श्री कष्टभंजन धाम; यहां शनि बजरंगबली के चरणों में स्त्री रूप में दर्शन देते हैं; अदभूत

HIGH LIGHT; यहां शनि बजरंग के चरणों में स्त्री रूप में दर्शन देते हैं।  शनि प्रकोपों से परेशान होने पर यहां नारियल चढ़ाने से समस्त चिंताओं से मुक्ति मिलती है।हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल ब्‍यूरो 

हिंदू ध्‍ार्म में हनुमानजी को जीवंत देवता के रूप में पूजा जाता है और माना जाता है कि जो उनकी श्रृद्धाभाव से पूजा करता है, वह उसे अपनी उपस्थिति का एहसास जरूर कराते हैं. इसी तरह हनुमानजी के इन 15 मंदिरों की भी अनूठी मान्‍यता है
कष्‍टभंजन हनुमान यहां महाराजाधिराज के नाम से राज करते हैं वे सोने के सिंहासन पर विराजकर अपने भक्‍तों की हर मुराद पूरी करते हैं. कहते हैं कि बजरंग बली के इस दर पर आकर भक्‍तों का हर दुख, उनकी हर तकलीफ का इलाज हो जाता है. फिर चाहे बात बुरी नजर की हो या शनि के प्रकोप से मुक्ति की. हनुमान ने अपने बाल रूप में ही सूर्यदेव को निगल लिया था. उन्‍होंने राक्षसों का वध किया और लक्ष्मण के प्राणदाता भी बने. बजरंग बली ने समय-समय पर देवताओं को अनेक संकटों से निकाला. पवनपुत्र आज भी अपने इस धाम में भक्‍तों के कष्‍ट हर लेते हैं, इसलिए उन्‍हें कष्‍टभंजन हनुमान कहते हैं. हनुमान के इस इस दर पर आते ही हर कष्ट दूर हो जाता है. यहां आकर हर मनोकामना पूरी होती है.

किसी राज दरबार की तरह सजे इस सुंदर मंदिर के विशाल और भव्य मंडप के बीच 45 किलो सोना और 95 किलो चांदी से बने एक सुंदर सिंहासन पर हनुमान विराजते हैं. उनके शीश पर हीरे जवाहरात का मुकुट है और पास ही एक सोने की गदा भी रखी है. संकटमोचन के चारों ओर प्रिय वानरों की सेना दिखती है और उनके पैरों शनिदेवजी महाराज हैं, जो संकटमोचन के इस रूप को खास बना देते हैं.

विशाल और भव्‍य किले की तरह बने एक भवन के बीचों-बीच कष्‍टभंजन का अतिसुंदर और चमत्‍कारी मंदिर है. केसरीनंदन के भव्‍य मंदिरों में से एक कष्‍टभंजन हनुमान मंदिर भी है. गुजरात में अहमदाबाद से भावनगर की ओर जाते हुए करीब 175 किलोमीटर की दूरी पर कष्‍टभंजन हनुमान का यह दिव्‍य धाम है.

श्री कष्टभंजन हनुमान मंदिर, सारंगपुर, गुजरात अहमदाबाद-भावनगर रेलवे लाइन पर स्थित बोटाद जंक्शन से सारंगपुर लगभग 12 मील दूर है. यहां एक प्रसिद्ध मारुति प्रतिमा है. महायोगिराज गोपालानंद स्वामी ने इस शिला मूर्ति की प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1905 आश्विन कृष्ण पंचमी के दिन की थी. जनश्रुति है कि प्रतिष्ठा के समय मूर्ति में श्रीहनुमानजी का आवेश हुआ और यह हिलने लगी. तभी से इस मंदिर को कष्टभंजन हनुमान मंदिर कहा जाता है.
कष्टभंजन देव के पैरों में शनि की मूर्ति विराजमान है। यहां शनि बजरंग के चरणों में स्त्री रूप में दर्शन देते हैं। तभी तो भक्तों को विश्वास है कि शनि प्रकोपों से परेशान होने पर यहां नारियल चढ़ाने से समस्त चिंताओं से मुक्ति मिलती है।

