दुर्लभ सिद्घियां प्राप्‍त करने का विशेष दिन- 10 जून, रविवार

इस बार 10 जून, रविवार को एकादशी तिथि है। वैसे तो एकादशी तिथि हर महीने आती है, लेकिन इस बार की एकादशी बहुत खास है क्योंकि ये अधिक मास की एकादशी है। अधिक मास 3 साल में 1 बार आता है। यानी 10 जून के बाद अब ये एकादशी 2021 के अधिक मास में आएगी।
  अधिक मास भगवान श्रीकृष्ण को विशेष रूप से प्रिय है, इसलिए इसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस दृष्टिकोण से इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ गया है। भगवान श्रीकृष्ण की कृपा हमको मिले, ऐसे उपाय करने चाहिए,

पुरुषोत्तम मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी कमला, परमा एवं हरिवल्लभा एकादशी के नाम से प्रसिद्घ है। इस बार यह व्रत 10 जून को है। इस दिन भक्तिपूर्वक सच्चे भाव से व्रत करने वालों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और प्रभु की अपार कृपा जहां भक्तों पर बनी रहती है वहीं उन्हें सभी प्रकार की निधियां और दुर्लभ सिद्घियां भी प्राप्त होती हैं।  एकादशी व्रत सभी अनुष्ठानों में श्रेष्ठ है क्योंकि भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है। उन्होंने कहा कि शास्त्रों के अनुसार जंगल की आग जैसे सूखी और गीली सभी प्रकार की लकड़ियों को जलाकर राख कर देती है वैसे ही यह एकादशी व्रत सभी प्रकार के पापों और तापों को नष्ट करके जीव को सभी प्रकार के सुखों से युक्त करा देता है।

वही 13 जून, बुधवार को ज्येष्ठ का अधिक मास समाप्त हो जाएगा। इसके बाद 3 साल बाद यानी 2021 में अधिक मास का योग बनेगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ये महीना भगवान श्रीकृष्ण को विशेष रूप से प्रिय है, इसलिए इसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. प्रफुल्ल भट्ट के अनुसार, 10 जून, रविवार को अधिक मास की एकादशी तिथि है। अधिक मास में एकादशी का योग बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए अगर इस दिन कुछ खास उपाय किए जाएं तो सभी की मनोकामना पूरी हो सकती है।
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि बहुत ही पुण्य फलदायी तिथि मानी जाती है। प्रत्येक मास में एकादशी तिथि दो बार आती है। इसके अनुसार प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी व्रत तिथियां आती हैं। लेकिन अधिक मास की एकादशियों के साथ इनकी संख्या 26 हो जाती है। ज्येष्ठ मास में इस वर्ष अधिक मास आरंभ होगा जो कि 16 मई से 13 जून तक रहेगा। ज्येष्ठ मास की शुरुआत 30 अप्रैल से होगी व यह 27 जून को समाप्त होगा। अधिक मास की एकादशियां 25 मई व 10 जून को हैं। 25 मई की एकादशी पद्मिनी एकादशी है तो 10 जून की एकादशी परम एकादशी।

1. एकादशी पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें और पूजा करते समय कुछ पैसे मूर्ति या तस्वीर के पास रख दें। पूजा करने के बाद यह पैसे फिर से अपने पर्स में रख लें। इससे धन लाभ होने की संभावना बन सकती है।
2.यदि आप धन की इच्छा रखते हैं तो एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर जाएं और सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं। इसमें तुलसी के पत्ते अवश्य डालें। इससे भगवान श्रीकृष्ण जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। एकादशी को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें तो जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं। इसके बाद विधिपूर्वक गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। स्त्रियों के लिए यह स्नान उनके पति की लंबी उम्र और अच्छा स्वास्थ्य देने वाला है।
कमला एकादशी के दिन घर में पारद लक्ष्मी की स्थापना करें। पारद लक्ष्मी की पूजा से आपको हर सुख मिल सकता है और घर में खुशहाली बनी रहती है।
धर्म ग्रंथों में पीपल को भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप माना गया है। महाभारत में स्वयं श्रीकृष्ण ने कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूं। इसलिए इस पेड़ को बहुत ही पवित्र माना गया है। अधिक मास की एकादशी की सुबह पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और शुद्ध घी का दीपक लगाकर 11 परिक्रमा करें और ये मंत्र बोलें। इससे आपकी हर इच्छा पूरी हो सकती है।
मंत्र
अश्वत्थाय वरेण्याय सर्वैश्वर्यदायिने ।
अनन्तशिवरुपाय वृक्षराजाय ते नमः ।।

