उत्‍तराखण्‍ड के अलौकिक तथा रहस्‍मयी मंदिरों को धाम बनाया जायेगा

उत्तराखण्ड के प्रमुख मन्दिर #उत्तराखंड के नाग मंदिर रहस्यमयी भी है# उत्‍तराखण्‍ड के पर्यटन मंत्री श्री सतपाल महाराज जी ने हिमालयायूके को एक अनौपचारिक मुलाकात में बताया कि तीर्थाटन की नीति बनाकर नाग मंदिरों को विकसित किया जायेगा, कोटगाडी देवी, हाट कालिका, पाताल भुवनेश्‍वर, को धाम के रूप मे विकसित किया जायेगा- 

प्राचीन समय में गढ़वाल में रहने वाले नागाओं के वंशज आज भी सर्प का पूजा करते हैं। इस क्षेत्र में अनेकों सर्प मन्दिर स्थापित हैं। उदाहरणार्थ कुछ सर्प मन्दिर निम्न हैं। पान्डुकेश्वर का शेष नाग मन्दिर #रतगाँव का भेकल नाग मन्दिर  #तालोर का सांगल नाग मन्दिर #भरगाँव का बम्पा नाग मन्दिर #निति घाटी में जेलम का लोहन देव नाग मन्दिर # देहरादून घाटी नाग सिद्ध का बामन नाग मन्दिर # Exelusive Report: www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND) Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper) Report by; Chandra Shekhar Joshi- Editor 

नागराज एक संस्कृत शब्द है जो कि नाग तथा राज (राजा) से मिलकर बना है अर्थात नागों का राजा। यह मुख्य रूप से तीन देवताओं हेतु प्रयुक्त होता है – अनन्त (शेषनाग), तक्षक तथा वासुकि। अनन्त, तक्षक तथा वासुकि तीनों भाई महर्षि कश्यप, तथा उनकी पत्नी कद्रु के पुत्र थे जो कि सभी साँपों के जनक माने जाते हैं। मान्यता के अनुसार नाग का वास पाताललोक में है।
सबसे बड़े भाई अनन्त भगवान विष्णु के भक्त हैं एवं साँपों का मित्रतापूर्ण पहलू प्रस्तुत करते हैं क्योंकि वे चूहे आदि जीवों से खाद्यान्न की रक्षा करते हैं। भगवान विष्णु जब क्षीरसागर में योगनिद्रा में होते हैं तो अनन्त उनका आसन बनते हैं तथा उनकी यह मुद्रा अनन्तशयनम् कहलाती है। अनन्त ने अपने सिर पर पृथ्वी को धारण किया हुआ है। उन्होंने भगवान विष्णु के साथ रामायण काल में राम के छोटे भाई लक्ष्मण तथा महाभारत काल में कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में अवतार लिया। इसके अतिरिक्त रामानुज तथा नित्यानन्द भी उनके अवतार कहे जाते हैं।
छोटे भाई वासुकि भगवान शिव के भक्त हैं, भगवान शिव हमेशा उन्हें गर्दन में पहने रहते हैं। तक्षक साँपों के खतरनाक पहलू को प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि उनके जहर के कारण सभी उनसे डरते हैं।
गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के थानगढ़ तहसील में नाग देवता वासुकि का एक प्राचीन मंदिर है। इस क्षेत्र में नाग वासुकि की पूजा ग्राम्य देवता के तौर पर की जाती है। यह भूमि सर्प भूमि भी कहलाती है। थानगढ़ के आस पास और भी अन्य नाग देवता के मंदिर मौजूद है।
देवभूमि उत्तराखण्ड में नागराज के छोटे-बड़े अनेक मन्दिर हैं। वहाँ नागराज को आमतौर पर नागराजा कहा जाता है। सेममुखेम नागराज उत्तराखण्ड का सबसे प्रसिद्ध नागतीर्थ है। यह उत्तराकाशी जिले में है तथा श्रद्धालुओं में सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर डाण्डा नागराज पौड़ी जिले में है।
तमिलनाडु के जिले के नागरकोइल में नागराज को समर्पित एक मन्दिर है। इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर मान्नारशाला मन्दिर केरल के अलीप्पी जिले में है। इस मन्दिर में अनन्त तथा वासुकि दोनों के सम्मिलित रूप में देवता हैं।
केरल के तिरुअनन्तपुरम् जिले के पूजाप्पुरा में एक नागराज को समर्पित एक मन्दिर है। यह पूजाप्पुरा नगरुकावु मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इस मन्दिर की अद्वितीयता यह है कि इसमें यहाँ नागराज का परिवार जिनमें नागरम्मा, नागों की रानी तथा नागकन्या, नाग राजशाही की राजकुमारी शामिल है, एक ही मन्दिर में रखे गये हैं।

