विश्व और भारत का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग

भगवान शिव ही है जिनकी पूजा लिंग के रूप में होती है। शिवलिंग की पूजा के महत्व का गुण-गान कई पुराणों और ग्रंथों में पाया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग पूजा की परम्परा कैसे शुरू हुई। सबसे पहले किसने भगवान शिव की लिंग रूप मे पूजा की थी और किस प्रकार शिवलिंग की पूजा की परम्परा शुरू हुई, इससे संबंधित एक कथा लिंगमहापुराण में है।

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शिव और शिवलिंगों से जुड़े कई चमत्कारों में से एक है। हर साल बढ़ने वाला शिवलिंग भूतेश्वर नाथ महादेव। भारत में इसे बहुत से शिवलिंग है। जिनका रहस्य कोई समझ नही पाया। इन्ही में से एक शिवलिंग है जिसका हर साल आकार बढ़ता है। यह चमत्कारी शिवलिंग छत्तीसगढ़ के एक गाँव मरौदा में भूतेश्वर नाथ के नाम से विख्यात है। इसकी ऊँचाई अठारह फीट और गोलाई 20 फीट की है। यह माना जाता है। की यह विश्व और भारत का सबसे बड़ा प्राकृतिक शिवलिंग है।
सृष्टि के रचयिता देवों के देव महादेव को श्रद्धालु शिवलिंग के रूप में पूजते हैं। शिव पुराण के अनुसार, शिव शंकर को ही जल्द मनोकामना पूर्ण करने वाले भगवान का दर्जा दिया गया है। अगर आप भगवान शिव के भक्त हैं और उनकी पूजा करते हैं तो आपके लिए ये जानना जरूरी है कि सबसे पहले शिवलिंग कहां स्थापित हुआ था। आइये हम आपको बताते हैं सबसे पहले शिव शंकर शिवलिंग के रूप में कहां स्थापित हुए और इनके पूजन का प्रारंभ कहां से हुआ।

क्या कहता है लिंगमहापुराण
लिंगमहापुराण में सबसे पहले शिवलिंग की स्थापना कहां हुई। इसका सिलसिलेवार ढ़ग से वर्णन किया गया है। लिंगमहापुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपनी-अपनी श्रेष्ठता साबित करने को लेकर विवाद हो गया।
दोनों अपने आपको श्रेष्ठ बताने के लिए एक-दूसरे का अपमान करने लगे। लेकिन जब दोनों का विवाद चरम सीमा तक पहुंच गया, तब अग्नि की ज्वालाओं से लिपटा हुआ एक विशाल लिंग दोनों देवों के बीच आकर स्थापित हो गया। इसके बाद दोनों देव इस लिंग के रहस्य का पता लगाने में जुट गए। भगवान ब्रह्मा उस लिंग के ऊपर की तरफ बढ़े और भगवान विष्णु नीचे की ओर जाने लगे। हजारों वर्षों तक जब दोनों देव इस लिंग का पता लगा पाने में नाकाम रहे, तो वह अपनी हार कबूलते हुए फिर उसी जगह पर पहुंचे जहां पर उन्होंने उस विशाल लिंग को देखा था। लिंग के पास पहुंचते ही दोनों देव उस लिंग के पास से ओम स्वर की ध्वनि सुनाई देने लगी। इस स्वर को सुनकर दोनों को यह अनुमान हो गया है कि यह कोई शक्ति है। इसलिए दोनों देव ओम के स्वर की आराधना करने लगे।
ब्रह्मा और विष्णु की आराधना से भगवान शिव बेहद प्रसन्न हुए और उस विशाल लिंग से स्वयं प्रकट हुए। उन्होंने दोनों देवों को सदबुद्धि का वरदान दिया और वहीं उस विशाल शिवलिंग के रुप में स्थापित होकर वहां से अंतर्ध्यान हो गए। लिंगमहापुराण के अनुसार यही विशाल लिंग भगवान शिव का सबसे पहला शिवलिंग माना जाता है।

लिंगमहापुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपनी-अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। स्वयं को श्रेष्ठ बताने के लिए दोनों देव एक-दूसरे का अपमान करने लगे। जब उनका विवाद बहुत अधिक बढ़ गया, तब एक अग्नि से ज्वालाओं के लिपटा हुआ लिंग भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच आकर स्थापित हो गया।
दोनों देव उस लिंग का रहस्य समझ नहीं पा रहे थे। उस अग्नियुक्त लिंग का मुख्य स्रोत का पता लगाने के लिए भगवान ब्रह्मा ने उस लिंग के ऊपर और भगवान विष्णु ने लिंग के नीचे की ओर जाना शुरू किया। हजारों सालों तक खोज करने पर भी उन्हें उस लिंग का स्त्रोत नहीं मिला। हार कर वे दोनों देव फिर से वहीं आ गए जहां उन्होंने लिंग को देखा था। वहां आने पर उन्हें ओम का स्वर सुनाई देने लगा। वह सुनकर दोनों देव समझ गए कि यह कोई शक्ति है और उस ओम के स्वर की आराधना करने लगे।
भगवान ब्रहमा और भगवान विष्णु की आराधना से खुश होकर उस लिंग से भगवान शिव प्रकट हुए और दोनों देवों को सद्बुद्धि का वरदान भी दिया। देवों को वरदान देकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए और एक शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए। लिंगमहापुराण के अनुसार वह भगवान शिव का पहला शिवलिंग माना जाता था। जब भगवान शिव वहां से चले गए और वहां शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए, तब सबसे पहले भगवान ब्रह्मा और विष्णु ने शिव के उस लिंग की पूजा-अर्चना की थी। उसी समय से भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा करने की परम्परा की शुरुआत मानी जाती है।
लिंगमहापुराण के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने देव शिल्पी विश्वकर्मा को सभी देवताओं के लिए अलग-अलग शिवलिंग का निर्माण करने को कहा था। भगवान ब्रह्मा के कहने पर भगवान विश्वकर्मा ने अलग-अलग शिवलिंग बना कर देवताओं को प्रदान किए।
1. भगवान विष्णु के लिए नीलकान्तमणि का शिवलिंग बनाया गया।
2. भगवान कुबेर के पुत्र विश्रवा के लिए सोने का शिवलिंग बनाया गया।
3. इन्द्रलोक के सभी देवतोओं के लिए चांदी के शिवलिंग बनाए गए।
4. वसुओं को चंद्रकान्तमणि से बने शिवलिंग प्रदान किए।
5. वायु देव को पीलत से बने और भगवान वरुण को स्फटिक से बने शिवलिंग दिए गए।
6. आदित्यों को तांबे और अश्विनीकुमारों को मिट्टी से निर्मित शिवलिंग प्रदान किए गए।
7. दैत्यों और राक्षसों को लोहे से बने शिवलिंग दिए गए।
8. सभी देवियों को बालू से बने शिवलिंग दिए गए।
9. देवी लक्ष्मी ने लक्ष्मीवृक्ष (बेल) से बने शिवलिंग की पूजा की।
10. देवी सरस्वती को रत्नों से बने और रुद्रों को जल से बने शिवलिंग दिए गए।

देवों के देव महादेव को उनके भक्त कई नामों से जानते है भगवान् शंकर भोले है अपने भक्तों की सभी मनोकामना जल्द ही पूरी करते है किन्तु यदि गुस्सा आ जाता है तो विनाश करने से भी नहीं चूकते. संसार में इनके दो रूप है एक साक्षात् मानव रूप और दूसरा लिंग रूप, अधिकतर मंदिरों में इनका लिंग रूप ही देखने को मिलता है और लोग इसी शिवलिंग की पूजा करते है लेकिन क्या आप जानते है की इनकी पूजा शिवलिंग के रूप में क्यों की जाती है? एक बार ब्रम्हा जी और विष्णु जी के बीच, दोनों में कौन श्रेष्ठ है इस बात को लेकर विवाद हो गया और विवाद इतना अधिक बढ़ गया की दोनों एक दुसरे का अपमान करने लगे किन्तु जब यह विवाद अपने चरम पर पहुँच गया तब इन दोनों के बीच में एक अग्नि स्तम्भ प्रकट हो गया. दोनों इस अग्नि स्तम्भ को देखकर चकित हो गए और इसे समझ नहीं पाए. फिर दोनों ने इस स्तंभ के विषय में जानने के लिए इसके छोर का पता लगाने का प्रयास किया एक छोर पर ब्रम्हा जी और दुसरे छोर पर विष्णु जी गए किन्तु दोनों की असफल होकर वापस लौट आये.
तब उन दोनों ने गौर किया की उस अग्नि स्तंभ से ॐ की ध्वनि सुनाई दे रही है और फिर दोनों समझ गए की ये साक्षात शक्ति रूप है तथा दोनों में उस अग्नि स्तंभ की आराधना करने लगे जिससे प्रसन्न होकर भगवान् शंकर प्रकट हुए और उन्हें सद्बुद्धि का वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए.लिंग पुराण के अनुसार पहला लिंग इसे ही माना जाता है.

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