27 जुलाई उपाकर्म 7 अगस्त रक्षाबन्धन

27 जुलाई उपाकर्म 7 अगस्त रक्षाबन्धन ; 
समस्त धर्मप्रेमी जनता 27 जुलाई 2017 पूर्वाह्न को उपाकर्म और 7 अगस्त 2017 को 11:08 मिनट के बाद रक्षाबन्धन पर्व मनाएं । (www.himalayauk.org) Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper; publish at Dehradun & Haridwar; Mail; csjoshi_editor@yahoo.in Mob. 9412932030 

यजु उपाकर्म शास्त्रीय विवेचना –Aacharya Ji <mcpant@nakshatralok.com
इस वर्ष 7 अगस्त 2017 श्रावण पूर्णिमा के दिन ग्रहण होने के कारण उपाकर्म 27 जुलाई 2017 शुक्रवार को किया जायेगा
इस वर्ष 7 अगस्त 2017 श्रावण पूर्णिमा के दिन ग्रहण होने के कारण उपाकर्म 27 जुलाई 2017 शुक्रवार को किया जायेगा। अधिकतर पंचांगों में 28 जुलाई को उपाकर्म दर्शाया है,कुछ पंचांगकारों ने इसे 27 जुलाई को दर्शाया है और मदन रत्न के इस श्लोक का वर्णन कर (यदि स्यात श्रवणं पर्वं ग्रह संक्रांति दूषितं । स्यादुपाकरणं शुक्लपंचम्यां श्रावणस्य तु) इस दिन होने की पुष्टि की है । परन्तु व्रत-पर्व विवेक कार ने उपाकर्म- श्रावणपूर्णिमा श्रवणयुक्त संगव व्यापिनी ग्राह्य है। यदि इस दिन संक्रान्ति अथवा ग्रहण हो तो श्रावणमास के ही हस्त युक्त पंचमी में यजुर्वेदीय उपाकर्म करते हैं। यह लिखा है हस्त युक्त पंचमी 28 जुलाई को होने से इस दिन उपाकर्म करना शास्त्र सम्मत लगता है । क्या यह शास्त्र सम्मत है ? इसी प्रकार का योग 16/08/2008 में भी था। और श्रावणी उपाकर्म हस्तनक्षत्र युक्त श्रावण शुक्ल पंचमी 6 अगस्त 2008 बुधवार को किया गया था, या इस दिन हस्त नक्षत्र होना संयोग मात्र है ?क्योंकि इससे पूर्व भी इस प्रकार के संयोग बने हैं पर उस समय हस्त नक्षत्र नहीं था और नाग पंचमी को ही उपाकर्म किया गया था। जिन पंचागकारों ने 27 जुलाई को उपाकर्म दर्शाया है उन्होंने इन श्लोकों का अवलोकन किया होगा – भद्रायां ग्रहणं वापि पौर्णमास्यां यदा भवेत्। उपाकृतिस्तु पंचम्याम कार्या वाजसेनयिभः।। श्रावण शुक्ल पूर्णिमायां ग्रहणं संक्रांति वा भवेतदा। यजुर्वेदिभिः श्रावण शुक्ल पंचम्यांमुपाकर्म कर्तव्यं॥ यदि स्यात श्रवणं पर्वं ग्रह संक्रांति दूषितं । स्यादुपाकरणं शुक्लपंचम्यां श्रावणस्य तु। उपरोक्त श्लोक मदनरत्न, धर्म सिन्धु/निर्णय सिन्धु के हैं । इन्हीं के आधार पर अधिक निर्णय लिए जाते रहे हैं और 27 जुलाई को ही उपाकर्म होना चाहिए, क्या यह शास्त्र सम्मत है ? कई स्थानों पर उपाकर्म प्रातः काल करने का निर्देश हुआ है और 27 जुलाई को प्रातः काल भद्रा व्याप्त है और भद्रा में उपाकर्म न करें कहा गया है परन्तु भद्रा पुच्छ ग्रहण कर सकते हैं यह शास्त्रोक्त है। नक्षत्रलोक किसी भी पंचांगकार का समर्थन और विरोध नहीं करता कृपया कोई भी सज्जन इसे व्यक्तिगत न ले हम केवल शास्त्र की बात का समर्थन करते हैं यदि इनकी व्याख्या गलत है तो भविष्य के लिए सुधार हो और सनातन धर्म की आगामी पीढ़ी तक सही बात जाये यह हमारा प्रयत्न है। “ग्राह्या सोदय गामिनी” और “मुहूर्त मात्रा कर्तव्या” कहकर यजन और पूजन के लिए उदय व्यापिनी तिथि को माना जाय यह कथन कर्मकांडी कहते हैं इस आधार को माने तो 28 जुलाई को पंचमी उदय व्यापिनी है। पारस्कर का यह सूत्र ओषधीनां प्रादुर्भावे श्रवणेन श्रावण्यांपौर्णमास्यां श्रावणस्य पंचमी हस्तेन वा।। पारस्कर. गृ .