ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रह अपने फल देते हैं

विवाह में आ रही बाधाअों से मुक्ति -रत्न ज्योतिष विज्ञान  शिव ताण्डव स्तोत्र

ज्योतिष शास्त्र के सिद्धांत अनुसार ग्रह अपने फल देते हैं। उनके लए कोई उपाय शास्त्रों में नहीं बताए गए हैं किन्तु यदि ग्रह-राशि की संदेहास्पद स्थिति हो तो उनके उपाय करने के विधान शास्त्र सम्मत माने जाते हैं। ग्रह शुभ हो या अशुभ, वे अपनी शक्ति और स्थिति के अनुसार ही अच्छा या बुरा फल प्रदान करते हैं। ब्रह्माण्ड में ग्रह हमेशा गतिशील रहते हैं और परिभ्रमण करते हुए कभी मार्गी और कभी वक्र गति से 12 राशियों को प्रभावित करते हैं।  आचार्य चाणक्‍य भी मानते हैं की ग्रहों की अनुकूल चाल से राज्य की प्राप्ति होती है और प्रतिकूलता से राजा भी रंक बन जाता है। किसी भी काम में हाथ डालने से पहले  जन्‍मकुण्‍डली के ग्रहों, चालू गोचर के ग्रहों आदि का विचार करना जरूरी है।

हर माता-पिता को अपने जवान हुए बच्चों के विवाह की चिंता सताती रहती है। बहुत प्रयास करने के बाद भी बच्चों का विवाह नहीं होता। ऐसा होने पर कुछ उपायों को करने से विवाह में आ रही बाधाअों से मुक्ति पाई जा सकती है। झट मंगनी पट शादी करवाने वाले लड़का-लड़की दोनों इन उपायों को कर सकते हैं। प्रेम विवाह करने वाले भी इन उपायों को अपना सकते हैं, अवश्य लाभ प्राप्त होगा। 

शिवतांडव स्तोत्र जिसके माध्यम से आप न केवल धन सम्पति पा सकते हैं बल्कि जीवन में आने वाली समस्त बाधाओं को दूर भी किया जा सकता है | शिवतांडव स्तोत्र लंकाधिपति रावण द्वारा रचा गया है,

भगवान शिव का पूजन
हर माह में कृष्ण पक्ष अौर शुक्ल पक्ष होता है। शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार को भगवान शिव का व्रत रखें। श्वेतार्क के वृक्ष की धूप, दीप से पूजन करके इसके आठ पत्तों को लेकर सात पत्तों से थाली तैयार करें। आठवें पत्ते में अपना नाम लिखकर भगवान शिव को अर्पित करें। जब तक शादी की बात पक्की नहीं होती ये उपाय करते रहें। ऐसा करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं अौर मनचाहा जीवन साथी मिलता है।

लड़का-लड़की दोनों कर सकते हैं ये उपाय
दान करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं अौर ग्रह भी शांत रहते हैं। सोमवार के दिन लड़का-लड़की एक किलो 200 ग्राम चने की दाल अौर सवा लीटर दूध किसी जरुरतमंद को दान में दें। ये उपाय तब तक करते रहें जब तक विवाह पक्का न हो जाएं।

लड़की की शादी में आ रही बाधा को दूर करें ये उपाय
शादी की बात बनते-बनते रह जाए तो लड़की को उस समय जब उसके पिता, भाई या अन्य रिश्तेदार उसकी शादी की बात करने जा रहे हों तो वह अपने बाल खुले रखें। उस दिन लाल वस्त्र पहन कर शादी की बात करने जा रहे लोगों को मिठाइ खिलाएं। विवाह की बात करने वाले वापिस न आ जाए तब तक लड़की अपने बाल खुले रखें। ऐसा करने से अवश्य लाभ होगा।

लड़कों के विवाह में हो रही हो देरी तो करें ये उपाय
लड़कों के विवाह में बाधाएं आ रही हो तो मंगलवार के दिन मंदिर में जाकर हनुमान जी का पूजन करें। हनुमान जी के माथे से सिंदूर लेकर भगवान श्रीराम अौर देवी सीता के चरणों में अर्पित करें अौर शीघ्र विवाह होने की प्रार्थना करें। 21 मंगलवार तक ये उपाय करें। इससे विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती है अौर शीघ्र शादी का योग बनता है।

