ये मेरी ईमानदारी है कि मैं हिसाब-किताब नहीं मांग रहा हूं; अखिलेश
उत्तर प्रदेश में दो चरणों की वोटिंग हो चुकी है और पांच चरणों की वोटिंग बाकी है. इन चरणों के लिए पार्टियों को कद्दावर नेता रैलियों को संबोधित कर रहे हैं और ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं. इस चुनाव में सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन जीत के दावे कर रहा है, वहीं बीजेपी को इस बार मोदी लहर दिखाई दे रही है और वह भी सत्ता में वापसी की उम्मीद लिए बैठे हैं. इस चुनाव में तीसरी सबसे बड़ी ताकत बहुजन समाज पार्टी की दिखाई दे रही है जिसकी मुखिया मायावती रोज रैलियों को माध्यम से वोटरों को पार्टी के लिए वोट करने को कह रही है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आखिरकार अपनी चुप्पी तोड़ी. अखिलेश यादव ने कहा कि कुछ लोगों ने उनकी भी साइकिल छीनने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने साइकिल इतनी तेज दौड़ा दी कि छीनने वाले पीछे रह गए. अखिलेश यादव ने कहा, ‘कुछ लोगों ने मेरी भी साइकिल छीन ली होती, लेकिन मैंने साइकिल इतनी तेज दौड़ा दी कि वो पीछे रह गए.’ जिन्होंने नेताजी और मेरे बीच खाई पैदा की है, इटावा के लोग उसे सबक सिखाने का काम करें. अखिलेश ने कहा कि ये मेरी ईमानदारी है कि मैं हिसाब-किताब नहीं मांग रहा हूं. उनके पास बूथों पर खर्च करने के लिए पैसा है. उनपर नजर रखी जाए. यादव ने कहा कि मैं इटावा नहीं आता था क्योंकि मुझे भरोसा था कि इसका ख्याल रखा जाता है. उन्होंने मुझे पार्टी से निकलवा दिया. मुझपर आरोप लगाए कि मैं चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुआ, क्या ये मेरे हाथ में था. नेताजी ने मुझे आगे किया तो मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं पार्टी को आगे ले जाऊं.
सपा में हुए पारिवारिक विवाद के बाद अखिलेश पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए कांग्रेस से हाथ मिला लिया. शिवपाल यादव को इटावा के जसवंतनगर सीट से टिकट भी दिया गया. भले ही शिवपाल ने कांग्रेस से गठबंधन पर कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन एक साक्षात्कार में उन्होंने यूपी में फिर से सपा की सरकार बनने की इच्छा जताई थी.
उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के राज में इटावा बहुत ही अहम जिले में गिना जाता रहा है. अखिलेश यादव के राज में भी इटावा का ये रुतबा कायम रहा.
ऐसा सुख शायद ही देश में किसी जिले को हासिल हो. मुलायम राज में इटावा के लोग खुद को सबसे ऊपर समझते रहे हैं. वीआईपी होने की इसी चाहत में इटावा के लोगों ने आंख मूंदकर मुलायम सिंह यादव का समर्थन किया है.
इसी जिले की जसवंतनगर सीट से मुलायम सिंह यादव ने अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की और उसके बाद ये शिवपाल की सीट हो गई. मुलायम सिंह यादव ने जसवंतनगर में भाई शिवपाल यादव के समर्थन में कहा कि अखिलेश जिद्दी हैं. कई बार वो बात सुन लेता है, कई बार नहीं सुनता.
1967 में पहली बार मुलायम यहां से चुनकर विधानसभा में पहुंचे. उसके तुरंत बाद 1969 में हुए चुनाव में उन्हें बिशंभर सिंह यादव ने हरा दिया और एक बार 1980 में बलराम सिंह यादव ने हराया.
इसके अलावा 67 से 93 तक ये सीट मुलायम सिंह को विधायक बनाती रही. 1996 से अभी तक यहां से शिवपाल सिंह यादव विधायक चुने जा रहे हैं. इस बार के चुनाव में बीजेपी ने बीएसपी से पिछला चुनाव लड़े मनीष यादव पर भरोसा जताया है.
बीएसपी से दरवेश कुमार शाक्य और आरएलडी से जगपाल सिंह यादव लड़ रहे हैं. सीधे तौर पर शिवपाल को यहां खास चुनौती नहीं दिखती है. लेकिन, अंदरखाने अखिलेश यादव के समर्थक शिवपाल को चुनाव हराने की कोशिश में लगे हैं ये बात जसवंतनगर की सड़कों पर कोई आम आदमी भी बता देगा.
जसवंत नगर सीट पर भले ही चाचा का टिकट काटने का साहस अखिलेश भले न कर पाए हों. क्योंकि चाचा शिवपाल को यहां हराना असंभव न सही लेकिन, बहुत मुश्किल जरूर है.
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