अलौकिक संत शोभन सरकार दुनिया भर में कौतुहल का विषय हैं

भक्त उन्हें सम्मान से सरकार कहते हैं। इसलिए इन संत का नाम शोभन सरकार पड़ गया। शोभन सरकार दुनिया भर में कौतुहल का विषय हैं। शोभन एक गांव का नाम है जिसके पास संत का आश्रम है। भक्त उन्हें सम्मान से सरकार कहते हैं। सवाल है फिर शोभन सरकार का असली नाम क्या है। परमहंस स्वामी विरक्तानंद जी महाराज। ये भी कम दिलचस्प नहीं है कि संत के जितने नाम बताए जाते हैं उससे कहीं ज्यादा उनके बारे में कहानियां हैं। संत शोभन स्वामी रघुनंदन दास जी महराज के शिष्य हैं। रघुनंदन दास जी ने ही 90 साल पहले कानपुर के पास शिवली के आश्रम की नींव रखी थी। शिवली के सामने ही जुगराजपुर के शोभन गांव में बाबा रघुनंदन स्वरूप की कुटिया थी, जिसमें हनुमान जी की मूर्ति थी। कहा जाता है कि इसी कुटिया में जब बाबा रघुनंदन स्वरूप ने अपना शरीर छोड़ा तब वो ये भविष्यवाणी कर गए थे कि एक दिन कोई आएगा जो उनका ही रुप होगा। शिवली में आने के बाद शोभन सरकार ने बाबा रघुनंदन दास की कुटिया में आराधना शुरू कर दी। वहां भव्य मंदिर बनावाया और बाबा रघुनंदन दास की प्रतिमा स्थापित की। कानपुर के शिवली, उन्नाव के बक्सर में उन्होंने आश्रम बना रखे हैं। आज संत शोभन जो कुछ भी करते हैं वो गुरुदेव के नाम पर ही करते हैं।

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डौंडियाखेड़ा में जैसे-जैसे ‘महाखजाने’ की खोज  वाले मामले में  संत शोभन सरकार ने  नरेंद्र मोदी पर करारा हमला बोला था।  उन्होंने नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर बिना तथ्यों के बयान देने का आरोप लगाया है। साथ ही उन्होंने मोदी को इस मुद्दे पर शास्त्रार्थ की चुनौती दी थी। मामले की  गंभीरता देख  नरेंद्र मोदी तुरंत बैकफुट पर आये। उन्होंने ट्वीट करके यह कहा कि संत शोभन सरकार के प्रति अनेक वर्षों से लाखों लोगों की श्रद्धा जुड़ी हुई है, मैं उनकी तपस्या और त्याग को प्रणाम करता हूं। इससे पूर्व चेन्नै मे एक कार्यक्रम में मोदी ने कहा था कि सपने के आधार पर खजाने की खुदाई से दुनिया में भारत का नाम खराब हो रहा है। इससे लोग भारत का मजाक उड़ा रहे हैं।  तब शोबन सरकार गंभीर हो  गये थे

जिन लोगों ने संत शोभन को देखा है उनके मुताबिक वो छह फुट लंबे कद के हैं, वो 70 साल के हैं। उनके तन पर गले से लेकर पैर तक गेरुए रंग की एक धोती होती है। उनकी लंबी काली जटाएं हैं, काली दाढ़ी है, जमीन को ही वो बिछौना मानते हैं, देहाती भाषा बोलते हैं, किसी को छूते नहीं, भक्त भी दूर से उन्हें नमन करते हैं। वो एक मोबाइल भी रखते हैं। अचानक किसी भी रूप में कही भी कभी भी प्रकट हो सकते हैं संत,

खास बात ये है कि वो अपने आश्रमों में जाने के लिए स्टीमर का इस्तेमाल करते हैं जिसे एक बड़ी नाव में इंजन लगा कर बनाया गया है। अपने भक्त की एक जीप से वो सड़क के रास्ते आते-जाते हैं। वो अन्न और नमक नहीं खाते, सिर्फ फल ही आहार के तौर पर लेते हैं।  दाढ़ी और कमर तक लंबी काली सफेद जटाएं भी कटवा डाली। यही नहीं कोई उनकी तस्वीर न खींच ले इसीलिए उन्होंने खजाने के खोज वाले दिन सफेद धोतियों के परदे के आड़ में डौडिया खेड़ा के किले में पूजा और हवन किया था।

