मथुरा के वृंदावन में 300 मंदिर तोड़ दिये जायेंगे: जब कुंज गलियां ही नहीं रहेंगी तो क्या रहेगा वृंदावन का महत्व
19 JAN 2023 (Himalayauk News) मथुरा के वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर के प्रस्तावित कॉरिडोर को लेकर हंगामा #प्रस्तावित कॉरिडोर के निर्माण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर– वृंदावन की विरासत को बचाने की अपील –योगी सरकार के प्रस्ताव का कड़ा विरोध, सुप्रीम कोर्ट 23 जनवरी को मामले की सुनवाई करेगा.
मथुरा के वृंदावन में 300 मंदिर तोड़ दिये जायेंगे: जब कुंज गलियां ही नहीं रहेंगी तो क्या रहेगा वृंदावन का महत्व
लोगों का आरोप है कि वृंदावन के मूल स्वरूप से खिलवाड़ किया जा रहा है। मथुरा के वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर के प्रस्तावित कॉरिडोर को लेकर हंगामा चल रहा है। कहा जा रहा है कि ये कॉरिडोर काशी विश्वनाथ धाम की तर्ज पर होगा। मंदिर के आस-पास 5 एकड़ भूमि का अधिग्रहण होना है। इसमें करीब 300 मंदिर और आवासीय भवन आ रहे हैं।
कॉरिडोर में बांके बिहारी के मंदिर की ओर जाने के लिए तीन रास्ते तय किये हैं। जिसमें से यमुना की ओर से जो रास्ता आयेगा वह 2100 वर्ग मीटर क्षेत्र में होगा। इस रास्ते से आने पर कॉरिडोर दो हिस्सों में विकसित किया जाएगा। एक निचला हिस्सा होगा और दूसरा उससे करीब 3.5 मीटर ऊपर होगा, जिस पर जाने के लिए रैंप बनाया जाएगा।
मथुरा के वृंदावन में स्थित बांके बिहारी जी के दर्शन तो किए ही होंगे। ऐसी मान्यता है कि स्वामी हरिदास ने अपनी संगीत साधना से भगवान बांके बिहारी को जमीन से विक्रम संवत 1569 में प्रगट किया था। इसके बाद स्वामी हरिदास ने निधिवन में लता पताओं के बीच लता मंडप में विराजमान किया। यहां सन 1607 तक बांके बिहारी विराजमान रहे। यहां से 1719 तक रंगमहल में उनको विराजमान किया।
वृंदावन की पहचान अन्य तीर्थ स्थलों से अलग है। यहां भगवान कृष्ण और राधा रानी बाल स्वरूप में कुंज गलियों में घूमे हैं। अगर यहां कुंज गलियां ही नहीं रहेंगी तो फिर इस नगरी का महत्व ही क्या रहेगा। इसी विरासत को बचाने के लिए कॉरिडोर का विरोध किया जा रहा है।
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धरने में शामिल ब्रजवासियों ने सीएम योगी के नाम खून से पत्र लिखे। उन्होंने कॉरिडोर नहीं बनाने की मांग की। सेवायतों के परिवार की महिलाओं ने मंदिर के चबूतरे पर प्रदर्शन किया। महिलाओं ने कीर्तन करते हुए बिहारी जी रक्षा करो, स्वामी जी रक्षा करो का उद्घोष किया। यहां लोगों ने मंदिर तक पैदल मार्च निकाला है।
प्रस्तावित कॉरिडोर के निर्माण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर– वृंदावन की विरासत को बचाने की अपील –योगी सरकार के प्रस्ताव का कड़ा विरोध, सुप्रीम कोर्ट 23 जनवरी को मामले की सुनवाई करेगा.