 
ब्रह्मपुराण के अनुसार बाल्यकाल से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। वे भगवान श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। युवावस्था में उनके पिताश्री ने उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से करवा दिया। उनकी पत्नी सती, साध्वी एवं परम तेजस्विनी थी।
एक रात्रि वह ऋतु स्नान कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए शनिदेव के पास पहुंची, पर देवता तो भगवान के ध्यान में लीन थे। उन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। उनकी पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उनका ऋतकाल निष्फल हो गया। इसलिए उन्होंने क्रुद्ध होकर शनिदेव को श्राप दे दिया कि आज से जिसे तुम देखोगे, वह नष्ट हो जाएगा। शनिदेव साक्षात रुद्र हैं। उनकी शरीर क्रांति इन्द्रनील मणि के समान है। शनि भगवान के शीश पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। शनिदेव गिद्ध पर सवार रहते हैं। हाथों में क्रमश: धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं। वे भगवान सूर्य तथा छाया (सवर्णा) के पुत्र हैं। वे क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में क्रूरता का मुख्य कारण उनकी पत्नी का श्राप है। जो व्यक्ति कर्म और मन से सात्विक हो, परोपकार वृत्ति हो, गरीबों को अपनी समर्थता के अनुसार दान करता हो उन्हें शनि परेशान नहीं करते। भगवान शनिदेव को ग्रहों में सबसे प्रभावशाली माना गया है और वह मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। यही एक वजह हैं कि लोग उनकी पूजा में बहुत सावधानी बरतते हैं और उनकी प्रकोप से बचने के लिए शनिवार के दिन उनकी पूजा करते हैं।
शनिदेव के ये छह मंदिर पूरे देश में प्रसिद्ध हैं… 1. शनि शिंगणापुर- महाराष्ट्र में स्थित इस मंदिर की ख्याति देश ही नहीं विदेशों में भी है। कई लोग तो इस स्थान को शनि देव का जन्म स्थान भी मानते है। ऐसा कहा जाता है कि यहां शनि देव हैं, लेकिन मंदिर नहीं है। घर है परंतु दरवाजा नहीं और वृक्ष है लेकिन छाया नहीं है। 2. शनि मंदिर इंदौर — इंदौर में शनिदेव का प्राचीन व चमत्कारिक मंदिर जूनी इंदौर में स्थित है। यह मात्र हिंदुस्तान का ही नहीं, दुनिया का सबसे प्राचीन शनि मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि जूनी इंदौर में स्थापित इस मंदिर में शनि देवता स्वयं पधारे थे। 3. शनिचरा मंदिर, मुरैना –मध्य प्रदेश में ग्वालियर के नजदीकी एंती गांव में शनिदेव मंदिर का देश में विशेष महत्व है। देश के सबसे प्राचीन त्रेतायुगीन शनि मंदिर में प्रतिष्ठत शनिदेव की प्रतिमा भी विशेष है। माना जाता है कि ये प्रतिमा आसमान से टूट कर गिरे एक उल्कापिंड से निर्मित है। ज्योतिषी व खगोलविद मानते है कि शनि पर्वत पर निर्जन वन में स्थापित होने के कारण यह स्थान विशेष प्रभावशाली है। महाराष्ट्र के सिगनापुर शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनि शिला भी इसी शनि पर्वत से ले जाई गई है। 4. शनि मंदिर, प्रतापगढ़ –भारत के प्रमुख शनि मंदिरों में से एक शनि मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में स्थित है जो शनि धाम के रूप में प्रख्यात है। कहते हैं कि यह ऐसा स्थान है जहां आते ही भक्त भगवान शनि की कृपा का पात्र बन जाता है.। चमत्कारों से भरा हुआ यह स्थान लोगों को सहसा ही अपनी ओर खींच लेता है। 5. शनि तीर्थ क्षेत्र, असोला, फतेहपुर बेरी –यह मंदिर दिल्ली के महरौली में स्थित है. यहां शनि देव की सबसे बड़ी मूर्ति विद्यमान है जो अष्टधातुओं से बनी है। 6. शनि मंदिर, तिरुनल्लर– शनिदेव को समर्पित यह मंदिर तमिलनाडु के नवग्रह मंदिरों में से एक है। भारत में स्थित शनिदेव का यह सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है।ऐसी मान्यता है कि शनिदेव के प्रकोप के कारण किसी व्यक्ति को बदकिस्मती, गरीबी और अन्य बुरे प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने से शनि ग्रह के सभी बुरे प्रभावों से मुक्ति मिल जाती है
 

कहा जाता है कि एक समय था जब शनिदेव का पूरे राज्य पर आतंक था, लोग शनिदेव के अत्याचार से त्रस्त थे. आखिरकार भक्तों ने अपनी फरियाद बजरंग बली के दरबार में लगाई. भक्तों की बातें सुनकर हनुमान जी शनिदेव को मारने के लिए उनके पीछे पड़ गए. अब शनिदेव के पास जान बचाने का आखिरी विकल्प बाकी था सो उन्होंने स्त्री रूप धारण कर लिया. क्योंकि उन्हें पता था कि हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं और वो किसी स्त्री पर हाथ नहीं उठायेंगे. ऐसा ही हुआ, पवनपुत्र ने शनिदेव को मारने से इनकार कर दिया. लेकिन भगवान राम ने उन्हें आदेश दिया, फिर हनुमानजी ने स्त्री स्वरूप शनिदेव को अपने पैरों तले कुचल दिया और भक्तों को शनिदेव के अत्याचार से मुक्त किया.

