कृष्ण जन्मोत्सव त्यौहार 24/25 अगस्त 2016 को

shree krishnaश्री कृष्ण जन्माष्टमी ” होता हैं जीवन सार्थक करने का पावन पर्व …
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जन्माष्टमी का महत्व———व्रत-पूजन कैसे करें ???-
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात के बारह बजे मथुरा के राजा कंस की जेल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से सोलह कलाओं से युक्त भगवान श्री कृष्ण का जनम हुआ। इस दिन को रोहिणी नक्षत्र का दिन भी कहते हैं। इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है। कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झांकियां सजाई जाती हैं।भगवान कृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजाया जाता है। पुरुष और औरतें रात्रि १२ बजे तक व्रत रखतें हैं। रात को १२ बजे शंख और घंटों की आवाज से श्री कृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूँज उठती है। भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है। प्रसाद ग्रहण कर व्रत को खोला जाता है।

देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। भादव श्रीकृष्णाष्टमी को जन्माष्टमी कहते हैं। इस दिन की रत को यदि रोहिणी नक्षत्र हो तो कृष्ण जयंती होती है। रोहिणी नक्षत्र के आभाव में केवल जन्माष्टमी व्रत का ही योग होता है। इस दिन सभी स्त्री-पुरुष नदी में तिल मिलाकर नहाते हैं। पंचामृत से भगवान कृष्ण की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है। उन्हें सुन्दर वस्त्रों व आभूषणों से सजाकर सुन्दर झूले में विराजमान किया जाता है। धूप-दीप पुष्पादि से पूजन करते हैं। आरती उतारते हैं और माखन-मिश्री आदि का भोग लगाते हैं। हरी का गुणगान करते हैं। १२ बजे रात को खीरा चीरकर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म करते हैं। इस दिन गौ दान का विशेष महत्त्व होता है। इस अकेले व्रत से करोड़ों एकादशी व्रतों का पुण्यफल प्राप्त होता है।

जन्माष्टमी अर्थात कृष्ण जन्मोत्सव इस वर्ष जन्माष्टमी का त्यौहार 24/25 अगस्त 2016 को मनाया जाएगा|| जन्माष्टमी जिसके आगमन से पहले ही उसकी तैयारियां जोर शोर से आरंभ हो जाती है पूरे भारत वर्ष में इस त्यौहार का उत्साह देखने योग्य होता है. चारों का वातावरण भगवान श्री कृष्ण के रंग में डूबा हुआ होता है. जन्माष्टमी पूर्ण आस्था एवं श्रद्ध के साथ मनाया जाता है||

पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने हेतु कृष्ण रुप में अवतार लिया, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप में हुआ था. जन्माष्टमी को स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के लोग अपने अनुसार अलग-अलग ढंग से मनाते हैं|| श्रीमद्भागवत को प्रमाण मानकर स्मार्त संप्रदाय के मानने वाले चंद्रोदय व्यापनी अष्टमी अर्थात रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाते हैं तथा वैष्णव मानने वाले उदयकाल व्यापनी अष्टमी एवं उदयकाल रोहिणी नक्षत्र को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाते हैं||

भूलोक पर जब भी असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है तब-तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि केअवजित मुहूर्त में अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया
। एक ऐसा अवतार जिसके दर्शन मात्र से प्राणियो के, घट घट के संताप, दुःख, पाप मिट जाते है | जिन्होंने इस श्रृष्टि को गीता का उपदेश दे कर उसका कल्याण किया, जिसने अर्जुन को कर्म का सिद्धांत पढाया, यह उनका जन्मोत्सव है |

हमारे वेदों में चार रात्रियों का विशेष महातव्य बताया गया है दीपावली जिसे कालरात्रि कहते है,शिवरात्रि महारात्रि है,श्री कृष्ण जन्माष्टमी मोहरात्रि और होली अहोरात्रि है| जिनके जन्म के सैंयोग मात्र से बंदी गृह के सभी बंधन स्वत: ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए, माँ यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठी, उस भगवान श्री कृष्ण को सम्पूर्ण श्रृष्टि को मोह लेने वाला अवतार माना गया है | इसी कारण वश जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। | इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत “व्रतराज” कहा गया है। इसके सविधि पालन से प्राणी अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य राशि प्राप्त कर सकते है |

योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। ब्रजमंडल में श्री कृष्णाष्टमी “नंद-महोत्सव” अर्थात् “दधिकांदौ श्रीकृष्ण” के जन्म उत्सव का दृश्य बड़ा ही दुर्लभ होता है | भगवान के श्रीविग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढा ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं तथा छप्पन भोग का महाभोग लगते है। वाद्ययंत्रों से मंगल ध्वनि बजाई जाती है। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है। सम्पूर्ण ब्रजमंडल “नन्द के आनंद भयो – जय कन्हैय्या लाल की” जैसे जयघोषो व बधाइयो से गुंजायमान होता है|

हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण ! हरे हरे ! हरे राम ! हरे राम ! राम ! राम ! हरे हरे !
हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण ! हरे हरे ! हरे राम ! हरे राम ! राम ! राम ! हरे हरे !

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जानिए कृष्ण जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त—

भगवान श्रीकृष्ण का ५२४३वाँ जन्मोत्सव
निशिता पूजा का समय = २४:०६+ से २४:५१+
अवधि = ० घण्टे ४५ मिनट्स
मध्यरात्रि का क्षण = २४:२८+
२६th को, पारण का समय = १०:५२ के बाद
पारण के दिन अष्टमी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी
पारण के दिन रोहिणी नक्षत्र का समाप्ति समय = १०:५२
दही हाण्डी – २६th, अगस्त को
अष्टमी तिथि प्रारम्भ = २४/अगस्त/२०१६ को २२:१७ बजे
अष्टमी तिथि समाप्त = २५/अगस्त/२०१६ को २०:०७ बजे
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जन्माष्टमी 2016
25 अगस्त
निशिथ पूजा– 00:00 से 00:45 (25 अगस्त)
पारण– 10:35 (26 अगस्त) के बाद
रोहिणी समाप्त- 10:35 (26 अगस्त)
अष्टमी तिथि आरंभ – 22:17 (24 अगस्त)
अष्टमी तिथि समाप्त – 20:07 (25 अगस्त)

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जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है । उसमें भी जन्माष्टमी की पुरी रात, जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्व है ।
? पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार भविष्य पुराण में लिखा है कि जन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु नहीं होने देता है । जो जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, उनके धर में गर्भपात नहीं होता ।
? एकादशी का व्रत हजारों – लाखों पाप नष्ट करनेवाला अदभुत ईश्वरीय वरदान है लेकिन एक जन्माष्टमी का व्रत हजार एकादशी व्रत रखने के पुण्य की बराबरी का है ।
? एकादशी के दिन जो संयम होता है उससे ज्यादा संयम जन्माष्टमी को होना चाहिए ।
बाजारु वस्तु तो वैसे भी साधक के लिए विष है लेकिन जन्माष्टमी के दिन तो चटोरापन, चाय, नाश्ता या इधर – उधर का कचरा अपने मुख में न डालें ।
? इस दिन तो उपवास का आत्मिक अमृत पान करें ।अन्न, जल, तो रोज खाते – पीते रहते हैं, अब परमात्मा का रस ही पियें । अपने अहं को समाप्त कर दें।
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जन्माष्टमी : पूजन सामग्री–
भगवान कृष्ण= के जन्माष्टमी पर पूजन सामग्री का भी काफी महत्व होता है। आपके लिए पेश हैं पूजन सामग्री की सूची :-

पूजन सामग्री : श्रीकृष्ण का पाना (अथवा मूर्ति), गणेशजी की मूर्ति, अम्बिका की मूर्ति, सिंहासन (चौकी, आसन), पंच पल्लव, (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते), पंचामृत, तुलसी दल, केले के पत्ते, (यदि उपलब्ध हों तो खंभे सहित), औषधि, (जटामॉसी, शिलाजीत आदि) दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, बन्दनवार, अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र।

