बेहद रहस्यमयी ये रात, नकारात्मक शक्ति का प्रभाव! 30 नवंबर कृष्ण पक्ष की अमावस्या & तंत्र शास्त्र में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व
HIGH LIGHT # बेहद रहस्यमयी होती है ये रात नकारात्मक शक्ति का रहता है प्रभाव! # सुर्य और चन्द्रमा ये दोनों शक्तिशाली ग्रह अमावस्या के दिन एक राषि में आ जाते हैं #अर्थात चन्द्र जब तक दोनो एक राषि में रहते हैं तब तक ही अमावस्या रहती हैं# चन्द्रमा सुर्य के सामने निस्तेज हो जाता हैं# अर्थात चंन्द्र की किरणें नश्ट प्रायः हो जाती हैं। # हमारे मृत पूर्वज हमारे जीवन में समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं #ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा। ‘ भगवान दत्तात्रेय के ये मंत्र आपके लिए बहुत ही लाभदायी # कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं। जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है # मार्गशीर्ष अमावस्या पर की गई पूजा और अनुष्ठान से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार#अमावस्या तिथि के दिन राहु का प्रक्रोप बढ़ जाता है और राहु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए यह जरूरी है कि इस दिन शिवलिंग की पूजा # अमावस्या में विध्वंसक का एक रंग होता है। आम तौर पर, अमावस्या की रात को एक बहुत ही स्त्री ऊर्जा या तो परेशान होती है क्योंकि यह उसके अंदर कुछ डर और अशांति पैदा करती है,
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राहु के प्रकोप से भी मिलती है मुक्ति – 30 नवंबर, 2024 दिन शनिवार को सुबह 10 बजकर 29 मिनट से मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि की शुरूआत होगी।
वर्ष में ऐसे कई महत्वपूर्ण दिन और रात हैं जिनका धरती और मानव मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या।इनमें माह में पड़ने वाले 2 दिन सबसे महत्वपूर्ण हैं- पूर्णिमा और अमावस्या। पूर्णिमा और अमावस्या के प्रति बहुत से लोगों में डर है। खासकर अमावस्या के प्रति ज्यादा डर है। वर्ष में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या होती हैं। सभी का अलग-अलग महत्व है।वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं। जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है।
अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं शक्तियां इन माध्यमों से अपना प्रभाव डाल सकती हैं । परमात्मा के समीप रहना चाहियें अमावस्या के दिन ऐसे ही कार्य करने चाहिये जो परमात्मा के पास में ही बिठाने वाले हो, सांसरिक खेती-बाडी व्यापार आदि कर्म तो परमात्मा से दूर हटाने वाले है। और संध्या हवन, सत्संग, परमात्मा का स्मरण ध्यान कर्म परमात्मा के पास बैठाते हैं अमावस्या का ही श्रेश्ठ मान्य हैं । वेदों में अमावस्या का महत्व बताया गया हैं। अमावस्या के समय जब तक सूर्य चन्द्र एक राषि में रहे, तब तब कोई भी सांसरिक कार्य जैसे-हल चलाना, कसी चलाना, दांती, गंडासी, लुनाई, जोताई, आदि तथा इसी प्रकार से गृह कार्य भी नहीं करना चाहिये। उस दिन तो केवल परमात्मा का भजन ही करना चाहिए।
जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है। अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। अमावस्या के दिन, रज-तम फैलाने वाली अनिष्ट शक्तियां (भूत, प्रेत, पिशाच ), गूढ कर्मकांडों में (काला जादू) फंसे लोग और प्रमुख रूप से राजसिक और तामसिक लोग अधिक प्रभावित होते हैं और अपने रज-तमात्मक कार्य के लिए काली शक्ति प्राप्त करते हैं । यह दिन अनिष्ट शक्तियों के कार्य के अनुकूल होता है, इसलिए अच्छे कार्य के लिए अपवित्र माना जाता है ।
चंद्रमा के रज-तमसे मन प्रभावित होने के कारण पलायन करना (भाग जाना), आत्महत्या अथवा भूतों द्वारा आवेशित होना आदि घटनाएं अधिक मात्रा में होती हैं । विशेषरूप से रात्रि के समय, जब सूर्य से मिलने वाला ब्रह्मांड का मूलभूत अग्नितत्त्व (तेजतत्त्व) अनुपस्थित रहता है, अमावस्या की रात अनिष्ट शक्तियों के लिए मनुष्य को कष्ट पहुंचाने का स्वर्णिर्म अवसर होता है । इस रात में अनिष्ट शक्तियों, रज-तमयुक्त लोगों अथवा गूढ कर्मकांड (काला जादू) करने वाले लोगों को रज- तमात्मक शक्ति न्यूनतम मात्रा में उपलब्ध होती है पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का लाभ उठाकर कष्ट की तीव्रता बढाती हैं ।
अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिए। ज्योतिष में चन्द्र को मन का देवता माना गया है। अमावस्या के दिन चन्द्रमा दिखाई नहीं देता। ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं, उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। आध्यात्मिक शोध द्वारा यह भी स्पष्ट हुआ है कि अमावस्या और पूर्णिमा के दिन मनुष्य पर होने वाले प्रभाव में सूक्ष्म अंतर होता है । पूर्णिमा के चंद्रमा का प्रतिकूल परिणाम साधारणतः स्थूलदेह पर, जबकि अमावस्या के चंद्रमा का परिणाम मन पर होता है ।
सुर्य और चन्द्रमा ये दोनों शक्तिशाली ग्रह अमावस्या के दिन एक राषि में आ जाते हैं अर्थात चन्द्र जब तक दोनो एक राषि में रहते हैं तब तक ही अमावस्या रहती हैं। चन्द्रमा सुर्य के सामने निस्तेज हो जाता हैं। अर्थात चंन्द्र की किरणें नश्ट प्रायः हो जाती हैं। संसार में भयंकर अन्धकार छा जाता है। चन्द्रमा ही सभी औषधियों को रस देने वाला हैं जब चन्द्रमा ही पुर्ण प्रकाशक नहीं होगा तो औषधी भी निस्तेज हो जायेगी। ऐसयी निस्तेज अन्न, बल, वीर्य, बुध्दि वर्धक नहीं हो सकता किन्तु बल वीर्य बुध्दि आदि को मलीन करने वाला ही होगा। इसलिये अमावस्या का व्रत करना चाहिये उस दिन अन्न खाना निशेध किया गया हैं और व्रत का विधान किया गया हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अमावस्या का संबंध चंद्रमा से है। जो मन और भावनाओं का कारक होता है। इस शुभ दिन ध्यान, पूजा,जप-तप और दान करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति होती है। इसे दर्श इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस दिन ध्यान और आत्मनिरीक्षण करने का विशेष महत्व है।
अमावस्या के दिन चंद्र नहीं दिखाई देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता है उसे अमावस्या कहा गया है, अमावस्या माह में एक बार ही आती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। अमावस्या सूर्य और चंद्र के मिलन का काल है।
दर्श अमावस्या के दिन पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल और फूल अर्पित करें। इसके साथ ही ॐ पितृभ्य: नम: मंत्र का जाप करें। इस शुभ अवसर पर पितृसूक्त का पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा पितरों की तृप्ति के लिए खीर, पूरी और मिठाई बनाकर दक्षिण दिशा में रखकर दीप जलाने से पितृ संतुष्ट होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
मार्गशीर्ष अमावस्या पौराणिक ग्रंथों में तो यहां तक कहा गया है कि इस अमावस्या के उपवास से न केवल पितृगण बल्कि ब्रह्मा, इंद्र, रूद्र, अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि, पशु-पक्षियों सहित सब भूत-प्राणियों की तृप्ति होती है.
अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर थोड़ा गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें,’ॐ पितृभ्य: नम:’ मंत्र का जाप करे. इस दिन पितृसूक्त और पितृस्तोत्र का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है.
राहुकाल शाम को 4 बजकर 5 मिनट से शाम 5 बजकर 24 मिनट तक रहेगा। इस समय आपको किसी भी प्रकार के शुभ कार्य से बचना चाहिए।
पितरों का श्राद्ध कर्म और पिंडदान करने की सोच रहे है, वे सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक के बीच कर सकते हैं।
पितरों को तर्पण करने के लिए सबसे पहले अपने हाथ में कुशा लें. कुशा को लेने के बाद दोनों हाथ जोड़कर पितरों का स्मरण करें. पितरों का ध्यान करने के बाद उन्हें आमंत्रण देना चाहिए. उन्हें आमंत्रित करते हुए ‘ॐ आगच्छन्तु में पितर एवं गृह्णन्तु जलान्जलिम’इस मंत्र का जाप करना चाहिए.कुशा के साथ जल अर्पित करें.
