भारत का गियर रक्षात्मक से आक्रामक; अजित डोभाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान का नाम क्या लिया, पाकिस्तानी हुक्मरानों से लेकर सेना तक में हंगामा मच गया. अब पाकिस्तान को लगने लगा है कि कहीं बलूचिस्तान हाथ से निकल ना जाए. हालांकि ये बात भी किसी छुपी हुई नहीं है कि बलूचिस्तान पर पाकिस्तान ने गैर-कानूनी तरीके से कब्ज़ा किया. पिछले कुछ साल में बलूचों ने आज़ादी की अपनी जंग तेज़ कर दी है. अगर बलूचिस्तान हटा तो पाकिस्तान आधा रह जाएगा.
इस मामले पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का कहना था, ‘’ एक बार जब उन्हें पता चल जाएगा कि भारत ने अपना गियर रक्षात्मक से आक्रामक कर दिया है तो वो समझ जाएंगे कि अब इसे झेलना उनके लिए नामुमकिन है, अगर आप एक मुंबई करोगे तो बलूचिस्तान को खो दोगे, इसमें कोई परमाणु युद्ध नहीं होगा, अगर आप तरीके जानते हो तो हम आपसे बेहतर तरीके जानते हैं.’’
ये अजित डोभाल का तब का बयान है जब वो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नहीं हुआ करते थे. तब उन्होंने पाकिस्तान को बलूचिस्तान की अहमियत बतायी थी. लेकिन पाकिस्तान को सीधी बात समझने की आदत नहीं है. आखिर बलूचिस्तान पर जबरन कब्ज़े का उसे गुमान जो है.
70वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलूचिस्तान और ‘पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर’ की ‘आजादी’ का खुले तौर पर समर्थन किया. पीएम के इस बयान पर चर्चा शुरू हो गई है. विदेश मामलों के जानकार इसे गेम चेंजर बता रहे हैं तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद इस पर सवाल उठा रहे हैं. पूर्व विदेश सचिव शशांक ने पीएम का इस मुद्दे पर खुलकर समर्थन किया है तो विदेश मामलों के जानकार कमर आगा ने इसे गेम चेंजर बताया है. कमर आगा कहते हैं कि पीएम का यह बयान चीन के लिए भी चेतावनी है.
आपको बता दें कि पीएम मोदी ने कहा, “दुनिया देख रही है. पिछले कुछ दिनों में बलूचिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर के लोगों ने मेरा आभार जताया है.” उन्होंने कहा, “मैं उनका शुक्रगुजार हूं.”
मोदी ने पिछले सप्ताह कहा था कि पाकिस्तान को दुनिया को यह जवाब देने का समय आ गया है कि वह पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर व बलूचिस्तान के लोगों पर क्यों अत्याचार कर रहा है. बलूचिस्तान पूरे पाकिस्तानी प्रांत का 44% हिस्सा है. जो कि खनिज के क्षेत्र में समृद्ध है. पाकिस्तान चरमपंथी गुटों और अलगाववादी गुटों पर नियंत्रण रखने के नाम पर यहां के लोगों पर सैन्य कारवाई कर रहा है.
क्या है विशेषज्ञों की राय?
वाजपेयी के वक्त आगरा समिट जैसे अहम समय पर देश के विदेश सचिव रहे शशांक ने एबीपी न्यूज से खास बातचीत में बलूचिस्तान के मामले में प्रधानमंत्री मोदी का खुलकर समर्थन किया है. शशांक से जब बलूचिस्तान को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की ताजा नीति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि ये मामला प्रधानमंत्री के स्तर पर ही उठ सकता था और किसी स्तर पर नहीं. शशांक बताते हैं कि पिछली सरकार के दौरान भी पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम के नारायणन ने बलूचिस्तान पर सख्त रूख अपनाने का प्रस्ताव दिया था मगर तत्कालिन मनमोहन सरकार ने उनकी राय नहीं मानी.
विदेश मामलों के जानकार कमर आगा कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी को बलूचिस्तान का मुद्दा पाकिस्तान की हरकतों की वजह से उठाना ही पड़ा और ये एक गेम चेंजर साबित होगा. कमर आगा का कहना है कि इसमें चेतावनी सिर्फ पाकिस्तान को ही नहीं चीन को भी है क्योंकि चीन पाकिस्तान इकॉनोमिक कॉरीडोर को बलूचिस्तान से होकर ही गुजरना है.
1948 में पाक ने किया जबरदस्ती कब्ज़ा
1948 में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर जबरदस्ती कब्ज़ा किया. एक आज़ाद मुल्क को हथियारों के दम पर अपना गुलाम बना लिया. 68 साल बीत गए बलूचों को अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ते. अगर वो ये लड़ाई जीत जाते हैं तो 1971 के बाद पाकिस्तान का नक्शा एक बार फिर बदल जाएगा. बलूचिस्तान अलग हुआ तो आधा पाकिस्तान साफ हो जाएगा.
दरअसल बलूचिस्तान चार बड़ी रियासतों मकरान, खरान,लास बेला और कलात को मिलाकर बनाया गया. ये पूरे पाकिस्तान का करीब 47 फीसदी इलाका है. जाहिर है नक्शे से बलूचिस्तान कटा तो पाकिस्तान अपने आधे हिस्से से हाथ धो बैठेगा.
कमाई के नज़रिए से पाक के लिए बेहद अहम है बलूचिस्तान
पाकिस्तान के लिए बलूचिस्तान को खोने का मतलब सिर्फ ये नहीं है कि उसकी 47 फीसदी ज़मीन चली जाएगी. बल्कि आर्थिक तौर पर भी उसे बड़ा झटका लगेगा. क्योंकि बलूचिस्तान कमाई के नज़रिए से भी पाकिस्तान के लिए बेहद अहम है.
पूरे पाकिस्तान का एक तिहाई प्राकृतिक गैस यहीं से निकलता है. तेल के भी बड़े भंडार यहां मौजूद है. सैकड़ों खानों से यहां सोना निकाला जा रहा है. तांबे के भी बड़े भंडार हैं. यूरेनियम भी यहां की धरती में पाया जाता है.
लेकिन पाकिस्तान अब तक सिर्फ इसको दोहन ही करता आ रहा है. बलूच लोगों के लिए इससे ज्यादा दुखदायी बात और क्या होगी कि इलाके में गैस मिलने के करीब तीस साल बाद उन्हें गैसा की सप्लाई शुरु की गयी. जबकि पाकिस्तान ने 1955 से ही उसे बेचना शुरु कर दिया था.
पाकिस्तान का सबसे पिछड़ा राज्य है बलूचिस्तान
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के 10 सबसे पिछड़े ज़िलों में से 8 बलूचिस्तान के हैं. पूरे पाकिस्तान की 47 फीसदी साक्षरता की दर के मुकाबले बलूचों की साक्षरता दर महज़ 22 फीसदी है. पूरे पाकिस्तान में 86 फीसदी लोगों को मिल रहे पीने का पानी के मुकाबले बलूचिस्तान के सिर्फ 20 फीसदी लोगों को ही पीने का पानी उपलब्ध है.
बलूचिस्तान पर है पाकिस्तान का गैरकानूनी कब्ज़ा
अंग्रेज़ों ने बलूचिस्तान को भारत और पाकिस्तान से भी पहले आज़ाद देश घोषित कर दिया था. 11 अगस्त 1947 बलूचिस्तान आज़ाद हो चुका था. उस समय राजकुमार यार मोहम्मद खान का बलूचिस्तान पर शासन था और उनकी राजधानी कलाट थी. मोहम्मद अली जिन्ना, यार मोहम्मद खान से मिले. उन्हें कहा कि मज़हब के नाम पर वो पाकिस्तान के साथ मिल जाएं. जिन्ना के इस प्रस्ताव को बलूचिस्तान की संसद ने एक सिरे से खारिज कर दिया.
27 मार्च को बलूच मनाते हैं ब्लैक डे
जिन्ना साहब वहां खुद गए उन्होंने उन लोगों से बातचीत की. लेकिन तब भी उन्होंने इंकार कर दिया.. बाद में 48 में लगभग डेढ़ साल के बाद तकरीबन पाकिस्तान की आर्मी ने घुस कर उसके ऊपर कब्ज़ा कर लिया और उसको अपने में मिला लिया. वो तारीख थी 27 मार्च 1948 जब पाकिस्तान ने फौज और हथियार के दम पर बलूचिस्तान को अपने में मिला लिया.
