स़त्ता की प्राप्ति की वर्तमान युग के राजनेताओं का लक्ष्य

 किसी भी कीमत पर वैध-अवैध तरीके अपनाकर स़त्ता की प्राप्ति की वर्तमान युग के राजनेताओं का लक्ष्य

# www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
लोकतंत्र की सुदृढ़ता कैसे संभव हो?
-गणि राजेन्द्र विजय –
चुनाव भले ही गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश में हो रहे हों, लेकिन माहौल देशभर में गरमा रहा है। इस वक्त मतदाता मालिक बन जाता है और मालिक याचक। यह हम देख भी रहे हैं और केवल इसी से लोकतंत्र परिलक्षित होता है। बाकी सभी मर्यादाएं, प्रक्रियाएं, मूल्य और आदर्श हम तोड़ने में लगे हैं। भारत में लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत जिस तरह की शर्मनाक घटनाएं घट रही हैं, उसकी वजह से लोगों की आस्था संसदीय लोकतंत्र के प्रति कमजोर होना अस्वाभाविक नहीं है। लोकतंत्र के मूल्यों के साथ हो रहे खिलवाड़ की वजह से भविष्य का चित्र संशय से भरपूर नजर आता है। मूल्यहीनता की चरम सीमा पर पहुंचकर राजनीतिक पार्टियां अलग-अलग विचारधारा एवं नाम का वर्गीकरण रखते हुए भी राष्ट्रीय हित की उपेक्षा करने के मामले में एक जैसी है। व्यक्तिगत एवं दलगत हितों को सर्वोपरि मानते हुए ये पार्टियां सर्वसाधारण जनता एवं राष्ट्र के हितों के साथ उपेक्षापूर्ण बर्ताव कर रही है। सिद्धांतों एवं आदर्शों की दुहाई देने वाली पार्टियां भी व्यावहारिकता के धरातल पर स्वार्थपूर्ति की राजनीति में उलझी हुई नजर आती हैं। किसी भी कीमत पर वैध-अवैध तरीके अपनाकर स़त्ता की प्राप्ति की वर्तमान युग के राजनेताओं का लक्ष्य बन चुका है।
सत्ता प्राप्ति के लिए हर तरह के हथकंडे का प्रयोग किया जा रहा है। देश की सेवा का दंभ भरने वाले कई राजनेता अपहरण करने, हत्या करने, घपला करने, दंगे फैलाने जैसे राष्ट्रविरोधी अपराधिक कार्यों को अंजाम देते हुए भी नहीं हिचकते। राजनीति अब देशसेवा या मानवसेवा का मार्ग नहीं रह गया है। अब भारत में राजनीति ने एक गलत पेशे का रूप धारण कर लिया है। राष्ट्र का प्रबुद्ध वर्ग राजनीति के पतन से उद्विग्न हो उठा है। यदि राजनीति की लगाम इसी तरह गलत लोगों के हाथों रहेगी तो समाज और राष्ट्र का भविष्य खतरे में फंस सकता है। गुरु वल्लभ ने लोकतंत्र की मजबूती के लिये सही चयन से ही राष्ट्र का सही निर्माण होने की बात कही थी। हमें किसी पार्टी विशेष का विकल्प नहीं खोजना है। किसी व्यक्ति विशेष का भी विकल्प नहीं खोजना है। किसी विचारधारा का भी विकल्प नहीं खोजना है। विकल्प खोजना है भ्रष्टाचार का, अकुशलता का, प्रदूषण का, भीड़तंत्र का, गरीबी के सन्नाटे का, महिला पर हो रहे अत्याचार का, महंगाई का और राजनीतिक अपराधीकरण का। क्योंकि एक राष्ट्र मूल्यहीनता में कैसे शक्तिशाली बन सकता है? उसे शक्तिशाली एवं सशक्त बनाने के लिये लम्बे समय तक त्याग, परिश्रम और संघर्ष जरूरी है।
यह सच है कि लोकतंत्र में संख्या की राजनीति महत्वपूर्ण होती है। मगर संख्याबल प्राप्त करने के लिए जब अपराध का सहारा लिया जाता है, लालच का सहारा लिया जाता है, तब लोकतंत्र की मर्यादा को ठेस पहुंचती है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि मर्यादाहीन आचरण करने वाले राजनेता संख्याबल जुटाने के लिए किसी भी तरीके का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकते। सत्तामोह में फंसकर वे भूल जाते हैं कि वे दोषपूर्ण साधन का सहारा लेकर साध्य तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