पुरषोत्तम मास की किसी भी एकादशी के व्रत का पुण्यफल किसी कल्पतरु से कम नहीं है। जिस कामना से कोई भक्त एकादशी का व्रत करता है, उसकी वह कामना अवश्य पूरी हो जाती है तथा जीवन में उसे कभी निराश नहीं होना पड़ता। कलियुग में तो भक्तों के लिए एकादशी व्रत ही भवसागर में डूबती नैय्या को पार लगाने का एकमात्र सरल साधन है। पुरुषोत्तम मास में शास्त्रानुसार कोई भी दान तथा व्रत आदि श्रेष्ठ कर्म किसी कामना से नहीं करने चाहिए क्योंकि इस मास में नि:स्वार्थ भाव से कर्म करना ही वास्तव में उत्तम कर्म होता है।   भगवान विष्णु जी का पूजन करें और श्री विष्णू सहस्त्रनाम का पाठ करें। व्रत में प्रात: सूर्यदेव को जल चढ़ाएं और प्यासे लोगों को जल पिलाएं। गाय को चारा खिलाएं, पानी पिलाएं और गाय का आशीर्वाद पाने के लिए उसके मस्तक पर हाथ फेरें और उसे प्रेम से सहलाएं। इसके अतिरिक्त व्रत में  अपनी क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को किसी भी वस्तु का दान दक्षिणा सहित अवश्य करें। 

इस व्रत का महात्‍म आप भी पढे और सबको इस न्‍यूज का लिंक भेजे- 
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा सुनाई थी, वो इस प्रकार है। 
काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। ब्राह्मण बहुत धर्मात्मा था और उसकी पत्नी पतिव्रता स्त्री ‍थी। यह परिवार बहुत सेवाभावी था। दोनों स्वयं भूखे रह जाते, परंतु अतिथियों की सेवा हृदय से करते थे। धनाभाव के कारण एक दिन ब्राह्मण ने अपनी पत्नी कहा- धनोपार्जन के लिए मुझे परदेस जाना चाहिए, क्योंकि इतने कम धनोपार्जन से परिवार चलाना अति कठिन काम है।  ब्राह्मण की पत्नी ने कहा- मनुष्य जो कुछ पाता है, वह अपने भाग्य से ही पाता है। हमें पूर्व जन्म के कर्मानुसार उसके फलस्वरूप ही यह गरीबी मिली है अत: यहीं रहकर कर्म कीजिए, जो प्रभु की इच्छा होगी वही होगा। पत्नी की बात ब्राह्मण को जंच गई और उसने परदेस जाने का विचार त्याग दिया। एक दिन संयोगवश कौण्डिल्य ऋषि उधर से गुजर रहे थे, जो ब्राह्मण के घर पधारे। ऋषि कौण्डिल्य को अपने घर पाकर दोनों अति प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषि की खूब आव-भगत की।  उनका सेवाभाव देखकर ऋषि काफी खुश हुए और पति-पत्नी द्वारा गरीबी दूर करने का प्रश्न पूछने पर ऋषि ने उन्हें मलमास के कृष्ण पक्ष में आने वाली पुरुषोत्तमी एकादशी करने की प्रेरणा दी। व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल एवं फूल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए। 
उन्होंने कहा ‍कि इस एकादशी का व्रत दोनों रखें। यह एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली होती है। धनाधिपति कुबेर ने भी इस एकादशी व्रत का पालन किया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया।  ऋषि की बात सुनकर दोनों आनंदित हो उठे और समय आने पर सुमेधा और उनकी पत्नी ने विधिपूर्वक इस एकादशी का व्रत रखा जिससे उनकी गरीबी दूर हो गई और पृथ्वी पर काफी वर्षों तक सुख भोगने के पश्चात वे पति-पत्नी श्रीविष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गए। अत: जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करेगा, भगवान विष्णु निश्‍चित ही कल्याण करते हैं। 

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