पच्चीसवीं दीपावली पर भी रामलला टाट के टेन्ट में!
PHOTO CAPTION; FILE PHOTO; पर्वतीय रामलीला कमेटी, देहरादून – में 4 अक्टूबर 2014 को मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम का राजतिलक – साथ में कमेटी के महासचिव चन्द्रशेखर जोशी-
-विनोद बंसल
भारत त्योहारों का देश है जहां हर त्यौहार कोई न कोई नवीनता हर्ष-उल्लास, परस्पर बंधुत्व व समरसता का भाव लिए होता है. दीपावली का नाम स्मरण करने मात्र से अनेक प्रकार के विचार मन में दौड लगाने लगते हैं। यूं तो दीपावली कार्तिक कृष्ण अमावस्या की काली रात्रि को जगमग करने का त्योहार है किन्तु इसका प्रारम्भ धन-त्रयोदशी के दिन से ही प्रारम्भ हो जाता है। उसके बाद यम-चतुर्दशी और दीपावली की अमावस्या के बाद भी दो प्रमुख त्योहार और रह जाते हैं। वे हैं गोवर्धन पूजा और भैया-दूज। इन सभी मान्यताओं के बडे सटीक वैज्ञानिक आधार हैं। दीपावली को भारत ही नहीं, दुनिया के हर कोने में हर वर्ग के लोग बडी धूम-धाम से मनाते हैं। दीपावली के दिन ही प्रसिद्ध समाज सुधारक व आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती का निर्वाण दिवस भी मनाया जाता है। इसके अंतर्गत प्रात: काल से सायं तक यज्ञ-भजन प्रवचन तथा मेलों का आयोजन भी विश्व भर में किया जाता है।
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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का इस त्योहार से सीधा सम्बन्ध है। राम चरित मानस के अनुसार लंका विजय के पश्चात भगवान राम इसी दिन अयोध्या लौटे थे और उसी की खुशी में पूरी अयोध्या नगरी में घर-घर दीप जला कर उनका भव्य स्वागत किया गया था। भगवान श्री राम ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण 14 वर्ष समाज संगठन कर सामाजिक बुराईयों और रावण जैसे आतंकियों से संघर्ष में बिता दिये। उनके ज़ीवन का एक-एक कार्य और आदर्श संपूर्ण विश्व के लिए जीवनदायिनी औषधि के समान है। जिस प्रकार उन्होंने अपने वनवास के दौरान समाज के निर्बल और असहाय लोगों को गले लगा कर उनके मृत प्राय: पौरुष को जागृत कर उन सभी को संगठन सूत्र में पिरोया उसी आधार पर इस त्योहार में भी ऊंच-नीच, भेद-भाव व छुआ-छूत को दूर भगा कर समाज के प्रत्येक वर्ग को गले लगाने की परिपाटी है।
सरयू नदी के तट पर बसी अयोध्या नगरी चिर काल से ही हिंदू समाज के लिए एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात है। पूरी दुनिया जानती है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म अयोध्या में ही हुआ था। वैदिक काल के मान-चित्रों, श्री राम चरित मानस सहित अनेक पुरातन धर्म ग्रंथों, सरकारी अभिलेखों, ढांचे की दीवारों से प्राप्त शिला-लेखों, अनेक हिन्दू, मुस्लिम व ईसाई विद्वानों के लेखों, डाइरियों तथा भिन्न-भिन्न समयों पर जारी सरकारी गज़टों नेभी वैज्ञानिक आधार पर यह सिद्ध कर दिया है कि हां यह वही अयोध्या है जहां श्री राम ने अठ्खेलियां खेली थीं और अपने मोहक रूप से सभी को मोह लिया था। सन् 1950 से उत्तर प्रदेश की विभिन्न न्यायालयों में ठोकर खाते हुए शान्ति प्रिय हिन्दू समाज को साठ वर्षों के बाद 30 सितम्बर 2010 को माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय से निर्णय मिला कि यही भगवान श्री राम की जन्म स्थली है।
सन् 1994 में भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से शपथ पूर्वक कहा था कि यदि “यह सिद्ध हो जाता है कि विवादित स्थल पर 1528 से पूर्व कोई हिन्दू स्थल था तो सरकार हिन्दू भावनाओं के अनुरूप काम करेगी”। तत्कालीन मुस्लिम नेतृत्व ने भी सरकार को वचन दिया था कि हिन्दू भवन सिद्ध होने पर मुस्लिम समाज स्वेच्छा से यह स्थान हिन्दुओं को सौंप देगा।
विचारणीय है कि जन्मभूमि पर विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय कलंक को छः दिसंबर 1992 के दिन राम भक्तों के पौरुष ने धूल-धूसरित तो कर दिया किन्तु उस शौर्य दिवस की पच्चीसवीं वर्ष गाँठ तक भी रोम रोम में बसने वाले समस्त भारतीयों के पूर्वज भगवान श्री राम लला को हम अभी टाट के टेंट से एक भव्य मंदिर तक नहीं ले जा पाए. गत कुछ वर्षों में देश में आए नवीन बदलावों ने इस संवंध में कुछ आशा तो बांधीं है किन्तु अभी कुछ दूर तक जाना अभी शेष है. आगामी वर्ष इस दिशा में निर्णायक भूमिका अदा करेगा.
आओ! इस दीपावली के शुभ अवसर पर हम सभी प्रभु से प्रार्थना करते हुए संकल्प लें कि भगवान श्री राम की जन्म स्थली के चारों ओर की संपूर्ण भूमि को, संसदीय कानून के माध्यम से प्राप्त कर, एक भव्य मंदिर निर्माण करेंगे और समाज के प्रत्येक वर्ग को साथ लेकर भारतीय संस्कृति व राष्ट्रीय स्वाभिमान को पुन:जागृत करेंगे। दीपावली मनाते हुए इसके सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक व वैज्ञानिक महत्व को चहुं ओर, खास कर बच्चों व युवा पीडी तक ले जाएंगे। जहां अज्ञान अशिक्षा या अभाव का अन्धकार है वहां हम प्रकाश की किरण बन कर स्वयं दीपक की तरह रोशनी व सुगंध फैलाएंगे.
**लेखक विचारक, समाज चिन्तक तथा विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं**
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