1 जनवरी 2024; नक्षत्रों का विशेष संयोग; शिव वास से नववर्ष की शुरूआत ; भगवान शिव शंकर नंदी पर सवार होकर पृथ्वी पर भ्रमण; दून के किस पत्रकार को आध्यात्मिक क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान हेतु आदि गुरू शंकराचार्य अवार्ड, ऋषि चरक अवार्ड प्रदीप भण्डारी वैद्य जी को
पंचांग के अनुसार 1 जनवरी 2024 को पंचमी तिथि. पौष माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 31 दिसंबर 2023 को सुबह 11 बजकर 55 मिनट से हो रही है. पंचमी तिथि का समापन 1 जनवरी 2024 को दोपहर 02 बजकर 28 मिनट पर होगा. इसके बाद षष्ठी तिथि लग जाएगी. नए साल की शुरुआत सोमवार से हो रही है. ऐसे में इस दिन शिव जी की पूजा और कुछ खा चीजों की खरीदारी करना अच्छा माना जाता है. पौष महीने की शुरुआत 27 दिसंबर 2023 से हो चुकी है, जो 25 जनवरी 2024 तक रहेगा. : इस महीने में मनुष्य के जीवन के साथ सृष्टि में कई बदलाव आते हैं, जिसका अंदाजा लगाना भी नामुमकिन है, : मीडिया में प्रकाशित वार्षिक राशिफल चन्द्र गति एवं सूर्य गति पर आधारित होती है श्रेष्ठ फल हेतु जन्मपत्रिका का आधार महत्वपूर्ण है। : ज्योतिषों के अनुसार भावी प्रधान मंत्री के सितारे क्या कह रहे हैं। 2024 में देश की कमान कौन संभालेंगे?: मीन राशि’- पीपल और केले के पेड़ की सेवा करें. माथे पर हल्दी या केसर का तिलक करें. नारायण उपासना करें;; वृश्चिक राशि के जातको के लिये इस साल को अनुकूल बनाने में लक्की रंग का अहम रोल हो सकता है । इस साल आपके लिये सबसे लक्की रंग होगा गहरा लाल । ये रंग आपके आत्मविश्वास को बढायेगा , आपके दिन की शुरुआत को मधुर बनायेगा और लोगों को आपकी तरफ़ आकर्षित करेगा ।नव वर्ष की हिमालयायूके परिवार की ओर से शुभ मंगल कामनाएं।
Logon www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Daily Newspaper & youtube Channel) चन्द्रशेखर जोशी की विशेष रिपोर्ट मो0 9412932030
2024 नव वर्ष जीवन में ख़ुशियां और सुख-समृद्धि लेकर आएगा। घर-परिवार में सुख-शांति और धन-धान्य की कमी नहीं होगी। जनवरी 2024 का आगाज़ मघा नक्षत्र के तहत कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि के अंतर्गत 01 जनवरी 2024 को होगा, मन्दिर में घी का दिया जला कर पुष्प चढ़ाना चाहिए:
इस वर्ष पूर्ण सूर्य ग्रहण के साथ-साथ वलयाकार सूर्य ग्रहण भी है, जो दो बहुप्रतीक्षित ब्रह्मांडीय घटनाएँ हैं। इनके बीच में एक आंशिक चंद्र ग्रहण और एक उपछाया चंद्र ग्रहण होगा, जिससे 2024 को आगे देखने लायक वर्ष बना दिया जाएगा।
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक कहते है कि हर दिन एक जैसा नहीं होता. कभी कोई दिन आपके लिए किसी शुभ समाचार की सौगात लेकर आता है, तो कभी हमारे सामने कई चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं. कोई दिन ऐसा होता है, जब मन भीतर से बहुत खुश होता है तो कभी ऐसा भी होता है, जब पूरे दिन उदासी घेरे रहती है. ऐसा हमारी राशि और ग्रहों की स्थिति के कारण होता है.