सुगंधित एवं अन्य सामग्री : इत्र की शीशी, धूप बत्ती (अगरबत्ती), कपूर, केसर, चंदन, यज्ञोपवीत 5, कुंकु, चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, नाड़ा, रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, मौली, पान के पत्ते, पुष्पमाला, कमलगट्टे-, तुलसीमाला।
धन धान्य : धनिया खड़ा, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, कुशा व दूर्वा, पंच मेवा, गंगाजल, शहद (मधु), शक्कर, घृत (शुद्ध घी), दही, दूध, ऋतुफल, नैवेद्य या मिष्ठान्न, (पेड़ा, मालपुए इत्यादि), इलायची (छोटी), लौंग, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा), श्रीफल (नारियल), धान्य (चावल, गेहूं), पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल), एक नई थैली में हल्दी की गांठ आदि।

वस्त्र : श्रीकृष्ण को अर्पित करने हेतु वस्त्र, गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र, जल कलश (तांबे या मिट्टी का), सफेद कपड़ा (आधा मीटर), लाल कपड़ा (आधा मीटर), पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार)।
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत महात्यम:-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी संपूर्ण भारत में भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान् श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग उपवास रखते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत विधि-विधानानुसार करता है, उसके समस्त पाप मिट जाते हैं व सुख समृद्धि मिलती है। संपूर्ण भारत में भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान् श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग उपवास रखते हैं। आरती के बाद दही, माखन, पंजीरी व अन्य प्रसाद भोग लगाकर बांटे जाते हंै। कुछ लोग रात में ही पारण करते हैं और कुछ दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर स्वयं पारण करते हैं।

शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत विधि-विधानानुसार करता है, उसके समस्त पाप मिट जाते हैं व सुख समृद्धि मिलती है। भविष्य पुराण के जन्माष्टमी व्रत-माहात्म्य में यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराज के अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकर्ता भगवत्कृपा का भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है।

गृहस्थों को पूर्वोक्त द्वादशाक्षर मंत्र से दूसरे दिन प्रात:हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन भी लोगो को संतान न हो, वंश वृद्धि न हो, पितृ दोष से पीड़ित हो, जन्मकुंडली में कई सारे दुर्गुण, दुर्योग हो, शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाले को एक सुयोग्य,संस्कारी,दिव्य संतान की प्राप्ति होती है, कुंडली के सारे दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाते है और उनके पितरो को नारायण स्वयं अपने हाथो से जल दे के मुक्तिधाम प्रदान करते है |

देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। उनकी जवानी रासलीलाओं की कहानी कहती है, एक राजा और मित्र के रूप में वे भगवद् भक्त और गरीबों के दुखहर्ता बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ। महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है। इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं

स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल में सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करें। भविष्य पुराण का वचन है- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि में ही उपवास करना कहा गया है।

जिन परिवारों में कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का व्रत करने के साथ निम्न किसी भी मंत्र का अधिकाधिक जप करें-

“ॐ नमो नारायणाय”
आथवा
” सिद्धार्थ: सिद्ध संकल्प: सिद्धिद सिद्धि: साधन:”
आथवा
“ॐ नमों भगवते वासुदेवाय”
या
“श्री कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।प्रणत: क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नम:”॥
आथवा
“श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवाय” ||

उपर्युक्त मंत्र में से किसी का भी का जाप करते हुए सच्चिदानंदघन श्रीकृष्ण की आराधना करें। इससे परिवार में व कुटुंब में व्याप्त तनाव, समस्त प्रकार की समस्या, विषाद, विवाद और विघटन दूर होगा खुशियां घर में वापस लौट आएंगी। गौतमी तंत्र में यह निर्देश है- प्रकर्तव्योन भोक्तव्यं कदाचन।कृष्ण जन्मदिने यस्तु भुड्क्ते सतुनराधम:। निवसेन्नर केघोरे यावदाभूत सम्प्लवम्॥अर्थात- अमीर-गरीब सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है, वह निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पडता है।