यूपी के उन्नाव जिले का छोटा सा गांव डौडिया खेड़ा नेशनल-इंटरनेशनल मीडिया में छा गया था । इस गुमनाम गांव को नामचीन बनाने का श्रेय किसी शख्स को जाता है तो वो हैं शोभन सरकार। लेकिन ये सवाल अभी भी कायम है कि कौन हैं शोभन सरकार। कानपुर के मैथा ब्लॉक के शकुलनपुरवा में शोभन सरकार का जन्म हुआ। वह मंधना के बीपीएमजी इंटर कालेज में पढ़ते थे। मंधना के लोग बताते हैं स्कूल में वह खाली समय में पेड़ के नीचे बैठकर गीता या रामचरित मानस पढ़ते थे। हाईस्कूल के लगभग दस साल बाद बाबा ने घर छोड़ दिया। किशोरावस्था [15 वर्ष] में गुरु स्वामी सत्संगानंद जी की शरण में आ गए आश्रम से जुड़े लोग बताते हैं कि स्वामी सत्संगानंद जी बड़े स्वामी के नाम से भी जाने जाते थे। शोभन सरकार ने आठ वर्ष लगातार उनके सानिध्य में तप किया बड़े स्वामी सहिमलपुर गांव ब्लॉक अमौली बिन्दकी फतेहपुर से 70 वर्ष पूर्व दूधी कगार जंगल में आए। वृक्ष के नीचे तपस्या की। बाद में छोटी कुटी बनाई। मवईया बिन्दकी के स्वामी परमानंद की बड़े स्वामी से निकटता थी। शोभन सरकार उन्हें भी गुरु का दर्जा देते थे। शोभन सरकार ने कानपुर के चौबेपुर के सुनौढम, सिंहपुर, मैथा, सरसौल के आगे दूधी घाट में मंदिरों का विकास कराया। बीच में विवाद होने पर उन्होंने मंदिर का सर्वराकार नियुक्त कर आश्रम की रजिस्ट्री तक कर दी। उन्नाव के बक्सर, फतेहपुर के दूधी कगार में भीं आश्रम बनाया। यूपी के उन्नाव जिले की बीघापुर तहसील मेंगंगा के किनारे स्थित बक्सर से दो किमी पहले डौडियाखेड़ा गांव पड़ता है। लखनऊ से इसकी दूरी 50 किमी व कानपुर से करीब 80 किमी है।

ये उस आध्यात्मिक शख्सियत की कथा है जिसके कहने पर भारत सरकार ने उन्नाव के गुमनाम से गांव डौडिया खेड़ा में 1857 के बागी राजा राव रामबख्श सिंह के किले में खुदाई कराने का फैसला किया है। देश ने उनका चेहरा नहीं देखा है और न ही प्रधानमंत्री ने देखा। सरकार को लिखी जिसकी चिट्ठी की वजह से ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने पहले इस किले की जमीन की वैज्ञानिक जांच की। फिर पुरातत्व विभाग दल-बल के साथ खुदाई करने में जुट गया। शोभन सरकार प्रचार में यकी नहीं करते। वो टेलीविजन पर प्रवचन नहीं देते। तस्वीर भी नहीं खिचंवाते ताकि लोग उनकी पूजा न करने लगे। उनके नाम के साथ जुड़ा सरकार भी नाम न हो कर भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक है। दिलचस्प है कि उनके गुरु को भी सम्मान से सरकार पुकारा जाता था। संत शोभन सरकार को अपने गुरु की तस्वीर से उन्हें कोई परहेज नहीं है। भक्तों की मानें तो शोभन सरकार चाहते हैं कि लोग उनके गुरु को ही भगवान की तरह मानें।

शोभन सरकार प्रचार में यकीन नहीं करते। दिलचस्प बात यह है कि उनके गुरु को भी सम्मान से सरकार पुकारा जाता था। संत शोभन सरकार को अपने गुरु की तस्वीर से कोई परहेज नहीं है। भक्तों की मानें तो शोभन सरकार चाहते हैं कि लोग उनके गुरु को ही भगवान की तरह माना जाए।

संत शोभन स्वामी रघुनंदन दास जी महराज के शिष्य हैं। रघुनंदन दास जी ने ही 90 साल पहले कानपुर के पास शिवली के आश्रम की नींव रखी थी। शिवली के सामने ही जुगराजपुर के शोभन गांव में बाबा रघुनंदन स्वरूप की कुटिया थी, जिसमें हनुमान जी की मूर्ति थी। माना जाता है कि इसी कुटिया में जब बाबा रघुनंदन स्वरूप ने अपना शरीर छोड़ा तब वो ये भविष्यवाणी कर गए थे कि एक दिन कोई आएगा जो उनका ही रुप होगा।

