उत्तराखंड – नदियों पर बांध: लोगो की आवाज़ों पर ताला!!

प्रधानमंत्री को पर्यावरण के लिए पुरुस्कार? नदियों पर बांध: लोगो की आवाज़ों पर ताला!!

उत्तराखंड – जखोल साकरी जल विद्युत परियोजना की जनसुनवाई अचानक से 25 अक्टूबर को घोषित हुई ।ज्ञातव्य हैं कि पिछली जन सुनवाई 12 जून को प्रभावित लोगों ने इसीलिए स्थगित करवाई थी कि सभी कागजात अंग्रेजी में रखे गए थे और गांव में जो समरी कागजात दिए गए वे भी अंग्रेजी भाषा को हिंदी लिपि में लिखा गया था।

उत्‍तराखण्‍ड में घाटी के लोगो ने पर्यावरण को बचाने के लिए बांध को नकारा हैं । सरकार को चाहिए कि क्षेत्र के विकास के लिए वन अधिकार कानून 2006 लागू करें। लोगों को जंगल पर अधिकार देंजीने की मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराए।

उत्तराखंड की उत्तरकाशी जिले में टोंस की सहायक छोटी सी नदी सुपिन पर प्रस्तावित 44 मेगावाट की जखोल साकरी बांध के असर के बारे में लोगो को कोई जानकारी नहीं । बरसो से इस सुपिन नदी घाटी की सुंदर वादी को गोविंद वन्यजीव विहार में लिया गया है इस कारण यहां पर तीव्र ध्वनि तक पर पाबंदी है। ऐसी में यहां पर बांध समझ में ही नहीं आता है।

Pm-modi-gets-unep-champions-of-the-earth-award

 प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी( PM Narendra Modi) को दिल्ली में बुधवार को आयोजित एक विशेष समारोह में संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार ‘‘चैंपियंस ऑफ अर्थ द अवार्ड’’ से सम्मानित किया गया. संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटारेस ने पर्यावरण के क्षेत्र में योगदान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ’ अवॉर्ड से सम्मानित किया. इससे पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने संबोधन में कहा कि आज भारत के लिए बहुत ही गौरव का दिन है, आज संयुक्त राष्ट्र द्वारा भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को ‘Champions of the Earth’ का अवार्ड दिया गया. उन्होंने कहा कि हम Earth को Planet नहीं मानते हैं, पृथ्वी हमारे लिए ग्रह नहीं है, पृथ्वी हमारे लिए मां है. भारत में जब भवन बनाए जाते हैं तो भूमि-पूजन किया जाता है. वहीं, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस ने कहा कि पीएम मोदी ने (पर्यावरण के क्षेत्र में) जिस नेतृत्व का प्रदर्शन किया है, दुनिया में उसकी कमी है. ग्रीन इकोनॉमी का आने वाले दशक में बड़ा योगदान होगा.  मोदी ने कहा कि पर्यावरण के प्रति लगाव हमारी आस्था के साथ-साथ अब आचरण में भी और मजबूत हो रहा है.

चालाकी से मात्र बांध निर्माण क्षेत्र को वन्यजीव विहार से कुछ सालों पहले अलग कर दिया गया। ताकि बांध का रास्ता खुल जाए। लोगो पर दवाब लेन के लिए, उनमें भ्रम फैलाकर, गलत सूचना देकर, धमका कर तत्कालीन जिला उपजिलाधिकारी अनापत्ति प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर ले रहे थे। 24 मई को जिलाधिकारी उत्तरकाशी को मिलकर हमने यह सब बताया था।
इस बार भी अगस्त व सितम्बर महीने में बांध प्रभावित में तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने लोगों को डरा धमका कर बांध के पक्ष में होने के लिए दबाव दिया। लोगों को मुकद्दमें का भय दिखाया गया। जिसके लिए 30 अगस्त को जिलाधिकारी को फैक्स से निवेदन भेजा। 17 सितंबर को थानाध्यक्ष, मोरी को लोगो ने डाक द्वारा थाने में तहरीर दी थी।

 

