27 जुलाई; चंद्रगहण ; गहरा प्रभाव पृथ्वी पर होना सुनिश्चित; भजन-कीर्तन करे

गहरा प्रभाव पृथ्वी पर होना सुनिश्चित ;;; ज्योतिषानुसार यह प्रभाव हर जीव और जड़ पर पड़ता है. 
ईसाई धर्म की धार्मिक किताब बाइबल में एक जगह इस चंद्रगहण को धरती के विनाश का संकेत माना गया है. ब्रिटेन की एक वेबसाइट में बाइबल में कही इन बातों का उल्लेख किया गया है. लेकिन खगोलविदों ने इन सभी बातों को गलत बताकर खारिज कर दिया है. परन्‍तु इस चंद्रग्रहण से कितनी खतरनाक घटनाएं घट सकती हैं..- वैज्ञानिक भी मान रहे है  कि सहज मुद्रा में भजन-कीर्तन और जप के माध्यम से ईश्वर को याद करना श्री श्रेष्ठ  है

26 जुलाई को ज्योतिष में चंद्रमा का पुत्र माना जाने वाला बुध ग्रह वक्री होगा. यह परिवर्तन सदी के सबसे लंबे चंद्रग्रहण के को और प्रभावी बनाएगा. 27 जुलाई को सदी का सबसे लंबा खग्रास चंद्रग्रहण होगा. यह विभिन्न विनाशकारी भौगोलिक घटनाओं का कारक हो सकता है

प्रस्‍तुति- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्‍तराखण्‍ड (Web & Print Media) 
27 जुलाई को 21वीं सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण होने वाला है. ये खग्रास चंद्रग्रहण है यानी पूर्ण चंद्रग्रहण. दुनियाभर के लिए यह एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है. धार्मिक मान्यताओं में इसकी वजह से धरती पर कुछ बुरे प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है. ये चंद्रग्रहण साल 2001 से लेकर साल 2100 तक का सबसे लंबा चंद्रग्रहण होगा. इसकी कुल अवधि 6 घंटा 14 मिनट रहेगी. इसमें पूर्णचंद्र ग्रहण की स्थिति 103 मिनट तक रहेगी 

ग्रहण महज सूर्य प्रकाश से निर्मित छाया में सूर्य और चंद्रमा के नजर न आने की घटना मात्र नहीं है. सूर्य के साथ संपूर्ण सौरमंडल 70 हजार किलोमीटर की गति से आगे बढ़ रहा है. ग्रहों-उपग्रहों को इससे तालमेल बनाए रखना होता है. ज्योतिष में पृथ्वी के लिए राहु-केतु वे छायाग्रह हैं जिनके जुड़ाव में सूर्य और चंद्रग्रहण बनते हैं. ये सौरमंडल के वे नोडल पाइंट हैं जहां पृथ्वी और चंद्रमा सूर्य की एक सीध में आकर ऑटो-करेक्शन लेते हैं. इसमें चंद्र व पृथ्वी की कक्षाएं सुव्यवस्थित होती हैं. इससे अंतरिक्षीय गुरुत्वीय तरंग प्रभावित होने और ग्रहादि के स्पेस शिफ्ट की आशंका बढ़ जाती है. इनमें अन्य सौरमंडलीय ग्रहों का भी ज्योतिषीय योगायोग प्रभाव भी असर डालता है. ज्योतिषानुसार यह प्रभाव हर जीव और जड़ पर पड़ता है.

इस चंद्रगहण को धरती के विनाश का संकेत

ईसाई धर्म की धार्मिक किताब बाइबल में एक जगह इस चंद्रगहण को धरती के विनाश का संकेत माना गया है. ब्रिटेन की एक वेबसाइट में बाइबल में कही इन बातों का उल्लेख किया गया है. क्रिश्चियन मिनिस्टर ‘जोन हेगी’ और ‘मार्क लिट्ज’ का कहना है कि 4 बार लगातार चंद्रगहण का पड़ना धरती के विनाश की ओर इशारा करता है. उन्होंने बताया इससे पहले सबसे लंबा चंदग्रहण 14 अप्रैल 2014 को पड़ा था, इसके बाद 8 अक्टूबर 2014 और 28 सितंबर 2015 को हुआ था. बाइबल के 2:20 और 6:12 अध्याय में धरती के अंत की भविष्यवाणियां की गई हैं बाइबल में किस तरह भविष्यवाणियां की गई हैं. ‘बुक ऑफ जॉएल’ के अध्याय 2:30 से 31 तक में कहा गया है कि, ‘और मैं स्वर्ग और धरती पर चमत्कार दिखाऊंगा, खून, आग और धुएं के खंभे.’ ‘बुक ऑफ जॉएल’ में ये भी कहा गया है कि ‘जीसस के आने से पहले सूर्य पर अंधकार छा जाएगा, चंद्रमा लाल रंग में बदल जाएगा.’ लेकिन खगोलविदों ने इन सभी बातों को गलत बताकर खारिज कर दिया है.

खगोलविदों ने चांद के लाल पड़ने के पीछे सूरज की रोशनी को जिम्मेदार ठहराया है, जिसको ‘रेले स्कैटरिंग’ कहते हैं.
इसके अलाव खगोलविदों ने सूरज के उगने और ढलते समय आकाश के नीले पड़ने का कारण भी ‘रेले स्कैटरिंग’ को बताया है.