#नए साल 2024 का स्वागत पूजा करके दिन की शुरुआत #साल 2024 का आरंभ बहुत खास दिन से हो रहा है # तिथि, नक्षत्रों का विशेष संयोग साधक भक्त जनो को दुख, संकट, दरिद्रता से दूर रखेगा # शिव वास ; साल के पहले दिन ब्रह्म मुहूर्त से लेकर दोपहर के 2 बजकर 28 मिनट तक भगवान शिव शंकर नंदी पर सवार होकर पृथ्वी पर भ्रमण करेंगे। ऐसे में इस समय में रुद्राभिषेक करने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होगा। # जनवरी 2024 में मकर संक्रांति, गुरु गोविंद सिंह जयंती, पौष अमावस्या, पोंगल, अखुरथ संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ जैसे बड़े व्रत-त्योहार #जनवरी में विवाह और समस्त मांगलिक कार्य के लिए कई शुभ मुहूर्त# नए साल के पहले दिन यानी कि 1 जनवरी को सुबह 8 बजकर 36 मिनट मघा नक्षत्र #के बाद पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र शुरू #साल 2024, 1 जनवरी को शुभ आयुष्मान योग का निर्माण #जो अगले दिन यानी कि 2 जनवरी, दिन मंगलवार (मंगलवार के उपाय) को सुबह 4 बजकर 36 मिनट तक # इसी समय भगवान शिव की पूजा या शिवलिंग का जलाभिषेक करना सबसे अधिक शुभ # ज्योतिष गणना के अनुसार, साल के पहले दिन तैतिल और गर करण का निर्माण # जिन्हें बहुत शुभ माना जाता है # इस योग में किसी भी शुभ कार्य को करने से वह अवश्य फलित होता है और उसके माध्यम से लाभ भी प्राप्त होने लगते हैं चंद्रशेखर जोशी संस्थापक अध्यक्ष: महा माई पीतांबरा श्री बगुलामुखी
शिव वास ; साल के पहले दिन ब्रह्म मुहूर्त से लेकर दोपहर के 2 बजकर 28 मिनट तक भगवान शिव शंकर नंदी पर सवार होकर पृथ्वी पर भ्रमण करेंगे। ऐसे में इस समय में रुद्राभिषेक करने से भगवान का आशीर्वाद
भोलेनाथ का जलाभिषेक या रुद्राभिषेक करें. सोमवार का दिन अभिषेक के लिए खास माना जाता है. बेल के पत्तों पर अपनी बात कहते हुए शिवलिंग पर अर्पित कर दें. कहते हैं इससे शिव जल्द प्रार्थना स्वीकार कर पूरी करते हैं. माता पार्वती को लाल चुनरी ओढ़ाएं. इससे सौभाग्य में वृद्धि होती है. वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है. नए साल के पहले दिन सोमवार पर सफेद रंग की चीजों चावल, सफेद वस्त्र, सफेद फूल, शक्कर, नारियल आदि का दान करना चाहिए. इससे कुंडली में चंद्रमा मजबूत होता है साथ ही दोष समाप्त होते हैं. शाम को दोबारा शिव की पूजा करें. साल के पहले दिन घर में बेलपत्र का पौधा लगाना शुभ होगा. रोजाना इसकी देखभाल और पूजा का संकल्प लें. बेलपत्र के पौधा घर में सुख, शांति-समृद्धि और धन लाता है.
