अंबानी पुत्र की शादी- त्रियुगीनारायण मंदिर -जहां भगवान शिव ब्याहे थे
देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी के बेटे आकाश और हीरा कारोबारी रसेल मेहता की बेटी श्लोका की ग्रैंड सगाई सेलिब्रेशन के बाद ये चर्चा तेज हो चली थी कि इस नए जोड़े की शादी कहां और कैसे होगी. आकाश और श्लोका की शादी को लेकर ये चर्चाएं हैं कि उत्तराखण्ड में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर में उद्योगपति मुकेश अंबानी अपने बड़े बेटे आकाश के विवाह की कुछ रस्म पूरी कर सकते हैं. इसे शादी के लिए तैयार किया जा रहा है. ऐसी मान्यता है कि उत्तराखंड की वादियों के बीच इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती की शादी हुई थी.
मान्यता है कि भगवान शंकर ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के त्रियुगीनारायण में माता पार्वती से विवाह किया था. इसका प्रमाण है यहां जलने वाली अग्नि की ज्योति जो त्रेतायुग से निरंतर जल रही है. कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती से इसी ज्योति के समक्ष विवाह के फेरे लिए थे. तब से अब तक यहां अनेक जोड़े विवाह बंधन में बंधते हैं. लोगों का मानना है कि यहां शादी करने से दांपत्य जीवन सुख से व्यतीत होता है. त्रेतायुग का ये शिव-पार्वती के विवाह का स्थल रुद्रप्रयाग जिले के सीमांत गांव में त्रियुगीनारायण मंदिर के रूप में वर्तमान में आस्था का केंद्र है. केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम के साथ ही मध्य हिमालय में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर से देश के उद्योगपति अंबानी परिवार का पुराना रिश्ता रहा है. 40 साल पहले साल 1978 में धीरू भाई अंबानी अपने दोनों बेटो के साथ त्रियुगीनारायण मंदिर में आकर भगवान का आशीर्वाद लिया था. यहां पर पूजा अर्चना करने के बाद वह केदारनाथ दर्शनों को गए थे. रुद्रप्रयाग से तकरीबन 80 किमी दूर गौरीकुंड के पास त्रियुगीनारायण मंदिर स्थित है. करीब पांच दिन पहले रिलायंस ग्रुप की चार सदस्यी टीम पांच दिन पूर्व त्रियुगीनारायण मंदिर पहुंची थी और उन्होंने मंदिर की लोकेशन के साथ-साथ यहां रहने के लिए गढ़वाल मंडल विकास निगम के बंगले की भी निरीक्षण कर पूरी जानकारी ली. हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पार्वतराज हिमावत या हिमावन की पुत्री थी. पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म हुआ था. पार्वती ने शुरू में अपने सौंदर्य से शिव को रिझाना चाहा लेकिन वे सफल नहीं हो सकी. त्रियुगीनारायण से पांच किलोमीटर दूर गौरीकुंड कठिन ध्यान और साधना से उन्होंने शिव का मन जीता. जो श्रद्धालु त्रियुगीनारायण जाते हैं, वे गौरीकुंड के दर्शन भी करते हैं. पौराणिक ग्रंथ बताते हैं कि शिव ने पार्वती के समक्ष केदारनाथ के मार्ग में पड़ने वाले गुप्तकाशी में विवाह प्रस्ताव रखा था. इसके बाद उन दोनों का विवाह त्रियुगीनारायण गांव में मंदाकिनी सोन और गंगा के मिलन स्थल पर संपन्न हुआ.
ऐसा भी कहा जाता है कि त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी. यहां शिव पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था. जबकि, ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे. उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था. विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रह्म शिला कहा जाता है, जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है. इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है.
विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं. इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है. सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है. जो भी श्रद्धालु इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं. वे यहां प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहे.
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