मान्यता है बजरंग बली के इसी रूप ने शनि के प्रकोप से मुक्त किया.
इसिलिए यहां की गई पूजा से शनि के समस्त प्रकोप तत्काल दूर हो जाते हैं, तभी तो दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं और शनि की दशा से मुक्ति पाते हैं. क्योंकि भक्तों का ऐसा विश्वास है कि केसरीनंदन के इस रूप में 33 कोटि देवी देवताओं की शक्ति समाहित है. इस हनुमान मंदिर के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा है. क्योंकि यहां भक्तों को बजरंग बली के साथ शनि देव का आशीर्वाद भी मिल जाता है. कहते हैं यहां अगर कोई भक्त नारियल चढ़ाकर अपनी कामना बोल दे तो उसकी झोली कभी खाली नहीं रहती. शनि दशा से मुक्ति तो मिलती ही है साथ ही संकटमोचन का रक्षा कवच भी मिल जाता है.

यूं तो हनुमान जी के अनेक मंदिर प्रसिद्ध हैं तथा प्रत्येक मंदिर का अपना अनोखा इतिहास है। इसी क्रम में गुजरात के भावनगर के सारंगपुर में विराजे कष्टभंजन हनुमान जी का दर्शन करने प्रतिदिन हजारों लोग पहुंचते हैं। यहां हनुमान जी को भक्तों ने सोने के सिंहासन पर विराजमान किया है। किले की तरह बने एक भवन के बीच विराजे कष्टभंजन देव हनुमान जी का यह दिव्य मंदिर अहमदाबाद से भावनगर की ओर जाते हुए लगभग 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। किसी राज दरबार की तरह सजे इस सुंदर मंदिर के विशाल और भव्य मंडप के बीच 45 किलो सोना और 15 किलो चांदी से बने एक सुंदर सिंहासन पर हनुमान विराजे हैं। उनके शीश पर हीरे जवाहरात का मुकुट है और निकट ही एक सोने की गदा भी रखी है। हनुमान जी के चारों ओर वानर सेना है और उनके पैरों में शनिदेव हैं। कष्टभंजन हनुमान जी के इस मंदिर में श्रीमूर्ति की दो बार आरती होती है। मंगलवार और शनिवार को यहां बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। अधिकतर भक्त अपनी शनि पीड़ा, बुरी नजर के दोषों और अन्य कष्टों को दूर करने की कामना लेकर यहां आते हैं।

पंच देवों का तेज पुंज श्री हनुमान जी हैं। माता अन्जनी के गर्भ से प्रकट हनुमान जी में पांच देवताओं का तेज समाहित हैं।
अजर, अमर, गुणनिधि,सुत होहु’ यह वरदान माता जानकी जी ने हनुमान जी को अशोक वाटिका में दिया था।

स्वयं भगवान् श्रीराम ने कहा था कि- ‘सुन कपि तोहि समान उपकारी,नहि कोउ सुर, नर, मुनि,तुनधारी।’ बल और बुद्धि के प्रतीक हनुमान जी राम और जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है,उनमें बजरंगबली भी हैं। पवनसुत हनुमानजी भगवान् शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। हनुमानजी का अवतार भगवान् राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमानजी के पराक्रम की असंख्य गाथाएं प्रचलित हैं। प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित सात करोड़ मन्त्रों में श्री हनुमान जी की पूजा का विशेष उल्लेख है। श्री राम भक्त, रूद्र अवतार,सूर्य-शिष्य, वायु-पुत्र,केसरी-नन्दन, महाबल,श्री बालाजी के नाम से प्रसिद्ध तथा हनुमान जी पूरे भारतवर्ष में पूजे जाते हैं और जन-जन के आराध्य देव हैं। बिना भेदभाव के सभी हनुमान अर्चना के अधिकारी हैं। अतुलनीय बलशाली होने के फलस्वरूप इन्हें बालाजी की संज्ञा दी गई है। देश के प्रत्येक क्षेत्र में हनुमान जी की पूजा की अलग परम्परा है। सभी भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा और उपासना करते है। परंतु इस युग में भगवान शिव के ग्यारवें अवतार हनुमान जी को सबसे ज़्यादा पूजा जाता है। इसी कारण हनुमान जी को कलयुग का जीवंत देवता भी कहा गया है।

हिमालयायूके का उददेश्‍य-
यदा यदा ही धर्मस्य,ग्लानिर्भवति भारत |
अभ्युत्थानम् धर्मस्य,तदात्मनं सृजाम्यहम् ||
परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय,संभवामि युगे युगे ||”
गीता में भगवानश्रीकृष्ण ने कहा है कि,जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब मेरी कोई शक्ति इस धरा धाम पर, अवतार लेकर भक्तों के दु:ख दूर करती है और धर्म की स्थापना करती है।

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