अष्टमी दो प्रकार की है- पहली जन्माष्टमी और दूसरी जयंती। इसमें केवल पहली अष्टमी है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो ‘जयंती’ नाम से संबोधित की जाएगी। वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतः उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए। विष्णुरहस्यादि वचन से- कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास में हो तो वह जयंती नाम वाली ही कही जाएगी। वसिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में उपवास करना चाहिए। मदन रत्न में स्कन्द पुराण का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक में करते हैं। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। भृगु ने कहा है- जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अन्त में पारणा करें। इसमें केवल रोहिणी उपवास भी सिद्ध है।

व्रत-पूजन कैसे करें ???

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना गया है। साधारणतया इस व्रतके विषय में दो मत हैं । स्मार्त लोग अर्धरात्रि स्पर्श होनेपर या रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी में भी उपवास करते हैं , किन्तु वैष्णव लोग सप्तमी का किन्चिन मात्र स्पर्श होनेपर द्वितीय दिवस ही उपवास करते हैं । वैष्णवों में उदयाव्यपिनी अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र को ही मान्यता एवं प्रधानता दी जाती हैं | उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएँ। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। इसके बाद जल, फल, कुश, द्रव्य दक्षिणा और गंध लेकर संकल्प करें-

ॐविष्णुíवष्णुíवष्णु:अद्य शर्वरी नाम संवत्सरे सूर्ये दक्षिणायने वर्षतरै भाद्रपद मासे कृष्णपक्षे श्रीकृष्ण जन्माष्टम्यां तिथौ भौम वासरे अमुकनामाहं(अमुक की जगह अपना नाम बोलें) मम चतुर्वर्ग सिद्धि द्वारा श्रीकृष्ण देवप्रीतये जन्माष्टमी व्रताङ्गत्वेन श्रीकृष्ण देवस्य यथामिलितोपचारै:पूजनं करिष्ये।
यदि उक्त मंत्र का प्रयोग व उच्चारण कठिन प्रतीत हो तो निम्न मंत्र का प्रयोग भी कर सकते है
ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धयेश्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥

स्तुति:-
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम । नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम । सर्वांगे हरिचन्दनम सुरलितम, कंठे च मुक्तावलि । गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी ॥यदि संभव हो तो मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें।
तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मी जी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए। अर्धरात्रि के समय शंख तथा घंटों के निनाद से श्रीकृष्ण जन्मोत्सव सम्पादित करे तदोपरांत श्रीविग्रह का षोडशोपचार विधि से पूजन करे |
निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें-‘प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः। सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तु ते।’

उसके पश्चात सभी परिजनों में प्रसाद वितरण कर सपरिवार अन्न भोजन ग्रहण करे और यदि संभव हो तो रात्रि जागरण करना विशेष लाभ प्रद सिद्ध होता है जो किसी भी जीव की सम्पूर्ण मनोकामना पूर्ति करता है |इसके आलावा कृष्ण जन्म के समय “राम चरित मानस” के “बालकांड” में “रामजन्म प्रसंग” का पाठ आथवा “विष्णु सहस्त्रनाम” , “पुरुष सूक्त” का पाठ भी सर्वस्य सिद्दी व सभी मनोरथ पूर्ण करने वाला है |

आज के दिन “संतान गोपाल मंत्र”, के जाप व “हरिवंश पुराण”, “गीता” के पाठ का भी बड़ा ही महत्व्य है |यह तिथि तंत्र साधको के लिए भी बहु प्रतीक्षित होती है, इस तिथि में “सम्मोहन” के प्रयोग सबसे ज्यादा सिद्ध किये जाते है | यदि कोई सगा सम्बन्धी रूठ जाये, नाराज़ हो जाये, सम्बन्ध विच्छेद हो जाये,घर से भाग जाये, खो जाये तो इस दिन उन्हें वापिस बुलाने का प्रयोग अथवा बिगड़े संबंधो को मधुर करने का प्रयोग भी खूब किया जाता है |

हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण ! हरे हरे ! हरे राम ! हरे राम ! राम ! राम ! हरे हरे !
हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण ! हरे हरे ! हरे राम ! हरे राम ! राम ! राम ! हरे हरे !