उत्तराखंड के इस नाग मंदिर में नागराज और उनकी अद्भुत मणि भी है

उत्तराखंड के नाग मंदिर रहस्यमयी भी है, भारत के पौराणिक इतिहास और तीर्थो से परिपूर्ण है ये भूमि. इसी उत्तराखंड में एक ऐसा मंदिर है जहां महिला और पुरुष किसी को भी प्रवेश करने की अनुमति नहीं है, इतना ही नहीं इस मंदिर में नागराज और उनकी अद्भुत मणि भी है ! इस मंदिर के भीतर किसी को भी जाने की इजाजत नहीं है और श्रदालु इस मंदिर की पूजा काफी दूर रहकर करते है स्थानिय लोगो का मानना है की इस मंदिर में एक विशाल नाग अपनी अद्भुत मणि के साथ रहते है! हालाँकि अभी तक उसे किसी ने देखा नहीं है न ही किसी में इतनी हिम्मत है.
मान्यता है की उस मणी की चमक ऐसी है की दिन में भी अगर कोई उसे देख ले तो वो अँधा हो जाता है, इसलिए आज तक कोई नागराज के सच को जान्ने की हिम्मत ही नहीं कर पाया है. मंदिर का पुजारी जो इस मंदिर की पूजा करता है वो अपनी आँख कान और नाक पे पट्टी बांध कर अकेले ही इसमें प्रवेश करता है, ताकि मणि के प्रकाश से वो अँधा न हो और पूजा भी हो जाए. ऐसी भी मान्यता है की न तो पुजारी के मुंह की गन्ध देवता पर और नहीं देवता की गन्ध पुजारी पर जाती है इसकी कारन पुजारी अपने नाक, कान, मुंह आदि को बंद कर पूजा करने जाते है !
यह स्थान चमोली देवल के निकट है इसे लाटू मंदिर के नाम से जाना जाता है ! मान्यताओं के अनुसार लाटू देवता नन्दा देवी के धर्म के भाई है ! इस मंदिर के पट साल में एक ही बार वैशाख महा की पूर्णमा को खुलते है पुजारी आँख मुंह बांधकर इस मिंदर के पट खोलते है ! इस दिन यह बिशाल मेला लगता है

##टिहरी जनपद के भिलंगना ब्लाक के दल्ला गांव में नागराजा ग्रामीणों का ईष्ट देव है जिसे क्षेत्र के देवी-देवताओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। नागराजा का निशान हर तीसरे साल बाहर निकाला जाता है। रविवार को सुबह विधिवत पूजा-अर्चना कर नागराजा के निशान को बाहर निकाला गया। इस अवसर पर क्षेत्र के सात गांवों के देवी-देवताओं व उनके पश्वा भी दल्ला गांव पहुंचे, जहां ग्रामीणों ने उनका भव्य स्वागत किया गया। बाद में ग्रामीणों ने देवताओं को नचाया। इस अवसर पर पांडव नृत्य का भी आयोजन किया गया। इस धार्मिक आयोजन पर रोजगार के लिए महानगरों में रहने वाले लोग व धियाणियां (शादीशुदा बेटी) भी विशेष रूप से गांव आती हैं। नागराजा के पुजारी सुंदरलाल रतूड़ी का कहना है कि वर्षो पूर्व सेम-मुखेम के ग्रामीण अपने निशान को बदरीनाथ ले गए थे और वापसी के दौरान उन्होंने दल्ला गांव में विश्राम किया। बाद में निशान जमीन से उठा ही नहीं और वहीं पर जम गया। तब से आज तक यह दल्ला गांव में ही है और असली नागराजा का निशान यही है। इसकी खासियत यह है कि पुजारी के अलावा इस निशान को कोई उठा नहीं सकता है। गांव के क्षेत्र पंचायत सदस्य रजनी नेगी, विनोद रतूड़ी, चन्द्रवीर का कहना है कि मंदिर के सौंदर्यीकरण व मेले के भव्य आयोजन के लिए पर्यटन व सरकार को पहल करनी चाहिए।

