मुकदर का सिकन्‍दर “विजय” नई पारी शुरू करेगे ?

#राजनीति के वाकई सिकन्‍दर #  पं0 तिवारी तथा समस्‍त  क्षत्रपों का विश्‍वास जितने के बाद सर्वमान्‍य नेता के रूप में उत्‍तराखण्‍ड में नई पारी शुरू करने की पबल संभावना#नाम विजय- अपनी रणनीतिक चालों से साबित किया कि वह वो राजनीति के वाकई सिकन्‍दर है#जिस खेमे में वह खडे है, विपक्ष के खेमे उखडने शुरू हो जाते हैं#विजय बहुगुणा की रणनीति के आगे प्रतिद्वंद्वी चित्ति खाने गिरते रहे#वही विजय तथा हरीश की राजनीतिक तुलना की जाये तो विजय के मुकाबले हरीश रावत राजनैतिक नौसिसिये साबित हुए#जिनका साथ युद्व क्षेत्र में उनके खास योद्वा ही छोड गये हो, और वो फिर भी इस सत्‍य से मुंह चुराये# file photo; 13 March 2012 ; Resign; 31-01-14 =

विजय बहुगुणा ने 13 मार्च 2012 को मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली और 31 जनवरी 2014 को इस्‍तीफा दिया- 22 माह 17 दिन विजय बहुगुणा उत्‍तराखण्‍ड के मुख्‍यमंत्री रहे- अब मार्च 2017 में भाजपा उनको मुख्‍यमंत्री बनाती है- तो ऐसा ही अल्‍पकालीन सयोग फिर मंडरा रहा है- 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव होने के प्रबल योग है- 

इस पर अलग से विशेष स्‍टोरी –  

हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल के लिए चन्‍द्रशेखर जोशी सम्‍पादक की विशेष कवरेज