गलत साधन से शुद्ध साध्य की प्राप्ति कैसे संभव हो सकती है? लोकतंत्र में सामान्यजन का प्रतिनिधित्व होना अनिवार्य होता है। परन्तु भारत में बाहुबल एवं धनबल के सहारे ऐसे लोग संसद या विधानसभा में पहुंच जाते हैं, जिन्हें जनता का वास्तविक समर्थन प्राप्त नहीं होता। लोकसभा हो या विधानसभा के उम्मीदवार को चुनाव आयोग ने चुनाव के दौरान एक निश्चित राशि व्यय करने की अनुमति दे रखी है। इस तय राशि की सीमा की कागजी औपचारिकताएं को पूरी करते हुए इससे ज्यादा राशि व्यय की जाती है, क्योंकि चुनाव जीतने के लिए कोई भी उम्मीदवार निर्धारित राशि को पर्याप्त नहीं मानता। चुनाव आयोग की आंखों में धूल झोंकते हुए प्रत्येक उम्मीदवार करोड़ो़ रुपए तक खर्च करते हैं। धन बल के जरिए चुनाव जीतने की ऐसी प्रवृत्ति ने भारतीय लोकतंत्र की मौलिक भावनाओं को एक हद तक विकृत बना दिया है। इससे एक बात स्पष्ट है कि भारी पैमाने पर रुपए खर्च करने वाले उम्मीदवार इसी आशा के साथ चुनाव लड़ते हैं कि जीतने के बाद वे अवैध तरीके से ज्यादा-से-ज्यादा कमाई कर सकें। नैतिक मूल्यों का उनके लिए कोई महत्व नहीं रह जाता है। लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ हो रहे मजाक पर प्रबुद्ध वर्ग चिंता व्यक्त करता रहा है। कुछ लोग प्रणाली में संशोधन करने का सुझाव देते रहे हैं। उनका मानना रहा है कि भारतीय लोकतंत्र में बहुदलीय शासन प्रणाली दोषपूर्ण है।
इसे बदले बगैर भारत में लोकतंत्र की नींव मजबूत नहीं बनायी जा सकती। उनके अनुसार भारत में इंग्लैंड की तरह द्वि-दलीय संसदीय प्रणाली लागू की जानी चाहिए या अमेरिका की तरह राष्ट्रपति केंद्रित प्रणाली लागू होनी चाहिए। अगर संशोधन नहीं किया जाता तो हमेशा अस्थिरता का खतरा बना रहेगा। अनगिनत राजनीतिक पार्टियांे की खींचातान में राष्ट्र के हितों को क्षति पहुंचती रहेगी। आज की आवश्यकता है कि इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श करके किसी ठोस निर्णय पर पहुंचा जाए। भारत की सभ्यता और संस्कृति का समृद्ध इतिहास है। परन्तु सम-सामयिक युग में भारत में नैतिक, मानवीय एवं सांस्कृतिक मूल्यों का जैसे पतन हुआ है, उससे गौरवशाली इतिहास के समक्ष प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। सार्वजनिक जीवन में पाखंड, झूठ, छल, भ्रष्टाचार, अनैतिकता जैसे दुर्गुणों का बोलबाला बढ़ गया है। संसद में जिस तरह का मर्यादाहीन आचरण किया जाता है उससे विश्व के समक्ष भारत की कैसी छवि बनती है? आवश्यक है लोकतांत्रिक प्रणाली के सााथ खिलवाड़ बंद किया जाए ताकि उसकी गरिमा की रक्षा सुनिश्चित हो सके।
हम हर बार चुनाव के समय देखते हैं कि सब राजनीतिक दल स्वयं को समर्थ एवं जीत के पात्र मानते हैं। सबके पास बांटने को रोशनी के टुकड़े हैं। पर ये टुकडे़ मिलकर एक लौ में नहीं बदल सकते जो नया आलोक दे सकें। इस तरह समाज में नेतृत्व के मिथकों के अनेक स्तर सक्रिय है, लेकिन ये सभी मिलकर एक ताकत नहीं बनते। जिस दिन राष्ट्रीयता के नाम पर ऐसी शक्ति संगठित होगी, उसी दिन लोकतंत्र भी मजबूत होगा। प्रेषक(ललित गर्ग)
60, मौसम विहार, तीसरा माला, डीएवी स्कूल के पास, दिल्ली-110051

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *