2019 का लोकसभा चुनाव- प्रादेशिक क्षत्रपो का दौर
इतिहास में ऐसा भी हुआ है कि जिनको प्रधानमंत्री पद का सबसे बड़ा दावेदार माना गया, वे प्रधानमंत्री बन ही नहीं सके। पूरी तैयारी के बाद भी 2004 में सोनिया गाँधी और 1996 में ज्योति बसु प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। साल 1996 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री देवेगौड़ा को ससम्मान दिल्ली बुलाकर प्रधानमंत्री बना दिया गया। क़रीब एक साल बाद इंद्रकुमार गुजराल भी ऐसे ही प्रधानमंत्री बन गए। 1998-2004 के बीच कई बार कोशिशों के बाद भी लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री की कुर्सी नहीं मिली।
अब राहुल गाँधी और उनके परिवार पर हल्ला बोल कर बीजेपी यह बताने की कोशिश कर रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है। भारतीय राजनीति में ऐसी कोशिशें पहले भी हुई हैं। 70 के दशक में कांग्रेसियों का नारा था कि इंदिरा गाँधी का कोई विकल्प नहीं है। 1971 के युद्ध की महा विजेता और बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे साहसी आर्थिक सुधारों की हीरो इंदिरा गाँधी को भी 1977 में मतदाताओं ने धूल चटा दी। अब जब आम चुनाव 2019 का बिगुल बजने जा रहा है राहुल गांधी ने लोकप्रियता के मामले में नरेन्द्र मोदी से फासले को कम कर लिया है. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि नरेन्द्र मोदी इस दौड़ में पिछड़ रहे हैं. हां यह जरूर है कि राहुल गांधी की स्वीकार्यता में इजाफा हो रहा है. इसके साथ ही यह भी सवाल है कि क्या एंटी इंकम्बेंसी भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ काम कर रही है. सवाल यह भी कि क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद की इस दौड़ में नरेंद्र मोदी को पीछे छोड़ पाएंगे?
आम मतदाताओं को समझाने की कोशिश की जा रही है कि राहुल गाँधी किसी भी तरह से प्रधानमंत्री मोदी का विकल्प नहीं हो सकते। अभी से ही यह तय करने की कोशिश की जा रही है कि मोदी की जगह प्रधानमंत्री कौन हो सकता है। बहुजन समाज पार्टी की मायावती या फिर तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी या कोई और ग़ैर-कांग्रेसी ग़ैर-भाजपाई नेता। प्रधानमंत्री पद के विकल्प पर बयानबाज़ी के साथ ही 2019 के चुनावों के लिए ख़ेमाबंदी शुरू हो गई है।
2014 में बीजेपी विकास का सपना बेच रही थी। युवा वर्ग को रोज़गार की उम्मीद दिलाई गई। किसानों को भी फ़सल की अच्छी क़ीमत मिलने की आशा जगाई गई। और जब मोदी ने देवालय से पहले शौचालय का नारा दिया तो लोगों को लगा कि बीजेपी अपने सांप्रदायिक अजेंडे से दूर हट रही है। 2014 के बाद विधानसभा चुनावों में भी आम मतदाता बीजेपी के पीछे लामबंद दिखाई दिया।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा कई बार हुआ जब लोगों ने महानायक प्रधानमंत्रियों और उनकी पार्टियों को शिखर से उतार कर इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया। 1977 में मतदाताओं ने जब इंदिरा गाँधी और कांग्रेस को महापराजय के लिए मजबूर किया तब चुनाव के बाद प्रधानमंत्री कौन होगा, इसकी चिंता शायद किसी मतदाता ने नहीं की थी। 2004 में जब अटल बिहारी वाजपेयी और बीजेपी को पराजय का मुँह देखना पड़ा तब भी मनमोहन सिंह कोई वैकल्पिक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं थे। मनमोहन सिंह की सरकार इंदिरा गाँधी के बाद सबसे लंबी यानी 10 साल तक चली।