अमावस्या की रात को आध्यात्मिक ऊर्जा अत्यधिक सक्रिय मानी जाती है। अमावस्या की आध्यात्मिक ऊर्जा ध्यान और मंत्र जाप के लिए अत्यधिक लाभकारी मानी जाती है। मार्गशीर्ष अमावस्या पर की गई पूजा और अनुष्ठान से नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
ज्योतिषी के अनुसार, अमावस्या तिथि के दिन राहु का प्रक्रोप बढ़ जाता है और राहु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए यह जरूरी है कि इस दिन शिवलिंग की पूजा की जाए। मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने के बाद शिवलिंग को अर्घ्य देने से राहु का बुरा असर नहीं पड़ता। यह भी माना जाता है कि अमावस्या तिथि के दिन सूर्य को अर्घ्य देने से सौभाग्य पर लगी बुरी नजर हटती है। अमावस्या तिथि पर तुलसी को अर्घ्य देने से सेौ गुना फलों की प्राप्ति होती है।
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, मार्गशीर्ष माह को स्वयं भगवान कृष्ण ने “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्” (महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूं) कहकर सबसे पवित्र माना है। इस दिन विष्णु सहस्रनाम और श्रीमद्भगवद्गीता के पाठ करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करें। इससे पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
सूर्यास्त के समय पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाना और पितरों के नाम से दीपदान करना शुभ होता है।
इस दिन हनुमान जी और शिव जी की विशेष पूजा करने से समस्त दुखों का नाश होता है। साथ ही जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
इस पवित्र तिथि के दिन संभव हो तो गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान करें। और वहीं अपने पितरों को जल अर्पित करें।
नवंबर 2024 में वृश्चिक राशि की अमावस्या शनि से अनुकूल रूप से जुड़ी हुई है। इसलिए नवंबर 2024 की अमावस्या ज्योतिष का आध्यात्मिक अर्थ है आत्म-अनुशासन, विश्वसनीयता, समर्पण, निष्ठा और सम्मान।
अमावस्या पर मन रहता है असंतुलित…
ग्रंथों में अमावस्या पर यात्रा करने से भी मना किया गया है। इस संबंध में मान्यता है कि अमावस्या पर चंद्र की शक्ति बिल्कुल कम हो जाती है। ज्योतिष में चंद्र को मन का कारक बताया गया है। अमावस्या पर चंद्र न दिखने की वजह से हमारा मन संतुलित नहीं रह पाता है। इसी वजह से काफी लोग अमावस्या पर असहज महसूस करते हैं।
2. अमावस्या पर कोई बड़ा फैसला लेने से बचें…
अमावस्या पर हमारा मन संतुलित नहीं रह पाता है, इस कारण कोई भी बड़ा फैसला इस दिन लेने से बचना चाहिए। अन्यथा फैसला गलत साबित हो सकता है और हमें परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
3. शमशान नहीं जाए…
अमावस्या की रात किसी सुनसान स्थान या शमशान की ओर न जाएं। अमावस्या पर नकारात्मक शक्तियां अधिक सक्रीय रहती हैं जो कि हमें नुकसान पहुंचा सकती हैं।
4. देर तक नहीं सोये…
अमावस्या पर सुबह देर तक सोने से बचें। इस दिन सुबह जल्दी जरूर उठें और स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं।
5. संबंध नहीं बनाएं…
अमावस्या पर पति पत्नी को संबंध बनाने से बचना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार अमावस्या पर बनाए गए संबंध से उत्पन्न होने वाली संतान सुखी नहीं रहती है।
6. क्लेश ना करें…
घर में क्लेश न करें, वरना पितर देवता की कृपा नहीं मिल पाती है। अमावस्या पर पितरों के लिए धुप-ध्यान करें।
नकारात्मक शक्तियों से निपटने के उपाय
सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण अपनाएं: सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण नकारात्मक शक्तियों से निपटने का सबसे प्रभावी तरीका है। अपने विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण रखें और सकारात्मकता को बढ़ावा दें।
- आध्यात्मिक अभ्यास: ध्यान, योग, प्रार्थना, और अन्य आध्यात्मिक अभ्यासों से नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति पाई जा सकती है। यह मानसिक शांति और आंतरिक शक्ति को बढ़ाता है।
- स्वच्छ और व्यवस्थित वातावरण: अपने आस-पास का वातावरण स्वच्छ और व्यवस्थित रखें। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में मदद करता है।
- स्वस्थ जीवनशैली: स्वस्थ भोजन, नियमित व्यायाम, और पर्याप्त नींद से शरीर और मन को मजबूत बनाए रखें। यह नकारात्मक शक्तियों से निपटने में सहायक होता है।
संसार में सब कुछ दो पहलुओं से निर्मित होता है, ऐसा कुछ नही जिसका केवल एक ही पहलू हो। ऐसे ही सकारात्मक शक्तियों के साथ नकारात्मक शक्तियां भी होती हैं, जो जीवन को पतन की ओर ले जाने का प्रयास करती हैं। नकारात्मक शक्तियों से अपनी रक्षा करने के कई उपाय विद्वानों, संतो, आचार्यों और ज्ञानियों ने बताए हैं। हनुमानजी की आराधना करें, हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ तीन बार करें। जप, तप, सेवा, भगवान नाम को भाव के साथ याद करना, भक्ति और प्रेम भी हमेशा हमारी रक्षा करते हैं। एक चुटकी सेंधा नमक पानी में डालकर नहाएं इससे भी बचाव होता है। गूगल और लोबान का धुआं घर पर रोज करें। गुरु की आरती के बाद उसे अपने ऊपर से सात बार उतारें।
हमारे मृत पूर्वज हमारे जीवन में समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं
अपने आप को मन से मजबूत बनाएं कमजोर नही। जैसे आपने मन की स्थिति होगी वैसे ही आप पर नकारात्मक शक्तियां प्रभाव डालती हैं। कमजोर मन वाले बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं। और अपने आप पर और परमात्मा पर पूरा भरोसा रखें, कि वो आपके साथ हैं, कोई आपका कुछ नही बिगड़ सकता। इस तरह से आप नकारात्मक शक्तियों से बच सकते हैं।
हम इस अवधारणा से अनभिज्ञ हैं कि हमारे मृत पूर्वज हमारे जीवन में समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं ।
श्री गुरुदेव दत्त का नामजप ईश्वर के एक रूप अर्थात भगवान दत्तात्रेय का प्रतिनिधित्व करता है । ब्रह्मांड में भगवान दत्तात्रेय के कार्यों में से एक है, पूर्वजों के सूक्ष्म देह से उत्पन्न कष्टों को दूर करना । ईश्वर अपनी उद्देश्य पूर्ति उत्पत्ति, स्थिति एवं लय के तीन मुख्य सिद्धांत द्वारा करते हैं । भगवान दत्तात्रेय, यह सामर्थ्य ईश्वर के इन तीन सिद्धांतों अर्थात उत्पत्ति १०%, स्थिति ८०%, ऒर लय १०% से प्राप्त करते हैं । उनकी प्रकट शक्ति १०% है जबकि अप्रकट शक्ति ९०% है । ‘श्री गुरुदेव दत्त’ दत्तात्रेय का एक शक्तिशाली मंत्र है। इस मंत्र का जाप सभी गुरुओं के गुरु भगवान दत्तात्रेय का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है । माना जाता है कि दत्तात्रेय के मंत्रों का जाप करने से पितृ दोष या पितृ शापम के कारण होने वाली समस्याओं का समाधान होता है। दोष का अर्थ है ‘पीड़ा’ और शापम का अर्थ है ‘शाप’। हमारे दिवंगत पूर्वजों की आत्माओं या पितरों को याद किया जाना चाहिए और उनका सम्मान किया जाना चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होता है कि उन्हें मुक्ति मिले और वे हमें अपना आशीर्वाद दें। अगर हम ऐसा करने में विफल रहते हैं या अगर वे हमारे प्रसाद से नाखुश हैं, तो हम उनके शाप के भागी हो सकते हैं। यह विवाह में देरी, संतान की कमी, बच्चों के लिए स्वास्थ्य समस्याएं, घरेलू सामंजस्य की कमी आदि जैसी समस्याओं के रूप में प्रकट हो सकता है। समस्याओं की गंभीरता के आधार पर, व्यक्ति को मंत्र का जाप करना चाहिए। दत्तात्रेय बहुत सौम्य, दयालु और कृपालु हैं। जब कोई व्यक्ति उनके मंत्र का जाप करता है, तो व्यक्ति को उनकी दिव्य शक्तियों द्वारा ऐसी समस्याओं से बचाया जाएगा।
ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा। ‘ भगवान दत्तात्रेय के ये मंत्र आपके लिए बहुत ही लाभदायी साबित होंगे तथा जीवन में उन्नति के अनेक नए मार्ग खुलते हैं। अगर आप जीवन की सभी परेशानियां समाप्त करना चाहते हैं तो इन्हें अवश्य पढ़ना चाहिए।
गरुड़ पुराण में अमावस्या के दिन नियमित सांसारिक कामों से समय निकालकर आध्यात्मिक साधना पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया गया है।
आज के दिन चंद्रमा की पूजा अवश्य करनी चाहिए. माना जाता है कि जिसकी कुंडली में चंद्रमा नीच स्थिति में होता है ऐसे लोगों को इस दिन सफेद रंग के वस्त्र, सफेद रंग के अन्न, दूध दही आदि का दान करना चाहिए
अमावस्या पर धरती चिंतनशील होती है; ग्रह पर जीवन प्रक्रिया धीमी हो जाती है और यह एक बेहतरीन अवसर है क्योंकि इस दिन जीवन का एकीकरण बेहतर तरीके से होता है। जब एक निश्चित मंदी होती है, तब आप अपने शरीर पर ध्यान देते हैं।
अमावस्या तिथि का आरंभ 30 नवंबर को सुबह 10 बजकर 29 पर होगा। अमावस्या तिथि समाप्त 1 दिसंबर 2024 को सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर होगा। 30 नवंबर 2024 को मार्गशीर्ष अमावस्या रहेगी।
30 नवंबर 2024 को मार्गशीर्ष अमावस्या रहेगी। अमावस्या के दिन स्नान-दान के लिए ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजकर 8 मिनट से सुबह 6 बजकर 2 मिनट तक रहेगा। वहीं अभिजीत मुहूर्त 30 नवंबर को सुबह 11 बजकर 49 मिनट से दोपहर 12 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन स्नान करने के बाद आप पितरों का तर्पण कर सकते हैं। इस दिन तर्पण के लिए कुशा के पोरों का इस्तेमाल करें।
: पितरों के लिए श्राद्ध, पिंडदान आदि कार्य दिन में 11 बजे के बाद से लेकर दोपहर 3 बजे तक कर सकते हैं।
: भगवान श्रीकृष्ण के मंत्रों का जाप भी अवश्य करना चाहिए।
अमावस्या तिथि पर राहु का प्रभाव बढ़ता है, इसलिए इस दिन शिवलिंग की पूजा करने की सलाह दी जाती है।
मार्गशीर्ष अमावस्या की रात को ध्यान और साधना करने से मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति होती है।
इस दिन भोजन, वस्त्र और धन का दान अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है, जो सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं।
शिवलिंग को अर्घ्य देने से राहु का बुरा असर नहीं पड़ता। यह भी माना जाता है कि अमावस्या तिथि के दिन सूर्य को अर्घ्य देने से सौभाग्य पर लगी बुरी नजर हटती है। अमावस्या तिथि पर तुलसी को अर्घ्य देने से सेौ गुना फलों की प्राप्ति होती है।
दीपदान और ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र दान करें।
: मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन भगवान विष्णु, शिव जी और माता गंगा की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
अमावस्या में विध्वंसक का एक रंग होता है। आम तौर पर, अमावस्या की रात को एक बहुत ही स्त्री ऊर्जा या तो परेशान होती है क्योंकि यह उसके अंदर कुछ डर और अशांति पैदा करती है,