कलम को हथियार बनाया भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने
#कलम को हथियार बनाया #सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का में जन्मे भारत के यह महान स्वतंत्रता सेनानी # 1912 में ‘अल हिलाल’ नाम के एक उर्दू साप्ताहिक की शुरुआत # www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal) महान स्वतंत्रता सेनानी की पुण्यतिथि यानी 22 फरवरी 1958 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया
स्वतंत्रता सेनानी और भारत के पहले शिक्षा मंत्री अबुल कलाम मोहीउद्दीन अहमद आज़ाद जिन्हें दुनिया मौलाना आज़ाद के नाम से जानती है. मौलाना का जन्म 11 नवंबर 1888 को हुआ था. महान भारतीय विद्वान, स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, कवि, पत्रकार और इस्लामिक शिक्षा के बड़े स्तंभ और रहस्यता से भरे इस महान शख्तियत ने राष्ट्रीयता और एकता को कायम रखने के लिए अपनी पूरी जिंदगी देश के नाम कर दी. आज इस महान स्वतंत्रता सेनानी की पुण्यतिथि है. मौलाना ने 70 साल की उम्र में आज यानी 22 फरवरी 1958 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उन्हें दिल्ली की जामा मस्जिद की गोद और लाल किले की निगरानी के बीच एक सफेद बारादरी में सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया. मौलाना आज़ाद ने जब अपनी आखें खोली तो हिंदुस्तान को गुलामी की चुंगलों में जकड़ा हुआ पाया और इन हालात ने उन्हें बेचैन कर दिया और उन्होंने खुद को हिन्दुस्तान की आज़ादी दिलाना अपना मकसद बना लिया. इस स्वतंत्रता सेनानी के बारे में खास बात यह है कि इनका जन्म न तो हिन्दुस्तान में हुआ और ना ही आज के पाकिस्तान में… बल्कि मौलाना जन्म सऊदी अरब के पवित्र शहर मक्का में हुआ.
अपने जन्म के 10 साल बाद मौलाना कलकत्ता (कोलकाता) लाए गए. मौलाना बचपन से ही जेहीन और तेजतर्रार थे. किताब और कलम से उनका फितरी लगाव था. और जब आजादी के मतवाले बने तो उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में अपने उसी कलम को हथियार बनाया, जिसने उन्हें ज़िंदगी के हर मैदान में बाम-ए-उरूज तक पहुंचाया. कलम के इस सिपाही ने हिन्दुस्तान आने के दो साल बाद ही पत्रिकाओं में लिखने लगे. उस वक्त उनकी उम्र महज 12 साल थी. मौलान ने बहुत ही कम उम्र में उर्दू में कविता लिखना शुरू कर दिया. उन्होंने धर्म और दर्शन पर भी कई रचनाएं लिखीं. उन्होंने 1912 में ‘अल हिलाल’ नाम के एक उर्दू साप्ताहिक की शुरुआत की.
मौलाना बतौर पत्रकार अपने लेखों में ब्रिटिश राज की जमकर आलोचना करते थे और ऐसे लेखों को प्रमुखता से छपा करते थे. वे अक्सर अपने लेखों में भारतीय राष्ट्रीयता का समर्थन करते थे.
1923 में 35 साल की उम्र में मौलाना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष चुने गए, जो रिकार्ड आज भी उनके नाम है. मौलाना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता होने के साथ-साथ उन मुसलमानों के भी नेता थे जिन्होंने आज़ाद भारत में अपने उज्जल भविष्य का सपना सजाया था. मौलाना 1919-26 के बीच खिलाफत आंदोलन के प्रमुख नेता थे. इसी दौरान उनकी और महात्मा गांधी के बीच नजदीकियां खूब बढ़ गईं.
इस अवधि में मौलाना, गांधीजी के अहिंसक आंदोलनों और विचारों के उत्साही समर्थक भी बने. मौलाना 1919 के रोलेक्ट एक्ट के विरोध में असहयोग आंदोलन को व्यवस्थित करने का काम किया. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु उन्हें ‘मीर-ए-कारवां’ यानी कारवां का नेता कहा करते थे.
मौलाना अलग पाकिस्तान बनाने का विरोध करने वाले सबसे प्रमुख मुस्लिम नेताओं में अव्वल थे. हालांकि, इसकी उन्हें कीमत भी चुकानी पड़ी. मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद जिन्ना मौलाना का जमकर मजाक उड़ाया करते थे और उन्हें कांग्रेस को मुस्लिम शो बॉय कहा करते थे, लेकिन सच्चाई ये थी कि वो भारतीय राष्ट्रीयता के बड़े पैरोकार थे. मौलाना आजाद दूसरी बार भी कांग्रेस के अध्यक्ष बने और लगातार 6 साल अध्यक्ष रहे. वो 1940 से 1946 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
साल 1957 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने ये कहकर लेने से मना कर दिया कि वो मंत्रिमंडल में होते हुए किसी सरकारी सम्मान को नहीं लेंगे. हालांकि, 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
मौलाना स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षामंत्री बने. नेहरू की विदेश दौरे के दौरान वो एक्टिग प्रधानमंत्री की भूमिका में होते थे. साल 1957 में उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने ये कहकर लेने से मना कर दिया कि वो मंत्रिमंडल में होते हुए किसी सरकारी सम्मान को नहीं लेंगे. हालांकि, 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
भारत सरकार के पहले शिक्षा मंत्री और भारत रत्न से सम्मानित मौलाना आज़ाद की याद में सरकार हर 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाती है. आधिकारिक रूप से इस खास दिन की शुरुआत 11 नवम्बर 2008 को की गई.
एक ऐसे वक़्त में जब हिंदू-मुस्लिम एकता अपने सबसे खराब दौर का सामना कर रही है. मौलाना आजाद की कमी ज्यादा ही परेशान करती है.