2019 फतह – ‘संपर्क फॉर समर्थन’ में जुटी बीजेपी -शिवसेना ने डाली रुकावट

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के बीच मुलाकात के बाद भी शिवसेना नरम रुख अपनाने को तैयार नहीं है. शिवसेना अब भी 2019 का चुनाव अकेले लड़ने की बात कर रही है# 2019 फतह के लिए ‘संपर्क फॉर समर्थन’ में जुटी बीजेपी के लिए महाराष्ट्र में जहां शिवसेना रुकावट डाल रही है, वहीं बिहार में सहयोगी दल ही जी का जंजाल बनते जा रहे हैं. नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड और रामविलास पासवान की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के बाद अब उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने लोकसभा सीटों में अपनी हिस्सेदारी की मांग की है. आरएलएसपी ने 5 सीटों पर दावा ठोंका है# बिहार की 40 लोकसभा सीटों में जेडीयू पहले ही 25 सीटों की मांग कर चुकी है. एलजेपी ने पिछली बार की तरह ही 7 सीटों की मांग की है और अब आरएलएसपी ने पिछली बार से दो ज्यादा यानि 5 सीटों की मांग की है. इस तरह तीनों सहयोगी दलों ने 25+7+5 यानि कुल 37 सीटों की मांग की है. इसका सीधा मतलब ये हुआ कि सहयोगी दल मौजूदा वक्त में 22 सांसदों वाली बीजेपी के हिस्से में सिर्फ 3 सीटें छोड़ रहे हैं.

एनडीए के घटक दलों बीजेपी और शिवसेना के बीच तल्खी कम होती नहीं दिख रही है. बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने बुधवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के घर मातोश्री पर उनसे दो घंटे तक बातचीत की, लेकिन इसके बाद भी रिश्ते सुधरते नहीं दिख रहे हैं. इस मैराथन मुलाकात के अगले ही दिन शिवसेना के राज्यसभा सांसद और प्रवक्ता संजय राउत ने फिर से अकेले चुनाव लड़ने की बात दोहरा दी है.
संजय राउत ने कहा, ‘मैं नहीं जानता अमित शाह का एजेंडा क्या है, लेकिन यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि शिवसेना प्रस्ताव पास कर चुकी है कि वह अकेले ही चुनाव लड़ेगी. इस प्रस्ताव में काई बदलाव नहीं किया जाएगा.’
पालघर की रैली में रुख स्पष्ट करेंगे अमित शाह
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात के बाद अमित शाह ने पत्रकारों से कुछ भी कहने से मना कर दिया है. हालांकि उन्होंने गुरुवार को पालघर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को मिली जीत पर वहां की जनता को धन्यवाद कहने के लिए एक जनसभा को संबोधित करेंगे. इस जनसभा में अमित शाह के भाषण से स्पष्ट हो जाएगा कि क्या वे उद्धव ठाकरे को मनाने में सफल हुए हैं या नहीं.

 

हालिया दौर के उपचुनावों में बीजेपी की करारी शिकस्‍त के बाद विपक्षी एकता को तो बल मिला ही है लेकिन इसका पॉजिटिव साइड इफेक्‍ट केंद्र में बीजेपी के नेतृत्‍व वाले सत्‍तारूढ़ एनडीए कैंप में भी देखने को मिलने लगा है. दरअसल सत्‍ता में आने के बाद पिछले चार सालों में बीजेपी के कई सहयोगी दलों ने दबे सुर में अपनी ‘उपेक्षा’ की बात कही. लेकिन राज्‍य दर राज्‍य बीजेपी के चुनावी रथ को मिलती कामयाबी के कारण ये चुप रहने के लिए मजबूर हुए. इन सहयोगियों में पहला मुखर विरोध शिवसेना ने यह कहते हुए किया कि वह अगली बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी. नतीजतन हाल में महाराष्‍ट्र के पालघर और भंडारा-गोंदिया लोकसभा उपचुनाव में दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ लड़े. इनमें बीजेपी, पालघर में जीती लेकिन भंडारा में हारी. पालघर में शिवसेना दूसरे स्‍थान पर रही. भंडारा में विपक्षी एकता के कारण बीजेपी हार गई. यानी साफतौर पर बीजेपी के लिए संकेत निकले कि यदि शिवसेना-बीजेपी 2019 में अलग-अलग लड़े एवं कांग्रेस-राकांपा साथ-साथ लड़े तो बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि यूपी के बाद लोकसभा सीटों के लिहाज से महाराष्‍ट्र में सर्वाधिक 48 सीटें हैं. नतीजतन अब बिना देरी किए बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह 6 जून को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मिलने उनके आवास ‘मातोश्री’ जा रहे हैं. क्‍या सहयोगियों की उपेक्षा की बात कहने वाली नाराज शिवसेना को अमित शाह मना पाएंगे?  