|| श्री कृष्ण शरणं मम |||| श्री कृष्ण शरणं मम |||| श्री कृष्ण शरणं मम |||| श्री कृष्ण शरणं मम |||| श्री कृष्ण शरणं मम ||

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पूजन फल–
जो व्यक्ति जन्माष्टमी के व्रत को करता है, वह ऐश्वर्य और मुक्ति को प्राप्त करता है। आयु, कीर्ति, यश, लाभ, पुत्र व पौत्र को प्राप्त कर इसी जन्म में सभी प्रकार के सुखों को भोग कर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है। जो मनुष्य भक्तिभाव से श्रीकृष्ण की कथा को सुनते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। वे उत्तम गति को प्राप्त करते हैं।
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जन्माष्टमी का महत्व———व्रत-पूजन कैसे करें ???-
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात के बारह बजे मथुरा के राजा कंस की जेल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से सोलह कलाओं से युक्त भगवान श्री कृष्ण का जनम हुआ। इस दिन को रोहिणी नक्षत्र का दिन भी कहते हैं। इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है। कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झांकियां सजाई जाती हैं।भगवान कृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजाया जाता है। पुरुष और औरतें रात्रि १२ बजे तक व्रत रखतें हैं। रात को १२ बजे शंख और घंटों की आवाज से श्री कृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूँज उठती है। भगवान श्रीकृष्ण की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है। प्रसाद ग्रहण कर व्रत को खोला जाता है।

कथा :- द्वापर युग में जब पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार बढने लगा तो पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपने उद्दार के लिए ब्रह्मा जी के पास गई। ब्रह्मा जी सब देवताओं को साथ लेकर पृथ्वी को भगवान विष्णु जी के पास क्षीर सागर ले गए। उस समय भगवन विष्णु अन्नत शैया पर सो रहे थे। स्तुति करने पर भगवान् की निद्रा भंग हो गई। भगवान ने ब्रह्मा और सब देवताओं से जब आने का कारण पूछा तो पृथ्वी ने उनसे यह आग्रह किया कि वे उसे पाप के बोझ से बचाएँ। यह सुनकर विष्णु जी बोले- मैं बज्र मंडल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लूँगा। आप सब देवतागण बज्र में जाकर यादव वंश की रचना करो। इतना कहकर भगवन अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद सभी देवताओं ने यादव वंश की रचना की। द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करता था। उसके पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर खुद राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई हे कंस! जिस देवकी को बड़े प्यार से विदा करने जा रहा है उसका आठवां पुत्र तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोधित हो गया और देवकी को मारने के लिए तेयार हो गया। उसने सोचा न देवकी होगी न उसका पुत्र। तब वासुदेव जी ने कंस को समझाया की तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान मैं तुम्हें सौंप दूंगा। वासुदेव कभी झूठ नहीं बोलते थे तो कंस ने वासुदेव की बात स्वीकार कर ली। वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया गया। उसी समय नारद जी वहां पहुंचे और कंस से कहा की ये कैसे पता चलेगा की आठवां गर्भ कौन सा है। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम से। कंस ने नारद के परामर्श पर देवकी के गर्भ से पैदा होने वाले सभी बालकों को मारने का निश्चय कर लिया। इस प्रकार कंस ने देवकी के ७ बालकों की हत्या कर दी।

भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख,चक्र,गदा और पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा कि-अब मंी बालक का रूप धारण करता हूँ तुम मुझे गोकुल के नन्द के यहाँ पहुंचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौंप दो। तत्काल वासुदेव की हथकड़ियाँ खुल गयीं,दरवाजे अपने आप खुल गए,पहरेदार सो गए। वासुदेव श्रीकृष्ण को टोकरी में रखकर गोकुल की और चल दिए। रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणों को स्पर्श करने के लिए बढने लगी। भगवान ने अपने पैर लटका दिए। चरण स्पर्श के बाद यमुना घट गई। वासुदेव यमुना पार करके गोकुल के नन्द के यहाँ गए। बालक कृष्ण को यशोदा की पास सुलाकर कन्या को लेकर वापिस कंस की कारागार में आ गए। जेल के दरवाजे बंद हो गए, वासुदेव के हाथों में फिर से हथकड़ियाँ लग गयी। कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गयी। कंस ने कारागार में जाकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथों से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली, हे कंस! तुझे मारने वाला तो गोकुल में जन्म ले चुका है। यह सुनकर कंस व्याकुल हो गया और उसने कृष्ण को मारने के लिए कई राक्षस भेजे लेकिन श्रीकृष्ण ने अपनी आलौकिक माया से सभी का संघार कर दिया। बड़े होकर श्रीकृष्ण ने कंस को मारकर पुन: उग्रसेन को राजगद्दी पर बिठाया।

श्रीकृष्ण की पुण्य तिथि को तभी से सारे देश में हर्षौल्लास से मनाया जाता है। भादव श्रीकृष्णाष्टमी को जन्माष्टमी कहते हैं। इस दिन की रत को यदि रोहिणी नक्षत्र हो तो कृष्ण जयंती होती है। रोहिणी नक्षत्र के आभाव में केवल जन्माष्टमी व्रत का ही योग होता है। इस दिन सभी स्त्री-पुरुष नदी में तिल मिलाकर नहाते हैं। पंचामृत से भगवान कृष्ण की प्रतिमा को स्नान कराया जाता है। उन्हें सुन्दर वस्त्रों व आभूषणों से सजाकर सुन्दर झूले में विराजमान किया जाता है। धूप-दीप पुष्पादि से पूजन करते हैं। आरती उतारते हैं और माखन-मिश्री आदि का भोग लगाते हैं। हरी का गुणगान करते हैं। १२ बजे रात को खीरा चीरकर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म करते हैं। इस दिन गौ दान का विशेष महत्त्व होता है। इस अकेले व्रत से करोड़ों एकादशी व्रतों का पुण्यफल प्राप्त होता है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भारत में मनाया जाने वाला एक प्रसिद त्यौहार है। यह अगस्त या सितम्बर के महीने में आता है। इस दिन भक्त लोग भजन गाते हैं। दिन भर तरह-तरह के व्यंजन बनाये जाते हैं तथा रात को कृष्ण प्रकट के बाद उन्हें भोग लगाते हैं और फिर इन व्यंजनों को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। यह त्यौहार भारत में ही नहीं विदेशों में बसे भारतीयों द्वारा भी बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से जगमगा उठती है। कान्हा की रासलीलाओं को देखने के लिए भक्त दूर-दूर से मथुरा पहुँचते हैं। मंदिरों को ख़ास तौर पर सजाया जाता है। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झूलाया जाता है। जगह-जगह रासलीलाओं का आयोजन किया जाता है।

विधि:- श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सनातन धर्म के लोगों के लिए अनिवार्य माना जाता है। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है वो निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पड़ता है। भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति का दूध,दही,शहद,यमुनाजल आदि से अभिषेक होता है। उसके उपरांत विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। कुछ लोग रात्रि को १२ बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक स्वरुप खीरा चीरते हैं।

जागरण:-धर्मग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन जागरण का विधान भी बताया गया है। इस रात्री को भगवान के नाम का संकीर्तन या उनके मन्त्र “नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप भी करते हैं। श्रीकृष्ण का जाप करते हुए सारी रात जागने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जन्मोत्सव के पश्चात घी की बत्ती,कपूर आदि से आरती करते हैं। इस दिन वैसे तो पूरा दिन व्रत रखते हैं लेकिन असमर्थ फलाहार कर सकते हैं।

पुराणों में यह कहा जाता है कि जिस राष्ट्र या राज्य में यह व्रतोत्सव किया जाता है वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का तांडव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। सभी को सुख-समृधि प्राप्त होती है। व्रतकर्ता भगवान की कृपा पाकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अंत में वैकुंठ जाता है। व्रत करने वालों के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान,नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत का पालन करना चाहिए।