सूत्र 2.10.1 जब वनस्पतियां उत्पन्न होती हैं श्रावण मास के श्रवण व चंद्र के मिलन ;पूर्णिमा या हस्त नक्षत्र में श्रावण पंचमी को उपाकर्म होता है । इसी प्रकार का समर्थन आश्वलायन गृ .सूत्र 3.4.10 ने भी किया है और व्रत पर्व विवेक भी हस्त युक्त पंचमी का समर्थन करता है। हस्त नक्षत्र को ही इतना महत्व क्यों दिया गया ? इसका कारण यह है कि हस्त नक्षत्र का स्वामी चन्द्र तथा देवता सविता हैं और गायत्री मंत्र के देवता भी सूर्य हैं और यज्ञोपवीत को हाथ पर वेष्टित कर जप किया जाता है। हस्त का शाब्दिक अर्थ भी हाथ ही है । यदि श्रावण पूर्णिमा ग्रहण , संक्रांति से दूषित हो तब हस्त नक्षत्र में उपाकर्म को प्राथमिकता दी गयी परन्तु केवल हस्त में ही उपाकर्म करें यह स्पष्ट निर्देश ज्ञात नहीं हुआ और श्रावण पंचमी में उपाकर्म करें इस बात के अधिक प्रमाण प्राप्त होते हैं इसलिए 27 जुलाई को उपाकर्म करना सही है अतः 27 जुलाई को पूर्वाह्न में उपाकर्म करना शास्त्र सम्मत है।

पाकर्म! स्पष्ट निर्णय :-
दिनांक 12 जुलाई 2017 को अमर उजाला के नैनीताल संस्करण के पृष्ठ संख्या 8 में छपे उपाकर्म (वार्षिक जनेऊ धारण ) संस्कार और रक्षाबन्धन पर्व पर हल्द्वानी की पर्व निर्णय सभा के निर्णय पर हैरानी होती है। क्योकि इसमें यह प्रकाशित किया गया है कि 7 अगस्त को हस्त नक्षत्र और भद्रा होने के कारण 28 जुलाई को रक्षाबन्धन और उपाकर्म किया जाएगा। प्रश्न यह है कि विद्वानों की इस सभा में किसी ने यह भी नहीं देखा कि 7 अगस्त 2017 को हस्त नक्षत्र है ही नहीं ।
श्रावणी पर्व हमेशा श्रवण नक्षत्र के संयोग पर ही मनाया जाता है । इस वर्ष रक्षाबन्धन 28 जुलाई को मनाया जाना और उपाकर्म करना भी शास्त्र सम्मत नहीं है क्योंकि यजुर्वेदियों का उपाकर्म तीन प्रमुख योगों पर किया जाता है।
1. श्रावण पूर्णिमा 2. श्रावण शुक्ल पंचमी 3. श्रावण शुक्ल में पंचमी युक्त हस्त नक्षत्र, दूसरे और तीसरे योग पर तब विचार किया जाता है जब श्रावण पूर्णिमा के दिन ग्रहण या संक्रान्ति हो । 7 अगस्त 20 17 को चन्द्र ग्रहण होने के कारण उपाकर्म उस दिन नहीं हो सकता परन्तु रक्षाबंधन 11 बजकर 8 मिनट के बाद किया जाना चाहिए इसका ग्रहण से कोई संबंध नहीं है । धर्म सिन्धु और निर्णय सिंधु में स्पष्ट लिखा है कि यदि पंचमी और हस्त तीन मुहूर्त से कम हो तो पहले ही दिन उपाकर्म किया जाए। श्री रामदत्त पंचाग, श्री ताराप्रसाद दिव्य पचांग एवं अन्य प्रचलित पंचांगों में विषमता से यह विवाद उत्पन्न हुआ है ।