पंचांग के अनुसार 1 जनवरी 2024 को पंचमी तिथि. पौष माह के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 31 दिसंबर 2023 को सुबह 11 बजकर 55 मिनट से हो रही है. पंचमी तिथि का समापन 1 जनवरी 2024 को दोपहर 02 बजकर 28 मिनट पर होगा. इसके बाद षष्ठी तिथि लग जाएगी. ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 05.25 – सुबह 06.19
अभिजित मुहूर्त – दोपहर 12.04 – दोपहर 12.45 विजय मुहूर्त – दोपहर 02.08 – दोपहर 02.49 गोधूलि मुहूर्त – शाम 05.32 – शाम 06.00 निशिता मुहूर्त – रात 11.57 – प्रात: 12.52, 2 जनवरी आयुष्मान योग – 1 जनवरी 2024, प्रात: 03.31 – 2 जनवरी 2024, सुबह 04.36 गजकेसरी योग – मेष राश में गुरु-चंद्रमा की युति गजकेसरी योग बनेगा. लक्षमी नारायण योग – शुक्र-बुध इस दिन वृश्चिक राशि में विराजमान होंगे, इससे ये योग बनता है. आदित्य मंगल योग – सूर्य-मंगल इस दिन धनु राशि में एक साथ होंगे, जिससे ये योग बनेगा
धर्म चक्र ; हिंदू धर्म में पौष महीने का विशेष महत्व है. इसे ‘पूस’ भी कहा जाता है. पौष हिंदू कैलेंडर का 10वां महीना होता है पौष महीने की शुरुआत 27 दिसंबर 2023 से हो चुकी है, जो 25 जनवरी 2024 तक रहेगा. धार्मिक दृष्टिकोण से भले ही पौष महीने का विशेष महत्व है. लेकिन कुछ ऐसे भी कार्य होते हैं, जिन्हें पौष माह में करना वर्जित माना जाता है. पौष माह सूर्य देव को समर्पित है. इसलिए इस महीने सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए, कम से कम ‘ऊँ हीं ह्रीं सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप जरूर करें. पौष में पूरे एक महीने तक प्रतिदिन तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर इसमें सिंदूर, लाल फूल और अक्षत डालकर सूर्य को अर्घ्य दें. इससे भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त होगी. भगवान भास्कर के साथ ही पौष माह में भगवान विष्णु की भी पूजा करना फलदायी होता है. इसलिए इस माह विष्णु जी की पूजा जरूर करें. पौष महीने में नियमित रूप से गीता पाठ और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और ब्राह्मणों में दान-दक्षिणा करें. पौष महीने में इन कामों को करना होता है अशुभ किसी भी नए काम की शुरुआत के लिए पौष का महीना शुभ नहीं माना जाता है. पौष में ही खरमास होता है. पौष महीने में शुभ-मांगलिक कार्यों के लिए पौष में कोई शुभ मुहूर्त नहीं होते हैं. खाने-पीने की कुछ चीजें का सेवन पौष माह में नहीं करना चाहिए. इस माह मांस-मदिरा, उड़द की दाल, मसूर की दाल का सेवन न करें. साथ ही शक्कर के बजाय आप गुड़ का अधिक सेवन करें.
इस महीने में मनुष्य के जीवन के साथ सृष्टि में कई बदलाव आते हैं, जिसका अंदाजा लगाना भी नामुमकिन है,
इस महीने को छोटा पितृ पक्ष भी कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष की तरह इस माह भी पूर्वजों के लिए खास पूजा की जाती है, इस महीने में शुभ कार्य नहीं किए जातें है, लेकिन भगवान और विशेष रूप से पितरों और सूर्यदेव की पूजा की जाती है इस महीने में मनुष्य के जीवन के साथ सृष्टि में कई बदलाव आते हैं, जिसका अंदाजा लगाना भी नामुमकिन है, पौष माह की पूर्णिमा को चंद्रमा का आकार पूरा होता है. वही पौष के माह को सूर्य का माह भी कहा जाता है. इस तरह सूर्य और चंद्रमा का यह अद्भूत संगम पौष पूर्णिमा की तिथि को ही होता है. सूर्य और चंद्रमा दोनों के पूजन से मनोकामनाएं पूर्ण होती है पौष माह में आने वाली पुर्णिमा, अमावस्या और एकादशी को पितरों की पूजा करें. ऐसा करने से पितृ दोष दूर होने में लाभ मिलेगा. सूर्य देव को अर्घ्य के बाद भगवान मधुसूदन की पूजा के बाद ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं. कंबल, गुड़, तिल जैसी चीजों का दान करना शुभ माना जाता है.
