योगी आदित्यनाथ फर्स्ट क्लास फर्स्ट पास – दिल्‍ली करीब

गत 19 मार्च को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल का यह पहला अहम चुनाव था। इस चुनाव में प्रचार की अगुवाई मुख्यमंत्री स्वयं कर रहे थे।  डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा ने  कहा है कि योगी सरकार ने प्रदेश में दिन रात काम किया है।इसी का नतीजा है कि नगर निगम चुनाव में बीजेपी को बड़ी जीत मिली है।

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बीजेपी ने एक बार फिर से निकाय चुनावों में जीत दर्ज की है। 16 नगर निगमों में से 14 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ फर्स्ट क्लास फर्स्ट पास हो गए हैं। इन चुनावों का महत्व इसलिए भी है कि इसका असर गुजरात विधानसभा चुनाव पर भी पड़ने के आसार हैं।   उत्तर प्रदेश में आज 16 नगर निगमों, 198 नगरपालिकाओं और 438 नगर पंचायतों में 12,647 पदों के लिए 79,113 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला हो गया है।  इस निकाय चुनाव में पहली बार सभी दल अपने सिंबल पर लड़ रहे थे। बीजेपी ने निकाय चुनाव को प्रतिष्ठा मानकर लड़ा। जीत सुनिश्चित करने के लिए उसने न केवल महाचक्रव्यूह रचा, बल्कि सारा जोर लगा दिया। यहां तक कि प्रदेश के निकाय चुनाव के इतिहास में पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने ठीक उसी तरह प्रचार किया जैसे विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में करते हैं। 

योगी ने कहा 22 करोड़ में 5 करोड आबादी नगरीय क्षेत्र में रहती है, आदरणीय प्रधानमंत्री जी और अध्यक्ष जी ने उत्तर प्रदेश का दायित्व मुझे सौंपा है तो जनता को मैं बताउंगा. पिछली सरकारों ने नगर निकाय को पंगू बनाया उनके अधिकारों को सीज किया, हमने ने सत्ता का विकेद्रीकरण करने का काम किया है, हमने दो नये नगर निगम  बनाये और खुशी है कि अयोध्या, मथूरा और काशी हमने जीत ली. अलीगढ हमने 10 हजार से क्यों हारा यह हम जरुर देखेंगे. अलीगढ में बहुत सारे फैक्टर हैं. 2019 के लोक सभा की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी है और हम 80 की 80 सीटें जीतेंगे

  1. विकास का एजेंडा आगे रखा

-बीजेपी ने विकास के एजेंडे को आगे रखा। सपा, बसपा और कांग्रेस बीजेपी के इस एजेंडे में कोई खामियां नहीं निकाल पाई और न ही कारगर ढंग से जवाब दिया। भाजपा ने निकाय चुनावों के लिए जो संकल्प पत्र घोषित किया, उसे घर-घर पहुंचाने का काम भी बखूबी अंजाम दिया। जबिक सपा, बसपा और कांग्रेस इस कार्य में पहले ही बहुत पीछे छूट गईं थी।

  1. बेहतर चुनावी प्रबंधन

-भाजपा ने नगर निकाय चुनाव में सोशल मीडिया जबर्दस्त तरीके से इस्तेमाल किया। नगर निगम, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों के लिए अलग-अलग 10,344 वाट्सएप ग्रुप बनाए थे।

-जिनकी मॉनिटरिंग प्रदेश मुख्यालय का आईटी सेल कर रहा था। पार्टी ने अपने डाटा बेस में करीब 1.13 लाख सदस्यों के नाम, पता और बूथ की जानकारी दर्ज कर रखी थी। जिनसे आरएसएस व भाजपा का कोर ग्रुप लगातार जुड़ा हुआ था।

-बीजेपी समय से पहले ही निकाय चुनावों की तैयारियों में जुट गई थी। 1 साल में यूपी में 67,605 सक्रिय सदस्यों का पंजीकरण किया गया था। जिनसे पार्टी के छोटे बड़े नेता संपर्क में थे। बीजेपी ने निकाय चुनाव के लिए ट्रेनर्स तैयार किये थे, जिन्होंने सामान्य कार्यकर्ताओं को ट्रेंड किया।

-प्रदेश में 1,47,401 बूथ कमेटी बनाई थी। हर कमेटी में 10 से 21 सदस्य थे। इस तरह करीब 13.50 लाख बूथ स्तरीय कार्यकर्ता तैनात किये गए थे।

 

उत्तर प्रदेश में शानदार दस्तक

  उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) के दो दर्जन से अधिक उम्मीदवारों की जीत को पार्टी संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उत्तर प्रदेश में शानदार दस्तक बताया है। 
आप के वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने आज उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय के घोषित चुनाव परिणाम के हवाले से बताया कि राज्य में पार्टी के अब तक 2 नगर पालिका अध्यक्ष और 28 पार्षद एवं सभासदों को जीत मिली है। सिंह ने ट्वीट कर कहा उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी की ‘चुनावी जीत’ की शुरुआत हो चुकी है जय हिंद। इसके जवाब में केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा कि इस शानदार शुरुआत के लिए उत्तर प्रदेश में आप की टीम और राज्य की जनता को बधाई

 

3.विधानसभा चुनाव के प्रबंधन का इस्तेमाल

-बीजेपी ने निकाय चुनाव में मेहनत में कोई कमी नहीं की। विधानसभा चुनाव-2017 की तैयारी व रणनीति का इस्तेमाल इस चुनाव में भी किया। उसी रणनीति के तहत भाजपा विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण रोका।

