उसको लांघा भी नहीं जाता है। ऐसी मान्यता है की वह जल आवेशित(चार्ज)होता है। उसी तरह से जिस तरह से न्यूक्लियर रिएक्टर से निकले हुए जल को भी दूर ऱखा जाता है।

भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (Bhabha Atomic Research Centre, BARC)मुम्बई में स्थित है। यह भारत सरकार के परमाणु उर्जा विभाग के अन्तर्गत नाभिकिय विज्ञान एवं अभियांत्रिकी एवं अन्य संबन्धित क्षेत्रों का बहु-विषयी नाभीकीय अनुसंधान केन्द्र है।
भारत का परमाणु कार्यक्रम डा॰ होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में आरम्भ हुआ। ३ जनवरी सन् १९५३ को परमाणु उर्जा आयोग के द्वारा परमाणु उर्जा संस्थान (ए ई ई टी) के नाम से आरम्भ हुआ और तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा २० जनवरी सन् १९५७ को राष्ट्र को समर्पित किया गया। इसके बाद परमाणु उर्जा संस्थान को पुनर्निर्मित कर १२ जनवरी सन् १९६७ को इसका नया नाम भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र किया गया, जो कि २४ जनवरी सन् १९६६ में डा॰ भाभा की विमान दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु के लिये एक विनम्र श्रद्धांजलि थी।

शिवलिंग, जिसकी पूजा लगभग सारे हिन्दू करते हैं, के बारे में एक वैज्ञानिक तथ्य भी है। अगर आप गौर से भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (मुंबई) के न्यूक्लियर रिएक्टर की संरचना को देखें तो आप पाएंगे की शिवलिंग और न्यूक्लियर रिएक्टर में काफी समानताएं हैं। दोनों की संरचनाएं भी एक सी हैं। अगर, दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों ही कहीं न कहीं उर्जा से संबंधित हैं। शिवलिंग पर लगातार जल प्रवाहित करने का नियम है। देश में, ज्यादातर शिवलिंग वहीं पाए जाते हैं जहां जल का भंडार हो, जैसे नदी, तालाब, झील इत्यादि। विश्व के सारे न्यूक्लियर प्लांट भी पानी (समुद्र) के पास ही हैं।
शिवलिंग की संरचना बेलनाकार होती है और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (मुंबई) की रिएक्टर की संरचना भी बेलनाकार ही है। न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिये जो जल का इस्तेमाल किया जाता है उस जल को किसी और प्रयोग में नहीं लाया जाता। उसी तरह शिवलिंग पर जो जल चढ़ाया जाता है उसको भी प्रसाद के रूप में ग्रहण नहीं किया जाता है। शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है। जहां से जल निष्कासित हो रहा है, उसको लांघा भी नहीं जाता है। ऐसी मान्यता है की वह जल आवेशित (चार्ज) होता है। उसी तरह से जिस तरह से न्यूक्लियर रिएक्टर से निकले हुए जल को भी दूर ऱखा जाता है।

शिवलिंग के पीछे छुपा है विज्ञान : पढि़ए एक वैज्ञानिक विश्लेषण!पहले साइंस और धर्म को परस्पर विरोधी माना जाता था,पर कुछ वैज्ञानिकोंऔर विद्वानों के विश्लेषण इस निष्कर्ष तक पहुंच रहे हैं कि दोनों में काफीकुछ समानताएं हैं।झारखंड के जाने-माने भूवैज्ञानिक और पर्यावरणविद् डॉ नितीश प्रियदर्शी नेशिवलिंग से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य तलाशने का प्रयास किया है।शिवलिंग,जिसकी पूजा लगभग सारे हिन्दू करते हैं, के बारे में एक वैज्ञानिक तथ्य भी है। अगर आप गौर से भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (मुंबई) के न्यूक्लियर रिएक्टरकी संरचना को देखें तो आप पाएंगेकी शिवलिंग और न्यूक्लियर रिएक्टर मेंकाफी समानताएं हैं।दोनों की संरचनाएं भी एक सी हैं।अगर, दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों ही कहीं न कहीं उर्जा से संबंधित हैं।शिवलिंग पर लगातार जल प्रवाहित करने का नियम है।देश में, ज्यादातर शिवलिंग वहीं पाए जाते हैं जहां जल का भंडार हो, जैसे नदी,तालाब, झील इत्यादि।विश्व के सारे न्यूक्लियर प्लांट भी पानी (समुद्र) के पास ही हैं। शिवलिंग की संरचना बेलनाकार होती है और भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (मुंबई)की रिएक्टर की संरचना भी बेलनाकार ही है।न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिये जो जल का इस्तेमाल किया जाता हैउस जल को किसी और प्रयोग में नहीं लाया जाता।उसी तरह शिवलिंग पर जो जल चढ़ायाजाता है उसको भी प्रसाद के रूप में ग्रहणनहीं किया जाता है।शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है।जहां से जल निष्कासित हो रहा है, उसको लांघा भी नहीं जाता है।

शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की ही आकृति है शिवलिंग (ब्रह्मांड) भी एक उर्जा का स्रोत   लोग श्रद्धा से बेल का पत्ता शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।हल के वैज्ञानिक शोध से ये ज्ञात हुआ है की बेल के पत्तों में रेडियो विकिरणरोकने की क्षमता है

ऐसी मान्यता है की वह जल आवेशित (चार्ज) होता है।उसी तरह से जिस तरह से न्यूक्लियर रिएक्टर से निकले हुए जल को भी दूरऱखा जाता है।ऐसी मान्यता है कि वास्तव में शिवलिंग हमारे ब्रह्मांड की ही आकृति है।जिस तरीके से लगातार उर्जा देते रहने से न्यूक्लियर रिएक्टर गर्म हो जाता हैतथा उसको ठंडा रखने के लिये जल की जरूरत है उसी तरह शिवलिंग को भीजल की जरूरत होती है।ऐसा माना जाता है की शिवलिंग (ब्रह्मांड) भी एक उर्जा का स्रोत है जिससेलगातार उर्जा निकलती रहती है।लोग श्रद्धा से बेल का पत्ता शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।हल के वैज्ञानिक शोध से ये ज्ञात हुआ है की बेल के पत्तों में रेडियो विकिरणरोकने की क्षमता है।इससे लगता है प्राचीन कल में लोगशिवलिंग को उर्जा अथवा विकिरण का स्रोतमानकर उस पर जल एवं बेल पत्तों को चढ़ाते थे।
ऐसा भी माना जाता है की सोमनाथ के मंदिर के शिवलिंग में”स्यामन्तक” नामकएक पत्थर को हमारे पूर्वजों ने छुपा के रखा था।इसके बारे में धारणा है की ये रेडियोएक्टिव भी था।यह भी माना जाता हैं गजनी ने इस पत्थर को प्राप्त करने के लिये सोमनाथ केमंदिर पर कई बार हमला किया था।एक कथा यह भी प्रचलित थी कि इस पत्थर से किसी भी धातु को सोना में बदला जा सकता था।शायद इसी कारण से लोग सोमनाथ के शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाते थे ताकिविकिरण का प्रभाव कम हो सके।

प्रथा आज भी प्रचलित है।हम अपने दैनिक जीवन में भी देख सकते है की जब भी किसी स्थान पर अकस्मात उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल स्थान के चारों ओर एकवृताकार पथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात दसों दिशाओं मेंफैलता है।फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति होती है जैसे बम विस्फोट सेप्राप्त उर्जा का प्रतिरूप, शांत जल में कंकड़ फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) काप्रतिरूप आदि।सृष्टि के आरंभ में महाविस्फोट (बिग बैंग) के पश्चात उर्जा का प्रवाह वृत्ताकारपथ में तथा ऊपर व नीचे की ओर हुआ, फलस्वरूप एक महाशिवलिंग का प्राकट्य हुआ,जिसका वर्णन हमें लिंगपुराण,शिवमहापुराण,स्कन्द पुराण आदि में मिलता है कि आरंभ में निर्मित शिवलिंग इतना विशाल (अनंत) था कि देवता आदि मिल करभी उस लिंग के आदि और अंत का छोर या शाश्वत अंत न पा सके ।पुराणों में कहा गया है की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंगमें समाहित (लय) होता है तथा इसी से पुन: सृजन होता है।बिग बैंग (महाविस्फोट) का सिद्धांत सर्वप्रथम Georges Lemaître ने 1920 में दिया।

यह सिद्धांत कहता है कि कैसे आज से लगभग 13.7 खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्मऔर घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ।इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिंदु से हुई थी जिसकी उर्जा अनंत थी।उस समय मानव, समय और स्थान जैसी कोई वस्तु अस्तित्व में नहीं थी अर्थातकुछ नही था ! इस धमाके में अत्यधिक ऊर्जा का उत्सजर्न हुआ।यह ऊर्जा इतनी अधिक थी कि इसके प्रभाव से आज तक ब्रह्मांड फैलता ही जारहा है।सारी भौतिक मान्यताएं इस एक ही घटना से परिभाषित होती हैं जिसे महाविस्फोटसिद्धांत कहा जाता है।महाविस्फोट नामक इस धमाके के मात्र 1.43 सेकेंड अंतराल के बाद समय,अंतरिक्षकी वर्तमान मान्यताएं अस्तित्व में आ चुकी थीं।भौतिकी के नियम लागू होने लग गयेथे।1.34वें सेकेंड में ब्रह्मांड 1030 गुणा फैल चुका था हाइड्रोजन,हीलियम आदि केअस्तित्त्व का आरंभ होने लगा था और अन्य भौतिक तत्व (आकाश,वायु,अग्नि,जल,पृथ्वी) बनने लगे थे।शिवलिंग के महत्ता पीछे कई धार्मिक कहानियां भी हैं,जो प्रतीकात्मक तरीके सेयही बातें कहती हैं।आधुनिक विज्ञान कई अवस्थाओं से गुजरने के बाद आज एक ऐसे बिंदु पर पहुँचा हैजहाँ वे यह सिद्ध कर रहे हैं कि हर चीज जिसे आप जीवन के रूप में जानते हैं,वहसिर्फ ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों करोड़ों रूप में व्यक्त करती है।

सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्।।केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशङ्करम्।वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।।वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने।सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये।।द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।सर्वपापविनिर्मुक्तः सर्वसिद्धिफलो भवेत्।।जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,जयतिपुण्य भूमि भारत,,कष्ट हरो,,,काल हरो,,,दुःख हरो,,,दारिद्र्यहरो,,,हर,,,हर,,महादेव,,,

शिवलिंग को घर पर न रखे- अगर आप उसे पुरे विधि विधान से उसकी पूजा न कर रहे हो

शिवलिंग को कभी भी ऐसे स्थान पर न रखे जहा आप उसे पूज न रहे हो l हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कभी भी शिवलिंग को घर पर न रखे अगर आप उसे पुरे विधि विधान से उसकी पूजा न कर रहे हो, क्योंकि अगर आप ऐसा करने वालो में से है तो सावधान हो जाये क्योंकि इससे आप शिवलिंग का अपमान कर रहे है और कुछ अनर्थकारी चीजों को आमंत्रित कर रहे है l . एक बार की बात है जब भगवान् विष्णु और ब्रह्मा के बीच कौन सब से सर्वश्रेष्ठ होने की होड़ मची और जब ये बहस युद्ध का रूप लेने लगी तो महादेव ज्योतिर्लिंग क रूप में प्रगट हुए और कहा जो भी इसके छोर तक पहले पहुचेगा वो सर्वश्रेष्ठ कहलायेगा l विष्णु नीचे की तरफ गये और ब्रह्मा ऊपर की तरफ लेकिन विष्णु ने स्वीकार कर लिया की वो इसका छोर नहीं पा सक और ब्रह्मदेव ने कुछ और ही कहानी रची उन्होंने केतकी के फूलो से झूठी गवाही देने को कही की ब्रह्मदेव छोर पा गये है जब ये बात पूछी जाये महादेव के सामने l ब्रह्मदेव ने बिलकुल वैसा ही किया वो लौटे और उन्होंने केतकी के फूलो को साक्ष्य बनाते हुए महादेव से कहा की वो छोर तक पहुच गये है महादेव ने इस झूठ पर क्रोधित होकर ब्रह्मा का एक सर काट दिया और साथ ही केतकी के फूलो पर भी पूजा अर्चना में इस्तेमाल होने पर प्रतिबन्ध लगा दिया l
शिवपुराण के अनुसार जालंधर की एक कहानी है जिसे वरदान था की उसे तब तक कोई नहीं हरा सकता जब तक उसकी पत्नी वृंदा पतिव्रता रहेगी और इसी के चलते भगवान् विष्णु ने उसका पतिव्रता संकल्प भंग किया और महादेव ने जालन्धर का विनाश लेकिन वृंदा जो बाद में तुलसी में परिवर्तित हो चुकी थी उसने अपने पत्तियों का उपयोग महादेव की पूजा में इस्तेमाल होने पर रोक लगा दी l इसलिए शिवलिंग पर तुलसी कभी भी अर्पित न करे !
हल्दी एक स्त्री की सुन्दरता निखारने के लिए इस्तेमाल होती है और शिवलिंग महादेव का प्रतीक है इसलिए हल्दी का उपयोग शिवलिंग पर ना करे !
हिन्दू मान्यताओ के अनुसार सिन्दूर या कुमकुम का उपयोग एक महिला अपने पति की लम्बी आयु के लिए करती है और महादेव त्रिदेवो में विध्वंसक की भूमिका निभाते है यानी की संघार तो शिवलिंग पर सिन्दूर अर्पित करना शुभ नहीं माना जाता l
शिवलिंग का स्थान बदलते समय उसके चरणों को स्पर्श करे और एक बर्तन में साफ़ पानी गंगाजल से मिक्स हुआ हो उसमे शिवलिंग को रखे l और अगर शिवलिंग पत्थर से बना हुआ है तो उसका गंगाजल से अभिषेक करे l
शिवलिंग पर जब भी दूध से अभिषेक करे तो ध्यान रखे की पैक दूध न चढ़ाए, दूध ठंडा और साफ़ होना चाहिए !
शिवलिंग को घर लाते समय ध्यान रखे की मूर्ति में नाग लिपटा हो और शिवलिंग सोने, चांदी, या ताम्बे का हो !
शिवलिंग को घर पर रखे तो कोशिश करे की उस जलधारा बरकरार रहे अन्यथा वो नकारत्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है !
शिवलिंग के समीप गौरी और गणेश की मूर्ति ज़रूर होनी चाहिए अकेले न रखे शिवलिंग को !

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