दिगंबर जैन साधु नग्न न घूमें? कानून बनाया जा सकता है ?

सिब्बल का सुप्रीम कोर्ट में तर्क #केंद्र सरकार के वकील का सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम समाज में तलाक से सभी तरीकों के रद्द करने की अपील केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करती है#
तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार चल रही सुनवाई अचानक भटकती नजर आने लगी है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक पर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने दलील दी कि जैसे अयोध्या में भगवान राम का जन्म हिंदुओं की आस्था का विषय है वैसे ही तीन तलाक मुसलमानों की आस्था का विषय है.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि कोर्ट को इस पर सुनवाई करनी ही नहीं चाहिए, जिस पर कोर्ट ने कहा कि चूंकि हमारे पास कुछ महिलाएं आयी हैं इसलिए हमें सुनवाई करनी ही होगी.
कपिल सिब्बल ने कोर्ट में तीन तलाक की तुलना राम के जन्मस्थान से करते हुए कहा कि 632 ईसवी में पैगंबर के निधन के सिर्फ 5 साल बाद 637 में 3 तलाक की व्यवस्था शुरू हुई. पैगंबर के सहयोगी हज़रत उमर ने इसे मान्यता दी. इसलिए, ये आस्था का विषय है. ठीक वैसे ही जैसे अगर मैं कहूँ कि भगवान राम अयोध्या में पैदा हुए तो ये संविधान का नहीं आस्था का विषय है.

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बेंच ढूंढ रही है इन 3 सवालों के जवाब
– क्या तीन तलाक और हलाला इस्लाम के जरूरी हिस्से हैं या नहीं?
– तीन तलाक मुसलमानों के लिए माने जाने लायक मौलिक अधिकार है या नहीं?
– क्या यह मुद्दा महिला का मौलिक अधिकार हैं? इस पर आदेश दे सकते हैं?

 कपिल सिब्बल, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील:तीन तलाक 637 ईसवी से है। इसे गैर इस्लामिक बताने वाले हम कौन होते हैं? मुस्लिम इसे 1400 साल से मानते हैं। यह आस्था का मामला है। जैसे मान लीजिए मेरी आस्था राम में है और मेरा यह मानना है कि राम का जन्म अयोध्या में हुआ, अगर राम को लेकर आस्था पर सवाल नहीं उठाए जा सकते तो तीन तलाक पर क्यों? यह सारा मामला आस्था से जुड़ा है। पर्सनल लॉ कुरान और हदीस से आया है। क्या कोर्ट कुरान में लिखे लाखों शब्दों की इंटरप्रिटेशन करेगा? संवैधानिक नैतिकता और समानता का नियम तीन तलाक पर लागू नहीं हो सकता, क्योंकि यह आस्था का मामला है।

  1. सुप्रीम कोर्ट:तो क्या आप कहना चाहते हैं कि हमें इस मामले में सुनवाई नहीं करनी चाहिए?

  2. कपिल सिब्बल:संविधान सभी धर्मों के पर्सनल लॉ को मानता है। हिंदू में दहेज के खिलाफ कानून है, लेकिन प्रथा के तौर पर इसे लिया जा सकता है। लेकिन मुस्लिमों के मामले में आस्था को संविधान के खिलाफ बताया जा रहा है। कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। वरना सवाल उठेगा। शरियत पर्सनल लॉ है। फंडामेंटल राइट्स से इसकी तुलना नहीं की जा सकती। धर्म में अगर गलत है तो हमें लोगाें को उसके बारे में एजुकेट करना चाहिए।

  3. सुप्रीम कोर्ट: अभी हमारे पास वक्त कम है। इसलिए ट्रिपल तलाक पर ही सुनवाई होगी। अभी हम यहां ट्रिपल तलाक के मामले में ही सुनवाई कर रहे हैं। बहुविवाह (पॉलीगेमी) और हलाला पर बाद में सुनवाई होगी। अगर तीन तलाक जैसी प्रथा को खत्म कर दिया जाता है तो किसी भी मुस्लिम पुरुष के लिए क्या तरीके मौजूद हैं?

  4. 3. मुकुल रोहतगी: अगर सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक को अमान्य या असंवैधानिक करार देता है तो मुस्लिमों में शादी और डिवोर्स को रेग्युलेट करने के लिए केंद्र सरकार नया कानून लाएगी।

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कपिल सिब्बल की दलीलों में सबसे ज्यादा जोर इस बात पर रहा कि धार्मिक परंपरा से जुड़े मामलों में अदालत को दखल नहीं देना चाहिए. उन्होंने कहा 3 तलाक की परंपरा 1400 साल पुरानी है और सुन्नियों का एक बड़ा वर्ग इसे मान्यता देता है ऐसे में साढ़े 16 करोड़ लोगों से जुड़े सवाल पर अदालत को सुनवाई नहीं करनी चाहिए. इस पर कोर्ट ने कहा कि हो सकता है ये परंपरा 1400 साल पुरानी हो. 1400 साल बाद कुछ महिलाएं हमारे पास आई हैं. हमें सुनवाई करनी होगी.
सिब्बल ने कहा कि क्या कल को इस बात पर कानून बनाया जा सकता है कि दिगंबर जैन साधु नग्न न घूमें? आखिर किस सीमा तक जाकर कानून बनाएंगे? सिब्बल की दलील पर कोर्ट ने सवाल किया कि “क्या आप ये कहना चाहते हैं कि हमें इस मामले को नहीं सुनना चाहिए?” तो सिब्बल ने कहा- “हां, आपको इसे नहीं सुनना चाहिए.”

सोमवार को केंद्र की मोदी सरकार की तरफ से पेश हुए अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट से तीन तलाक के अलावा मुस्लिम समाज में प्रचलति तलाक के दूसरे तरीकों को भी खत्म करने की मांग की है. उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट से निकाह हलाला और बहुविवाह पर भी सुनवाई का विकल्प खुला रखने की अपील की है. उनकी अपील को सुप्रीम कोर्ट ने मान भी लिया. हालांकि पहले सुप्रीम कोर्ट ने इन पर सुनवाई से मना किया था.
सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार का रुख प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस रुख से एकदम उलट है जो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से कुछ दिन पहले जाहिर किया था. उन्होंने कहा कि तीन तलाक के मसले के हल के लिए मुस्लिम समाज खुद आगे आए. उस दिन अपने बयान में प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई थी कि मुस्लिम समाज से ठीक उसी तरह लोग आगे आएंगे जैसे किसी जमाने में राजा राम मोहनराय जैसे लोगों ने आगे आकर हिंदू समाज में सती प्रथा का अंत किया था. आश्चर्य इस बात को लेकर है कि सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखते वक्त प्रधानमंत्री की ये उम्मीद हवा क्यों हो गई. केंद्र सरकार के वकील का सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम समाज में तलाक से सभी तरीकों के रद्द करने की अपील केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करती है.

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