-समर्थकों को नरेन्द्र मोदी, मंदिर और राष्ट्रवाद के नाम पर गोलबंद किया। प्रत्यक्ष लड़ाई के साथ भाजपा ने वर्चुअल दुनिया में भी उसी अंदाज में उसे जनता के बीच प्रभावी ढंग से पहुंचाया। जबकि उनके विरोधी अलग-अलग धारा में चल रहे थे।

  1. बढ़ा मतदान प्रतिशत

-उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव यूपी में निकाय चुनाव के तीन चरणों में करीब 53 फीसदी मतदान हुआ। 2012 के निकाय चुनाव में 46 फीसदी वोटिंग हुई थी। इस बार 16 नगर निगमों के लिए चुनाव हुआ है।

-यही बढ़ा प्रतिशत उसके ही खाते में आया, क्योंकि पहले यह कहा जाता रहा है कि भाजपा समर्थक मतदान के लिए घर से बाहर नहीं निकलते हैं। मगर 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में यह मिथक टूटा था।

-भाजपा समर्थकों ने दूसरे दलों से अधिक मतदान में दिलचस्पी दिखाई और नगरीय निकाय चुनाव में भी यह क्रम बना रहा है। निकाय चुनाव में यह वही वोटर हैं जिसने घर से निकलकर वोट डाला।

5.मंदिर का मुददा भी भुनाया

-भाजपा शहरों में मंदिर और राष्ट्रवाद का मुद्दा भुनाने में भी काफी हद तक कामयाब रही। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अयोध्या में दीपावली मनाने और दूसरे धार्मिक स्थलों पर जाने को हिन्दू अस्मिता से बखूबी जोड़ने में कामयाब रही है।

6.अन्य दलों के बड़े नेताओं की दूर

-निकाय चुनाव को भाजपा ने जहां एक तरफ चुनौती के रूप में लिया, वहीं, अन्य दलों के बड़े नेता प्रचार से दूर ही रहे। भाजपा ने तो चुनाव प्रचार की तमाम बनी बनाई परम्परा को तोड़ दिए।

-खुद मुख्यमंत्री प्रचार के मैदान में उतर आए। केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह की भी नजर निकाय चुनावों में थी। बीजेपी ने योगी-मोदी की योजनाएं और उपलब्धियों का गुणगान करते हुए विकास के संकल्प को भी सामने रखा गया।

-दूसरी तरफ पिछली सरकारों की तमाम कमियों को बार-बार सामने लाने का प्रयास किया गया। जनता को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया गया कि पिछली सरकार गैर भाजपाई थी, जबकि निगमों में भाजपा के मेयर थे, जिनका सपा सरकार ने सहयोग नहीं किया जिस कारण विकास बाधित हुआ।

-अब केंद्र और प्रदेश में भाजपा की सरकार है। ऐसे में यदि भाजपा का मेयर हुआ तो विकास की गंगा बहेगी। इन सब बातों को आधार पर भाजपा का मानना है कि जनता ने उस पर विश्वास करके वोट दिया है, इसलिए इस चुनाव में उसे ही सफलता मिलने जा रही है।

7.दूसरों के पास कहने को कुछ नहीं

-बीजेपी जनता को यह बताने में भी कामयाब रही कि वह शुरू से ही नगरों में उनके साथ रही है। विपक्षी दलों के पास नगर निकाय चुनाव में कहने के लिए कुछ भी नहीं है।

-राज्य से लेकर केंद्र तक सत्ता पर काबिज भाजपा नगर निकाय चुनावों को बेहद गंभीरता से लिया। इसीलिए भाजपा के पार्टी संगठन, वर्तमान विधायक, सांसद , मंत्री के साथ-साथ उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी नगर निकाय चुनाव की कमान संभाले रहे। सबका एक ही लक्ष्य था कि उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में भाजपा बहुमत हासिल करे।

निकाय चुनाव एक नजर में

-उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में तीन चरणों में 16 नगर निगम, 198 नगर पालिका परिषद व 438 नगर पंचायत समेत कुल जमा 652 निकायों के 11995 वार्डों में चुनाव हुए।

-जिसके लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने 11394 मतदान केंद्र व कुल 36273 मतदान स्थल बनाए थे। इस चुनाव में प्रदेश के 3,35 करोड़ मतदाताओं ने 79113 प्रत्याशियों के किस्मत का फैसला किया।

युवा मतदाता बढ़े

-सूबे की 652 नगरीय निकायों में पिछले चुनाव से अबकी तकरीबन 25.97 लाख मतदाता बढ़े हैं। पांच साल के दरमियान बड़े शहरों की निकायों में कहीं ज्यादा मतदाताओं का इजाफा हुआ है।

-गौर करने वाली बात है कि कुल मतदाताओं में 18 वर्ष से 35 वर्ष तक के युवा मतदाताओं की हिस्सेदारी ही 43.72 फीसद यानि तकरीबन 1.45 करोड़ से कहीं अधिक है। हाल ही में 18 वर्ष की दहलीज पार करने वाले से लेकर 25 वर्ष के पहली-दूसरी बार वोट डालने वाले ही 52.88 लाख यानी 15.91 फीसद युवा मतदाता हैं। कुल मिलाकर पिछले चुनाव से अबकी तकरीबन 25.97 लाख मतदाता बढ़े हैं।

 

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