एक गागर पानी पी जाता है पश्वा

नई टिहरी : हर तीसरे साल जब नागराजा देवता के निशान को बाहर निकाला जाता है तो देवता के पश्वा को अवतरित किया जाता है। इस दौरान पश्वा एक गागर पानी व कई सेर कच्चा दूध पी जाता है। इस दृश्य को देखकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। नागराजा देवता को धूप-दीप दिखाने का जो पात्र है वह भी अनूठा है। इस पात्र की तरह बना अन्य कोई पात्र क्षेत्र में कहीं नहीं है और न ही अब तक इस तरह की बनावट गढ़वाल में कही देखी गई। किवदंति है कि यह पात्र आक्षरियों (परियों) से छीना गया था। तब से अब तक इसी पात्र में धूप जलाकर नागराजा को अवतरित किया जाता है।

###उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद में रवाई घटी में पुरोला तहसील क्षेत्र पट्टी सरबड़ीयाड़ में स्थित श्री कालिय नाग का मंदिर है! इस मंदिर के अहाते में एक धूनी प्रज्वलित है ! इस धूनी का बुझना अशुभ माना जाता है! ऐतिहासिक राजबुंगा किले के पास स्थित नागनाथ मंदिर में संतान सुख के साथ ही शत्रुओं के संकट से निजात मिलती है। यहां धूनी के साथ ही कालभैरव का मंदिर लोगों की आस्था व श्रद्घा का केंद्र सदियों से बना है। यहां हर दिन पूजा के समय नौमत लगती है।

कहा जाता है कि चंद राजाओं ने जब चम्पावत में अपनी राजधानी स्थापित की तो इसके शीर्ष भाग में नगर की रक्षा के लिए नाथ संप्रदाय के एक महंत ने अपना डेरा जमाया। जिसे राजा ने अपना गुरु मानते हुए उनसे आशीर्वाद लिया और यह स्थान नागनाथ के रूप में जाना जाने लगा। इस मंदिर में नागनाथ की धूनी के साथ ही कालभैरव का भी मंदिर है। कहते हैं यहां पूजा अर्चना करने से संतान सुख की प्राप्ति तो होती ही है, वहीं शत्रुओं का नाश होता है। सुबह व सायं आरती के समय यहां आज भी नौमत लगती है। तूरी जाति के लोग नगाडे़ के साथ ही तुरही बजाते हैं। वैसे तो यहां हर समय भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन बसंत और शारदीय नवरात्र के मौके पर तो यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। जिले ही नहीं बल्कि कुमाऊं के अन्य हिस्सों से भी लोग यहां आकर अपनी मुरादें पूरी करते हैं। इस मंदिर के पुजारी रावल लोग हैं, जो नियमित रूप से पूजा अर्चना करवाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के तीसरे रोज यहां हर वर्ष फूलडोल मेले का भी आयोजन होता है।
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सेममुखेम नागराज
सेममुखेम नागराज उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में स्थित एक प्रसिद्ध नागतीर्थ है। श्रद्धालुओं में यह सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। मन्दिर का सुन्दर द्वार १४ फुट चौड़ा तथा २७ फुट ऊँचा है। इसमें नागराज फन फैलाये हैं और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन हैं। मन्दिर में प्रवेश के बाद नागराजा के दर्शन होते हैं।मन्दिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयं भू-शिला है। ये शिला द्वापर युग की बतायी जाती है। मन्दिर के दाँयी तरफ गंगू रमोला के परिवार की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। सेम नागराजा की पूजा करने से पहले गंगू रमोला की पूजा की जाती है।.