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावी नतीजों से पहले किसी मुख्यमंत्री का नाम तय नहीं था। मतदाताओं ने बीजेपी की जमी-जमाई सरकारों को उखाड़कर कांग्रेस को मौक़ा दे दिया। विधानसभा के चुनावों में भी आर्थिक मुद्दे सबसे ऊपर आ गए थे। छत्तीसगढ़ में सब्सिडी की राजनीति चलाकर 15 सालों तक मुख्यमंत्री रहे रमन सिंह को अलविदा कहने में भी मतदाता हिचकिचाए नहीं। अब तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है कि विधानसभाओं में पराजय से सबक़ लेने के लिए बीजेपी ख़ुद को तैयार कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के ताज़ा भाषणों और बयानों में अब भी वही पुरानी जुमलेबाजी दिखाई दे रही है।
केन्द्र में सत्तारूढ़ नरेन्द्र मोदी सरकार अपने कार्यकाल के आखिरी पड़ाव पर है. अगले कुछ महीनों में आम चुनावों का बिगुल बजने वाला है. 26 मई 2014 को मोदी सरकार ने शपथ ली थी. मई 2019 में नई सरकार का गठन होना है. इसके लिए मोदी सरकार अपने नए नारे का ऐलान कर चुकी है. साफ नीयत सही विकास, 2019 में फिर मोदी सरकार.
ऐसे में देश की जनता के सामने अहम सवाल हैं कि क्या 2019 में आम चुनावों की वोटिंग से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अधिक लोकप्रियता कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की है? क्या आगामी चुनावों में राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं?
मोदी और बीजेपी के हमलों के बीच राहुल गाँधी का क़द लगातार बड़ा होता जा रहा है।
- देश में बीस से ज़्यादा राज्यों में बीजेपी की सरकार बन गई। लेकिन पिछले साढ़े चार सालों में बीजेपी आर्थिक मोर्चे पर अपने दावों के मुताबिक़ कारगर साबित नहीं हो पाई। नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक सुधार के कार्यक्रम अभी तक सफलता की कोई उम्मीद नहीं दिला पा रहे हैं। बैंकों से हज़ारों करोड़ कर्ज़ के नाम पर लूटने वाले माल्या नीरव मोदी और चोकसी जैसे लोग विदेश फुर्र होने लगे तो मोदी का ‘न खाऊंगा और न खाने दूँगा’ जैसा उद्घोष भी असफल साबित होने लगा। मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया जैसे कार्यक्रम भी महज जुमला साबित हो रहे हैं।
गौरतलब है कि आठ साल पहले देश की राजनीति में बतौर प्रधानमंत्री पद के दावेदार राहुल गांधी की लोकप्रियता उस वक्त एक राज्य के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी से अधिक थी. वहीं नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द विवाद भी गहरे थे. हालांकि इसकी एक वजह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में बीजेपी से लाल कृष्ण आडवाणी की मौजूदगी भी थी. लेकिन जब पार्टी के अंदर मोदी के नाम पर आम राय बनना शुरू हुई तो वे न सिर्फ लाल कृष्ण आडवाणी को पीछे छोड़ने में सफल हुए बल्कि लोकप्रियता में राहुल गांधी को भी मीलों पीछे छोड़ गए. जनवरी 2014 तक नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री पूरे देश की पहली पसंद बने और चुनाव तक राहुल गांधी उनके नजदीक भी नहीं पहुंच सके.
2019 का लोकसभा चुनाव सीधे तौर पर बीजेपी बनाम कांग्रेस या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गाँधी नहीं है। यह दौर क्षत्रपों का है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग क्षत्रप पूरी ताक़त के साथ मौजूद हैं। बंगाल में बीजेपी को ममता बनर्जी के साथ-साथ सीपीएम और कांग्रेस का मुक़ाबला करना है। बिहार में बीजेपी गठबंधन के ख़िलाफ़ तेजस्वी यादव और कांग्रेस खड़े हैं। उत्तर प्रदेश में मायावती और अखिलेश यादव की पार्टियाँ हैं। उड़ीसा में नवीन पटनायक, तमिलनाडु में स्टालिन, आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना में केसीआर की पार्टियाँ अपने पूरे दमख़म के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। इनमें से कुछ के साथ कांग्रेस का अच्छा-ख़ासा तालमेल चल रहा है और कुछ राज्यों में विवाद भी है। इन सबके बीच एक महत्वपूर्ण बात यह है कि बीजेपी की तरह कांग्रेस ही पूरे देश में एक पार्टी के रूप में मौजूद है और बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस ही है। लेकिन 2019 में सरकार की होड़ में शामिल होने के लिए कांग्रेस को लंबी छलांग लगानी पड़ेगी।
बीते पांच साल के दौरान हुए कई राजनीतिक सर्वे में पाया गया कि 2016-17 के दौरान नीतीश कुमार देश के अगले प्रधानमंत्री की दौड़ में आगे थे. हालांकि वह लगातार राहुल गांधी से पीछे रहे लेकिन तीसरे पायदान पर उनकी मौजदूगी उन्हें दौड़ से बाहर नहीं रख रही थी. लेकिन 2017 के अंत में नीतीश ने जैसे ही लालू प्रसाद यादव का दामन छोड़ा उनकी लोकप्रियता धूमिल हो गई.
अबतक कौन देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री रहा है? बीते लगभग एक दशक में जब यह सवाल पूछा गया तो शीर्ष पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रही हैं और महज कुछ मौकों पर ही वह इस पायदान से नीचे देखी गई हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले कार्यकाल के बाद उन्हें इतनी लोकप्रियता मिल चुकी है कि वह इंदिरा गांधी को पछाड़ने की स्थिति में हैं? क्या इंदिरा को पछाड़ मोदी देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं? वहीं देशभर की राय में इन दो शख्सियतों के सापेक्ष पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, अटल बिहारी वाजपेयी और राजीव गांधी लोकप्रियता की दौड़ में कहां खड़े हैं?
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पश्चिम बंगाल के मालदा में अमित शाह की रैली के बाद तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी पर हमला किया है. टीएमसी ने कहा कि मालदा में अमित शाह के भाषण को सुनने के बाद लगता है कि बीजेपी बहुत ही नर्वस हो गई है. वहीं पार्टी नेता मदन मित्रा ने कहा कि मोदी का मतलब भारत में लोकतंत्र का हत्यारा है.साथ ही टीएमसी ने पीएम मोदी को चुनौती दी और कहा कि अगर उनमें दम है तो ब्रिगेड ग्राउंड में एक रैली करें और उसे भरकर दिखाएं.
बता दें कि ममता बनर्जी ने ब्रिगेड ग्राउंड में महागठबंधन के नेताओं की रैली की थी, इस रैली में 22 दलों के 40 नेता आए थे. समीक्षकों का कहना है कि इस रैली में ऐतिहासिक भीड़ उमड़ी थी.
टीएमसी नेता मदन मित्रा ने कहा कि MODI का मतलब Murderer of Democracy in India है. उन्होंने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी को पहले देश को ये बताना चाहिए उन्होंने कैसे मूर्तियों और अपनी विदेश यात्राओं पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए?
मदन मित्रा ने कहा कि बंगाल के सरकारी कर्मचारियों के लिए सातवें पे कमीशन का वादा बीजेपी का एक और जुमला है. मदन मित्रा ने कहा कि यदि अमित शाह को अनुमति नहीं मिली है तो उन्होंने मंगलवार को मालदा में रैली कैसे की? मदन मित्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दी और कहा कि उन्हें परेड ग्राउंड में रैली करके दिखाना चाहिए.
टीएमसी नेता ने कहा, “अगर उनमें हिम्मत है तो उन्हें ब्रिगेड ग्राउंड में रैली करनी चाहिए और इसे भर कर दिखाना चाहिए.”