शिवली में आने के बाद शोभन सरकार ने बाबा रघुनंदन दास की कुटिया में आराधना शुरू कर दी। वहां भव्य मंदिर बनावाया और बाबा रघुनंदन दास की प्रतिमा स्थापित की। कानपुर के शिवली, उन्नाव के बक्सर में उन्होंने आश्रम बना रखे हैं। आज संत शोभन जो कुछ भी करते हैं वो गुरुदेव के नाम पर ही करते हैं।

बाबा के अनुयायी बताते हैं कि संत शोभन का जन्म शिवली के पास बाघपुर गांव के नजदीक शुक्लनलपुरवा में हुआ था। उनके पिता अभी जीवित हैं। कुछ भक्तों ने उन्हें देखा भी है, कितने भाई बहन हैं और मां के बारे में कोई नहीं जानता।

10 साल की उम्र में छोड़ दिया घर

बाबा के भक्तों की मानें तो महज 10 साल की उम्र में ही सरकार ने अपना घर छोड़ दिया था। वो उन्नाव के पास बक्सर इलाके में स्वामी सत्संगानंद जी के पास चले आए। ये इलाका डौडियाखेड़ा से महज 15 किलोमीटर दूर है। यहां स्वामी सत्संगानंद के बहुत से शिष्य शिक्षा दीक्षा लेते थे। स्वामी संत्संगानंद दीक्षा देने के बाद अपने सभी शिष्यों का मुंडन कराते थे, लेकिन उन्होंने संत शोभन का मुंडन नहीं कराया।

कैसे दिखते हैं शोभन सरकार

जिन्होंने भी संत शोभन को देखा है उनके मुताबिक वो छह फुट लंबे कद के हैं, वो 70 साल के हैं। उनके तन पर गले से लेकर पैर तक गेरुए रंग की एक धोती होती है। उनकी लंबी काली जटाएं हैं, काली दाढ़ी है, जमीन को ही वो बिछौना मानते हैं, देहाती भाषा बोलते हैं, किसी को छूते नहीं, भक्त भी दूर से उन्हें नमन करते हैं। वो एक मोबाइल भी रखते हैं।

खास बात ये है कि वो अपने आश्रमों में जाने के लिए स्टीमर का इस्तेमाल करते हैं जिसे एक बड़ी नाव में इंजन लगा कर बनाया गया है। अपने भक्त की एक जीप से वो सड़क के रास्ते आते-जाते हैं। वो अन्न और नमक नहीं खाते, सिर्फ फल ही आहार के तौर पर लेते हैं।

कहते हैं कि खजाने की खोज जब मीडिया की सुर्खियां बन गई तब संत शोभन ने अपना मुंडन करा लिया। दाढ़ी और कमर तक लंबी काली सफेद जटाएं भी कटवा डाली। यही नहीं कोई उनकी तस्वीर न खींच ले इसीलिए उन्होंने खजाने के खोज वाले दिन सफेद धोतियों के परदे के आड़ में डौडिया खेड़ा के किले में पूजा और हवन किया था।

2004 में संत शोभन सरकार तब पहली बार चर्चा में आए थे। जब उन्नाव और कानपुर के बीच गंगा नदी पर पुल बनाने के मसले पर वो तत्कालीन मुलायम सरकार के सामने खड़े हो गए थे। इलाके के लोग बहुत दिन से इस पुल की मांग कर रहे थे,लेकिन पुल का निर्माण तब तक शुरू नहीं हुआ जब तक की शोभन सरकार इस मामले में नहीं कूदे थे।

दरअसल,इलाके के लोग परेशान थे और सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी थी। इस मौके पर संत शोभन सरकार ने ऐलान किया कि वो खुद उन्नाव और कानपुर के बीच पुल का निर्माण करवाएंगे। शोभन सरकार ने इसके लिए बालू,ईंट और गारे का भी इंतजाम किया गया है। इस पर तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने शोभन सरकार से गुजारिश की पुल का निर्माण राज्य सरकार को ही करने दिया जाए। राज्य सरकार की बात मान कर शोभन सरकार ने खरीदे गई ईंट-गारे से आश्रम और मंदिर का निर्माण कराया।

जिस तरह से उन्नाव के डौंडिया खेड़ा में सोने की खोज में खुदाई करवाई जा रही है, वैसे ही वर्ष 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जयपुर राजघराने से जुड़े जयगढ़ के किले में खजाने की खोज में सेना तक भेज दी थी। इसमें सबसे मजेदार बात यह रही थी कि जब खजाने की भनक पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फीकारअली भुट्टो के कानों में पहुंची तो उन्होंने भी इस पर मालीकाना हक जमा दिया। उनका तर्क था कि देश के विभाजन के समय यह खजाना सामने नहीं आया था, लिहाजा इसमें पाक को भी हिस्सा दिया जाए।