उत्तराखण्ड के प्रमुख मन्दिर
चार धाम – गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, और बद्रनाथ।
पंचकुण्ड – तप्तकुण्ड, नारथकुण्ड, सत्यपथकुण्ड, मानुसीकुण्ड, त्रिकोणकुण्ड।
पंचधारा – प्रहलाद धार, कूर्मुधारा, उर्वशीधारा, वसुधारा, भृगुधारा
पंचकेदार – केदारनाथ, तुंगनाथ, मदमहेश्वर नाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वरनाथ।
पंचबद्री – बद्रीनाथ, आदिबद्री, भविष्यबद्री, वृद्धबद्री, योगध्यानबद्री।
उत्तरकाशी के प्रमुख मन्दिर
1 विश्वनाथ मंदिर – यह मंदिर उत्तरकाशी जपनद से 300 मीटर की दूरी पर भागीरथी नदी के दांए किनारे पर स्थित है।
2 गंगोत्री मन्दिर 3 कण्डार देवी – उत्तरकाशी में स्थित एक प्राचीन मंदिर है।
4 शक्ति मन्दिर – विश्वनाथ मंदिर के साथ ही यह मंदिर भी है इस मंदिर की मुख्य विशेषता इसमें 6 मी. ऊचां एक विशाल त्रिशूल है।
5 यमुनोत्री धाम 6 कचडू देवता
7 पौखू देवता
8 अन्नपूर्णा शक्तिपीठ – यह मंदिर गंगोत्री मंदिर का ही एक हिस्सा है।
9 दुर्योधन मंदिर-
10 परशुराम मंदिर
11 कालिंगानाथ मंदिर
12 लक्षेश्वर मंदिर
13 विश्वेश्वर मंदिर
14 कुट्टीदेवी
15 दत्तत्रेय मंदिर
16 कमलेश्वर मंदिर
17 भैरव मंदिर
18 कण्डारा मंदिर
टिहरी के प्रमुख मन्दिर
1 लक्ष्मण मंदिर –
2 नागटिब्बा मंदिर
3 चन्द्रबदनी – टिहरी मुख्यालय से 8 किमी दूर।
4 कोटेश्वर महाराज
5 राम मंदिर
6 सुरकण्डा देवी
7 कुजांपुरी देवी
8 सेम नागराजा – नागराज का प्रसिद्ध मंदिर है।
9 रथी देवता
10 रघुनाथ मंदिर,
11 नाग मंदिर
12 बिष्णु मंदिर
13 रमणा शक्तिपीठ
15 बुढा केदार
16 पाउकी देवी मंदिर
17 भद्रकाली मंदिर
18 देवप्रयाग – इसे इन्द्रप्रयाग भी कहा जाता है। यहां के प्रमुख मंदिरों में रघुनाथ मंदिर है।
देहरादून के प्रमुख मन्दिर
1 महासू देवता
2 सतला देवी
3 टपकेश्वर,
4 झण्डा मेला,
5 हाडकाली मंदिर,
6 बुद्धा टैम्पल
7 लक्ष्मण सिद्धी – चैरासी सिद्धों में से एक है।
8 भरत मंदिर,
9 माल देवता,
10 लाखा मण्डल – महाभारत के समय में लाक्षागृह यहीं पर बनाया गया था इसी कारण यह कई प्रकार की मूर्तियां है। इसे मूर्तियों का भंडार भी कहा जाता है। इस स्थान का सबसे प्रसिद्ध मंदिर शिव मंदिर है।
11 सांई बाबा मंदिर