टीएमसी ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से एक के बाद एक कई ट्वीट किए और कहा कि बीजेपी जानती है कि सत्ता में उनके दिन गिने-चुने रह गए हैं. टीएमसी ने ट्वीट किया, “बीजेपी राजनीतिक रूप से डरी हुई है, बीजेपी वालों के भाषण तथ्यात्मक रूप से कमजोर और बहुत ही बकवास हैं.”
टीएमसी ने कहा कि बीजेपी भारत की संस्कृति को नहीं समझती है, बंगाल के लोकाचार को नहीं समझती है. उन्हें चुनाव में एक बड़ा जीरो मिलने वाला है. टीएमसी ने ट्वीट किया, “कुछ लोग कहते हैं कि वे लोग व्याकुल हो गए हैं, कुछ लोग कहते हैं कि वे लोग पागल हो गए हैं, या कहीं ऐसा तो नहीं है कि इनके साथ दोनों चीजें होने वाली हैं.?”
बता दें कि मंगलवार को पश्चिम बंगाल के मालदा में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक बड़ी रैली की. अमित शाह इस रैली पर ममता सरकार पर जमकर बरसे. अमित शाह ने कहा कि अगर पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजा की इजाजत नहीं मिलेगी तो क्या बंगाल के लोग ये पूजा पाकिस्तान में जाकर करेंगे.
अमित शाह कोलकाता के परेड ग्राउंड में हुई रैली पर महागठबंधन के नेताओं पर बरसे. अमित शाह ने कहा कि हम चाहते हैं कि गरीबी हटे, लेकिन विपक्ष के नेता चाहते हैं कि मोदी हटे, हम चाहते हैं कि करप्शन हटे, लेकिन वो चाहते हैं कि मोदी हटे. बुधवार को भी कोलाकाता में अमित शाह की रैली है.
15वें प्रवासी भारतीय सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे. यहां उन्होंने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, सरकार ने 5 लाख 78 हजार करोड़ रुपए लोगों के अकाउंट में डाले हैं.
उन्होंने कहा, बीते साढ़े चार वर्षों में 5 लाख 78 हजार करोड़ रुपए हमारी सरकार ने अलग-अलग योजनाओं के तहत लोगों के बैंक खाते में ट्रांसफर किए हैं. किसी को घर के लिए, किसी को पढ़ाई के लिए, किसी को स्कॉलरशिप के लिए, किसी को गैस सिलेंडर के लिए, किसी को अनाज के लिए, ये राशि दी गई है.
उन्होंने आगे कहा, अब आप अंदाजा लगाइए, अगर देश पुराने तौर तरीकों से ही चल रहा होता, तो आज भी इस 5 लाख 78 हजार करोड़ रुपए में से 4 लाख 91 हजार करोड़ रुपए लीक हो रहे होते. अगर हम व्यवस्था में बदलाव नहीं लाए होते ये राशि उसी तरह लूट ली जाती, जैसे पहले लूटी जाती थी. पीएम मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा,आप में से अनेक लोगों ने हमारे देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री की भ्रष्टाचार को लेकर कही एक बात जरूर सुनी होगी. उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार दिल्ली से जो पैसा भेजती है, उसका सिर्फ 15 प्रतिशत ही लोगों तक पहुंच पाता है. इतने सालों तक देश पर जिस पार्टी ने शासन किया, उसने देश को जो व्यवस्था दी थी, उस सच्चाई को उन्होंने स्वीकारा था. लेकिन अफसोस ये रहा कि बाद के अपने 10-15 साल के शासन में भी इस लूट को, इस लीकेज को बंद करने का प्रयास नहीं किया गया.
पीएम मोदी ने कहा, देश का मध्यम वर्ग ईमानदारी से टैक्स देता रहा, और जो पार्टी इतने सालों तक सत्ता में रही, वो इस 85 प्रतिशत की लूट को देखकर भी अनदेखा करती रही. पीएम मोदी ने कहा, हमने टेक्नोल़ॉजी का इस्तेमाल करके इस 85 प्रतिशत की लूट को 100 प्रतिशत खत्म कर दिया है.
