सरकार को सबसे बड़ी फजीहत झेलनी पड़ेगी कि

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 2019 के चुनावों से पहले यह बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका  #तेलगू देशम पार्टी और वाईएसआर द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से देश की राजनीति गरमा गई है। 16 मार्च को शुरु हुई लोकसभा की कार्रवाई को सोमवार तक स्थगित कर दिया गया है।  सोमवार तक कार्रवाई स्थगित होने से भाजपा को सीधा फायदा है जिससे वे अपने रूठे सहयोगियों को मना कर उनका मत हासिल कर सकती है। बता दें कि भाजपा ने इस दिशा में कार्य करना शुरू भी कर दिया हैं।  हालांकि अविश्वास प्रस्ताव से भाजपाई सरकार को कोई खतरा नहीं है। ऐसा लगता है कि भाजपा किसी भी किस्म का रिस्क नहीं लेना चाहती, जिसके चलते पार्टी ने आंध्र प्रदेश के अपने वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली बुला लिया है।  अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के साथ-साथ आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए से औपचारिक अलगाव का भी ऐलान कर दिया है जो भाजपा के लिए चिंता का विषय है। 2019 के चुनावों से पहले यह बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका है।

भाजपा जहां 2019 की तैयारी कर रही है वहीं 2018 में अचानक ही उसे एक के बाद एक झटके मिल रहे हैं। उपचुनावों में मिल रही हार के बाद पार्टी की सीटें 283 से घटकर 272 तक पहुंच गई है। ऐसे में टीडीपी के एनडीए से बाहर आने पर सदन में कैसी स्थिति होगी इस पर सभी की निगाहें हैं। 

सरकार को सबसे बड़ी फजीहत भी झेलनी पड़ेगी कि वह अपने सहयोगियों के तालमेल नहीं बिठा पाई।  कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। वहीं उपचुनावों में मिली हार और सहयोगी दलों की नाराजगी का असर आगामी विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा के लिए 2019 में पिर से सत्ता पर काबिज होने का सपना कहीं अधूरा न रह जाए।

पासवान ने बड़ा बयान दिया- भाजपा के लिए 2019 जीतना उतना आसान नहीं 

भारतीय जनता पार्टी की यूपी और बिहार उपचुनाव में करारी हार पर चिराग पासवान ने बड़ा बयान दिया है। चिराग पासवान ने कहा कि  भाजपा को अपनी हार को लेकर जितना गंभीर होना चाहिए अभी वो उतनी गंभीर नहीं है। चिराग ने कहा कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो भाजपा के लिए 2019 जीतना उतना आसान नहीं होगा। चिराग ने आगे कहा कि भाजपा नई सीटें तो जीत रही है, लेकिन पुरानी सीटों को नहीं बचा पा रही है।  चिराग ने भाजपा को अपनी रणनीति बदलने की सलाह दी है।   चिराग पासवान लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) अध्यक्ष रामविलास पासवान के बेटे हैं। लोक जनशक्ति पार्टी केंद्र में एनडीए की सहयोगी पार्टी है 

अविश्वास प्रस्ताव विपक्षी दल के खिलाफ लाए जाने वाला प्रस्ताव है। जब दल को ऐसा लगता है कि सरकार के पास बहुमत नहीं है और वो संसद में अपना विश्वास खो चुकी है ऐसी स्थिति में पार्टी की तरफ से ये प्रस्ताव लाया जाता है। यह प्रस्ताव केवल लोकसभा में ही लाया जा सकता हैं।

बीजेपी अकेले दम पर भी बहुमत साबित करने की स्थिति में है। लेकिन राजनीति के बदलते हालातों में एनडीए का दूसरे दलों को अपनी ओर करने का प्रयास शुरू हो गया है। 

मोदी के सामने यह संकट जरूर खड़ा हो जाएगा # अविश्‍वास प्रस्‍ताव- आधा दर्जन सांसद नाखुश भी है #सरकार तो बच जाएगी लेकिन # बीजेपी शहरों में पिछड़ रही है, तो जाहिर है कि मुख्य मतदाता पार्टी से नाखुश हैं. वे या तो बीजेपी के विरोधियों के पक्ष में मतदान कर रहे हैं या फिर मतदान के दिन वोट डालने ही नहीं जा रहे हैं. फूलपुर और गोरखपुर में तो ऐसा ही कुछ नजर आया. जहां मतदान का प्रतिशत बेहद कम रहा.  उपचुनावों में मिली हार से बीजेपी का आत्मविश्वास डगमगाने लगा  #शहरी मतदाताओं की नाराजगी और उदासीनता से बीजेपी के मिशन 2019 का सपना चकनाचूर हो सकता है.

टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस के इस अविश्वास प्रस्ताव को कई विपक्षी दलों का समर्थन प्राप्त हो चुका है। कांग्रेस, एआईएडीएमके, टीएमसी, एनसीपी और सीपीएम जैसे बड़े दलों ने टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव को अपना समर्थन देने का ऐलान किया है।

बीजेपी के पास इस वक्त 272 निर्विचित सदस्य हैं जो कि बहुमत से तीन ज्यादा हैं. बीजेपी के लिए दिक्कत पार्टी के अंदर से ही हो सकती है. मसलन पटना साहिब के सांसद शत्रुघन सिन्हा, दरभंगा के सांसद कीर्ति आजाद,बेगूसराय के सांसद भोला सिंह, इलाहाबाद के सांसद श्यामाचरण गुप्ता बीजेपी में रहकर भी बीजेपी के खिलाफ काम कर रहे हैं. इनके अलावा भी आधा दर्जन ऐसे सांसद हैं जो नाखुश बताये जाते हैं और समय समय पर अपना गुबार बाहर निकालते हैं.

दस सांसद भी बागी हो गए तो फिर बीजेपी का आंकड़ा 262 पर आ जाएगा यानी पार्टी अपने दम पर बहुमत साबित नहीं कर पाएगी. ऐसे में सहयोगियों का सहारा लेना मोदी की मजबूरी बन जाएगी. इस हालत में सरकार तो बच जाएगी लेकिन 336 सीट जीतकर 2014 में सरकार बनाने वाले मोदी के सामने एक संकट जरूर खड़ा हो जाएगा. 2019 का चुनाव जीतने के लिए उन्हें नए सिरे से रणनीति पर काम करना होगा.

देश के सामने इस वक्त सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सोमवार को मोदी सरकार गिर जाएगी? यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि एनडीए से अलग होते ही टीडीपी ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने का एलान किया है. पार्टी के सांसदों ने दावा किया है कि प्रस्ताव लाने के लिए जरूरी 54 वोट उनकी पार्टी ने जुटा लिए हैं. आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा ना दिए जाने से नाराज टीडीपी ने आनन फानन में ये फैसला इसलिए लिय़ा क्योंकि इससे पहले टीडीपी की घोर विरोधी आंध्र की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने भी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का एलान किया था. बीजेपी के लिए बुरी खबर ये है कि शिवसेना ने कहा है कि अविश्वास प्रस्ताव पर पार्टी तटस्थ रहेगी. मतलब ये कि हो सकता है कि वोटिंग के दौरान शिवसेना बीजेपी का साथ न दे. लोकसभा में कुल 543 सीधे जनता द्वारा चुने हुए सांसद होते हैं, इस वक्त 5 सांसदों की सीट खाली है. एक स्पीकर की सीट होती है यानी इस वक्त सदन में 537 निर्वाचित सांसद हैं. बहुमत के लिए सदन में अभी 269 सदस्य चाहिए.  सरकार से अलग हुई टीडीपी के पास 16 सांसद हैं. अविश्वास प्रस्ताव लाने वाली एक और पार्टी वाईएसआर के पास 9 सांसद हैं. 34 सांसदों वाली टीएमसी ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. इसका मतलब कि अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए जरूरी 54 का समर्थन मिल गया है. कांग्रेस साथ आती है तो इस प्रस्ताव को और ज्यादा बल मिलेगा. आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने से नाराज़ चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने न केवल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से नाता तोड़ लिया है बल्कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का भी फैसला किया है. इसे वो  सोमवार को पेश करेगी. साथ ही वाईएसआर कांग्रेस भी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रही है.

 

बीजेपी की सहयोगी शिवसेना की भूमिका साफ नहीं है, हो सकता है वो वोटिंग में शामिल न हो. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को लेकर भी संशय की स्थिति बनी रहती है. अपना दल का भी एक सांसद बागी बताया जाता है. ऐसे में पासवान के 6, बादल के 4,  नीतीश के 2 और महबूबा के एक सांसद का वोट पक्का मान सकते हैं, इनका कुल जोड़ 13 तक पहुंचता है.  छोटी पार्टियों के पांच और वोट मिल सकते हैं यानी बीजेपी को 280 से ज्यादा वोट आसानी से मिल जाएंगे.

भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के ख़िलाफ़ रखे गए इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट. संसद में 26 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं. 1978 में ऐसे ही एक प्रस्ताव ने मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया. इसी तरह के प्रस्ताव पर  सबसे ज़्यादा या 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ आए.
– लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया.  1993 में नरसिंह राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार के ख़िलाफ़ लाए अविश्वास प्रस्ताव को हरा पाए.  सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है. उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे  स्वयं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए हैं  पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के ख़िलाफ़ था और दूसरा नरसिंह राव सरकार के ख़िलाफ़.
प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने दो बार विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया और दोनो बार वे असफल रहे. 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया और 1998 में वे एक वोट से हार गए.

मतदाताओं की उदासीनता ने बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में  बीजेपी को शहरी मतदाताओं का भारी समर्थन मिला था.  गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनावों में बीजेपी को आशा थी कि उसके उम्मीदवार शहरी इलाकों में बड़ी बढ़त हासिल करेंगे. लेकिन हुआ इसके बिल्कुल उलट. शहरी विधानसभा क्षेत्रों में मतदान का प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में काफी कम रहा. पचुनाव के नतीजे तो कुछ इसी ओर इशारा कर रहे हैं. एक वक्त था जब शहरी मतदाता बीजेपी का मजबूत आधार हुआ करते थे. साल 2013 से शहरी मतदाताओं के बल पर बीजेपी लगातार जीत हासिल करती आ रही थी. लेकिन अब एकाएक तस्वीर बदलना शुरू हो गई है. शहरी मतदाता बीजेपी के वोट बैंक की रीढ़ माने जाते थे. ग्रामीण इलाकों से उठी बीजेपी विरोधी लहर को शहरी मतदाता आसानी से बेअसर कर देते थे. या यूं कहें कि शहरी मतदाता बीजेपी की जेब में हुआ करते थे. शहरी मतदाताओं के समर्थन के चलते चुनावी मैदान में उतरने से पहले ही बीजेपी को पर्याप्त आत्मविश्वास मिल जाया करता था. शहरी इलाके में भारी बढ़त बनाकर बीजेपी उम्मीदवार चुनाव जीत लिया करते थे. लेकिन अब उपचुनावों में मिली हार से बीजेपी का यह आत्मविश्वास डगमगाने लगा है. बीजेपी के प्रति उसके कट्टर समर्थक मतदाताओं की उदासीनता और नाराजगी के कई कारण हो सकते हैं. 

बीजेपी के लिए सबसे गंभीर समस्या यह है कि ग्रामीण इलाकों में पार्टी के खिलाफ असंतोष गहराता जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में बीजेपी के खिलाफ यह असंतोष गुजरात में साफ नजर आया- मध्यप्रदेश और राजस्थान के उपचुनाव में यह प्रवृत्ति फिर से उजागर हुई थी, जहां सभी 14 विधानसभा क्षेत्रों के ग्रामीण इलाकों में बीजेपी बुरी तरह से पिछड़ गई थी. उपचुनाव के नतीजों के अलावा, महाराष्ट्र और राजस्थान के किसानों के हालिया प्रदर्शनों से पता चलता है कि केंद्र सरकार के खिलाफ लोगों में भारी नाराजगी है.
 

किस तरह लाया जाता है अविश्वास प्रस्ताव
सबसे पहले विपक्षी दल को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है. इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहती हैजब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है. तब वो अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकती है. अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो. वाईएसआर कांग्रेस के लोकसभा में नौ सदस्य हैं. वहीं टीडीपी के 16 सांसद हैं. अगर लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा जरूरी है. इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है. ये पहली बार होगा जबकि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है. अभी लोकसभा में बीजेपी के बीजेपी के 273 सांसद हैं. कांग्रेस के 48, एआईएडीएमके के 37, तृणमूल कांग्रेस के 34, बीजेडी के 20, शिवसेना के 18, टीडीपी के 16, टीआरएस के 11, सीपीआई (एम) के 9, वाईएसआर कांग्रेस के 9, समाजवादी पार्टी के 7, इनके अलावा 26 अन्य पार्टियों के 58 सांसद है. पांच सीटें अभी भी खाली हैं.  मोदी सरकार को खतरा नहीं लगता, क्योंकि उनके पास बीजेपी के 273 सांसद हैं. लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है. ऐसे में इनके दम पर बीजेपी अकेले ही सरकार बना सकती है. 

 

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