ज्योतिषाचार्य पंडित अरुणेश कुमार शर्मा ने बताया कि ग्रहण महज सूर्य प्रकाश से निर्मित छाया में सूर्य और चंद्रमा के नजर न आने की घटना मात्र नहीं है. सूर्य के साथ संपूर्ण सौरमंडल 70 हजार किलोमीटर की गति से आगे बढ़ रहा है. ग्रहों-उपग्रहों को इससे तालमेल बनाए रखना होता है. ज्योतिष में पृथ्वी के लिए राहु-केतु वे छायाग्रह हैं जिनके जुड़ाव में सूर्य और चंद्रग्रहण बनते हैं. ये सौरमंडल के वे नोडल पाइंट हैं जहां पृथ्वी और चंद्रमा सूर्य की एक सीध में आकर ऑटो-करेक्शन लेते हैं. इसमें चंद्र व पृथ्वी की कक्षाएं सुव्यवस्थित होती हैं. इससे अंतरिक्षीय गुरुत्वीय तरंग प्रभावित होने और ग्रहादि के स्पेस शिफ्ट की आशंका बढ़ जाती है. इनमें अन्य सौरमंडलीय ग्रहों का भी ज्योतिषीय योगायोग प्रभाव भी असर डालता है.
इससे भूकंप, चक्रवात, ज्वालामुखी व सुनामी की आशंका के अलावा उपग्रहों और विमानों के गड़बड़ाने की आशंका भी बढ़ जाती है. ज्योतिषानुसार यह प्रभाव हर जीव और जड़ पर पड़ता है.

इसी कारण इस दौरान गहन शारीरिक-मानसिक कार्यों से बचने सलाह दी जाती है. अग्निकर्म व मशीनरी के प्रयोग को त्याज्य माना जाता है. सनातनी परम्परा में देवदर्शन और यज्ञादि कर्म निषेध रखे जाते हैं. सहज मुद्रा में भजन-कीर्तन और जप के माध्यम से ईश्वर को याद किया जाता है.

विनाशकारी असर- 
कर्क रेखा क्षेत्र में विनाशकारी भूकंप, सुनामी, चक्रवात, ज्वालामुखी विस्फोट एवं आगजनी की घटनाएं हो सकती हैं. इसके अतिरिक्त पृथ्वी की कक्षा में मौजूद विभिन्न देशों के हजारों सैटेलाइट्स इससे प्रभावित होकर बिगड़ सकते हैं. नियंत्रण खो सकते हैं. ऐसे में विश्वभर में सैटेलाइट्स सेवाएं कठिनाई में आ सकती हैं. चाहे वे संचार संबंधी हों या अन्य सुरक्षा और सुविधा संबंधी. विमान सेवा भी प्रभावित हो सकती है पूर्व माहों में ऐसी घटनाएं हो भी चुकी हैं. नेपाल में हुए विमान हादसे के अलावा इस वर्ष लगभग आधा दर्जन विमान हादसे हो चुके हैं. एक वर्ष के अंदर इसरो के दो सैटेलाइट लांच फेल हो चुके हैं. चीन का स्पेस स्टेशन गिरा है. रूस का उपग्रह खोया है. वर्ष 2017 और 2018 में इस तरह की घटनाएं होने की भविष्यवाणी ज्योतिषाचार्य पंडित अरुणेश कुमार शर्मा ने कर दी थी. वर्ष 2017 में ग्लेशियर टूटने से लेकर भूकंप की कई घटनाएं हुईं. वैज्ञानिकों ने भी माना है कि पृथ्वी की गति में कमी आई है जो भूकंपीय घटनाओं को बढ़ा सकती है.

26 जुलाई को ज्योतिष में चंद्रमा का पुत्र माना जाने वाला बुध ग्रह वक्री होगा. यह परिवर्तन सदी के सबसे लंबे चंद्रग्रहण के को और प्रभावी बनाएगा. 27 जुलाई को सदी का सबसे लंबा खग्रास चंद्रग्रहण होगा. यह विभिन्न विनाशकारी भौगोलिक घटनाओं का कारक हो सकता है
27 जुलाई 2018 का चंद्रग्रहण भी 21वीं सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण रहने वाला है. इसकी कुल अवधि 6 घंटा 14 मिनट रहेगी. इसमें पूर्णचंद्र ग्रहण की स्थिति 103 मिनट तक रहेगी. भारत में यह लगभग रात्रि 11 बजकर 55 मिनट से स्पर्श कर लगभग 3 बजकर 54 पर पूर्ण होगा. इसमें पृथ्वी के मध्यक्षेत्र की छाया चंद्रमा पर पड़ेगी. इसके आगे-पीछे की अमावस्याओं पर खंडग्रास सूर्य ग्रहण भी होंगे. इसका गहरा प्रभाव पृथ्वी पर होना सुनिश्चित है.
26 जुलाई 1953 को बीसवीं सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण पड़ा था. यह पूर्णावस्था में लगभग 101 मिनट रहा. इसका कुल ग्रहण समय 5 घंटा 27 मिनट था. इसी ग्रहण के बाद अगस्त के मध्य में ग्रीस के केफलोनिया और जाकिनथोस के लगभग 113 भूकंप आए.

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