प्रधानमंत्री ने कहा, पिछले साढ़े चार साल में हमारी सरकार ने करीब-करीब 7 करोड़ फर्जी लोगों को पहचानकर, उन्हें व्यवस्था से हटाया है. ये 7 करोड़ लोग वो थे, जो कभी जन्मे ही नहीं थे, जो वास्तव में थे ही नहीं. लेकिन ये 7 करोड़ लोग सरकारी सुविधाओं का लाभ ले रहे थे. आप सोचिए, पूरे ब्रिटेन में, फ्रांस में, पूरे इटली में जितने लोग हैं, ऐसे अनेक देशों की जनसंख्या से ज्यादा तो हमारे यहां वो लोग थे, जो सिर्फ कागजों में जी रहे थे और कागजों में ही सरकारी सुविधाओं का लाभ ले रहे थे
कांग्रेस रोज़गार देने में अच्छी नहीं थी, लेकिन मोदी सरकार में हालात और बदतर हो गए: अमर्त्य सेन
नोबेल पुरस्कार विजेता व अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा कांग्रेस रोजगार पैदा करने में सफल नहीं साबित हुई है लेकिन मोदी सरकार ने हालात और बदत्तर बना दिए हैं. अमर्त्य सेन ने कहा आर्थिक असमानता का समाधान आरक्षण नहीं हो सकता है. उन्होंने आगे कहा, ‘हम आर्थिक अवसरों के माध्यम से ही आय असमानता की समस्या से निपट सकते हैं.’
उन्होंने स्वतंत्रता के शुरुआती सालों में जनता के बीच आरक्षण के मुद्दे को जीवित रखने के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराया. सेन ने कहा, ‘मोदी सरकार के कार्यकाल में हालात और बिगड़े हैं.’
मोदी सरकार द्वारा सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े तबके को आरक्षण देने के प्रस्ताव पर सेन ने कहा, ‘यदि मोदी सरकार का मानना है कि आरक्षण के मुद्दे को जीवित रखने के लिए कांग्रेस ज़िम्मेदार है, जो कि वे कुछ हद तक हैं, तो उन्हें ख़ुद वही चीज करने के बजाय इसे सुधारना चाहिए था.’
उन्होंने कहा कि आरक्षण को असमानता के कारण लागू किया गया था और यह कभी भी आय का प्रश्न नहीं था.
उन्होंने कहा, ‘अगर हम यह सोचते हैं कि आय असमानता का समाधान आरक्षण है तो यह एक अव्यवस्थित सोच है. आरक्षण इसका जवाब नहीं है. हम आर्थिक अवसरों के माध्यम से आय की असमानता से निपट सकते हैं’.
उन्होंने यह भी कहा कि हमारा ध्यान आरक्षण देने पर नहीं बल्कि बेहतर शिक्षा और बुनियादी स्वास्थ्य सेवा पर होना चाहिए जो देश में ज़रूरी है.
अमर्त्य सेन ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान को ‘अव्यवस्थित सोच’ बताया था. उन्होंने कहा कि इस फैसले के गंभीर राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं.
सेन ने यह भी कहा था कि मोदी सरकार ने यूपीए सरकार के शासनकाल में हुई उच्च आर्थिक वृद्धि को कायम तो रखा लेकिन उसे नौकरियों के सृजन, गरीबी के उन्मूलन और सभी के लिए बेहतर स्वास्थ्य तथा शिक्षा में नहीं बदला जा सका.
अमर्त्य सेन ने मोदी सरकार पर अपने कई वादों को पूरा करने में विफल होने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि भाजपा समाज को बांटने वाली नीतियों को आगे बढ़ाने का काम कर रही है.