यमुना घाटी की सहयोगिनी टोंस नदी से मिलने वाली सुपिन एक छोटी नदी है जिस पर बांध प्रस्तावित है यह पूरा क्षेत्र गोविंद पशु विहार में आता है। कई दशकों से यहां के गांववालो को हॉर्न बजाने तक की पाबंदी है। उच्च कोटि के पर्यटन की संभावनाओं वाले क्षेत्र में सड़कजंगल के अधिकारों से वंचित लोग अपनी पारंपरिक संस्कृति के साथ जीते हैं।  आश्चर्य का विषय है लगभग किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने की अनुमति कैसे हो गईइसी बांध के नीचे नैटवार मोरी बांध के प्रभावित अपनी समस्याओं को लेकर परेशान हैं। इसी बांध क्षेत्र में रहने वाले गुर्जरों को विस्थापन झेलना पड़ रहा है किंतु कोई मुआवजा या पुनर्वास की बात नहीं और वही बांध कंपनी जखोलसाकरी बांध बनाने के लिए आगे आ रही है।  जिस घाटी में 42% साक्षरता है वहां 650 पन्नों के अंग्रेजी वाले कागजात पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्टपर्यावरण प्रबंध योजना व समाजिक आकलन रिपोर्ट दिए गए। जिनमें किसकी कितनी जमीन जा रही है इतना भी जिक्र नहीं हैसुरंग से बर्बाद होने वाले गांवों की तो कोई बात ही नहीं। यह सब तरीके बताते हैं कि बांध कंपनी के लोग देश काराज्य का,गांव का विकास जैसी बातें करके प्रभावित गांवों से कंपनी सामाजिक दायित्व (सीएसआरके पैसे से कुछ सामान बांट कर बांध के लिए झूठी अनापत्ति लेते रहे हैं। जखोल गांव की जमीन भले ही कम जा रही हो किन्तु सुरंग से बर्बादी का आकलन असंभव है।और जिन  गांवो की जमीन  ज्यादा जा रही है उनको भी मात्र जमीन के दाम पर भ्रमित करके और आश्वासन देकर चुप करने की कोशिश की गई है। वन अधिकार कानून 2006 के अंतर्गत बिना कोई अधिकार दिए और यह भ्रम फैलाकर की कानून मात्र आदिवासियों के हक की बात करता हैलोगों से व्यक्तिगत रूप से हस्ताक्षर कराए गए हैं।

 