कानपुर, फतेहपुर और उन्नाव में शोभन सरकार के बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं, लेकिन इलाके में किए गए काम की सिर्फ एक ही कहानी सुनाई जाती है। इन इलाके में ज्यादातर लोग मानते हैं कि शोभन सरकार ने न सिर्फ इलाके का विकास किया है बल्कि लोगों में खेती, जल संरक्षण और उसके मैनेजमेंट को लेकर चेतना भी पैदा की है। लोगों की मदद से बनाए गए तालाब, पगड़ंडियों और सड़कों ने संत के शिवली आश्रम और बक्सर आश्रम के आसपास के इलाके की तस्वीर ही बदल दी है।

संत शोभन सरकार कहीं भी नजर नहीं आ रहे हैं, लेकिन हकीकत ये है कि खुदाई स्थल पर मौजूद हुए बिना भी संत शोभन सरकार की छाया हर जगह मौजूद नजर आती है। हर चर्चा में संत सोभन सरकार की ही बात है। कानपुर देहात इलाके में भी वो मौजूद नजर आते हैं। एक वक्त इस इलाके में हर गाड़ी के शीशे के पीछे शोभन सरकार लिखा नजर आता था। कानपुर और आसपास के इलाके में उनका अच्छा खासा प्रभाव नजर आता है।

उन्नाव में डौडिया खेड़ा के पास और कानपुर देहात में शिवली इलाके में संत शोभन सरकार का कई एकड़ में फैला हुआ आश्रम है। ये आश्रम साफ-सफाई, बेहतर जल प्रबंधन और इलाके के विकास में योगदान देने के लिए स्थानीय लोगों की चर्चा का केंद्र रहे हैं। कहते हैं कानपुर, उन्नाव और फतेहपुर में शोभन सरकार ने कई तालाब और सड़कें बनवाई हैं। शोभन सरकार ने ये सब उस पैसे से किया जो भक्त उन्हें देते हैं। शोभन आश्रम के पास उन्होंने करीब 100 बीघे जमीन पर एक झील बनवाई है। स्थानीय पांडु नदी से पंप कैनाल के जरिए नालिकाएं तैयार कराई है जिससे पानी लेकर कई गांव के किसान अपनी बंजर जमीन की सिंचाई करते हैं।

2004 में संत शोभन सरकार तब पहली बार चर्चा में आए थे जब उन्नाव और कानपुर के बीच गंगा नदी पर पुल बनाने के मसले पर वो तत्कालीन मुलायम सरकार के सामने खड़े हो गए थे। इलाके के लोग बहुत दिन से इस पुल की मांग कर रहे थे, लेकिन पुल का निर्माण तब तक शुरू नहीं हुआ जब तक की शोभन सरकार इस मामले में नहीं कूदे थे।

दरअसल, इलाके के लोग परेशान थे और सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी थी। इस मौके पर संत शोभन सरकार ने ऐलान किया कि वो खुद उन्नाव और कानपुर के बीच पुल का निर्माण करवाएंगे। शोभन सरकार ने इसके लिए बालू, ईंट और गारे का भी प्रबंध कर लिया था। इस पर तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने शोभन सरकार से गुजारिश की पुल का निर्माण राज्य सरकार को ही करने दिया जाए। राज्य सरकार की बात मान कर शोभन सरकार ने खरीदे गई ईंट-गारे से आश्रम और मंदिर का निर्माण कराया।

कहा जाता है कि खुद संत शोभन सरकार के पास अपना कोई बैंक खाता नहीं है। उनके नाम कोई जमीन-जायदाद भी नहीं है, लेकिन कुशल प्रबंधन और भक्तों की मदद की बदौलत उन्होंने इलाके के कई गांवों की तस्वीर बदलने में अहम किरदार निभाया है। संत शोभन के बारे में ऐसी ही चर्चाएं केंद्रीय मंत्री चरण दास महंत को भी उनतक खींच ले गई थी। केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री महंत चरण दास ने कहा है कि मैंने सुना था उनके बारे में उनके काम के बारे में तो उनसे मिलने गया। उन्होंने कहा कि मेरे पास एक प्लान है।

केंद्रीय मंत्री और संत शोभन की मुलाकात के बाद डौडिया खेड़ा में दबा खजाना होने की बात जंगल में आग की तरह फैली। आनन-फानन में ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने भूगर्भीय सर्वे किया। पुरातत्व विभाग ने खुदाई भी शुरू कर दी। कानपुर और आसपास कहा जाता है कि संत शोभन सरकार की भविष्यवाणी गलत नहीं होती है। कहते हैं उन्होंने अखिलेश यादव के सीएम बनने की भविष्यवाणी भी की थी।

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