इस संबंध में प्रवासी उत्तराखंडी सुधी सज्जनों ने लखनऊ , बनारस ,कलकत्ता , मुंबई , गांधीनगर, उदयपुर, गुड़गांव, पंचकुला, चंडीगढ़, जम्मू, धर्मशाला , देहरादून, कोटद्वार, देवघर, रायपुर, दिल्ली, अल्मोड़ा, रानीखेत, हल्द्वानी शहरों से मोबाईल एवं व्हाट्सप द्वारा संपर्क कर उपस्थित संशय को दूर कर स्थिति को स्पष्ट करने का आग्रह किया ।
इस संशय के निवारण हेतु नक्षत्रलोक के द्वारा ज्योतिष कर्मकांड एवं शास्त्रज्ञ विद्वानों से विनम्र निवेदन कर बैठक हेतु आमंत्रित किया गया और सुधी जनों ने सहर्ष आमंत्रण स्वीकार कर बैठक में अपनी गरिमामयी उपस्थिति देकर शास्त्र सम्मत निर्णय प्रतिपादित किया, श्री महेश चन्द्र पन्त ( पंचागकार, गणितज्ञ एवं ज्योतिषी), डाॅ. स्मर बेणुधर पराशर ( तर्कशास्त्री), श्री घन श्याम जी(यजुर्वेदाचार्य), श्री दिनेश तिवारी जी, श्रीमती खीला पन्त, श्री आनंद जोशी जी( साहित्याचार्य), श्री पूरन चन्द्र जोशी(ज्योतिष एवं कर्मकाण्ड), पं. नन्दाबल्लभ जोशी, श्रीमती मीना कर्नाटक( ज्योतिषी), पं. मोहन जोशी( कर्मकाण्डी), पं. ललित मोहन तिवारी( कर्मकाण्डी) और युगल किशोर जी ने श्रावणी उपाकर्म से संबंधित सनातन धर्म शास्त्रीय प्रतिपादित मतों का विवेचन कर सभी संशयों का पटाक्षेप कर निम्नानुसार निर्णय दिया ।
28 जुलाई 2017 को दिनमान 33 घडी 45 पला का है । इसके अनुसार इस दिन एक मुहूर्त का समय 2 घडी 14 पला 20 विपला का है। इस दिन पंचमी तिथि 2 घडी 38 पला अर्थात एक मुहूर्त से 24 पला अधिक है । निर्णय सिंधु के वाक्य यदा द्वितीय दिने मुहूर्त द्वयं न्यूना भवति सर्व यजुषाणां पूर्वं ग्राह्या. के आधार पर 27 जुलाई को उपाकर्म होना चाहिए। यदि हम देशाचारात और पूर्व में कूर्मांचलीय पंचांगकारों के निर्णय पर बात करें तो नाग पंचमी को उपाकर्म करना पाया गया है और इनमें हस्त नक्षत्र भी था और कई स्थानों पर हस्त नक्षत्र नहीं था। लेकिन इस वर्ष की स्थिति अलग है इस वर्ष 28 जुलाई को पंचमी तिथि तीन मुहूर्त से कम है । अब 27 जुलाई पर विचार करेंगे प्रातः काल संगव व्यापिनी पंचमी में उपाकर्म करते हैं इस शास्त्र वचन के आधार पर गणित देखें 27 जुलाई दिनमान 33 घडी 45 पला प्रातः काल का समय 06 घडी45 पला संगव काल 13 घडी 30 पला अर्थात 8 बजकर 17 मिनट तक प्रातः काल कहेंगे और 10 बजकर 59 मिनट तक संगव काल। 7 बजकर 1 मिनट से पंचमी प्रारम्भ हो जाती है लेकिन 28 जुलाई को हस्त युक्ता होते हुए भी उपाकर्म के लिए ग्राह्य नहीं मानी जा सकती।
नक्षत्रलोक का कूर्म प्रदेश के माध्यन्दिन शाखा के सभी यजुर्वेदियों से निवेदन हैं कि वे 27 जुलाई को उपाकर्म करें अन्य हस्त नक्षत्रानुयायी यजुर्वेदी 28 को भी उपाकर्म कर सकते हैं इस विषय पर सभी सुधीजन निर्णय सिंधु,धर्म सिंधु का विस्तृत अध्ययन करके शास्त्र की बातों की मर्यादा रखेंगे।
काण्वमाध्यंदिनादिकात्यायनानां श्रवणयुता श्रावण केवला वा, हस्तयुक्तापंचमी केवला वा मुख्यकालः केवल हस्ते केवल श्रवणे तैर्नकार्यम्।
इस संबंध श्री ताराप्रसाद दिव्य पचांग का मत शास्त्र सम्मत है।

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