परियोजना के लिए लोगों पर अनावश्यक दवाब दिया गया है। जबकि 20 लाख से ज्यादा खर्च कर बनाये गए कागजातों को लोगों की भाषा में देने और समझाने की मांग को प्रशासन ने नहीं पूरा किया है।
बांध प्रभावित मात्र वे नहीं है जिनकी जमीन जा रही है प्रभावित पूरा क्षेत्र होगा जिसका पर्यावरण खराब होगा।
अब अचानक से ही लोगों कि किसी मांग पर ध्यान दिए, 25 अक्टूबर को पुन: जनसुनवाई घोषित कर दी गई है, जो पूरी तरह अनुचित है। कपनी के दवाब में मनमानी कार्यवाही है। हम इस मनमानी का विरोध करते हैं। 12 जून 2018 को हुई जनसुनवाई में भी 14 सितंबर 2006 की अधिसूचना की शब्द और आत्मा का उल्लंघन किया गया था वैसे ही इस बार भी हुआ है।
लोगों की मांग के अनुसार उनको परियोजना संबंधित कागजात पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट, पर्यावरण प्रबंध योजना व सामाजिक आकलन रिपोर्ट (EIA, EMP & SIA) ना हिंदी में दिए गए हैं ना समझाए गए हैं।
वन अधिकार कानून 2006 के अंतर्गत प्रभावित गांवों के अधिकार भी सुनिश्चित नहीं किये गए हैं।
स्थानीय अख़बारों में बांध द्वारा ली जाने वाली भूमि की जानकारी के नीचे मात्र जनसुनवाई का स्थान और समय बताया गया है । कागजातो के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।
यह जनसुनवाई प्रभावित गांवों से लगभग 40 किलोमीटर दूर मोरी ब्लॉक, सभागार में रखी गई है। जहां लोगों का पहुंचना बहुत ही कठिन है। 12 जून की जनसुनवाई में भी लोगों के लिए किसी तरह के वाहन की व्यवस्था नहीं की गई थी।
यह समय त्यौहारों के साथ फसल कटाई, लकड़ी, घास इकट्ठी करने का है जो कि इस तरह की सार्वजनिक लोकसुनवाई के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है।
हमारे द्वारा उठाए गए इन सवालो पर प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया है। यह बांध इस सुपिन नदी घाटी क्षेत्र के लोगों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व पर्यावरण की ढांचे को छिन्न भिन्न करेगा। इसी बांध कंपनी द्वारा बनाई जा रहे नटवार मोरी परियोजना के प्रतिफल हमारे सामने दिखते हैं।
क्योंकि लोगों को उनकी भाषा में जानकारी नहीं दी गई थी इसलिए वे समुचित रुप से अपनी बात नहीं कह पाए थे। जिसका नतीजा आज क्षेत्र भुगत रहा हैं। हम ऐसा इस क्षेत्र में नहीं चाहते। लोगो की भाषा में संपूर्ण कागजातो की जानकारी दी जाए तो लोग बता सकते हैं कि जखोल साकरी बांध से क्या बर्बादी आएगी?
एक ही नदी पर, एक के बाद एक बन रहे इन बाधो से भविष्य में नदी घाटी का क्या होगा? इसकी कल्पना अभी शासन कर्ताओं को नहीं है । जून 2013 में प्रकृति ने अपना रूप दिखाया था। केरल में अभी की तबाही में बांधो का बड़ा हिस्सा है। जैसे कि उत्तराखंड में रह हैं।
प्रशासन ने लोगों के विरोध के कारणों को न हल करके, लोगों से दूर बंद कमरे में सुरक्षा बलों के साए में जनसुनवाई करने का फैसला किया है।
बांध कंपनी व शासन भीतर जानता है कि जनसुनवाई, 14 सितंबर 2006 की अधिसूचना के अनुसार पर्यावरण स्वीकृति के लिए लोगों के बीच जाना, उनके लिए बाध्यकारी है। इसीलिए जनसुनवाई की प्रक्रिया को किसी भी तरह पूरा करने की मंशा साफ नजर आती है। किंतु यह स्थानीय लोगों के हितों के खिलाफ और पर्यावरण के लिए पूरी तरह गलत होगा।

इसलिए हमारी मांग है कि:-

1. लोगों की मांग के अनुसार उनको परियोजना संबंधित कागजात पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट, पर्यावरण प्रबंध योजना व सामाजिक आकलन रिपोर्ट (EIA, EMP & SIA) हिंदी में दिए जाए तथा आसान भाषा मे स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा समझाया जाए।
2. इस पूरी प्रक्रिया के बाद ही जनसुनवाई का आयोजन प्रभावित गांव में हो।
3. लोगो को अन्य गांवों से लेने के लिए साधनों की व्यवस्था भी हो।
4. वन अधिकार कानून 2006 के अंतर्गत प्रभावित गांवों के अधिकार सुनिश्चित किये जाएं।
ऐसे समय में जब देश के प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण के लिए पुरुस्कार प्राप्त कर रहे हों तब क्या अपने ही देश में लोगों और पर्यावरण के खिलाफ उनकी सरकार जाएगी?

गुलाब सिंह रावत, रामलाल विश्वकर्मा, रामवीर राणा, राजपाल रावत, विमल भाई

######################
Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड www.himalayauk.org
Leading Digital Newsportal & DAILY NEWSPAPER)

उत्तराखण्ड का पहला वेब मीडिया-2005 से
CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR
Publish at Dehradun & Haridwar, Available in FB, Twitter, whatsup Groups & All Social Media ;
Mail; himalayauk@gmail.com (Mail us)
Mob. 9412932030; ;
H.O. NANDA DEVI ENCLAVE, BANJARAWALA, DEHRADUN (UTTRAKHAND)

हिमालयायूके में आर्थिक सहयोग करना चाहेगे-
Yr. Contribution:

HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND

A/C NO. 30023706551 STATE BANK OF INDIA; IFS Code; SBIN0003137
#############################################################

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *