सांसदों और विधायकों के खिलाफ 12 विशेष कोर्ट

 सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के तेज़ निपटारे के लिए 12 विशेष कोर्ट बनेंगे. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर ये बताया है. केंद्र ने कहा है कि इस काम के लिए 7.80 करोड़ रुपए आवंटित किए जा रहे हैं. इस साल 1 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि उसके 10 मार्च 2014 के फैसले के पालन के लिए सरकार क्या कर रही है. तब कोर्ट ने ये आदेश दिया था कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मुकदमों का निपटारा एक साल के भीतर होना चाहिए. पिछले महीने एक मामले की सुनवाई के दौरान जब सरकार ने सज़ायाफ्ता जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन पाबंदी की मांग पर सहमति जताई, तब कोर्ट ने सरकार से पूछ लिया था कि अभी लंबित मुकदमों के तेज निपटारे के लिए उसकी क्या योजना है?
चुनाव आयोग की तरफ से कोर्ट में रखे गए आंकड़े के मुताबिक 2014 में कुल 1581 सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित थे. इसमें लोकसभा के 184 और राज्यसभा के 44 सांसद थे. महाराष्ट्र के 160, यूपी के 143, बिहार के 141 और पश्चिम बंगाल के 107 विधायकों पर मुकदमे लंबित थे. सभी राज्यों के आंकड़े जोड़ने के बाद कुल संख्या 1581 थी.

 

देश के विधायकों और सासंदों पर चल रहे आपराधिक मुकदमों का जल्द फैसला लेने के लिए मोदी सरकार अब बड़ा कदम उठाने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में केंद्रीय कानून मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि ऐसी अदालतें साल भर में गठित कर ली जाएंगी। इन 12 अदालतों के गठन पर सरकार 7.8 करोड़ रुपए खर्च करेगी। दरअसल नेतओं पर चल रहे मुकदमों में देरी के चलते यह सभी चुनाव में निर्वाचित होकर सांसद या विधायक बन जाते हैं।  इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने दागी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। जबकि केंद्र सरकार ने इसे खारिज करते हुए 6 साल की बैन को ही लागू रखने को कहा था। गुजरात और हिमाचल चुनाव में वोटिंग से ठीक पहले सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं को करारा झटका देते हुए उनके खिलाफ चल रहे मामलों की सुनवाई जल्द पूरी करने के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का प्लान पेश करने को कहा था।  एडीआर ने 4852 विधायकों और सांसदों के हलफनामे का अध्ययन करने के बाद यह रिपोर्ट प्रकाशित की थी। जिसमें दागी नेताओं को लेकर कई खुलासे हुए थे। जिन 51 जनप्रतिनिधियों ने अपने हलफनामे में महिलाओं के खिलाफ अपराध की बात स्वीकार की है उनमें से 3 सांसद और 48 विधायक हैं। 334 ऐसे उम्मीदवार थे जिनके खिलाफ महिलाओं के प्रति अपराध के मुकदमे दर्ज हैं, लेकिन उन्हें मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियों ने टिकट दिया था। हलफनामे के अध्ययन से यह बात सामने आई कि आपराधिक छवि वाले सबसे ज्यादा सांसद और विधायक महाराष्ट्र में हैं, जहां ऐसे लोगों की संख्या 12 थी। दूसरे और तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल और ओडिशा हैं। 

मामले को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने कहा था कि किसी राज्य में अदालतों के गठन आमतौर पर राज्य सरकार करती है. लेकिन इस मामले में देरी से बचने के लिए केंद्र सरकार एक योजना बना कर विशेष कोर्ट का गठन करे.
अब सरकार ने बताया है कि वो लोकसभा सांसदों के मुकदमों के फ़ास्ट ट्रेक निपटारे के लिए 2 कोर्ट बनाना चाहती है. जिन राज्यों में लंबित आपराधिक मामलों वाले विधायकों की संख्या ज़्यादा है, वहां भी 1-1 कोर्ट का गठन किया जाएगा. फिलहाल इस तरह की 12 विशेष कोर्ट का गठन किया जाएगा.
सरकार ने कोर्ट के गठन के लिए चुनाव आयोग के आंकड़ों को ही आधार बनाया है. उसने लंबित मुकदमों पर अपनी तरफ से कोई आंकड़ा नहीं दिया है. सरकार ने आंकड़े जुटाने के लिए समय की मांग की है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर इसी सप्ताह विचार करेगा.
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