पाकिस्तान ने 27 मार्च 1948 को गैर कानूनी तरीके से लूचिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया. दुनियाभर में जहां भी बलूच लोग हैं. वो हर साल 27 मार्च को काले दिन के रूप में मनाते हैं. इस दिन बलूचिस्तान की ज़मीन तो पाकिस्तान ने हड़प ली लेकिन वहां के लोगों को अपने साथ ना कर सका. आज भी बलूच अपने आप को पाकिस्तान का हिस्सा नहीं मानते हैं. वो बेसिकली अलग होना चाहते हैं. पाकिस्तान से और उनका अपना देश चाहते हैं. उनकी भाषा एक हैं. उऩकी ज़बान अलग है. उनका पहनावा अलग है. उऩका खान पान अलग है. जो पाकिस्तान से नहीं मिलता.
बलूच ताकतवर ना हो जाएं इसलिए पाकिस्तानी सेना यहां अत्याचार करती है. सरकार की ओर से सेना को वहां जुल्म करने की छूट मिली हुई है. सेना जो चाहे वो करती है. बलूचों को जान से मारना और उनके घरों को जलाकर राख कर देना यहां आम बात है.
बलूचिस्तान में अल्पसंख्यक हुए बलूच
पाकिस्तान बलूचिस्तान पर चौतरफा वार कर रहा है. पाकिस्तानी सेना आए दिन नौजवानों को बिना कुछ कहे उठा ले जाती है. रोज़ाना कहीं ना कहीं सेना बलूचों को मार रही है. अब तो हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं. बलूच अपने ही प्रदेश में अल्पसंख्यक बन चुके हैं.
पाकिस्तान के कब्ज़े से पहले बलूचिस्तान में बड़ी आबादी शिया मुसलमानों की थी. लेकिन पिछले दस सालों में पाकिस्तानी सेना करीब 20 हज़ार बलूचों को मार चुकी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 21 हज़ार बलूच युवक लापता हैं. पाकिस्तान जानबूझकर यहां पंजाब और दूसरे इलाकों से लाकर लोगों को बसा रहा है. नतीजा ये हुआ कि बलूचिस्तान में बलूच लोग ही अल्पसंख्यक हो गए हैं. बड़ी आबादी अब सुन्नी मुसलमानों की हो गयी है.
बड़ी संख्या में पंजाब प्रांत फाटा प्रांत के लोग वहां पर आ गए. उसकी वजह से उनकी भाषा उनका कल्चर उसको भी खतरा हो रहा है. उनको लगता है कि धीरे धीरे उन लोगों को संख्या बढ़ती जा रही है.
पाकिस्तान का बलूचों पर अत्याचार
ज़ाहिर है पाकिस्तान की ये नापाक चाल बलूच लोगों की भी समझ में आ रही है. क्योंकि बलूच जानते हैं कि उनकी ये ज़मीन पाकिस्तान के लिए सोने की चिड़िया है. गैस और तेल के बड़े भंडारों के साथ सोने और तांबे जैसी कीमती धातुओं के यहां भंडार हैं. पाकिस्तान उनकी ज़मीन से अपना खज़ाना भर रहा है. लेकिन बलूचों को एक चवन्नी भी नहीं दी जा रही.
चीन कर रहा है पाक की मदद
चीन की मदद से पाकिस्तान यहां के प्राकृतिक संसाधनों को निकाल रहा है. ज़ाहिर है जो इलाका प्राकृतिक संसाधनों से भरा हुआ हो, गैस और तेल के बड़े भंडार हों, सोने और तांबे जैसी धातुओं की खानें हों तो वहां से कितनी कमाई हो रही होगी. लेकिन विकास के नाम पर यहां कुछ भी नहीं किया गया. बलूचों की हालत तो उससे भी खराब हो गयी है. जब वहां अंग्रेज़ों की हूकूमत थी.
पाकिस्तान के ज़ुल्मों से बलूच नाराज़
वहां पर पाकिस्तान ने विकास बिल्कुल भी नहीं किया. मिनिमम डेवलपमेंट है. रोड भी वही बनायी गयीं जिसमें पाकिस्तानी सेना को जिसकी ज़रूरत थी. पोर्ट का भी विकास ठीक से नहीं किया गया. ज़ाहिर है पाकिस्तान के इन्हीं ज़ुल्मों सितम ने बलूचों को इतना नाराज़ कर दिया है कि वो अपनी आज़ादी के लिए जान देने से भी पीछे नहीं हट रहे.
बलूचिस्तान का भारत से नाता बेहद पुराना है. आज़ादी के पहले से ही बलूच. हिंदुस्तान को अपना करीबी मानते रहे हैं. इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब लाल किले से बलूचिस्तान का नाम लिया तो दुनियाभर में मौजूद बलूच नेताओं ने इसके प्रधानमंत्री का शुक्रिया अदा किया.