जनसंघर्ष मोर्चा उबला सरकार की इस नीति से, कोर्ट जायेगा

विकासनगर -देहरादून स्थानीय होटल में पत्रकारों से वार्ता करते हुए जी00एम0वी0एन0 के पूर्व उपाध्यक्ष एवं जनसंघर्ष मोर्चा अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि वर्तमान में UTTRAKHAND प्रदेश की माली हालत को देखते हुए मोर्चा पूर्व विधायकों को पेंशन समाप्त कराने को लेकर मा0 न्यायालय में दस्तक देगा।

9 MAY 2017 NEWS;

 

जनसंघर्ष मोर्चा अध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी ने कहा कि प्रदेश पर लगभग 40 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है तथा ब्याज चुकाने के लिए सरकार कर्ज ले रही है तो ऐसी माली हालत में विधायकों को पेंशन का क्या औचित्य रह जाता है। हैरानी की बात यह है कि पूर्व विधायकों को वर्ष 2008 में 6 हजार, वर्ष 2010 में 10 हजार, वर्ष 2014 में 20 हजार तथा 2018 में त्रिवेन्द्र की दरियादिल सरकान ने 40 हजार रूपये कर दी है। इसके साथ-साथ पेंशन मामले में उम्र के हिसाब से अलग-अलग पायदान बनाये गये हैं, जिसमें 65 वर्ष के पश्चात् 5 फीसदी, 70 वर्ष के पश्चात् 10 फीसदी, 75 के पश्चात् 25 फीसदी तथा 80 वर्ष के उपरान्त 50 फीसदी अतिरिक्त पेंशन की व्यवस्था है। आलम यह है कि गलत नीतियों एवं तुष्टिकरण के चलते आज विधायक समाज सेवक न होकर सरकारी सेवक बन गये हैं, जो कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए घातक है।

नेगी ने कहा कि बड़े दुर्भाग्य की बात है कि प्रदेश पर लगभग 40 हजार करोड़ से अधिक का कर्ज है तथा ब्याज चुकाने के लिए सरकार कर्ज ले रही है तो ऐसी माली हालत में विधायकों को पेंशन का क्या औचित्य रह जाता है। हैरानी की बात यह है कि पूर्व विधायकों को वर्ष 2008 में 6 हजार, वर्ष 2010 में 10 हजार, वर्ष 2014 में 20 हजार तथा 2018 में त्रिवेन्द्र की दरियादिल सरकान ने 40 हजार रूपये कर दी है। इसके साथ-साथ पेंशन मामले में उम्र के हिसाब से अलग-अलग पायदान बनाये गये हैं, जिसमें 65 वर्ष के पश्चात् 5 फीसदी, 70 वर्ष के पश्चात् 10 फीसदी, 75 के पश्चात् 25 फीसदी तथा 80 वर्ष के उपरान्त 50 फीसदी अतिरिक्त पेंशन की व्यवस्था है। आलम यह है कि गलत नीतियों एवं तुष्टिकरण के चलते आज विधायक समाज सेवक न होकर सरकारी सेवक बन गये हैं, जो कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए घातक है।
नेगी ने कहा कि प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के लिए (वर्ष 2005) के पश्चात् कोई पेंशन की व्यवस्था नहीं है, सिर्फ अंशदायी पेंशन है, लेकिन इन पूर्व विधायकों (अघोषित सरकारी कर्मचारियों) के लिए जीवन पर्यन्त पेंशन की व्यवस्था है। उक्त पेंशन से प्रदेश का खजाना खाली हो रहा है, जिसको लेकर मोर्चा मा0 न्यायालय में दस्तक देगा।

प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के लिए (वर्ष 2005) के पश्चात् कोई पेंशन की व्यवस्था नहीं है, सिर्फ अंशदायी पेंशन है, लेकिन इन पूर्व विधायकों (अघोषित सरकारी कर्मचारियों) के लिए जीवन पर्यन्त पेंशन की व्यवस्था है। उक्त पेंशन से प्रदेश का खजाना खाली हो रहा है, जिसको लेकर मोर्चा मा0 न्यायालय में दस्तक देगा।

नेगी ने दुःख जताते हुए कहा कि प्रदेश में हजारों वर्कचार्ज/तदर्थ कर्मचारी 30-35 वर्ष की सेवा करने के उपरान्त भी पेंशन के हकदार नहीं है। सरकार ने 10 वर्ष में इन विधायकों की पेंशन में लगभग 7 गुना इजाफा किया है।

उत्तराखंड के विधायक भी अब मालदार हो गए हैं। उनका वेतन सांसदों के लगभग बराबर हो गया है। वे अपनी बीमारी का इलाज कराने अब विदेश भी जा सकेंगे।  विधायकों के वेतन भत्तों में कुल 120 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी की गई है। विधेयक के तहत विधायकों के लिए होम लोन की सीमा 30 लाख से बढ़ाकर पचास लाख कर दी गई है, जबकि वाहन लोन की सीमा पूर्व की भांति 15 लाख ही रखी है। होम लोन के लिए ब्याज की दर पहले सरकार तय करती थी। अब यह लोन एसबीआई की दरों के आधार पर मिलेगा। विधायक इलाज के लिए विदेश एम्स की सिफारिश के आधार पर ही जा सकेंगे।  विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का मासिक वेतन 54 हजार से बढ़ाकर एक लाख 10 हजार किया गया है। अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को वेतन, भत्ते मिलाकर अब महीने में 3.80 लाख के करीब वेतन मिलेगा।  विधायक का वेतन 10 हजार से बढ़ाकर 30 हजार, विधानसभा क्षेत्र भत्ते को साठ हजार को बढ़ाकर डेढ़ लाख और कुल वेतन एक लाख सत्तावन हजार से बढ़ाकर तीन लाख पच्चीस हजार किया गया है। मंत्रियों को अब कुल मिलाकर लगभग चार लाख के करीब वेतन भत्ते मिलेंगे। स्पीकर, डिप्टी स्पीकर, मंत्री और नेता प्रतिपक्ष के सरकारी आवासों का रख रखाव राज्य संपत्ति विभाग करता है, लेकिन इसके बावजूद आवास सौंदर्यीकरण के लिए प्रतिमाह उन्हें भत्ता मिलता है। स्पीकर को 20,000 तो नेता प्रतिपक्ष को 10,000 का पूर्व में प्रावधान है।

विश्व में भारत ऐसा लोकतांत्रिक देश है जहां जनप्रतिनिधि अपने फायदे के लिए वेतन भत्ते तथा पेंशन में बढ़ोत्तरी के लिए कानून बनाते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहते थे कि जन सेवकों को अपने हित के लिए नहीं बल्कि लोकहित के लिए सोचना चाहिए, लेकिन यहां उल्टा हो रहा है। अधिकांश मतदाताओं को यह बात मालूम नहीं है कि उनके तथाकथित सेवक सांसद व विधायकों को कितनी पेंशन, वेतन व भत्ते मिलते हैं और उनकी कितनी निधि होती है। हम ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुनें जिनके स्वभाव में समाजसेवा हो न कि ऐसे प्रत्याशियों को चुनें जो चुनाव के दौरान तो समाज सेवा का चोला ओढ़ लेते हैं, लेकिन चुनाव जीतते ही केंचुए से कोबरा बन जाते हैं।

पत्रकार वार्ता में:- मोर्चा महासचिव आकाश पंवार, दिलबाग सिंह, ओ0पी0 राणा, गजपाल रावत, प्रवीण शर्मा पीन्नी आदि थे।

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