वट वृक्ष का करें पूजन
लड़की के विवाह में आ रही बाधा को दूर करने के लिए किसी भी पूर्णिमा को वट वृक्ष का पूजन करें। पूजा के बाद मन में शीघ्र विवाह की कामना लेकर वट वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करें। सुहागिन स्त्रियां भी अपने सुहाग के लिए वट वृक्ष का पूजन करती हैं।

शिव ताण्डव स्तोत्र
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥1॥

अर्थात- जिन शिव जी की सघन, वनरूपी जटा से प्रवाहित होकर गंगा जी की धाराएं उनके कंठ को प्रक्षालित होती हैं, जिनके गले में बड़े एवं लंबे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जो शिव जी डम-डम डमरू बजा कर प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्यान करें।

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥

अर्थात- जिन शिव जी के जटाओं में अतिवेग से विलास पूर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे उनके शिश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालाएं धधक-धधक करके प्रज्जवलित हो रहीं हैं, उन बाल चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अनुराग प्रतिक्षण बढ़ता रहे।

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥

अर्थात- जो पर्वतराजसुता (पार्वती जी) के विलासमय रमणिय कटाक्षों में परम आनंदित चित्त रहते हैं, जिनके मस्तक में सम्पूर्ण सृष्टि एवं प्राणीगण वास करते हैं, तथा जिनके कृपादृष्टि मात्र से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र समान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आनंदित रहे।

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥4॥

अर्थात- मैं उन शिव जी की भक्ति में आनंदित रहूं जो सभी प्राणियों के आधार एवं रक्षक हैं, जिनकी जाटाओं में लिपटे सर्पों के फन की मणियों का पीले वर्ण प्रभा-समुह रूप केसर प्रकाश सभी दिशाओं को प्रकाशित करता है और जो गजचर्म (हिरण की छाल) से विभुषित हैं।

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥5॥

अर्थात- जिन शिव जी के चरण इन्द्रादि देवताओं के मस्तक के फूलों की धूल से रंजित हैं (जिन्हें देवतागण अपने सर के फूल अर्पण करते हैं), जिनकी जटा पर लाल सर्प विराजमान है, वो चन्द्रशेखर हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥6॥

अर्थात- जिन शिव जी ने इन्द्रादि देवताओं का गर्व दहन करते हुए, कामदेव को अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभी देवों द्वारा पूज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे मुझे सिद्धि प्रदान करें।

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥7॥

अर्थात- जिनके मस्तक से निकली प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जो शिव, पार्वती जी के स्तन के अग्र भाग पर चित्रकारी करने में अति चतुर है (यहां पार्वती प्रकृति हैं, तथा चित्रकारी सृजन है), उन शिव जी में मेरी प्रीति अटल हो।

नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥

अर्थात- जिनका कण्ठ नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण आमवस्या की रात्रि के समान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभी प्रकार की सम्पन्नता प्रदान करें।

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥

अर्थात- जिनका कण्ठ और कंधा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुंदर श्याम प्रभा से विभूषित है, जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु:खों को काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अंधकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यु को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूं।

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥

अर्थात- जो कल्यानमय, अविनाशी, समस्त कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अंधकासुर के सहांरक, दक्ष यज्ञ विध्वंसक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूं।

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥

अर्थात- अतयंत वेग से भ्रमण कर रहे सर्पों के फूफकार से क्रमश: ललाट में बढ़ी हूई प्रचण्ड अग्नि के मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिम-धिम की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व प्रकार सुशोभित हो रहे हैं।

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुह्रद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥

अर्थात- कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प एवं मोतियों की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टुकडों, शत्रू एवं मित्रों, राजाओं तथा प्रजाओं, तिनकों तथा कमलों पर सामान दृष्टि रखने वाले शिव को मैं भजता हूं।

कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥13॥

अर्थात- कब मैं गंगा जी के कछारगुञ में निवास करते हुए, निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर चंचल नेत्रों तथा ललाट वाले शिव जी का मंत्रोच्चार करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा।

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥

अर्थात- देवांगनाओं के सिर में गूंथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएं परमानंद युक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥

अर्थात- प्रचण्ड बड़वानल की भांति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएं।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥16॥

