उत्तराखंड की नदियां मौसमी नदियों में हो रही तब्दील

उत्तराखंड की ग्लैसिअल नदियां मौसमी नदियों में हो रही तब्दील: जानकर

६० वर्षों में कोसी नदी घटकर ४१ किलोमटेर रह गयी.

देहरादून २३ फरवरी

जानकारों का कहना है की उत्तराखंड की तक़रीबन ४०% नदियां अपना स्वरुप बदल रही हैं. जिन नदियों को ग्लेशियर का पानी मिलता था, वो मौसमी नदियां बनती जा रही है. ये बात शुक्रवार से ग्राफ़िक एरा में शुरू हुई दो दिवसीय युसर्क राज्य विज्ञानं और प्रौद्योगिकी सम्मलेन में सामने आई. सम्मलेन के प्रथम दिन उत्तराखंड की नदियां, तालाब और अन्य जल स्त्रोतों के बारे में चर्चा हुई.

सम्मलेन के आयोजक और युसर्क के निदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने कहा की उनकी संस्था देहरादून में रिस्पना और अल्मोड़ा की कोसी नदी के पुनरजीवन पर काम कर रही है. प्रोफेसर पंत ने कहा की कोसी नदी के ज्यादार जल स्रोत सुख गए हैं वही रिस्पना नदी देहरादून घाटी में अपने आस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. रिस्पना के पानी में इ – कोली बैक्टीरिया पाया गया है जो पेट के रोगों की जड़ है. जबकि नदी के गंदले पानी पर दून की बड़ी आबादी अभी भी निर्भर हैं.

कोसी और रिस्पना नदियों पर जानकारों ने प्रेजेंटेशन दिए. मेड संसथा के अभिजय नेगी ने कहा की रिस्पना का स्वरुप बिगाड़ने में नदी किनारे अतिक्रमण बड़ी वजह हैं. कुमाऊँ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे एस रावत ने अपनी प्रस्तुति में बताया की अल्मोड़ा की कोसी नदी जो ग्लेशियर के पानी से भरी रहती थी अब मौसमी नदी में तब्दील होती जा रही हैं. कोसी नदी के लम्बाई ६० वर्ष पहले २२५ किलोमीटर थी जो अब घटकर ४१ किलोमीटर रह गयी हैं.

कुमाऊँ विश्वविद्यालय के ही प्रोफेसर सी सी पंत ने नैनीताल के प्रसिद्ध नैनी तालाब की स्थिति से रूबरू करवाया. लगातार “ड्राई सीजन” रहने की वजह से तालाब का लेवल लगातार गिर रहा हैं. प्रोफेसर सी सी पंत का का कहना था की नैनी तालाब में हर वर्ष करीब ६९ घन मीटर मलवा एवं गरडा समां रहा हैं जो झील की पारिस्थिकी को प्रभावित कर रहा हैं. झील को रिचार्ज करने वाली सूखाताल हैं और वो अतिक्रमण की चपेट में हैं. उन्होंने बताया की पड़ोस की भीमताल झील भी लगातार सिकुड़ रही हैं. झील ३० किलोमीटर से सिकुड़कर २५ किलोमीटर ही रह गयी हैं.

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाइड्रोलॉजी के वैज्ञानिक आर पी पांडे ने बरसात के पानी को इस्तेमाल करने पर जोर दिया. पांडेय के मुताबिक नदियों के पुनर्जीवन के लिए नदी के कैचमेट एरिया को बचाए जाने की जरूरत हैं.

इससे पूर्व सुबह सम्मलेन का उट्घाटन परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद ने किया. अपने सम्भोदन में स्वामीजी ने कहा ही उनके स्मरण में रिस्पना नदी का पानी बहुत साफ़ था, जिसमे बच्चे नहाना पसंद करते थी. उन्होने नदियों को बचाने के लिए कूड़े के निस्तारण की बात कही. ग्राफ़िक एरा के चेयरमैन कमल घनसाला ने कहा की उत्तराखंड की नदियों और तालाबों में पानी की कमी होना बहुत गंभीर बात हैं और इसकी दिशा में समय रहते उच्चित कदम उठाये जाने की जरूरत हैं.

फोटो कैप्शन: सम्मलेन के मुख्य अतिथि स्वामी चिदानंद को एक पौंधा भेंट करते आयोजक और मंचासीन अतिथि

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