चुनाव में किसी भी पार्टी को समर्थन नहीं ;अखाड़ा परिषद का ऐलान
लोकसभा चुनाव 2019: चुनाव में किसी भी पार्टी को समर्थन नहीं करेगा अखाड़ा परिषद, सियासी दलों की उम्मीदों पर फिरा पानी हिमालयायूके ब्यूरो-
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि के मुताबिक़ तमाम पार्टियों ने समर्थन के लिए साधू संतों की सबसे बड़ी संस्था से संपर्क किया था, लेकिन परिषद ने किसी को भी समर्थन नहीं करने का फैसला किया है.
प्रयागराज: साधू-संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस चुनाव में किसी भी सियासी पार्टी को समर्थन नहीं करने का फैसला किया है. परिषद ने फैसला किया है कि इस चुनाव लोकसभा चुनाव में वह किसी भी राजनीतिक दल और उम्मीदवार को जिताने या उसके खिलाफ वोट करने के लिए मतदाताओं के बीच कोई अपील नहीं करेगा. अखाड़ा परिषद के इस फैसले से बीजेपी और समाजवादी पार्टी समेत दूसरे सियासी दलों की उम्मीदों पर वोटिंग से ठीक पहले पानी फ़िर गया है. बीजेपी को साधू संतों का हितैषी माना जाता है, जबकि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि के सपा मुखिया अखिलेश यादव से बेहद करीबी रिश्ते हैं.
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि के मुताबिक़ तमाम पार्टियों ने समर्थन के लिए साधू संतों की सबसे बड़ी संस्था से संपर्क किया था, लेकिन परिषद ने किसी को भी समर्थन नहीं करने का फैसला किया है. उनका कहना है कि सच्चे साधू सन्यासी या धर्मगुरु कभी किसी पार्टी के लिए न तो प्रचार करते हैं और न ही उसका समर्थन करते हैं. उन्होंने मतदाताओं से लोकतंत्र के इस महापर्व में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने और मतदान में ज़रूर शामिल होने की अपील की है.
बता दें कि साधू संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने बीजेपी द्वारा राम मंदिर मुद्दे को अपने संकल्प पत्र में जगह दिए जाने पर नाखुशी जताई है. अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का कहना है कि बीजेपी ने पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बावजूद पिछले पांच सालों में मंदिर के लिए कुछ ठोस नहीं किया, ऐसे में इस मुद्दे को अब सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ देना चाहिए और राजनीतिक पार्टियों को इस मुद्दे से खुद को अलग कर लेना चाहिए. महंत नरेंद्र गिरि के मुताबिक़ राम मंदिर पर अब सभी को अदालत का फैसले का इंतजार करना चाहिए और इस पर सियासत बंद होनी चाहिए.
इससे पूर्व
कुम्भ मेले में निर्मल अखाड़ा में संवाददाताओं से बातचीत में महंत नरेंद्र गिरि ने कहा था , “साढ़े चार साल में आपने (भाजपा) तीन तलाक का मुद्दा उठाया, एससी-एसटी एक्ट का मुद्दा उठाया, 10 प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा उठाया तो राम का मुद्दा उठाने में क्या दिक्कत थी।” उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि राममंदिर के नाम पर अब वोट नहीं मिलेगा और राममंदिर बन ही जाना चाहिए। कौन बनाएगा यह हम नहीं कह सकते.. चाहे भाजपा बनवाए, सपा बनवाए, बसपा बनवाए या कांग्रेस बनवाए। जहां तक मुझे कहना है कि भाजपा की मंशा राममंदिर बनाने की नहीं है।” नरेंद्र गिरि ने कहा, “भाजपा की मंशा इसलिए नहीं है क्योंकि वह चाहती है कि यह मुद्दा जीवित रहेगा तो उनके लिए फायदेमंद रहेगा। लेकिन जनता इसका उत्तर आने वाले चुनाव में देगी। कुंभ के बाद अयोध्या में संतों का एक बड़ा समागम होगा जिसमें राममंदिर निर्माण पर निर्णय होगा।” अखाड़ा परिषद अध्यक्ष ने कहा, “अयोध्या में पत्थर तैयार हैं और अगर एक महीने का समय दिया जाए तो राममंदिर बनकर तैयार हो जाएगा।
वही दूसरी ओर
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में निर्मोही अखाड़ा ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल की. इस याचिका में केंद्र सरकार की अयोध्या में अधिग्रहित की गई अतिरिक्त जमीन को उसके मूल मालिकों को वापस देने की अर्जी का विरोध किया है.
एनडीटीवी खबर के मुताबिक, निर्मोही अखाड़ा ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को पहले भूमि विवाद का फैसला करना चाहिए. केंद्र के जमीन अधिग्रहण करने से निर्मोही अखाड़ा द्वारा संचालित कई मंदिर नष्ट हो गए. ऐसे में केंद्र को ये जमीन किसी को भी वापस करने के लिए नहीं दी जा सकती.
निर्मोही अखाड़ा ने ये भी कहा है कि रामजन्म भूमि न्यास को अयोध्या में बहुमत की जमीन नहीं दी जा सकती.
निर्मोही अखाड़ा द्वारा ये याचिका केंद्र सरकार की जनवरी में दाखिल याचिका के खिलाफ दायर की है, जिसमें केंद्र द्वारा विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थान के आसपास 67.390 एकड़ ‘अविवादित’ अधिग्रहीत भूमि को मूल मालिकों को लौटाने की अपील की गई है.
केंद्र सरकार ने अपनी अर्जी याचिका में कहा है कि उसने रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद की 2.77 एकड़ विवादित जमीन के आसपास 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. जबकि जमीन का विवाद सिर्फ 0.313 एक़ड़ का है. ऐसे में अविवादित जमीन को इसके मूल मालिकों को वापस किया जाना चाहिए.
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की अर्जी पर सुनवाई नहीं की है.
निर्मोही अखाड़े ने अपनी नई अर्जी में केंद्र की याचिका का विरोध किया है, जिसमें उसने सुप्रीम कोर्ट के 2003 के फैसले में संशोधन की अपील की है.
2003 के फैसले में अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के आसपास 67.390 एकड़ ‘अविवादित’ अधिग्रहीत जमीन को मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति दी गई है.
याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने राम जन्मभूमि न्यास को अधिग्रहीत भूमि लौटाने का प्रस्ताव दिया है और अधिग्रहीत जमीन पर कई मंदिर हैं. अगर जमीन किसी एक पक्ष को दी गई तो इससे उनके अधिकार प्रभावित होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस भूमि विवाद का मैत्रीपूर्ण हल निकालने के लिए मध्यस्थतों को नियुक्त किया था.
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को फैसला दिया था कि राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद स्थल पर 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन बराबर हिस्सों में बांटी जाएगी और उसे निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला को दिया जाएगा.
इस फैसले के खिलाफ दायर 14 अपील पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के माध्यम से विवाद सुलझाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था.
उसके बाद 8 मार्च, 2019 को अदालत ने इस मामले को सुलझाने के लिए तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल को सौंप दिया. उस पैनल की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एफएम खलीफुल्ला कर रहे हैं. इस समिति में श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्री राम पंचू भी शामिल हैं.