अर्थात- इस उत्त्मोत्त्म शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढ़ने या सुनने मात्र से प्राणी पवित्र हो, परमगुरू शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।

पूजावसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥

अर्थात- प्रात: शिवपुजन के अंत में इस रावणकृत शिव ताण्डव स्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोड़ा आदि संपदा से सर्वदा युक्त रहता है।

॥ इति रावणकृतं शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥

-रत्न ज्योतिष विज्ञान कहते हैं। रत्नों के द्वारा विभिन्न ग्रहों की रश्मियों व तरंगों द्वारा मानव के शरीर में पहुंच कर स्थायी उपाय किया जाता है।

 

ज्योतिष विज्ञान में फलित के बाद उपाय का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। उपायों में एक है रश्मि विज्ञान, जिसे ज्योतिष विज्ञान में रत्न ज्योतिष विज्ञान कहते हैं। रत्नों के द्वारा विभिन्न ग्रहों की रश्मियों व तरंगों द्वारा मानव के शरीर में पहुंच कर स्थायी उपाय किया जाता है। रत्न विज्ञान के आधार पर ज्योतिष में कई पद्धतियां उपाय के लिए रत्न धारण की आज्ञा प्रदान करती हैं परंतु सिद्ध एवं प्राण प्रतिष्ठा किए बिना रत्न धारण करना विशेष सफल या चमत्कारी फलदायी नहीं होता।

‘टाइगर रत्न’ सबसे अधिक प्रभावी तथा बहूपयोगी एवं शीघ्र फल प्रदान करने वाला स्टोन है। इसे टाइगर आई भी कहते हैं। इस रत्न पर टाइगर के समान पीली एवं काली धारियां होने के कारण इसे ‘टाइगर स्टोन’ कहते हैं। यह प्रभाव में भी टाइगर (चीता) के समान लक्षण उत्पन्न करता है। इसे धारण करने से तुरंत लाभ हो जाता है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास की कमी के कारण बार-बार व्यापार एवं अन्य कार्यों में असफल होता हो, दुखी जीवन व्यतीत कर रहा हो, उस व्यक्ति को टाइगर स्टोन गजब का आत्मविश्वास प्रदान करता है। इसे धारण करने से पूर्ण सफलता मिलती है तथा व्यक्ति साहसी एवं पुरुषार्थी बन जाता है। शेर जैसा आत्मबल और साहस भी यह रत्न प्रदान करने में सक्षम है। डरपोक, उदासीन व्यक्तियों का यह स्टोन अदृश्य साथी माना जाता है। ऐसे व्यक्तियों में टाइगर रत्न पहनने से जागरूकता उत्पन्न होती है।

यह उन व्यक्तियों के लिए भी शुभ फल प्रदान करता है जिनका भाग्य सोया हुआ है। सोए भाग्य से आशय है कि व्यक्ति अपने प्रयासों का पूर्णत: लाभ नहीं ले पा रहा है। मेहनत का फल बराबर नहीं मिल पा रहा है तथा उस व्यक्ति को जीवन में पग-पग पर विभिन्न परेशानियों एवं संघर्षों का सामना करना पड़ता है। जीवन में मृत्यु तुल्य दुख भोग रहा हो, अनहोनी होती हो, समस्याएं निरंतर बढ़ती जा रही हों, यश, र्कीत तो कभी सामने आती ही न हो, दुश्मनों से परेशान हो, ऐसी स्थिति में टाइगर स्टोन वरदान सिद्ध होता है। इसे प्राण प्रतिष्ठा सिद्ध करा कर मध्यमा उंगली में शनिवार के दिन प्रात: धारण करना चाहिए। सोए हुए भाग्य को यह टाइगर रत्न जगा देगा। यदि अन्य ग्रहों को भी इस टाइगर स्टोन से जगाना चाहते हैं तो आप निम्र प्रकार से टाइगर स्टोन धारण कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यह एक रत्न सभी ग्रहों को जगाने का बल रखता है।
टाइगर स्टोन निम्रलिखित परिस्थितियों में भी लाभदायक है।

