डोभाल की चीन यात्रा की सफलता; चीन के रुख में नरमी
चीन ने मोदी की तारीफ चौंकाने वाली खबर # www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
चीन के रुख में नरमी आई है, चीन अपनी ज़िद्द से पीछे हटा है और भारत से भी इसी तरह की उम्मीद करता है.
दरअसल, स्थिति कुछ इस तरह की बन रही है कि सुलह के लिए दोनों देशों को एक दूसरे की इज़्ज़त बचानी है.
ये अजीत डोभाल की चीन यात्रा की सफलता मानी जा सकती है लेकिन डोकलाम पर भारत और चीन के तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों के अधिकारी कई स्तरों पर कोशिश कर रहे हैं और इसे शुरुआत माना जा सकता है.
चीन के बदले रवैये से लगता है कि भारत ने भी हाथ बढ़ाया होगा, नहीं तो चीन खुलकर सामने नहीं आता.
सिक्किम सीमा विवाद के कारण भारत-चीन के बीच तनातनी जारी है। चीनी मीडिया लगातार अपने लेखों के जरिए भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन इन सब के बीच एक चौंकाने वाली खबर आई है। चीन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है। चीन ने पीएम मोदी के नेतृत्व और भारत की ‘खुली विदेश आर्थिक नीति’ की बुधवार को प्रशंसा की है। डोकलाम को लेकर चल रहे विवाद के बीच चीन का यह बयान हैरान करता है।
भारतीय फ़ौज की ओर से उन्हें पीछे धकेले जाने के बाद वो शायद अपमानित महसूस कर रहे हैं. उन्हें पहले इस बात का यकीन नहीं था कि भारतीय फ़ौज भूटान के लिए सामने आएगी या फिर कम से कम चीन की फ़ौज के सामने इतनी देर तक खड़ी होने की हिम्मत करेगी.
ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक के लिए चीन गए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा यांग जिए च से मुलाकात की है.अजित डोभाल और यांग जिए चे की मुलाकात काफ़ी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि चीन इसके माध्यम से अपने रुख में नरमी का संकेत देना चाहता है और अब डोकलाम को लेकर सुलह की तरफ़ बढ़ना चाहता है. लेकिन ये भी देखना ज़रूरी है कि ये बैठक ब्रिक्स के बैनर के तले हुई और ब्रिक्स की बैठक के बाद यांग जिए चे रूस, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका के सुरक्षा सलाहकारों से भी मिले थे. इसी सिलसिले में अजित डोभाल से उनकी मुलाकात के बाद उम्मीद की जा सकती है कि डोकलाम को लेकर तनाव में कुछ कमी आ सकती है. अजित डोभाल और यांग जिए चे की बैठक के बाद चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने अचानक एक कमेंट्री प्रसारित की जिसमें दोस्ती, भाईचारे की बातें कहीं गईं. इसमें ये संकेत दिया गया है कि पश्चिमी देशों के लोग भारत-चीन को लड़वा रहे हैं, वैसे तो हम भाई-भाई हैं. इसमें कहीं भी ये नहीं कहा गया कि भारत को डोकलाम से अपने सैनिक वापस बुलाने होंगे तभी बात आगे बढ़ेगी. ये पहली बार है कि चीनी की किसी आधिकारिक एजेंसी ने इस तरह की बात नहीं की है कि भारत अपनी सेना सेना हटाए उसके बाद ही बातचीत का रास्ता खुलेगा. शिन्हुआ पर प्रसारित कमेंट्री में ये भी कहा गया कि भारत को चीन के प्रति अविश्वास करना बंद करना चाहिए, चीन भारत का विकास चाहता है और भारत को चीन के बजाय अपने भ्रष्टाचार और अन्य समस्याओं से जूझना चाहिए.