नोट – ऋषिकेश में भरत मंदिर, राम मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, व शत्रुघन मंदिर, अर्थात चारों भाईयों के मंदिर है।
हरिद्वार के प्रमुख मन्दिर
1 मंसादेवी
2 चण्डीदेवी
3 भारतमाता मंदिर
4 पिरान कलियार – हजरत अलाउद्दीन अहमद साबिर की दरगाह है।
5 दक्ष मंदिर
6 विलकेश्वर महादेव
7 गंगा मन्दिर
8 मायादेवी मंदिर
9 नीलेश्वर महादेव
10 गायत्री मंदिर
11 कागड़ा मंदिर
12 गौरखनाथ मंदिर
13 रामेश्वर महादेव
14 पावन धाम
15 नारायणबली मंदिर
16 शांतिकुंज – यह गायत्रीतीर्थ के रूप में जाना जाता है इसकी स्थापना 1971 में श्रीराम शर्मा ने की थी
पौड़ी के प्रमुख मन्दिर
1 नीलकण्ट महादेव
2 धारीदेवी
3 ज्वापलादेवी
4 ताड़केश्वर
5 कैलाश निकेतन
6 स्वर्गाश्रम
7 कमलेश्वर (बेकुण्ड चतुर्ददशी),
8 सिद्धबली
9 कालेश्वर,
10 भैरवगड़ी
11 क्यूंकालेश्वर
12 कंडोलियाँ
13 कमलेश्वर मंदिर
14 राजराजेश्वरी देवी
15 शंकरमठ
16 केसोरायमठ मंदिर
17 कंशमर्दनी मंदिर
16 सोमकाभाण्डा
17 कोटमहादेव
18 दुर्गादेवी
रुद्रप्रयाग के प्रमुख मन्दिर
1 तुगंनाथ – सबसे अधिक ऊचांई पर स्थित मंदिर (3650मी.)
2 मधुमेश्वरनाथ
3 केदारनाथ
4 कार्तिकनाथ
5 त्रिजुकिनारायण
6 कालीमट्ठ – कालीदास का जन्म हुआ था।
7 ओंकारेश्वर
8 कोटेश्वर महाराज
9 महार्षि मन्दिर
10 महासरस्वती मंदिर
11 त्रिंजुकी नरायण
12 हरियाली देवी
13 कण्डोलिया देवता
14 गौरी देवी
15 कैलाश मंदिर
16 अगस्तेश्वर महादेव
17 अर्द्धनारेश्वर मंदिर
चमोली के प्रमुख मन्दिर
1 वृद्धबद्री
2 योगध्यान बद्री
3 बद्रीनाथ
4 लोकपाल
5 नरसिहंदेव
6 आदिबद्री
7 भविष्यबद्री
8 कर्ण मंदिर
9 अनुसूया देवी
10 हेमकुण्ड
11 वासुदेव मंदिर – जोशीमठ में
12 नवदुर्गादेवी
13 विष्णु मंदिर
14 उमादेवी
15 गोपीनाथ मंदिर
16 लव-कुश मंदिर
17 चण्डिका मंदिर
18 गौरी शंकर मंदिर
19 घण्टाकर्ण मंदिर
20 लाटुदेवता मंदिर – वाणा गांव में स्थित है। इस मंदिर के कपाट एक ही दिन खुलते है और उसी दिन बंद हो जाते है। यहां पर पुजारी आंखों में पट्टी बाध कर पूजा करते है।
21 मातामूर्ति देवी मंदिर
22 अंजनी माता मंदिर
23 कालेश्वर का कालभैरव मंदिर
नैनीताल के प्रमुख मन्दिर
1 नेनादेवी – इस मंदिर का निर्माण मोती रामशाह ने कराया था।
2 गार्जीया
3 सीमावनी
4 ग्वेलदवता