विजय बहुगुणा राजनीति के वह योद्वा है, जो अपने विपक्ष के खेमे में भगदड मचाने की महारत हासिल है, 2012 में जब विजय बहुगुणा मुख्यीमंत्री बने तो उन्होकने भाजपा में भगदड मचा दी थी, वही अब वह भाजपा में है तो कांग्रेस में मची भगदड की यादे सबके जेहन में है, वही सबसे गौरतलब बात यह है कि बहुगुणा के प्रतिद्वंद्वी उनको कमजोर आंकते है जबकि वो विपक्ष के पूरे खेमे को ही अपनी ओर कर चुके होते हैं, यह उनकी अद्वितीय रणनीति है,
2012 में उत्‍तराखण्‍ड के मुख्‍यमंत्री घोषित होते ही विजय बहुगुणा को बेहद कठिन मोर्चे पर ऐतिहासिक विजय हासिल कर अपनी पारी उसके बाद शुरू करनी पडी थी, 13 मार्च से 30 मार्च 2012 यानि 17 दिनों तक विजय बहुगुणा को पारी शुरू करने से पहले ही कई मोर्चे पर जूझना पडा था । सघर्षो से जूझकर आखिरकार जिसमें वह सफल घोषित होते रहे हैं और उत्‍तराखण्‍ड के सर्वमान्‍य नेता के रूप में वह सामने आते रहे हैं।
2012 में जब विजय बहुगुणा मुख्यपमंत्री घोषित हुए थे, उस समय का राजनीतिक माहौल कुछ इस प्रकार था, उत्तराखंड विधानसभा की कुल 70 सीटे में से कांग्रेस के पास 32 ,बी जे पी के पास 31 ,बसपा 3 व निर्दलीय 3 तथा यू के डी की 1 सीटे थी,. वही तभी उत्तराखंड से राज्यसभा की एक सीट के लिए 30 मार्च को हुए मतदान में कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र सिंह माहरा ने बी जे पी प्रत्याशी अनिल गोयल को 8 मतों के अंतर से पराजित किया , सह तीसरी ऐतिहासिक जीत थी मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की।
उत्‍तराखण्‍ड विधानसभा के नेता सदन और मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने 29 मार्च को विश्वास मत हासिल करने को खुद पहल करते हुए कहा कि कई दिनों से बहुमत साबित करने को मुद्दा बनाया जा रहा है। ऐसे में वह सबसे पहले बहुमत साबित करना चाहते हैं। मत विभाजन के बजाए गोपनीय ढंग से मतदान कराने की मांग को लेकर नारेबाजी करते हुए भाजपा विधायक वेल में पहुंच गए। तकरीबन दस मिनट तक हंगामे के बाद भाजपा ने विश्वास मत की प्रक्रिया का विरोध करते हुए सदन का बहिष्कार कर दिया। विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल से अनुमति मिलते ही सत्ता पक्ष के सदस्यों ने ध्वनिमत से सरकार के प्रति समर्थन व्यक्त किया। इसके बाद मुख्यमंत्री के अनुरोध पर काउंटिंग भी की गई, जिसमें सरकार के समर्थन में 39 विधायक रहे।
राज्यसभा की सीट जीत कर मुख्‍यमंत्री विजय बहुगुणा ने तीसरी जीत हासिल की थी। इसके पहले मुख्यमंत्री विधानसभा में दो जीत दर्ज कराके यह प्रमाणित कर चुके थे कि बहुमत उनके साथ है। सबसे पहली जीत विधानसभा अध्यक्ष पद पर गोविंद सिंह कुंजवाल की जीत एवं दूसरी जीत विधानसभा में बहुमत साबित कर यह साबित हो गया कि सितारे उनके अनुकूल चाल चलने लगे है जिससे भविष्य में भी उनकी जीत का सफर जारी रहेगा। इसके बाद चौथी जीत की ओर भी विजय बहुगुणा चले,कुल मिलाकर जिनको कमजोर माना जा रहा था वो मुख्‍यमंत्री विजय बहुगुणा के लिए विधानसभा चुनाव भी कोई बडी चुनौती नहीं रह गयी थी।
वही इसके अलावा बडी चुनौती वित्तीय रूप से बीमार राज्य मिलना था। उस समय राज्य का नॉन प्लान खर्च ही 14 हजार करोड़ रुपये था। राज्य की वित्तीय स्थिति को बेहतर करने के लिए केंद्र का सहयोग वही राज्य सरकार आय के नये स्रेत तलाशे जाने की रणनीति विजय बहुगुणा ने अपनायी।
उसी दौरान विधानसभा में कांग्रेस विधायक नवप्रभात द्वारा बताया गया कि वर्ष 2010-11 में भाजपा सरकार द्वारा 11 बार ओवर डाफट लिया गया, जिससे सरकार की छवि खराब हुई, वहीं 2002 से 2007 तक कांग्रेस सरकार के समय एक बार भी ओवर डाफट नहीं लिया गया,
वहीं 30 मार्च शुक्रवार को राज्यसभा सीट के लिए कांग्रेस के महेंद्र सिंह माहरा एवं भाजपा के अनिल गोयल के बीच सीधी टक्कर थी। निर्दलीय, बसपा व यूकेडी के समर्थन से बनी कांग्रेस-गठबंधन सरकार राज्यसभा सदस्य के चुनाव में तीसरी परीक्षा से सफलतापूर्वक गुजरी। इससे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव व विधानसभा में बहुमत साबित कर चुकी सरकार सफलतापूर्वक परीक्षा पास कर चुकी थी। कांग्रेस ने राज्‍यसभा चुनाव के लिए तमाम एहतियात बरती। विजय बहुगुणा ने विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा को शिकस्त देकर स्वमयं को सफल रणनीतिज्ञ साबित किया
उत्तराखंड की राज्‍यसभा सीट हेतु कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियों ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे क्‍योंकि इन दोनों ही पार्टियों के पास विधानसभा में बहुमत नहीं था। यह विजय बहुगुणा की सफल रणनीति ही थी कि कांग्रेस के पास बसपा, उक्रांद पी और निर्दलीयों को मिलाकर बहुमत जुटा लिया गया।
उत्‍तराखण्‍ड विधानसभा में निर्वाचित विधायकों की संख्या 70 थी जिसमें कांग्रेस ने अपने 32 विधायक जबकि बसपा के तीन, उक्रांद पी के एक और तीन निर्दलीयों, कुल मिलाकर 39 का आंकड़ा पार कर लिया। जबकि, विपक्षी भाजपा के पास कुल 31 विधायक मात्र ही रहे।
भाजपा को क्रॉस वोटिंग जैसा कोई बड़ा राजनैतिक उलटफेर के बूते भरोसा था कि वह कांग्रेस के भीतर की खींचतान का पार्टी फायदा उठा सकेगी। इसके अलावा सरकार के सहयोगी विधायकों से भी पार्टी को कुछ आस थी लेकिन विजय बहुगुणा की रणनीति के आगे भाजपा राहत की सांस नहीं ले सकी।
विजय बहुगुणा की सफल रणनीति से भाजपा के समक्ष यह चुनौती आन पडी कि उसे पार्टी के प्रत्याशी को सभी 31 विधायकों के मत भी मिल पायेगे या नही। भाजपा उस समय बहुगुणा के रणनीति के सामने सकते की स्थिसति में आ गयी थी, कि कांग्रेस किसी भी समय भाजपा में सेंधमारी की कोशिश में सफल हो सकती है। इस पर भाजपा ने स्‍वयं को बचाने के लिए कांग्रेस के खिलाफ हमलावर रणनीति चुनी। कई मुद्दों पर आम सहमति बनने के बजाए भाजपा के रणनीतिकारों ने तलवारें खिंचने की नीति बुनी तथा राज्यसभा चुनाव से लेकर सत्र के तीनों दिन सरकार के लिए चुनौती पेश कर विधानसभा से वाक आउट किया, राज्‍यपाल को ज्ञापन देकर विरोध में उतरे, भाजपा की इस तरह की रणनीति से पहली बार विधायक बने युवा सत्र के दौरान राज्यपाल अभिभाषण के मौके पर चर्चा में भाग ही नहीं ले पाये तथा विपक्ष की गैरमौजूदगी में ही राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव और भोजनावकाश के बाद लेखानुदान भी पारित हो गया था।
इस तरह विजय बहुगुणा के मुख्‍यमंत्री बनने के बाद सितारों ने जिस तेजी से उनके पक्ष में अनुकूल घूमना शुरू किया, यह शायद उसी का नतीजा था कि 15 दिन के अन्‍दर ही उन्‍होने 4 ऐतिहासिक विजय हासिल की और कांग्रेस के मजबूत मुख्‍यमंत्री के रूप में उन्‍होंने अपनी सफल पारी शुरू की थी।

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