केदारनाथ, बदरीनाथ कपाट खोलने की तिथि?

उत्‍तराखण्‍ड में धार्मिक परम्‍पराओं/पूजा पाठ बदल देते हैं वीआईपी के मनमाफिक   #श्रीबदरीनाथ मंदिर के कपाट 6 मई तथा श्रीकेदारनाथ जी के कपाट 3 मई को खोले जा रहे हैं, जबकि 28 अप्रैल को उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल बद्रीनाथ के कपाट इसी तिथि को खोले जाने का मुहूर्त है। चारो धाम की यात्रा भी इसी तिथि से शुरू हो तो अति उत्‍तम है। 28 अप्रैल को  4 धामों के कपाट खुलते तो बहुत ही शुभ दिन में खुलते- अब देखना है कि समय के गर्भ में क्‍या छिपा है-  2017 में ग्रहों का दुर्लभ संयोग, सभी ग्रह बदलेंगे राशि; मई 2017 के मध्य अधिक श्रम व चिन्ताओं के कारण मोदी का स्वास्थ्य खराब होने के आसार नजर आ रहे है।

उत्‍तराखण्‍ड मे भगवान के दर्शन सबसे पहले वीवीआईपी करेगे, इसके लिए शायद मंदिर के कपाट वीआईपी के कार्यक्रम के अनुकूल ही तय न कर दिये हो, ऐसी भी चर्चा है, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी छह मई को सुबह 7:25 बजे सुबह बदरीनाथ धाम के दर्शन के लिए रवाना होंगे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी छह मई को बदरीनाथ मंदिर में करीब एक घंटे तक दर्शन और पूजा-अर्चना करेंगे।
वही प्रधानमंत्री मोदी तीन मई को सुबह 8:50 बजे वे केदारनाथ धाम में दर्शन व पूजन करेंगे। उनका बदरीनाथ का प्रोग्राम नही है, चर्चा है कि बदरीनाथ मंदिर में पिछली बार भी तय कार्यक्रम के बाद भी नही आये थे, शिवभक्‍त मोदी केवल भोलेनाथ के दर्शन करेगे-

The kapat of Shri Badrinath Temple will open on 6th May 2017 & Shri Kedarnath Temple will open on 3rd May 2017: मंदिर कमेटी द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार –

पुराणों अनुसार कलियुग के पांच हजार वर्ष बीत जाने के बाद पृथ्‍वी पर पाप का साम्राज्य होगा। कलियुग अपने चरम पर होगा तब लोगों की आस्था लोभ, लालच और काम पर आधारित होगी। सच्चे भक्तों की कमी हो जाएगी। ढोंगी ढोंगी और पाखंडी भक्तों और साधुओं का बोलबाला होगा। ढोंगी संतजन धर्म की गलत व्याख्‍या कर समाज को दिशाहीन कर देंगे, तब इसका दुष्‍परिणाम लम्‍बा  होगा 

28 अप्रैल को बहुत ही शुभ और पवित्र दिन था परन्‍तु राजनीतिक कारणों से इस तिथि को महत्‍व नही दिया गया- श्रीबदरीनाथ श्रीकेदारनाथ मंदिर समिति व्‍यावसायिक लाभ तक सीमित रह गयी है, ज्ञात हो कि श्रीकेदारनाथ में जब जलजला आया था, हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल ने एक माह पूर्व स्‍पष्‍ट रूप से घोषित किया था कि मंदिर के कपाट शुभ मुहूर्त में नही खोले जा रहे हैं, कुछ भी अपशकुन हो सकता है, परन्‍तु इसको अनदेखा कर दिया गया था- उस समय हिमालयायूके के लिए यह भविष्‍यवाणी परम पूज्‍यपाद स्‍व0 श्री लक्ष्‍मी नारायण जी महाराज जी- पशुपतिनाथ मंदिर ने की थी- और यह सत्‍य साबित हुई थी, ठीक 30वे दिन जलजला आ गया था-  

28 अप्रैल को उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल बद्रीनाथ के कपाट भी इसी तिथि को खोले जाते है। चारो धाम की यात्रा भी इसी तिथि से शुरू हो रही है। इसी दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं इसी कारण इस दिन श्री बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु वैशाख मास की अक्षय तृतीया को अवतरित हुये थे। भगवान विष्णु को गरीबों की सहायता करना एंव सहयोग करना बेहद प्रिय है। बद्रीनाथ को सृष्टि का आठवां वैकुंठ कहा गया है, जहां भगवान विष्णु 6 माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं। बद्रीनाथ की कथा अनुसार सतयुग में देवताओं, ऋषि-मुनियों एवं साधारण मनुष्यों को भी भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन प्राप्त होते थे। इसके बाद आया त्रेतायुग- इस युग में भगवान सिर्फ देवताओं और ऋषियों को ही दर्शन देते थे, लेकिन द्वापर में भगवान विलीन ही हो गए। इनके स्थान पर एक विग्रह प्रकट हुआ। ऋषि-मुनियों और मनुष्यों को साधारण विग्रह से संतुष्ट होना पड़ा। शास्त्रों अनुसार सतयुग से लेकर द्वापर तक पाप का स्तर बढ़ता गया और भगवान के दर्शन दुर्लभ हो गए। द्वापर के बाद आया कलियुग, जो वर्तमान का युग है।

बदरीनाथ मंदिर , जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं, अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम में से एक धाम भी है। ऋषिकेश से यह २९४ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है। बदरीनाथ उत्तर दिशा में हिमालय की उपत्यका में अवस्थित हिन्दुओं का मुख्य यात्राधाम माना जाता है। मन्दिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ-स्थल है। प्रत्येक हिन्दू की यह कामना होती है कि वह बदरीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य ही करे। यहाँ पर शीत के कारण अलकनन्दा में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है। अलकनन्दा के तो दर्शन ही किये जाते हैं। यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। यहाँ वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बदरीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है। बदरीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बदरीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है। पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे। उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से सर्वविदित है। जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा। एक विचित्र सी बात है।.. जब भी आप बदरीनाथ जी के दर्शन करें तो उस पर्वत (नारायण पर्वत) की चोटी की और देखेंगे तो पाएंगे की मंदिर के ऊपर पर्वत की चोटी शेषनाग के रूप में अवस्थित है। शेष नाग के प्राकृतिक फन स्पष्ट देखे जा सकते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन ही पीतांबरा, नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम के अवतार हुए हैं, इसीलिए इस दिन इनकी जयंती मनाई जाती है. मान्यताओं के अनुसार भारतीय काल गणना के सि‍द्धांत से अक्षय तृतीया के दिन त्रेता युग की शुरुआत हुई; इसी तिथि को बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजन होता है, लक्ष्मी-नारायण के दर्शन किए जाते हैं। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही धरा पर आए। तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के पट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं। अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है।
अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं। इसी दिन से सारे शुभ काम शुरू होते हैं अक्षय तृतीया 28 अप्रैल 2017 को सुबह 10.30 बजे से शुरू हो होगी जो 29 अप्रैल 2017 को सुबह 6.55 बजे तक ही रहेगी। पूजा का शुभ मुहूर्त 28 तारीख को सुबह 10:29 बजे से दोपहर के 12:17 बजे तक का है
भविष्य पुराण में लिखा है कि इस दिन से ही सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। माना जाता है कि ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव इसी दिन हुआ था।
पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे।

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