5 कैंचीधाम
6 हनुमानवनी
ऊधम सिंह नगर के प्रमुख मन्दिर
1 बाला सुन्दरी (चैती का मंनिद)
2 नानकमता मंदिर
3 अटारीया देवी
4 द्रोण सागर
5 गिरिताल मंदिर
6 मोटेश्वर मंदिर
चम्पावत के प्रमुख मन्दिर
1 देवीधुरा
2 पूर्णागिरी मंदिर
3 बालेश्वर
4 रीटासाहेब मंदिर
5 बाणासूर
6 एकहत्यानोला
7 नागनाथ
9 मायावती आश्रम
10 बाराहिल मंदिर
11 ग्वाल देवता
12 घटोत्कच का मंदिर
13 पाताल रूद्रेश्वर गुफ्फा
14 नरसिंहदेव मंदिर
15 हिगंलादवी मंदिर
16 चैमुंह मंदिर
17 मल्लाणेश्वर मंदिर
18 चंपावती दुर्गा मंदिर
19 तारकेश्वर मंदिर
20 हिड़िम्बा देवी मंदिर
21 क्रातेश्वर महादेव
अल्मोड़ा के प्रमुख मन्दिर
1 नंदादेवी – इस मंदिर का निर्माण चंद शासक ज्ञानचंद ने कराया था।
2 कसारदेवी
3 विनसर महादेव मंदिर
4 कोटमाई मंदिर
5 सोमेश्वर मंदिर
6 द्रोणपूरी मंदिर
7 रामशिला मंदिर
8 जागेश्वर मंदिर धाम
9 सूर्य मंदिर (कटारमल)
10 गणनाथ गुफ्फा
11 दुना मंदिर
12 द्वाराहाट – इसे मंदिरों की नगरी व हिमालय की द्वारिका कहा जाता है। यहां के मंदिरों का निर्माण कत्यूरी राजाओं के द्वारा कराया गया। द्वाराहाट के प्रमुख मंदिर गूजरदेव, वैरुणती मंदिर आदि है।
13 सोमनाथ
14 जाखनदेवी मंदिर
15 विभाण्डेश्वर,
16 पुस्यमाता मंदिर – जागेश्वर में
17 वीरणेश्वर मंदिर
18 चीतल मंदिर
19 मल्लिका देवी मंदिर
21 स्याही देवी मंदिर
22 गोलु देवता (न्याय का देवता)
23 भूमियां मंदिर
24 कुश्ती माता मंदिर
25 त्रिपुरा देवी मंदिर
26 सल्ट महादेव मंदिर
27 दिनदेश्ववारा मंदिर – जागेश्वर में
28 कालिका मंदिर
29 झूलादेवी मंदिर
30 मनकामेश्वर मंदिर
बागेश्वर के प्रमुख मन्दिर
1 चन्दे्रका मंदिर
2 बेजनाथ मंदिर – पुराना नाम बैद्यनाथ
3 कोटभवरी मंदिर
4 बागनाथ मंदिर
पिथौरागढ़ के प्रमुख मन्दिर
1 पाताल भूवनेश्वर – पाताल भूवनेश्वर गुफा के अन्दर यह स्थित है।
2 छीपला केदार
3 ध्वज मंदिर
4 नारायण आश्रम
5 रामेश्वर मंदिर
6 अर्जूनेश्वर
7 कल्पेश्वर
8 थलकेदार
9 उल्का देवी
10 कामाख्या देवी
11 जयन्ती मंदिर
13 बेरीनाग
14 उमादेवी
15 चणाक मंदिर
16 हाटकालिका मंदिर – यह एक रहस्यमयी मंदिर है।
17 महाकालिका मंदिर
18 जसूरचुला मंदिर,
19 देवलसमेत मंदिर
20 चमुण्डा देवी मंदिर
21 अशुरचुला मंदिर
22 त्रीकोट मंदिर