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बुधवार शाम शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से उनके आवास ‘मातोश्री’ में मुलाकात की. इस बैठक को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि दोनों गठबंधन सहयोगी दलों के संबंधों में पिछले कुछ समय से खटास आयी है. बैठक में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस और उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे भी मौजूद थे. यह बैठक करीब दो घंटे चली. बैठक में क्या चर्चाएं हुईं, इस बारे में दोनों तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है लेकिन बीजेपी सूत्रों ने दावा किया कि बातचीत ‘‘ सकारात्मक ’’ रही और इससे दोनों पक्षों के बीच तनाव कम करने में मदद मिलेगी.
ठाकरे से मिलने के बाद, बीजेपी अध्यक्ष शाह ने रात में राज्य की राजनीतिक स्थित का जायजा लेने के लिए महाराष्ट्र बीजेपी की प्रदेश कार्यकारिणी से मुलाकात की. राज्य सरकार के अतिथि गृह में देर रात हुई बैठक में फड़णवीस और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष रावसाहेब दानवे सहित अन्य उपस्थित थे.
बीजेपी ने इससे पहले कहा था कि यह बैठक अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले उसके ‘ सम्पर्क फॉर समर्थन ’ अभियान को लेकर थी जिसका नेतृत्व शाह कर रहे हैं.
गठबंधन सहयोगी दोनों पार्टियों ने पालघर लोकसभा सीट के लिए गत 28 मई को हुआ उपचुनाव अलग-अलग लड़ा था और प्रचार के दौरान दोनों ने एकदूसरे पर जमकर हमले किये थे. शिवसेना विशेष तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खिन्न है और उसने लगातार उन पर हमले किये हैं. पालघर उपचुनाव में बीजेपी से हार का सामना करने के बाद शिवसेना ने सहयोगी पार्टी को ‘सबसे बड़ा राजनीतिक शत्रु’ करार दिया था. शिवसेना ने शाह और ठाकरे के बीच लंबी अवधि के बाद बैठक की ‘जरूरत’ पर सवाल उठाया था. शिवसेना पहले ही घोषणा कर चुकी है कि 2019 वह अकेले ही चुनाव लड़ेगी.

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इसी कड़ी में बिहार से भी बीजेपी के सहयोगी अलग सुर अख्तियार करते दिख रहे हैं. नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने साफतौर पर कह दिया कि बिहार में एनडीए के नेता नीतीश कुमार होंगे. जदयू ने तो बाकायदा राज्‍य की 40 में 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करते हुए 15 सीटें बीजेपी के लिए छोड़ दी. वह 2009 लोकसभा चुनाव के गठबंधन फॉर्मूले के आधार पर बिहार में ‘बड़े भाई’ की भूमिका में दिखना चाहती है, जबकि पार्टी को 2014 में केवल दो सीटें मिलीं. उधर बीजेपी ने अकेले दम पर 22 सीटें जीतीं और लोजपा की छह और रालोसपा की तीन सीटों के साथ एनडीए का आंकड़ा 31 पहुंचा. अब हाल में 14 लोकसभा और विधानसभा सीटों के उपचुनावों में बीजेपी की हार के बाद नीतीश कुमार ने नोटबंदी को परोक्ष रूप से विफल प्रयास बताया. हालांकि 2016 में जब नोटबंदी को लागू किया गया तो इसका समर्थन करने वाले नीतीश कुमार पहले मुख्‍यमंत्री थे. हालांकि उस दौरान वह विपक्ष के साथ थे. उसके बाद से फिर से नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष राज्‍य के दर्जे की मांग को जीवित कर दिया है. सात जून को बिहार में एनडीए घटक दलों की बैठक से पहले एकतरफा तरीके से 25 सीटों से चुनाव लड़ने की घोषणा ये बताती है कि अब बीजेपी के जूनियर पार्टनर सीट-शेयरिंग सौदेबाजी में बराबरी की मांग करने लगे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद बीजेपी का सत्‍ता से बाहर रह जाना और जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन की 2019 में एक साथ चुनाव लड़ने की घोषणा ने भी बीजेपी को खासा परेशान कर दिया है. इस कारण यह है कि पिछली बार राज्‍य की 28 सीटों में से बीजेपी को अकेले दम पर 17 सीटें मिली थीं. इस बार यह गठबंधन बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाला है. इसी तरह आंध्र प्रदेश से चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देसम पार्टी (टीडीपी) का एनडीए से बाहर जाना बीजेपी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. बिहार में सत्‍तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड(जदयू)-बीजेपी के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चलने की अटकलों के बीच नीतीश कुमार की पार्टी ने 2019 के लिहाज से बड़ा दांव चल दिया है. रविवार को मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू के वरिष्‍ठ नेताओं की बैठक के बाद प्रवक्‍ता अजय आलोक ने कहा कि अगले लोकसभा में उनकी पार्टी बिहार में 25 सीटों और बीजेपी 15 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इसके साथ ही पार्टी ने स्‍पष्‍ट किया कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का चेहरा होंगे और जिस तरह दिल्‍ली में बीजेपी ‘बड़े भाई’ की भूमिका में है, उसी तरह बिहार में जदयू की भूमिका होगी.