1. जन्मकुंडली में यदि किसी घर के शुभ फल आपको प्राप्त नहीं हो रहे हैं या यदि कोई ग्रह सोया हुआ है तो उस ग्रह के स्वामी ग्रह को जगाना अनिवार्य होता है, जिससे उस घर का शुभ फल मिलता है।
2. जन्मपत्रिका में कुयोग बन रहे हों तो उन योगों के कुप्रभावों को कम करने के लिए भी टाइगर रत्न धारण करना चाहिए।
3. यदि आप निरंतर कर्ज में डूबते जा रहे हों तो कर्ज मुक्ति के लिए शुक्रवार के दिन सिद्ध किया हुआ स्टोन गले में लॉकेट के रूप में श्वेत धागे में धारण करें।
4. बार-बार वाहन दुर्घटना में चोट लग जाती है तो तर्जनी उंगली में टाइगर स्टोन प्राण प्रतिष्ठा कराकर मंगलवार के दिन धारण करें।
5. घर में जिन बच्चों व व्यक्तियों को बार-बार नजर लगती है, मानसिक तनाव रहता है तो उन्हें टाइगर स्टोन गले में धारण करना चाहिए।
6. शत्रुओं से पीड़ित व्यक्ति मंगलवार के दिन टाइगर रत्न धारण करें।
7. कार्य स्थल पर व अन्य जगहों से मान, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि प्राप्त करने व यश, कीर्ति की पताका फहराने के इच्छुक टाइगर स्टोन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को तर्जनी उंगली में या अनामिका उंगुली में धारण करें।
8. जो व्यक्ति अपनी पत्नी से घबराता हो या कलह से डरता हो एवं जिसकी पत्नी अधिक बोलती है, समाज में प्रतिष्ठा उसी के कारण कम हो तो टाइगर रत्न तर्जनी उंगली में पूर्णिमा के दिन धारण करें।
9. जिसका व्यापार घाटे में जा रहा हो, सरकारी परेशानियां बढ़ती ही जा रही हों, वर्तमान में घाटा आ रहा हो तो टाइगर स्टोन शुक्ल पक्ष में बुधवार के दिन सूर्य की अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।
10. जिस व्यक्ति का विवाह नहीं हो रहा हो, सगाई भी नहीं होती हो, तो उस जातक को टाइगर रत्न ऋषि पंचमी को तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए। विवाह शीघ्र सुयोग्य लड़की से होगा।
11. जिस लड़की का विवाह नहीं हो रहा हो, सगाई छूट जाती हो या सगाई हो ही नहीं रही हो तो उस लड़की को नाग पंचमी को प्रात: नाग के दर्शन कर यह टाइगर स्टोन धारण करना चाहिए।
12. जिन व्यक्तियों को सर्विस में नुक्सान हो रहा हो या कार्यस्थल में परेशानी हो तो टाइगर रत्न रविवार को दिन में धारण करने से लाभ होगा।
13. जिन व्यक्तियों के संतान होती है, वह मर जाती है तो दोनों पति-पत्नी बराबर वजन का टाइगर स्टोन प्राण प्रतिष्ठा कराकर शुक्ल पक्ष में जब स्त्री मासिक धर्म में हो तब एक साथ धारण करें। संतान सुख मिल जाएगा, गर्भपात होता है तो तुरंत लाभ होगा।
14. जिस घर में लड़ाई-झगड़ा अधिक होता हो तथा सुख-शांति न हो विशेष परेशानी हो, छोटी-छोटी बातों पर क्लेश हो जाता है तो उस परिवार का मुखिया टाइगर स्टोन सोमवार के दिन प्रात: आम के पत्ते के रस का अभिषेक कर धारण करे। टाइगर स्टोन सिद्ध व प्राण प्रतिष्ठित होना चाहिए।

सोया ग्रह/धारण करने का वार/धारण करने की उंगली
1. सूर्य ग्रह/रविवार के दिन/अनामिका उंगली में।
2. चंद्रमा/सोमवार के दिन/अनामिका उंगली में।
3. मंगल ग्रह/मंगलवार के दिन/तर्जनी उंगली में।
4. बुध ग्रह/बुधवार के दिन/कनिष्ठा उंगली में।
5. गुरु ग्रह/वीरवार के दिन/तर्जनी उंगली में।
6. शुक्र ग्रह/शुक्रवार के दिन/गले में धारण करें।
7. शनि ग्रह/शनिवार के दिन/मध्यमा उंगली में।
8. राहू ग्रह/बुधवार के दिन/दाएं हाथ में।
9. केतु ग्रह/बुधवार के दिन/बाएं हाथ में।

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