पौष माह 2024 व्रत-त्योहार
# 7 जनवरी 2024 (रविवार) – सफला एकादशी # 9 जनवरी 2024 (मंगलवार) – भौम प्रदोष व्रत, मासिक शिवरात्रि # 11 जनवरी 2024 (गुरुवार) – पौष अमावस्या # 13 जनवरी 2024 (शनिवार) – पंचक शुरू # 14 जनवरी 2024 (रविवार) – पौष विनायक चतुर्थी # 15 जनवरी 2024 (सोमवार)- मकर संक्रांति, पोंगल, उत्तरायण # 17 जनवरी 2024 (मंगलवार) – गुरु गोबिंद सिंह जयंती # 21 जनवरी 2024 (रविवार) – पौष पुत्रदा एकादशी, वैकुंण एकादशी # 23 जनवरी 2024 (मंगलवार) – भौम दूसरा प्रदोष व्रत # 25 जनवरी 2024 (गुरुवार) – पौष पूर्णिमा पौष माह की पूर्णिमा बहुत खास मानी जाती है. पूर्णिमा तिथि पर लक्ष्मी-नारायण की पूजा का विधान है. पूर्णिमा का व्रत जीवन में सौभाग्य लेकर आता है
दिव्य शक्तियां आपको वॉच कर रही है; चंद्रशेखर जोशी
आध्यात्मिक साधक कहते हैं कि ईश्वर सभी चीजों में छिपा हुआ है, वह सभी जगह व्याप्त है। वह व्यक्त जगत के रूप में कुछ हद तक मानवीय अनुभूति और धारण के क्षेत्र में आता है। यदि प्रकाश बहुत तेज है तो तुम उसे नहीं देख सकते, यदि यह बहुत ही कम है, तब भी तुम इसे नहीं देख सकते। इसलिए इस व्यक्त जगत में एक विशेष सीमा तक ही तुम देख सकते हो, अनुभव कर सकते हो, धारण कर सकते हो, यानी इस सीमा से न कम न अधिक। लेकिन यह सर्वथा सत्य है कि उसका अभिप्रकाश सीमित नहीं है। वह तुम्हारी सीमा के अंदर आबद्ध नहीं है, उसका असीमित विस्तार है, उसका असीमित क्षेत्र है।
आध्यात्मिक साधकों का दर्शन जो तंत्र के नाम से जाना जाता है:
वह परम साक्षी सत्ता है। यदि तुम आत्मा हो, तो वह परमात्मा है। तुम यदि छत हो, तो वह परम छत है। अब हम भौतिक जगत में अपने कार्यकलापों पर विचार करें। तुम बहुत तरह के कर्म करते हो। तुमलोग सोचते हो कि हमलोग बहुत सारे कर्मों का संपादन कर रहे हैं। वास्तव में मनुष्य ईश्वर से शक्ति प्राप्त किए बिना कुछ भी नहीं कर सकता। तुम कहते हो, मैं एक शक्तिशाली व्यक्ति हूं, मैं एक स्वस्थ व्यक्ति हूं। तुम कहां से यह शक्ति प्राप्त करते हो? तुम यह शक्ति हवा, पानी, फल, भोजन आदि से पाते हो। अतः न तुम शक्ति को बनाने वाले हो और न इसके मालिक ही हो। यह प्राण शक्ति तुम्हारी नहीं है। यदि तुम कुछ दिनों तक, कुछ महीनों तक या कुछ वर्षों तक भोजन नहीं लो, तो तुम अपने आपको किसी भी तरह व्यक्त नहीं कर सकोगे। बिना उसकी कृपा के तुम तो बहुत निर्बल शक्ति हो, बाहुबलियों को, टॉप सत्ताधीशो को एडीया रगड़ते हुए, हड्डियों का ढांचा बनते समय ने देखा है:
दैवीय शक्ति आपकी मदद कर रही है.? मिलते हैं संकेत
दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें उनके जीवन में दैवीय सहायता मिलती है। किसी को ज्यादा तो किसी को कम। कुछ तो ऐसे हैं जिनके माध्यम से दैवीय शक्तियां अच्छा काम या मंदिर बनवाने के लिए तैयार करवाती हैं। आम व्यक्ति कैसे पहचानें कि उसकी दैवीय शक्तियां मदद कर रही है या उसकी पूजा-पाठ-प्रार्थना का असर हो रहा है? सर्व प्रथम उसके विरोधी भरसक प्रयास के बाद भी उसके सामने ठहर नहीं सकते,
मनुष्य का जन्म क्यों हुआ? क्या हम धरती पर कमाने और खाने के लिए पैदा हुए हैं?