मथुरा के वृंदावन में स्थित बांके बिहारी जी के दर्शन तो किए ही होंगे। ऐसी मान्यता है कि स्वामी हरिदास ने अपनी संगीत साधना से भगवान बांके बिहारी को जमीन से विक्रम संवत 1569 में प्रगट किया था। इसके बाद स्वामी हरिदास ने निधिवन में लता पताओं के बीच लता मंडप में विराजमान किया। यहां सन 1607 तक बांके बिहारी विराजमान रहे। यहां से 1719 तक रंगमहल में उनको विराजमान किया।
कहा जाता है कि भगवान बांके बिहारी 7 वर्ष की अवस्था में भक्तों को दर्शन देते हैं। यही वजह है कि मंदिर में भगवान बांके बिहारी की बाल स्वरूप में सेवा की जाती है। बांके बिहारी मंदिर करीब 1500 गज में बना हुआ है। 4 भागों में बने इस मंदिर पर गर्भ गृह,जगमोहन,आंगन और भंडार घर है। गर्भ गृह में जहां भगवान विराजमान हैं वहीं जगमोहन और आंगन में खड़े हो कर श्रद्धालु दर्शन करते हैं। आंगन करीब 2300 फीट में हैं तो उसके पीछे का हिस्सा 600 फीट में है। इसके अलावा करीब 400 गज में एक अर्ध निर्मित हॉल बना हुआ है। लेकिन काम पूरा न होने के कारण यह उपयोग में नहीं आ रहा।
बांके बिहारी मंदिर के आसपास कॉरिडोर बनाने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई 24 जनवरी को होगी। इससे ठीक एक दिन पहले यानी 23 जनवरी को इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है। चीफ जस्टिस राजेश बिंदल व जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ सुनवाई करेंगे।
लोगों ने उत्तर प्रदेश सरकार के धर्मार्थ कार्य विभाग के बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर के खिलाफ आपत्तियां की हैं
स्वामी हरिदास: अकबर सम्राट इनके दर्शन करने वृंदावन गए थे
माना जाता है कि स्वामी हरिदास जी की यह परंपरा लगभग 542 वर्षों पुराना है। जिनमें श्री स्वामी हरिदास जी महाराज ने श्रीधाम वृन्दावन में भगवान बांकेबिहारी जी को प्रकट किया था। स्वामी श्याम चरण दास जी इन्हीं की परंपरा के 18 वीं पीढ़ी के महंत श्री राधा चरण दास जी महाराज, टाटिया स्थान श्रीधाम वृन्दावन के परम कृपापात्र शिष्य थे। स्वामी श्याम चरण दास जी एक विरक्त संत थे व उनके गुरु श्री राधा चरण दास जी के ही आज्ञा से उन्होंने कोलकाता स्थित इस दिव्य एवं भव्य स्थान की स्थापना की थी।
स्वामी हरिदास (1480-1575) भक्त कवि , शास्त्रीय संगीतकार तथा कृष्णोपासक सखी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। इन्हें ललिता सखी का अवतार माना जाता है। वे वैष्णव भक्त थे तथा उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे। वे प्राचीन शास्त्रीय संगीत के अद्भुत विद्वान एवम् चतुष् ध्रुपदशैली के रचयिता हैं। प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके शिष्य थे। अकबर इनके दर्शन करने वृन्दावन गए थे। ‘केलिमाल’ में इनके सौ से अधिक पद संग्रहित हैं। इनकी वाणी सरस और भावुक है।
स्वामी हरिदास का जन्म 1480 में हुआ था। इनके जन्म स्थान और गुरु के विषय में कई मत प्रचलित हैं। राजपुर ग्राम , वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) इनका जन्म स्थान माना जाता है।इनका जन्म समय कुछ ज्ञात नहीं है।
ये महात्मा वृन्दावन में निंबार्क सखी संप्रदाय के संस्थापक थे और अकबर के समय में एक सिद्ध भक्त और संगीत-कला-कोविद माने जाते थे। कविताकाल सन् 1543 से 1560 ई. ठहरता है। प्रसिद्ध गायनाचार्य तानसेन इनका गुरूवत् सम्मान करते थे।
यह प्रसिद्ध है कि अकबर बादशाह साधु के वेश में तानसेन के साथ इनका गाना सुनने के लिए गया था। कहते हैं कि तानसेन इनके सामने गाने लगे और उन्होंने जानबूझकर गाने में कुछ भूल कर दी। इसपर स्वामी हरिदास ने उसी गाना को शुद्ध करके गाया। इस युक्ति से अकबर को इनका गाना सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो गया। पीछे अकबर ने बहुत कुछ पूजा चढ़ानी चाही पर इन्होंने स्वीकार नहीं की
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