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने एक बयान जारी किया है जिसमें कहा गया है कि भारत विदेशी निवेश को अपनी तरफ आकर्षित करने में लगातार सफल हो रहा है, उसने अपने यहां विदेशी निवेश के लिए एक सकारात्मक माहौल बनाया है। इसके साथ ही यह देश पिछले 2 वर्षों के दौरान दुनिया में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के सबसे बड़े गंतव्य के रूप में उभरा है।
इसके साथ ही इस लेख में कहा गया कि भारत चीन के साथ व्यापार सहयोग मजबूत कर रहा है और इस देश की खुली व्यापार नीति, मुक्त वैश्विक व्यापार बढ़ावा देने और संरक्षणवाद का मुकाबला करने में सक्षम है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हुए कहा गया कि मोदी के नेतृत्व में भारत एक सक्रिय विदेश नीति लागू कर रहा है। इसके साथ ही भारत की विदेशी निवेश नीति भी सुधरी है और घरेलु उद्यमों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उतरने का प्रोत्साहन भी मिला है।
भारत की मौजूदा सुधार प्रक्रिया और खुली नीति बेहद आकर्षक है। इस लेख में यह भी कहा गया कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर दोनों राष्ट्र समान रुख अपनाते हैं। इसमें पेरिस जलवायु समझौते का उदाहरण दिया गया है।
पिछले हफ्ते भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक साहसिक कदम उठाते हुए प्रस्ताव रखा कि डोकलाम पर जारी गतिरोध पर बातचीत शुरू करने के लिए चीन, भारत और भूटान एक साथ अपनी सेनाएं पीछे हटाने की कोशिश कर सकते हैं.
इससे पहले, अब तक भारत की ओर से बार-बार रखे गए बातचीत के प्रस्ताव को चीन ने अनसुना किया है. चीन लगातार इस शर्त पर ज़ोर दे रहा है कि बातचीत करने से पहले भारत को अपनी फ़ौज हटानी चाहिए. इस बीच सीमा पर भारत और चीन के सैनिक 150 मीटर की दूरी पर एक-दूसरे के सामने खड़े हैं. इस दौरान चीन की फ़ौज युद्धाभ्यास कर रही है और चीन के सरकारी प्रवक्ता और मीडिया ख़ुद को एक साथ पीड़ित दिखाने और धौंस जमाने का खेल जारी रखे हुए हैं. चीन ने निश्चित रूप से यह उम्मीद नहीं की थी कि डोकलाम में भारत भूटान के पक्ष में खड़ा हो जाएगा.
चीन की बौखलाहट की वजह यह है कि भारतीय फ़ौज ने पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के उन जवानों को जिसे कुछ दिन पहले चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने ‘पहाड़ से भी अधिक मजबूत’ बताया था, पीछे धकेल दिया है.
चीनी सेना को पिछली लड़ाई का अनुभव वियतनाम के साथ 1979 का है जिसमें दोनों ही देशों ने अपनी-अपनी जीत का दावा किया था और चीन ने अपनी फ़ौज वापस बुला ली थी. चीन का आरोप था कि वियतनाम ने कंबोडिया पर कब्ज़ा किया है. इसी मुद्दे पर चीन से वियतनाम पर हमला किया था, लेकिन वियतनाम की फ़ौज कंबोडिया में 1989 तक जमी रही. चीन ने ऐसा ही 1962 में भारत के साथ किया था और भारत पर जीत दर्ज करने का दावा किया था और बाद में चीन ने अपनी फ़ौज अपने आप वापस बुला ली थी.
भारत की फ़ौज ने अब तक की अपनी आख़िरी जंग 1999 में लड़ी है जिसमें उसे निर्याणक जीत हासिल हुई है और आज भारत की फ़ौज अमरीकियों को अधिक ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में युद्ध का अभ्यास करवाती है. इसलिए बहुत संभव है कि भारत और चीन दोनों ही देश सर्दियों से पहले गतिरोध समाप्त कर लेंगे और निश्चित तौर पर ऐसा लगता नहीं है कि दोनों में से कोई भी पक्ष वाकई जंग चाहता है.
पिछले हफ़्ते करिश्माई नेता सुन चंगसाए जो चुंगछिंग नगरपालिका के पार्टी सचिव थे, उन्हें अचानक बर्खास्त कर दिया गया. वो ना ही सिर्फ़ पोलित ब्यूरो के सदस्य हैं, बल्कि वे पूर्व प्रधानमंत्री वेन ज़ियाबाओ के करीबी भी थे. उन्हें 2023 के बाद का प्रधानमंत्री का दावेदार भी समझा जा रहा था. लेकिन उनकी बर्खास्तगी यह जतलाती है कि चीनी फ़ौज का डोकलाम में पीछे हटना शी जिनपिंग की मजबूत नेता की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला हो सकता है और यह पार्टी के अंदर उनके विरोधी खेमों को उनके ख़िलाफ़ एक मौका दे सकता है. इसलिए डोकलाम में चीनी फ़ौज की तैनाती चीन की अंदरूनी नेतृत्व के बदलाव से भी जुड़ी हुई है.
हिमालयायूके न्यूज पोर्टल Desk Report: CS JOSHI- EDITOR
www.himalayauk.org (HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND)
Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper; publish at Dehradun & Haridwar. Mob. 9412932030
mail; csjoshi_editor@yahoo.in & himalayauk@gmail.com