मनुष्य का जन्म केवल कमाने और खाने के लिए तो बिलकुल नहीं हुआ था। मनुष्य का जन्म हिंदू मान्यता के अनुसार चौरासी लाख योनिए के बाद होता है। इसलिए मनुष्य का जन्म महत्वपूर्ण है। लेकिन हम मनुष्य इस महत्वपूर्ण जन्म को भी केवल कमाने और खाने में व्यर्थ कर रहे हैं। असल में इस मानुष जन्म का असली उद्देश्य तो सत्कर्म कर के इस जन्म और मृत्यु के बन्धनों से मुक्ति पाना है। और इसीलिए यह मनुष्य तन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह केवल मनुष्य तन हीं ऐसा जन्म है जिसमें वह सत्कर्म कर सकता है। बाकी योनियों में तो क्षुधापूर्ति और संसर्ग हीं करते हैं जिससे वंश वृद्धि कर सके। लेकिन मनुष्य तन में वह अच्छे बुरे का फर्क समझ कर अपने लिए अच्छे कर्म चुनता है और अपने जीवन को सार्थक करता है। लेकिन आज के इस सामाजिक जीवन शैली में यह सत्कर्म प्रत्यक्ष रूप से जीवन का एक मात्र लक्ष्य नहीं बना पाता। इसलिए कमाने खाने के साथ उसे सत्कर्म को भी अपने जीवन में जगह देनी चाहिए। जीवन केवल कमाने खाने के लिए नहीं होता है। इसका लक्ष्य तो सत्कर्म के जरिये मोक्ष पाना होना चाहिए। और संतात्मायें इसी लक्ष्य को पाने के लिए मनुष्य जन्म लेते हैं। धरती पापों का प्रायश्चित करने के लिए कुछ दिन आराम करने की जगह नहीं है। यहाँ रह कर मनुष्य को सत्य, न्याय, और दया के भाव के साथ अपने अंदर सत्कर्म के बीज बोना चाहिए। यह पूर्णता के शिखर पर पहुँचने का एक जरिया है। मन कर्म और वचन से ईश्वर का यश संसार में फैलाना उसके लिए पवित्र कर्म होना चाहिए।
मन कर्म और वचन से ईश्वर का यश संसार में फैलाना उसके लिए पवित्र कर्म होना चाहिए।
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा था, कर्म कर, फल की चिंता न कर। कर्म प्रधान है। कर्म से मनुष्य अपने कल को सुधार सकता है। और यही कर्म उसे जीवन की पूर्णता की ओर ले जाते हैं। कुछ लोग अपने कमाने खाने के साथ ऐसे उदहारण प्रस्तुत करते हैं कि वे संसार के लिए कभी मदर टेरेसा जैसे रूप में जन्म लेते हैं। ढेरों ऐसे नाम हैं जिन्होंने कमाने खाने के अलावा भी अपने जीवन का उपयोग सत्कर्मो को समर्पित कर दिया। इसलिए सिर्फ कमाना खाना नहीं, बल्कि अपने जीवन के लक्ष्य को पहचान कर उसी राह पर चलना चाहिए जिससे उस लक्ष्य को पा सके। आमतोर पर जब मनुष्य का जीवन मिलता है तो कुछ न कुछ परेशानियां हमेशा चलती रहती है। इन परेशानियों के रहते आम व्यक्ति परेशान रहता है। एेसे में अगर राशि अनुसार मंत्रों का जप व पूजन किया जाए तो बिगडे़ कार्य बनना शुरू हो जाते है। इसके लिए सही तरीके से पूजन करना व मंत्र को जप करना जरूरी होता है।
पितामाह ने श्रीकृष्ण से पूछ ही लिया, “मधुसूदन, मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं सरसैया पर पड़ा हुआ हूँ?” यह बात सुनकर मधुसूदन मुस्कराये और पितामह भीष्म से पूछा, ‘पितामह आपको कुछ पूर्व जन्मों का ज्ञान है?” इस पर पितामह ने कहा, ‘हाँ”। श्रीकृष्ण मुझे अपने सौ पूर्व जन्मों का ज्ञान है कि मैंने किसी व्यक्ति का कभी अहित नहीं किया |
आपके सारे पुण्यकर्म क्षीण हो गये और करकेंटा का ‘श्राप’ आप पर लागू हो गया