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे (Anna Hazare) ने सोमवार को दिल्ली में‘राफेल घोटाले’ (Rafale Scam) का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि अगर देश में लोकपाल (Lokpal) होता तो ‘राफेल घोटाला’ रुक सकता था. इसके साथ ही उन्होंने राफेल डील पर अगले दो दिनों में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की बात कही है. इसके साथ ही उन्होंनेभ्रष्टाचार रोधी कानून (Anti-Corruption Law)को लागू करने और किसानों से जुड़ी मांगों को लेकर 30 जनवरी से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की घोषणा की. हजारे ने उन्होंने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court)के आदेश के बावजूद लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 को लागू नहीं करने पर केन्द्र की निंदा की. उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि देश पर ‘तानाशाही’ की तरफ जाने का ‘खतरा’ मंडरा रहा है.
बीते आठ साल में लोकपाल की मांग को लेकर हजारे की यह तीसरी भूख हड़ताल होगी. वह सिविल सोसायटी सदस्यों तथा समूहों का नेतृत्व करते हुए अप्रैल 2011 में पहली बार दिल्ली के रामलीला मैदान में अनिश्चतकालीन भूख हड़ताल पर बैठे थे. हजारे ने मीडिया से कहा, ‘अगर लोकपाल होता तो राफेल जैसा घोटाला नहीं हुआ होता. मेरा पास राफेल से जुड़े कई कागजात हैं और मैं दो दिन इनका अध्ययन करने के बाद दूसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस करूंगा. मुझे एक बात समझ नहीं आती कि समझौते से एक महीने पहले बनी एक कंपनी को इसमें सहयोगी कैसे बनाया गया.’
वह 30 जनवरी को अपने गांव रालेगण सिद्धि में भूख हड़ताल करेंगे और वह सरकार द्वारा मांगें पूरी होने तक इसे जारी रखेंगे. उन्होंने कहा, ‘अतीत में सरकार लिखित में कह चुकी है कि वह लोकपाल कानून पारित करेगी और किसानों को पेंशन तथा डेढ गुना अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य उपलब्ध कराएगी लेकिन कुछ नहीं हुआ. अब मैं और झूठे आश्वासनों पर भरोसा नहीं करूंगा और जीवन रहने तक भूख हड़ताल जारी रखूंगा
पिछले साल मार्च में, हजारे तथा उनके समर्थकों ने लोकपाल कानून लागू करने की मांग को लेकर रामलीला मैदान में एक सप्ताह भूख हड़ताल की थी. हजारे ने कहा, ‘किसी संवैधानिक संस्था का आदेश लागू नहीं करना देश को लोकतंत्र से तानाशाही की तरफ ले जाता है. यह सरकार भी ऐसा ही कर रही है. यह कैसी सरकार है जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करती. यह सरकार है या कोई बनिया की दुकान.’ उन्होंने अपने समर्थकों से रालेगण सिद्धि के बजाय अपने अपने स्थानों पर भूख हड़ताल करने को कहा. राष्ट्रीय किसान महापंचायत ने हजारे को समर्थन दिया है और उसका कहना है कि देशभर के किसान संगठन भूख हड़ताल में शामिल होंगे.
सरकार की इतनी ‘रहमदिली’ के बाद भी क्यों चुभ रहा है जीएसटी?
1 जुलाई को जीएसटी लागू हुए दो साल हो जाएँगे। वार्षिक रिटर्न दाख़िल करना होगा। जीएसटी काउंसिल ने परीक्षण के आधार पर 1 अप्रैल, 2019 से रिटर्न फ़ाइल करने के लिए एक नई प्रणाली शुरू करने की घोषणा की है। 1 जुलाई से यह आवश्यक हो जाएगा। कहने की ज़रूरत नहीं है कि प्रयोग अभी चल रहे हैं। इसका नतीजा यह है कि लेट फ़ाइन का प्रावधान होने के बावजूद अंतिम तारीख़ बढ़ाई जाती है। कुल मिलाकर काउंसिल ने सारे अधिकार अपने पास रखे हैं। जीएसटी काउंसिल ने बिना टेस्ट किए नई टैक्स व्यवस्था थोप दी जिससे कारोबारी परेशान हुए जबकि कारोबारियों को प्रयोग करने की सुविधा दी जाती तो नए उत्पाद आते और क़ीमतें कम हो सकती थीं।
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