जय श्री कृष्ण ।
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जन्माष्टमी के विभिन्न रंग रुप—
यह त्यौहार विभिन्न रुपों में मान्या जाता है कहीं रंगों की होली होती है तो कहीं फूलों और इत्र की सुगंन्ध का उत्सव होता तो कहीं दही हांडी फोड़ने का जोश और कहीं इस मौके पर भगवान कृष्ण के जीवन की मोहक छवियां देखने को मिलती हैं मंदिरों को विशेष रुप से सजाया जाता है|| कृष्ण भक्त इस अवसर पर व्रत एवं उपवास का पालन करते हैं इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है तथा कृष्ण रासलीलाओं का आयोजन होता है||

श्री जन्माष्टमी के शुभ अवसर समय भगवान कृष्ण के दर्शनों के लिएए दूर दूर से श्रद्धालु मथुरा पहुंचते हैं. श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर ब्रज कृष्णमय हो जाता है. मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है. मथुरा के सभी मंदिरों को रंग-बिरंगी लाइटों व फूलों से सजाया जाता है|| भगवन श्री कृष्ण की जन्म स्थली मथुरा में जन्माष्टमी पर आयोजित होने वाले श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को देखने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से लाखों की संख्या में कृष्ण भक्त पंहुचते हैं भगवान के विग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर लोग उसका एक दूसरे पर छिडकाव करते हैं. इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है तथा भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन किया जाता है||
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इस जन्माष्टमी पर इन सरल उपायों से करें अपनी समस्या का समाधान —

दारिद्रय निवारण के लिए- ‘
श्री हरये नम:’
मंत्र का यथाशक्ति जप करें तथा श्रीकृष्ण भगवान के विग्रह का पंचोपचार पूजन कर पंचामृत का नेवैद्य लगाएं।

कस्ट नाश व सुख-शांति के लिए-
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’
मंत्र का जप करें। श्रीकृष्ण भगवान के विग्रह का पंचामृत से अभिषेक कर मेवे का नेवैद्य लगाएं। यह मंत्र कल्पतरु है।

विपत्ति-आपत्ति से बचने के लिए-
‘श्रीकृष्ण शरणं मम्’
इस मंत्र का जप करें।

शांति तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए- ‘
ॐ क्लीं हृषिकेशाय नम:’
इस मंत्र का जप करें।

विवाहादि के लिए-
‘श्री गोपीजन वल्लभाय स्वाहा’
मंत्र का जप करें तथा राधाकृष्ण के‍ विग्रह का पूजन करें।

घर में सुख-शांति के लिए-
‘ॐ नमो भगवते रुक्मिणी वल्लभाय स्वाहा’
मंत्र का जप करें तथा कृष्ण-रुक्मणी का चित्र सामने रखें।

संतान प्राप्ति के लिए-

‘ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।’
निम्न मंत्र की 1 माला नित्य करें। निश्चित ही संतान प्राप्ति होती है तथा उच्चारण का विशेष ध्यान रखें।

धन-संपत्ति के लिए-
‘ॐ श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नम:’।
श्री लक्ष्मी-विष्णु की प्रतिमा रखकर पंचोपचार पूजन कर जपें।

शत्रु शांति के लिए –

‘ॐ उग्र वीरं महाविष्णुं ज्वलंतं सर्वतोमुखम्।
नृ‍सिंह भीषणं भद्रं, मृत्युं-मृत्युं नमाम्यहम्।।’

भगवान नृ‍सिंह की सेवा अत्यंत लाभदायक है। निम्न मंत्र की एक माला नित्य करने से शत्रु शांति, टोने-टोटके, भूत-प्रेत आदि से बचाव होता है !

विशेष :=परोल्लिखित मंत्रों में पूजन में तुलसी का प्रयोग अवश्य करें। पूर्वाभिमुख होकर। कुशासन तथा श्वेत वस्त्र का उपयोग करें।
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पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
राष्ट्रीय महासचिव-भगवान परशुराम राष्ट्रीय पंडित परिषद्
मोब. 09669290067 (मध्य प्रदेश)
वॉटसअप नंबर —09039390067….
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