श्रीकृष्ण मुस्कराये और बोले पितामह आपने ठीक कहा कि आपने कभी किसी को कष्ट नहीं दिया, लेकिन एक सौ एक वें पूर्वजन्म में आज की तरह तुमने तब भी राजवंश में जन्म लिया था और अपने पुण्य कर्मों से बार-बार राजवंश में जन्म लेते रहे, लेकिन उस जन्म में जब तुम युवराज थे, तब एक बार आप शिकार खेलकर जंगल से निकल रहे थे, तभी आपके घोड़े के अग्रभाग पर एक करकैंटा एक वृक्ष से नीचे गिरा। आपने अपने बाण से उठाकर उसे पीठ के पीछे फेंक दिया, उस समय वह बेरिया के पेड़ पर जा कर गिरा और बेरिया के कांटे उसकी पीठ में धंस गये क्योंकि पीठ के बल ही जाकर गिरा था? करकेंटा जितना निकलने की कोशिश करता उतना ही कांटे उसकी पीठ में चुभ जाते और इस प्रकार करकेंटा अठारह दिन जीवित रहा और यही ईश्वर से प्रार्थना करता रहा, ‘हे युवराज! जिस तरह से मैं तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूँ, ठीक इसी प्रकार तुम भी होना।” तो, हे पितामह भीष्म! तुम्हारे पुण्य कर्मों की वजह से आज तक तुम पर करकेंटा का श्राप लागू नहीं हो पाया। लेकिन हस्तिनापुर की राज सभा में द्रोपदी का चीर-हरण होता रहा और आप मूक दर्शक बनकर देखते रहे। जबकि आप सक्षम थे उस अबला पर अत्याचार रोकने में, लेकिन आपने दुर्योधन और दुःशासन को नहीं रोका। इसी कारण पितामह आपके सारे पुण्यकर्म क्षीण हो गये और करकेंटा का ‘श्राप’ आप पर लागू हो गया।
मै समय हूं, मै समय हूं, मै समय हूं
एक “समय” ही है जिस कारण न सिर्फ मनुष्य बल्कि यह पूरा ब्रह्मांड भी चलायमान है तथा मनुष्य के जीवन में घटने वाली तमाम ऊंच-नीच भी ‘समय” के ही अधीन है। अतः चाहे मनुष्य जीवन सरल बनाना हो या फिर ब्रह्मांड के गहरे रहस्य समझने हों, समय के गहरे स्वरूपों को समझे बिना इनमें से कुछ भी शक्य नहीं है। मनुष्यों को उनका बिगड़ा समय संवारने के लिए जो भी “,समय ” की ताल-से-ताल मिला लेगा, पुण्य अर्जित कर एक सुखी और सफल जीवन गुजारना उसका भाग्य हो जाएगा, अन्यथा घर के एक कमरे में ही पूरा जीवन गुजार देगा, दूसरो की आलोचना करते करते कुंठ होकर कृशकाय होता जाएगा
मानव, मैं ही समय हूं, तेरा लेखा जोखा सब लिख रहा हूं
मेरे साथ चलना सीख ले मैं ही जीवन और मृत्यु के बीच हूं
मुझे पहचान ले।। मैं ही तीनों कालों में विद्यमान महाकाल हूं।
सुख-दुख दिन-रात तीन लोक में त्रिकाल हूं।।
चंद्रशेखर जोशी -राष्टीय संयोजक- पत्रकार प्रेरित पर्या0 अभियान — पंचगव्य गुरुकुल विश्व विद्यालय, काँची पुरम के उप कुलपति डॉ0 कमल टॉवरी IAS द्वारा नियुक्त &
# संपादक: उत्तराखंड शासन से राज्य स्तरीय मान्यता प्राप्त &
# अध्यक्ष उत्तराखंड: राष्टीय संत सुरक्षा परिषद, मुख्यालय भरोच गुजरात
# अध्यक्ष उत्तराखंड: राष्टीय सशक्त हिंदू महा संघ, नई देल्ही & #अध्यक्ष उत्तराखण्ड: IFSMN भारत के लघु तथा मध्यम समाचार पत्रो का महासंघ, Delhi
# संस्थापक अध्यक्ष: मां पीतांबरा- श्री बगुलामुखी शक्ति पीठ मंदिर, नन्दा देवी एंक्लैव राणा कॉलोनी, कुंज विहार बंजारा वाला, देहरादून
# अध्यक्ष उत्तराखंड: डॉ0 भीमराव अम्बेडकर ट्रस्ट (पंजी0)
#–l—-पूर्व जिम्मेदारी वर्तमान से कम नही——-
प्रदेश कार्यालय: नन्दा देवी एंक्लैव, बंजारा वाला, देहरादून, Mob 9412932030
Yr. Contribution: Ac
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