यहीं से बड़ा सवाल उठ रहा है कि आम चुनावों के लिहाज से क्‍या बीजेपी के साथ नीतीश कुमार की ‘डील’ हो गई है? लेकिन बीजेपी की रहस्‍यमयी ‘चुप्‍पी’ कुछ और ही इशारा करती है. दरअसल 2014 के लोकसभा चुनावों में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने अकेले 22 सीटें जीती थीं. उसकी सहयोगी रामविलास पासवान की लोजपा ने छह और उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा ने 3 सीटें जीती थीं. इस तरह एनडीए को कुल 31 सीटें मिली थीं. वहीं जदयू को केवल दो, राजद को चार, कांग्रेस को दो और राकांपा को एक सीट मिली थी. पिछली बार इन सभी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. उस वक्‍त नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो चुके थे. 2015 में एनडीए कैंप में वापसी के बाद बिहार में नीतीश कुमार को क्‍या 25 सीटें देने पर बीजेपी राजी हो जाएगी? इस वक्‍त यही सबसे बड़ा सवाल है. ऐसा इसलिए क्‍योंकि फिर लोजपा और रालोसपा का क्‍या होगा? क्‍या बीजेपी अपने खाते से उनको सीटें देगी? फिर बीजेपी के लिए क्‍या बचेगा?

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के बीच मुलाकात के बाद भी शिवसेना नरम रुख अपनाने को तैयार नहीं है. शिवसेना अब भी 2019 का चुनाव अकेले लड़ने की बात कर रही है. अमित शाह और उद्धव ठाकरे के बीच मुलाकात के बाद अब शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि ‘ हम जानते है कि अमित शाह जी का एजेंडा क्या है. लेकिन शिवसेना ने एक प्रस्ताव पास किया है जिसके मुताबिक हम अगला सभी चुनाव अकेले लड़ेंगे. इस प्रस्ताव में अब कोई बदलाव मुमकिन नहीं है.’ 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी इस समय रूठों को मनाने में लगी हुई है. इसके लिए पार्टी ने ‘कॉन्टैक्ट फॉर सपोर्ट’ कैंपेनिंग की शुरुआत की है. इसी कड़ी में उन्होंने बुधवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से ‘मातोश्री’ जाकर मुलाकात की. जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडनवीस भी अमित शाह के साथ उद्धव ठाकरे से मिलने पहुंचे थे मगर बैठक के दौरान वे बाहर की बैठे रहे.

मुलाकात से पहले भी शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में छपे संपादकीय लेख में 2019 में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने की बात फिर से दोहराई थी. इस लेख में यह भी कहा गया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने वोटरों के बीच भरोसा खो दिया है. इसलिए पार्टी को चाहिए कि वो इसकी असली वजहों पर गौर करे. शिवसेना ने अमित शाह के ‘संपर्क फॉर समर्थन’ पर भी तंज कसते हुए पूछा, क्या बीजेपी अध्यक्ष एनडीए के पूर्व सहयोगी टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू से भी मिलेंगे. विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करते हुए उनमें राजनीतिक चेतना पैदा करना और पर्यावरण की रक्षा के लिए उन्हें प्रेरित करना है. 5 जून, 1974 ‘केवल एक धरती’ थीम पर पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया और इसका मेजबान देश संयुक्त राज्य अमेरिका था. इस साल ‘बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन’ थीम पर 45 वां विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है और भारत इसकी मेजबानी कर रहा है. अभी हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट आई थी कि दुनिया के 15 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में भारत के 14 शहर शामिल हैं और विश्व की लगभग 95 फीसदी आबादी जहरीली हवा में सांस ले रही है. ये आंकड़े अपने आप में बताने के लिए काफी हैं कि पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर भारत में खास ध्यान देने की जरूरत है. वैसे तो आधुनिकीकरण की वजह से पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले कई तत्व हैं. लेकिन इसमें प्लास्टिक एक ऐसा पदार्थ है जिसकी वजह से न सिर्फ भूमि बल्कि जल और वायु प्रदूषण भी होता है और पर्यावरण को इसकी वजह से जो नुकसान होता है वो दीर्घकालीन होता है. यानी प्लास्टिक में पाए जाने वाले पदार्थों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की भरपाई करना लगभग नामुमकिन है. प्लास्टिक के तत्व न सिर्फ मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं बल्कि पूरे पारिस्थितिक-तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं.

 

 

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