यू ही नही है देवभ्‍ूामि उत्तबराखण्ड ##मैं स्तब्ध होकर सुन रहा था, अवाक था विज्ञान के इस युग में- मुंह से यही निकला- यू ही नही है देवभ्‍ूामि उत्तराखण्ड – देवभूमि में श्रापित स्थान भी है तो आर्शीवाद वाले स्थान भी
एक्सक्लू्सिव वर्णन- आध्यात्मिक वर्णन-
श्री मनोज ईस्ट्वाल जी प्रसिद्व पत्रकार की फेसबुक में इन लाइनों को पढा- तो मैं भी स्वसयं को रोक न पाया, कुछ अदभूत जानकारी मैं भी दे दू, पहले मैं उल्लेनख कर रहा हूं, श्री ईस्टूवाल जी की लिखी लाइनों का- वह लिखते हैं-
भीमताल के क्षेत्र क्वीरा गॉव के जवानों को दिया था गोल्जू ने श्राप ! वह उल्लेेख करते हैं कि कुमाऊँ के प्रसिद्ध साहित्यकार जुगलकिशोर पेटशाली का भी ‘ जहां गोल्जू ने क्वीरा गॉव वासियों को श्राप दिया कि “न कोई क्वीरा में जवान रहे, न वहां कभी धान होए”
कालगति में क्या हुआ कहा नहीं जाता लेकिन यह सत्य भी साबित हुआ जिस क्वीरा के खेतों में कभी धान की फसलें लहलहाया करती थी वे बंजर में तब्दील हो गयी 
वही अब मैं वर्णन कर रहा हूं उस क्षेत्र का, साइंस भी फेल है जहां ईस्टत देवता का अनोखा आशीर्वाद है, ईस्टर देवता का -अनोखा आशीर्वाद –
1′ इस क्षेत्र का कोई भी आर्मी जवान युद्व में कभी हताहत नही होगा, मारा नही जायेगा, पूरे सेवाकाल के उपरात पेंशन ही वापस आएगा
2′ इस क्षेत्र में ओला आदि अतिवष्टि से कभी फसल खराब नही होती,
3′ इस क्षेत्र में सूखा पडने पर ईस्ट‍ देव के मंदिर का पुजारी- मंदिर में जाकर आसमान की ओर मुंह करके तुरही बजायेगें, चमत्कार को नमस्कार होता है- तुरंत ऐसा प्रतीत होता है कि किसी ने मानो बादलों को आदेश दे दिया हो- बारिश होती है, राहत मिलती है- क्षेत्रीय जनता जयघोष करती है-
4′ और, एक सबसे बडी बात- जगली जानवरों की भरमार है, पर, पर विशेष रूप से लगा रहा हूं, कोई भी जानवर रिहायश की ओर नही जायेगा, इस क्षे्त्र में जंगली जानवरों से ईस्टं देवता के भक्तभ कभी हताहत नही होगे, ऐसा भी वरदान है-
शेर, भालू जानवर बहुतायत में है, पर आज तक इस क्षेत्र में रिहायश में नही घुसते-
इसके अलावा- और भी बहुत कुछ- है, जिसका समय आने पर विस्ता र से उल्लेुख करूंगा- यह जानकारी तो अनायास ही मुझे तब मिल गयी, जब मेरी चाची उस क्षेत्र से मेरे निवास स्थााई करीबन 45 साल बाद अनायास आयी, तो बातों बातों में जगली जानवरों का, बरसात के कहर का आदि का उल्लेाख मैं करने लगा, तो उन्होंोने कहा- सुन- तो तू पूरे देश विदेश घूमता रहा, अपने पिताजी के पैत़क स्थाैन की महिमा नही जानता क्याब- मैं अवाक, मैं बोला, क्यात चाची,
तो उन्होंने बताया- ग्राम वर्षायत कोली, पो0 पतेत, तहसील डीडीहाट जनपद पिथौरागढ के -हम वशिष्ठह गोत्र  जोशी- नागों के पुजारी है, तेरे पिताजी तथा दादाजी काली नाग, धुमरी नाग, सुनहरी नाग के सिद्व पुजारी थे, मंदिर के पुजारी अब तेरे चाचा है, इस क्षेत्र की जनता के नाग देवता ईस्टक देवता है- जिनके आशीर्वाद से इस क्षेत्र में यहां जो वर्णन किया गया है, वह चमत्का र होते हैं, और भी बहुत सारी शक्तिि तथा चमत्कारर है, वाणी भी सत्यय साबित होने की बात कही, उन्हों ने बताया- कि इसके अलावा यहां माता का एक मंदिर न्या,य का सुप्रीम कोर्ट है, बोली सुप्रीम कोर्ट का मतलब समझ रहा है, पूरे देश में एक होता है, यह देवी नाममात्र से जाग्रत हो जाती है, इसलिए माता का पूरा नाम भी उच्चारण नही किया जाता-
उनका भी वर्णन उन्हों ने किया- मैं स्तब्ध होकर सुन रहा था, विज्ञान को भी फेल करने वाले चमत्‍कार, अवाक था विज्ञान के इस युग में- मुंह से यही निकला- यू ही नही है देवभ्‍ूामि उत्तराखण्ड- 

चन्‍द्रशेखर जोशी मुख्‍य सम्‍पादक

हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड – लीडिेग डिजीटल न्‍यूज पोर्टल तथा दैनिक समाचार पत्र

देहरादून तथा हरिद्वार से प्रकाशित मोबा

9412932030, Mail; csjoshi_editor@yahoo.in

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